Wednesday, 22 July 2020

मी लॉर्ड कहलवाने वाले हरामखोर जज लोगों , आप की अस्मिता अब पूरी तरह खतरे में है

विक्रम जोशी की पुरानी फ़ोटो 

अपने को माननीय और मी लॉर्ड कहलवाने वाले हरामखोर जज लोगों आप की अस्मिता अब पूरी तरह खतरे में है। गंभीर खतरे में। अब लोग खुल्ल्मखुल्ला पुलिस से न्याय की अपील करते हुए अपराधियों के इनकाउंटर की मांग करने लगे हैं। विकास दुबे के भी इनकाउंटर की मांग भी पुलिस कर्मियों के परिजनों ने की ही थी। विकास दुबे का इनकाउंटर हुआ भी। इस के पहले हैदराबाद में बलात्कारियों का इनकाउंटर हुआ था। सिलसिला लंबा है। ताज़ा मामला , गाज़ियाबाद में कल हुई विक्रम जोशी की हत्या के बाद , उन के परिजनों का है। विक्रम जोशी की पत्नी , बहन , भांजा सभी न्याय के लिए पुलिस से इनकाउंटर की मांग कर रहे हैं। कुछ पत्रकार भी इसी न्याय की फरियाद लिख कर मांग रहे हैं। 

विद्वान वकील साहबान , आप लोग भी ध्यान दीजिए। जजों , अपराधियों के बीच दलाली अब से सही , बंद कीजिए। तारीखों के भंवरजाल , कुतर्कों और मोटी फीस के बूते , अपराधियों को बचाना बंद कीजिए। नहीं वह दिन दूर नहीं कि लोग , पुलिस से आप लोगों का इनकाउंटर करने की भी खुल्ल्मखुल्ला मांग करने लगेंगे। समाज को सभ्य समाज ही रहने दीजिए। बंबइया फिल्मों वाला समाज मत बनाइए। पानी सिर से ऊपर जा चुका है। न्यायपालिका पाताल लोक में जा चुकी है। ऊपर से नीचे तक की सभी कचहरियों में दीवारों पर टंगी , वादी का हित सर्वोच्च है कि तख्तियां अब बेमानी हो गई हैं। लोग इतने गुस्सा हैं कि अब इसे नोच फेकेंगे। आप आर्डर , आर्डर करते रह जाएंगे। और लोग आप को भी उठा कर फेंक देंगे। 

क्यों कि अब सभी अदालतों में अपराधी का हित ही सर्वोच्च हो गया है। सड़-गल कर जीर्ण-शीर्ण हो गई है हमारी न्यायपालिका। वह कहते हैं न कि , न्याय हो और होता हुआ दिखाई भी दे। ऐसा देखे तो दशकों बीत गया है। संभलो न्यायपालिका के कोढ़ी तथा हरामखोर जजों और वकीलों , संभलो। संभलो कि जनता आती है। क्यों कि तुम लोग अब न्याय के नाम पर सिर्फ दाग हो। जहरीला दाग। समय रहते अपना इलाज कर लो तो बहुत बेहतर। 

प्रेमचंद ने बहुत पहले ही लिखा था कि न्याय भी लक्ष्मी की दासी है। पर अब यह न्याय , यह न्यायपालिका तो बेल पालिका में तब्दील हो कर साक्षात रावण में तब्दील हो कर न्याय का अपहरण कर चुकी है। अफ़सोस कि अब कोई राम भी नहीं है कि इस अन्यायपालिका रूपी लंका पर चढ़ाई कर रावण का वध कर न्याय नाम की सीता को छुड़ा सके। अन्याय को खत्म कर सके। क्यों कि अगर पुलिस ही इनकाउंटर कर , कर के न्याय पर न्याय दिलाने लग जाएगी तो फिर हम एक जंगली राज का निर्माण कर बैठेंगे। सभ्य और सामाजिक जीवन त्याज किसी कबीलाई समाज में रहने लायक रह जाएंगे। आज पुलिस से लोग इनकाउंटर के न्याय की गुहार लगा रहे हैं। कल को खुद भी न्याय करने लग जाएंगे। ईंट का जवाब पत्थर से देने लग जाएंगे। तब तो मंज़र बहुत भयानक हो जाएगा। 

लेकिन न्यायपालिका के बेहद बीमार और बिकाऊ हो जाने के कारण यह भयानक मंज़र जैसे दस्तक दे रहा है। लगातार दरवाज़ा खटखटा रहा है। हमारा समाज रोक पाएगा , इस मंज़र को ? इस लिए भी कि न्याय , क़ानून और व्यवस्था की बात सिर्फ गरीब , कमजोर और निर्बल लोगों की जुबानी कवायद बन कर रह गई है। और अब यही लोग पुलिस से इनकाउंटर की गुहार लगा रहे हैं। न्यायपालिका से नहीं। बाकी समर्थ लोग तो हमेशा इस न्यायपालिका पर यकीन जताने वालों में से हैं। 

आप ने देखा ही होगा कि अमूमन हर अपराधी , चाहे हत्यारा हो या भ्रष्टाचारी अकसर बड़ी शान से टी वी चैनलों पर सीना फुला कर कहता है कि मुझे अपनी  न्यायपालिका पर पूरा यकीन है। पूरा भरोसा है। कैसे और किस अधिकार से कह लेते हैं यह सब , यह लोग। और यह देखिए , चुटकी बजाते ही इन कमीनों को न्याय मिल भी जाता है। यह हरामखोर और लतिहड़ जज और वकील , कंचन और कामिनी की सेवा पा कर उसे न्याय दिला भी देते हैं। न्याय फिर लक्ष्मी की दासी बन जाता है। लेकिन गरीब , कमज़ोर और निर्बल आदमी अब पुलिस से इनकाउंटर का न्याय मांगने पर विवश , लाचार और अभिशप्त हो गया है। तो अब ?

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