जान लीजिए चीन डरा हुआ है। भारत बीस है , चीन नहीं। सैनिक मोर्चे पर भी और कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत चीन पर भारी है। रहेगा। भारत में बसे चीन के समर्थक कुत्तों को यह बात समय रहते समझ लेना चाहिए। यह भी कि इन छ सालों में सिर्फ कूटनीतिक सफलता ही नहीं मिली है भारत को , सैनिक मोर्चों पर भी समृद्ध हुआ है भारत। नहीं जानते लोग तो अब से जान लें कोई हर्ज नहीं है। यह कि अटल बिहारी वाजपेयी ने तमाम खतरे और पाबंदियां भुगतते हुए भी परमाणु विस्फोट किया था तो पाकिस्तान जैसे मरगिल्ले देश के लिए नहीं , चीन के लिए किया था। और कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राफेल सौदा किया तो कुत्ते पाकिस्तान के लिए नहीं , कमीने चीन के लिए किया है। वह चीन ही था , पाकिस्तान नहीं , जिस ने भारत में राफेल सौदे पर हल्ला-गुल्ला और कोहराम मचाने की साज़िश अपने पालतू वामपंथी कुत्तों के मार्फत करवाया था।
निश्चिंत रहिए कोरोना में अगर मोदी सरकार कुछ अव्यवस्थित दिखी तो सिर्फ इस लिए कि मोदी का सारा ध्यान बिलकुल इसी समय चीन पर केंद्रित हो गया था। यह बात मैं ने पहले भी लिखी थी। फिर दुहरा रहा हूं कि वामपंथियों ने ही मज़दूरों को कोरोना काल में भड़का कर जन विद्रोह में तब्दील किया। मंशा गृह-युद्ध फ़ैलाने की थी। और कि यह सब चीन के इशारे पर हुआ। भूखे पेट , नंगे पांव / कैसे पहुंचा अपने गांव / हम याद रखेंगे / इस का हिसाब रखेंगे। जैसे गीत इसी रणनीति के तहत बोए गए हैं। संयोग ही है कि मज़दूरों का गुस्सा जनविद्रोह में तब्दील हो कर भी शोला नहीं बन पाया। मज़दूर अब सामान्य होने लगे हैं। अपने काम पर लौटने लगे हैं।
पंजाब में लौट रहे मज़दूरों का स्वागत हो रहा है तो चीनी सरहद पर चीनी सैनिकों की सनक उतारी जा रही है। यह सब अचानक नहीं हुआ है। कोरोना भले अचानक आया है पर चीनी चालबाजी तो अरसे से जारी है। भारत में सिर्फ पाकिस्तान समर्थक ही नहीं चीन समर्थक भी बहुतेरे हैं। कदम-कदम पर थाली में छेद करने के अभ्यस्त भी बहुतेरे हैं। सोशल मीडिया में कुछ टिप्पणियां देख कर लगता है कि पराजित भारत देखने की लालसा और अभिलाषा कितनी तीव्र है कुछ लोगों की। दुर्भाग्य कि उन की इस अभिलाषा और लालसा की प्यास बुझने वाली नहीं है। एक पुरानी कहावत की याद करते हुए कहना चाहता हूं कि कोरोना और चीनी एक साथ मिलें तो पहले चीनी को मारिए , कोरोना को बाद में देख लीजिएगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने यही किया है। इस कहावत को चरितार्थ किया है। सवाल पूछना , सतर्क रहना बहुत ज़रूरी है। पर बाक़ी तय तो आप को ही करना है कि आप भारत के साथ हैं कि चीन के साथ।
सामयिक और महत्त्वपूर्ण लेख
ReplyDeleteसार्थक आलेख।
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