Thursday 28 July 2022

गांधारी बनी सोनिया गांधी और दुर्योधन की कथा दुहराते अधीर रंजन चौधरी नहीं जानते कि राष्ट्रपति शब्द कैसे बना

  दयानंद पांडेय 

राष्ट्रपति पद को , राष्ट्रपति शब्द को , इस की गरिमा को कभी राष्ट्रपत्नी की गाली में तब्दील होते हुए हम देखेंगे , कभी सोचा नहीं था। लेकिन कांग्रेस की सत्ता पिपासा का विष हमें इस राह तक ले आया है। अंगरेजी में प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया को जब हिंदी में लिखने की बात आई थी तब देश में इस पर बहुत लंबी बहस , विचार-विमर्श हुआ था। लेकिन सत्ता में बैठे लोग जब इस पर एक राय नहीं हो सके तब देश के लोगों को भी इस प्रक्रिया में शामिल करते हुए इस प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया शब्द के लिए हिंदी में कोई उपयुक्त शब्द देने का सुझाव मांगा गया। क्यों कि अध्यक्ष , सभापति आदि अनुवादिक शब्द वह प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे थे , जो छोड़ना चाहिए था। फिर जनता ने , अख़बारों ने , सामाजिक संगठनों आदि ने विभिन्न नाम के सुझाव दिए। बात बन नहीं रही थी। कि तभी बनारस से प्रकाशित होने वाले दैनिक आज ने एक संपादकीय लिख कर भारत सरकार को प्रेसिडेंट आफ़ इंडिया के लिए हिंदी में राष्ट्रपति शब्द सुझाया। 

और यह देखिए सभी ने सर्वसम्मति से इस शब्द को स्वीकार कर लिया। आज अख़बार पहले भी बहुत महत्वपूर्ण अख़बार रहा था पर राष्ट्रपति शब्द देने के बाद इस की प्रतिष्ठा में चार चांद लग गए। आप जाइए कभी दिल्ली में सफदरजंग में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री निवास में जहां इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। वह अब स्मारक बना दिया गया है। इंदिरा गांधी की हत्या संबंधी ख़बरों की कई कटिंग वहां लगी है। जिस में आज अख़बार की कटिंग बड़ी प्रमुखता से वहां चस्पा है। आज अख़बार की और भी कुछ समाचारों की कटिंग है वहां। आख़िर आज के संपादक रहे बाबूराव विष्णु पराड़कर का नाम भारतीय पत्रकारिता में वैसे ही तो नहीं बहुत आदर से लिया जाता है। पंडित कमलापति त्रिपाठी जैसे विद्वान भी आज के संपादक रहे हैं। पराड़कर जी भले मराठी थे पर हिंदी पत्रकारिता को जो उत्कर्ष उन्हों ने दिया वह अतुलनीय है। क्रांतिकारी पत्रकार पराड़कर ने पत्रकारिता की शुरुआत कोलकाता से की और हिंदी में ही की। बाद में वह जन्म-भूमि बनारस लौटे। 

बहरहाल उसी बंगभूमि के एक अराजक नेता अधीर रंजन चौधरी ने आज राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह कर अपनी सत्ता पिपासा के विष और अहंकार में डूब कर जो अपमान किया है , वह अक्षम्य है। अधीर रंजन चौधरी ने तमाम वाद-विवाद के बावजूद राष्ट्रपत्नी कहे जाने पर अपनी ग़लती तो स्वीकार कर ली है। बता दिया है कि हिमालयी ग़लती हुई है उन से। पर इस के लिए क्षमा मांगने से इंकार कर दिया है। क्यों कि भाजपा माफ़ी मांगने को कह रही है। ज़िक्र ज़रुरी है कि कांग्रेस में आने के पहले अधीर रंजन चौधरी नक्सली रहे हैं। तो एक तो नक्सली अराजकता दूसरे , कांग्रेसी अकड़। कलफ़ लगी अकड़। फिर अगर कांग्रेस और कम्युनिस्ट को मिला कर देखिए तो जो इस का केमिकल रिजल्ट आता है , वह रावण या कंस पैदा करता है। वही अहंकार , वही अराजकता और वही गुरुर अधीर रंजन चौधरी में बार-बार देखने को मिलता है। आज यह कुछ ज़्यादा दिख गया। लेकिन अधीर रंजन चौधरी से भी ज़्यादा अहंकार आज सोनिया गांधी में देखने को मिला। जब मीडिया ने संसद परिसर में सोनिया से इस बाबत माफ़ी मांगने के बाबत सवाल पूछा तो जिस अहंकार में चूर हो कर सोनिया ने जवाब दिया कि अधीर रंजन ने माफ़ी मांग तो ली है ! 

