यह तो लगभग तय है कि अब कंगना रानावत भाजपा की अगली सांसद हैं। अब वह चुनाव हिमाचल के अपने गृह नगर से लड़ेंगी कि मुंबई से यह देखना शेष है। हो यह भी सकता है कि राज्यसभा में भी बैठ जाएं। क्यों कि 2024 अभी बहुत दूर है। इस लिए भी कि शिव सेना की गुंडई के खिलाफ कंगना सब कुछ दांव पर लगा कर , जिस ताकत और तेवर से रानी झांसी की तरह तन कर खड़ी हुई हैं , सारा रिस्क ले कर कि यह इनाम उन्हें मिलना ही है। कंगना ने जिस सख्ती से उद्धव ठाकरे और संजय राउत को उन की ही भाषा में चुनौती दी है , बीते दिनों में कोई खांटी भाजपाई भी नहीं दे पाया है। कंगना ने जिस नंगई से शिवसेना की ईंट से ईंट बजाई है कि शिवसेना की ज़मीन उखड़ गई है। पर इस पूरे तमाशे में जो इस से भी बढ़ कर भी दिलचस्प बात हुई है , वह यह कि तमाम वामपंथी बुद्धिजीवी भी सोशल मीडिया पर अब शिवसेना के साथ खुल कर लामबंद हो गए हैं। कांग्रेस तो शिवसेना की सत्ता में साझीदार है ही , अब वामपंथी भी आ गए हैं। और वामपंथी जिस के साथ आ जाएं , उन का क्या कहना ! कांग्रेस का हश्र लोग देख ही रहे हैं , शिवसेना का देखते चलिए। ग़ालिब शायद इन वामपंथी दोस्तों के लिए ही फरमा गए हैं:
ये फित्ना आदमी की खाना-विरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो।
याद रखिए कि मुंबई में कम्युनिस्टों से निपटने के लिए एक समय इंदिरा गांधी ने बाल ठाकरे को खड़ा किया था। बाल ठाकरे इंदिरा गांधी की ही फसल थे। हिंदुत्व की खेती भी बाल ठाकरे ने कम्युनिस्टों को ठिकाने लगाने के लिए की थी। अलग बात है कि बाद में ठाकरे ने शिवसेना के मार्फत कांग्रेस को भी ठिकाने लगाया। समय का पहिया देखिए कि अब वही कम्युनिस्ट उद्धव ठाकरे के साथ लामबंद हो गए हैं। रिया चक्रवर्ती मसले पर भी वह शिवसेना के साथ थे। पर बुरका पहन कर। छुप-छुपा कर। लेकिन कंगना रानावत मसले पर वामपंथियों ने यह बुरका भी उतार फेंका है। खुल कर खड़े हो गए हैं , शिवसेना की गुंडई के साथ। फासीवाद , असहिष्णुता , अभिव्यक्ति की आज़ादी आदि-इत्यादि का सारा गिनती , पहाड़ा और तराना भूल-भाल कर वह लाल झंडे को लंगोट की तरह पहन कर कूद पड़े हैं। इसी लिए ग़ालिब का वह मिसरा ज़्यादा मौजू हो गया है : हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमाँ क्यूँ हो।
कामरेड , कंगना रानावत , फासीवाद की शिकार है , असहिष्णुता की शिकार है कि सत्ता की गुंडई की ? या यहां भी चुनी हुई चुप्पी की रणनीति पर चादर ओढ़ कर सो जाना है।
सोशल कमिटमेंट वाले सारे फ़िल्मी सितारे कंगना रानावत मसले पर सो गए हैं। शबाना से स्वरा भास्कर तक। जे एन यू तक पहुंच जाने वाली दीपिका पादुकोण तक। अमिताभ बच्चन , शत्रुघ्न सिनहा , महेश भट्ट , जावेद अख्तर आदि-इत्यादि तक। आमिर खान , शाहरुख़ खान , नसीरुद्दीन शाह वगैरह तो ख़ुद ही डरे-डरे रहते हैं। पर एक से एक विशाल भारद्वाज , अनुराग कशयप का क्या करें। क्या करें अपने मोहतरम गुलज़ार साहब का भी। अनायास ही मुझे मार्टिन नीमोलर की वे पंक्तियां याद आने लगीं हैं जिन्हें शायद ब्रैख्त ने भी दुहराया है-
जर्मनी में नाजी पहले-पहल
कम्यूनिस्टों के लिए आए ....
मैं चुप रहा/क्योंकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
फिर वे आए यहूदियों के लिए
मैं फिर चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी भी नहीं था
फिर वे ट्रेड-यूनियनों के लिए आए
मैं फिर कुछ नहीं बोला, क्योंकि मैं तो ट्रेड-यूनियनी भी नहीं था
फिर वे कैथोलिको के लिए आए
मैं चूंकि प्रोटेस्टेंट था इसलिए इस बार भी चुप रहा
और अब जब वे मेरे लिए आए
तो किसी के लिए भी बोलने वाला बचा ही कौन था ?
जो भी हो रिया चक्रवर्ती के पाप और अपराध के साथ कदमताल करते हुए उद्धव ठाकरे अब कंगना रानावत के घर में तोड़-फोड़ करवा कर अपनी सरकार पर तो आफत ले ही ली है , शिवसेना की कब्र भी खोद ली है। कंगना ने ठीक ही कहा है कि उद्धव ठाकरे ने आज मेरा घर तोड़ा है , कल उद्धव ठाकरे का घमंड भी टूटेगा। उद्धव की सारी ताकत मुंबई और महाराष्ट्र में ही सीमित है पर कंगना तो पूरे देश क्या पूरी दुनिया में फैन फॉलोविंग है।
सत्यता लिखी है ,आज के तमाम लोग नहीं जानते शिवसेना की जन्मदाता कोंग्रेस है।दत्ता सामंत को स्व फर्नाडीज द्वारा हराने के बाद इसका जन्म हुआ ।
ReplyDeleteसत्यता लिखी है ,आज के तमाम लोग नहीं जानते शिवसेना की जन्मदाता कोंग्रेस है।दत्ता सामंत को स्व फर्नाडीज द्वारा हराने के बाद इसका जन्म हुआ ।
ReplyDeleteसत्यता लिखी है ,आज के तमाम लोग नहीं जानते शिवसेना की जन्मदाता कोंग्रेस है।दत्ता सामंत को स्व फर्नाडीज द्वारा हराने के बाद इसका जन्म हुआ ।
ReplyDeleteकाश उधों दीवार पर लिखी इबारत पद सकते, जहां शव सेना की समाप्ति का संदेश साफ साफ लिखा हुआ है, आपके लेख में कौमनश्टों का उल्लेख इसी बात की पुष्टि करता है
ReplyDeleteविचारणीय लेख
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