Tuesday 5 October 2021

लखीमपुर में लाशों के साझे चूल्हे पर रोटी सेंकते लोग और कुछ सवाल

दयानंद पांडेय 

चुनाव का चरखा जो न करवा दे कम है। सूत तो सूत , लोहा भी कतवा दे। जो भी हो , लखीमपुर में लाशों के साझे चूल्हे पर रोटी सेंकने में कांग्रेस बेशक़ अव्वल निकली है। सपा के अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी कांग्रेस द्वारा जलाए गए लाश के इस साझे चूल्हे पर चुपके-चुपके रोटी सेंक रहे हैं। हैरत है कि वामपंथी रणबांकुरे लाशों के इस साझे चूल्हे पर अभी रोटी सेंकते नहीं दिखे। न ही ढपली बजाती , गीत गाती उन की नाटक मंडली की आमद है अभी तक। तो क्या उन का आटा खत्म हो गया है , लखीमपुर के लिए। या अभी आटा ही गूंथ रहे हैं। शिवपाल यादव नहीं दिखे तो कोई बात नहीं। बात समझ आती है कि मरने वालों में कोई यादव नहीं मिला होगा। और तो और असुदुद्दीन ओवैसी भी गोल हैं ज़मीन पर। हो सकता है , लाशों में कोई मुस्लिम न हो। पर दलितों की बहन मायावती भी इस लाशों के साझे चूल्हे से सिरे से अनुपस्थित हैं। एक बयान भी नहीं लुक हुआ है। तो क्या लखीमपुर की लाशों में कोई दलित भी नहीं है। या मायावती का आटा भी समाप्त हो गया। 

जो भी हो , किसान आंदोलन के लोग भले समझौते , एफ आई आर और मुआवजे से शांत दिख रहे हैं पर कांग्रेस बम-बम है। प्रियंका सीतापुर के पी ए सी गेस्ट हाऊस में झाड़ू लगा रही हैं। मोदी को संबोधित कर वीडियो दिखा रही हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री बघेल लखनऊ आ कर नाखून कटवा चुके हैं।  कल राहुल गांधी भी लखनऊ पहुंच कर नाखून कटवाएंगे। नाखून कटवा कर शहीदों में नाम दर्ज करवाएंगे। क्यों कि राहुल गांधी के इशारों पर अभी तक नाचने वाले राकेश टिकैत ने अचानक पाला बदल कर कल लखीमपुर में समझौता करवा कर अपनी निष्ठा बदल कर हाल-फ़िलहाल योगी सरकार की ज़बरदस्त मदद कर दी है। नहीं अगर कल यह समझौता नहीं करवाया होता टिकैत ने , हिंसा की आग पर मिट्टी न डलवाई होती तो लखनऊ में आज नरेंद्र मोदी के आज़ादी के अमृत महोत्सव की चमक चूर-चूर हो गई होती। समूचे उत्तर प्रदेश में आज आग ही आग दिखाई देती। जो भी हो सारी कसरत और क़वायद के बावजूद कसैला बोलने वाले राकेश टिकैत ने बता दिया है कि आग सिर्फ़ पानी से नहीं , मिट्टी डाल कर भी बुझाई जाती है। दिशाहीन आंदोलन की हवा ऐसे भी निकाली जाती है। 

अपने भ्रष्टाचार के लिए अरविंद केजरीवाल की तरह थप्पड़ खाने वाले शरद पवार लखीमपुर को जलियावाला बाग़ बता चुके हैं। चूहे की तरह छेद देखते ही घुस जाने वाले शिव सैनिक और सामना के कार्यकारी संपादक संजय राऊत भी लखीमपुर में लाख लगाने की बयान बहादुरी कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल में हिंसा की नित नई नदी बहाने वाली वहां की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी और झारखंड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन भी बयान बहादुरी में नाम दर्ज करवा चुके हैं। 

लाशें तो जल कर ख़ाक हो गई हैं पर लखीमपुर अभी भी लाल है। राजनीति की संभावनाएं मुंह बाए खड़ी हैं। सवाल यह फिर भी शेष है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र की सत्ता की नाव लखीमपुर की लाशों के इस साझे चूल्हे में जल जाएगी या बच जाएगी। और कि इस बाबत एफ आई आर में नामजद उन के बेटे से पुलिस पूछताछ कर भी पाएगी ? पूछताछ करेगी भी तो कब ? फिर दंगल के मुख्य अतिथि उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य लाशों के साझे चूल्हे से कब तक अनुपस्थित माने जाएंगे। आख़िर यह सारा दंगल उन के दंगल में पहुंचने की ही राह में ही तो संभव हुआ। मुख्य मीडिया ने भी जाने क्यों केशव प्रसाद मौर्या को बख्श रखा है। न कोई बयान है , न कोई बाईट , न कोई सवाल। प्रयाग में भी अभी यही हुआ था। महंत की हत्या या आत्महत्या की पूर्व संध्या पर भी वह महंत गिरी के साथ थे। ऐसा क्यों है कि केशव मौर्य जहां भी कहीं पहुंच रहे हैं , अनहोनी घट जा रही है। प्रयाग हो या लखीमपुर।

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