यह एक पंक्ति कहने में सोनिया की बॉडी लैंग्वेज में जो घमंड झलक रहा था , जो अहंकार और हिकारत छलक रही थी , उस की तुलना किसी रावण जैसे खल चरित्र से ही मुमकिन है। दिख रहा था कि रस्सी जल गई है , पर बल नहीं गया है। ऐंठ जस की तस है। सत्ता में बैठने का गुरुर है कि जाता नहीं है। साम्राज्ञी होने का दंभ अभी भी बरक़रार है। गोया नरेंद्र मोदी नहीं , अभी भी मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हों। ख़ुदा यह दंभ बरक़रार रखें। सर्वदा-सर्वदा बरक़रार रखें। देह भले टूट जाए , जैसे सत्ता टूट गई है। पर दंभ और अहंकार न टूटे। ई डी वग़ैरह चाहे जो कर लें। जानती तो गांधारी का प्रतिरुप सोनिया गांधी भी हैं कि नरेंद्र मोदी राज में वह कभी भी जेल नहीं जाएंगी। न उन का कुपुत्र राहुल गांधी या दामाद रावर्ट वाड्रा जेल जाएगा। जानती हैं सोनिया गांधी , अच्छी तरह जानती हैं कि नरेंद्र मोदी , मोरार जी देसाई सरकार की ग़लतियां नहीं दुहराने वाला। बस ई डी , वी डी की आइसपाइस का खेल चलता रहेगा। नरेंद्र मोदी जानता है कि जेल भेजने से भारत की दयालु जनता द्रवित हो कर सोनिया , राहुल की सत्ता वापसी करवा सकती है। सो जेल के दरवाज़े पर तो खड़ा रखेगा नरेंद्र मोदी , सोनिया , राहुल , वाड्रा को पर जेल भेजेगा नहीं। सोनिया के अग्गुओं , लग्गुओं , भग्गुओं की जेल यात्रा ज़रुर जारी रहेगी। यह बात भी दंभी सोनिया गांधी को मालूम है।  

हां , मुझे मालूम है कि नरेंद्र मोदी के जीवित रहते कोई और पार्टी भारत की सत्ता पर सवार नहीं हो सकती। कोई कुछ भी कर ले। कितना भी हाथ-पांव या सिर मार ले। 

खैर , बात राष्ट्रपति शब्द की हो रही थी। तो जैसे राष्ट्रपति शब्द आज अख़बार ने दिया देश को वैसे राष्ट्रपिता शब्द भी महात्मा गांधी को नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने दिया था। जब कि रवींद्रनाथ टैगोर ने इस के पहले ही गांधी को महात्मा की उपाधि दी थी। ख़ैर , गांधी को राष्ट्रपिता कहने पर भी दो धुर विरोधी लोगों को सख़्त ऐतराज रहा है। एक संघ के लोगों को। दूसरे , वामपंथियों को। गांधी और संघ के मतभेद किसी से छुपे नहीं हैं। और वामपंथी न गांधी को पसंद करते हैं न नेता जी सुभाषचंद्र बोस को। गांधी अहिंसा के पुजारी थे। और वामपंथी हिंसा के पुजारी। तीसरे , वामपंथी नेता जी सुभाषचंद्र बोस को हिटलर का कुत्ता कहने के आदी हैं। जब कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने और मोदी द्वारा बार-बार गांधी स्तुति से संघियों का यह ऐतराज थोड़ा डायलूट हुआ है। लेकिन वामपंथियों का नहीं। 

ख़ैर , इसी तरह लालक़िला पर पंद्रह अगस्त को राष्ट्र ध्वज फहराने को ले कर भी बहुत लोगों को दर्द होता है। उन लोगों को जान लेना चाहिए कि लालक़िला पर राष्ट्र ध्वज यानी तिरंगा फहराने का सपना नेता जी सुभाषचंद्र बोस का ही था। नेता जी के सपने को ही पूरा करने का फ़ैसला देश आज तक निभा रहा है। आगे भी निभाएगा। लाख अधीर रंजन चौधरी आते-जाते और पगलाते रहेंगे और विष वमन करते रहेंगे। पर राष्ट्रपति , राष्ट्रपिता और तिरंगे की शान में देश कभी किसी को बट्टा नहीं लगाने देगा। 

अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपत्नी शब्द पर कुछ मतिमंद एक कुतर्क यह दे रहे हैं कि बंगाली होने के कारण , हिंदी कम जानने के कारण ऐसा हो गया। मेरे एक आई ए एस मित्र हैं। इन दिनों अमरीका में अपने बच्चों के पास रहते हैं। हरियाणा से हैं। लखनऊ काफी समय रहे हैं। उत्तराखंड जब बना तो उत्तराखंड चले गए। मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं। लेकिन जब सेवा में थे तो मैं ने कई बार देखा कि अपने अधीनस्थों से बेहद बदतमीजी से पेश आते थे। मैं ने उन्हें बाद में कई बार इस बात पर टोका तो वह अपने हरियाणवी होने की आड़ वह हर बार ले लेते। कहते क्या करें , हमारी बोली ही ऐसी है। लेकिन कुछ मौकों पर देखा कि अपने सीनियर्स से बातचीत में वह लगभग दंडवत हो जाते थे। ख़ास कर एक बार एक मुख्यमंत्री के साथ जब उन्हें राइट सर ! राइट सर ! करते देखा तो बाद में उन से पूछा कि मुख्यमंत्री के सामने तो आप का हरियाणवी बर्फ़ की तरह पिघल कर बह गया ! तो वह झेंप कर मुस्कुराने लगे। 

तो रही बात अधीर रंजन चौधरी की तो वह तो हिंदी में श्रीमती राजीव गांधी भी सोनिया गांधी को कहने का साहस नहीं रखते। अधीर रंजन चौधरी भूल जाते हैं कि प्रणव मुखर्जी भी बंगाली थे। प्रणव मुखर्जी ने कभी किसी हिंदी शब्द का उपयोग किसी को अपमानित करने के लिए भ्रष्ट नहीं किया। बताता चलूं कि ठीक से हिंदी न जानने के कारण ही इच्छुक होते हुए भी प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री नहीं बन सके थे। पर जब पहली बार सांसद बन कर दिल्ली आए , बंगाल से तो राष्ट्रपति भवन के पास ही उन्हें रहने के लिए सरकारी घर मिला। राष्ट्रपति भवन की शानो-शौक़त देख कर उन्हों ने अपनी बड़ी बहन से कहा था कि मैं चाहता हूं कि अगले जन्म में घोड़ा बन कर राष्ट्रपति भवन में रहूं। प्रणव मुखर्जी ब्राह्मण थे पर राष्ट्रपति भवन में रहने के लिए अगले जन्म में घोड़ा बनने के लिए सपना देख रहे थे। पर उन का सौभाग्य था कि वह इसी जन्म में राष्ट्रपति भी बन गए और राष्ट्रपति भवन का सारा सुख लूट कर दिवंगत हुए। 

अधीर रंजन चौधरी ने लेकिन सोनिया गांधी जैसी दंभी स्त्री को ख़ुश करने के लिए राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह कर सिर्फ़ द्रौपदी मुर्मू को ही नहीं , राष्टपति पद को ही नहीं , समूचे देश और देश को अपमानित किया है। ठीक वैसे ही जैसे कभी दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण कर कर समूची स्त्री समाज का , समस्त मनुष्य जगत का अपमान किया था। गांधारी ने बहुत बिगाड़ दिया था दुर्योधन को। दुर्योधन को जीते जी उस चीर हरण का दंड मिल गया था। निश्चिंत रहिए , अधीर रंजन चौधरी , उन की आका गांधारी सोनिया और कांग्रेस को भी देश की जनता समय रहते दंड देगी। अधीर रंजन चौधरी देर-सवेर माफ़ी मांगेंगे , जैसे राहुल गांधी ने लिखित माफ़ी सुप्रीम कोर्ट में मांगी थी और दंड भी भोगेंगे। प्याज और जूता दोनों खाने का मुहावरा चरितार्थ करेंगे अधीर रंजन चौधरी ! और कि गांधारी , सोनिया भी। मैं तो सोच रहा हूं कि अधीर के अधर और जिह्वा कट क्यों नहीं गए राष्ट्रपत्नी कहते हुए !


2 comments:

  1. बहुत से विमर्श समेटे हुए ज्ञान वर्धक टिप्पणी है
    इतनी गहराई में जाकर परत दर पर्त खोलना आपकी विशेषता है 🌷🙏

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  2. आप जिस तरह से सच्चाई को सामने रखते हैं विशेषकर राजनेताओं के संबंध में
    मुझे नहीं लगता कि आज के दौर में कोई और ऐसी हिम्मत जुटा पर रहा है।
    या तो लोग चापलूसी में व्यस्त हैं या फिर सच बोलने, लिखने में डरते हैं।

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