Thursday 21 June 2018

आप की मंज़िल क्या पाकिस्तान की तरह बरबाद जीवन जीना है ?

माई नेम इज खान की त्रासदी अमरीका में भी अचानक नहीं आई । पैराशूट से नहीं उतरी । लेकिन अब दुनिया भर में यह समस्या घर कर रही है । हाल ही में सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण पाकिस्तान के प्रधान मंत्री तक अमरीका में कपड़े उतरवा कर बेज्जत हुए हैं । भारत में भी यह माई नेम इज खान वाली समस्या गहरी हो रही है । बहुत गहरी । यह ठीक नहीं है इस के लिए अकेले मुसलमान ही ज़िम्मेदार नहीं हैं । लेकिन इस का इलाज अकेले मुसलमानों के ही हाथ में है । अब से ही सही कम से कम भारतीय मुसलमान अपनी कट्टरता और अल्पसंख्यक और वोट बैंक का ठप्पा हटा कर मुख्य धारा में आ कर स्वाभिमान से रहना सीखें । दुनिया में ही नहीं भारत में भी उन की अच्छी खासी आबादी है । सही मायने में वह अल्पसंख्यक नहीं हैं । दोगली राजनीति ने उन्हें अल्पसंख्यक बना कर बेवकूफ बना रखा है । अच्छा सिख भी तो अल्पसंख्यक हैं । उन के लिए कोई सच्चर कमेटी क्यों नहीं बनी ? उन का रहन-सहन , उन का जीवन स्तर इतना बेहतर कैसे हो गया ? वह तो रिफ्यूजी बन कर आए थे । फिर आप तो यहां रुलर थे , नवाब थे । क्यों इतना पीछे रह गए ? आप सिर्फ़ मुस्लिम बन कर ही क्यों रह गए ? भारतीय बन कर ही आप अपनी पहचान क्यों नहीं कायम करना चाहते ? आप की असली और सार्वजनिक पहचान भारतीय की होनी चाहिए । मुस्लिम होना व्यक्तिगत । सारी समस्याओं का हल यही है । मुसल्लम इमान ही तो मुसलमान होना है । भारतीयता को पहला इमान बनाइए। काहे का भला मिनी पाकिस्तान । पाकिस्तान जो इतना ही अच्छा होता तो आप यहां नहीं होते , पाकिस्तान में ही होते ।

असल में मुस्लिम समाज में शिक्षा और सामाजिक सुधार की सख्त ज़रूरत है । राजनीतिक पार्टियों और कट्टर बुद्धिजीवियों के सेक्यूलरिज्म के झांसे से निकल कर भारतीय मुसलमानों को कट्टरता से अलग अपनी नई पहचान कायम करने की ज़रूरत है । नहीं ओला , एयरटेल , पासपोर्ट हर कहीं समस्याएं बढ़ती जाएंगी । और आप अपने को सभ्य नागरिक साबित करने में सारी ऊर्जा खर्च कर अपने को अपमानित करवाते रह जाएंगे । याद रखिए कि किसी कारण नदी का पानी गंदा हो जाता है तो उस नदी की पूजा करने के बावजूद लोग उस का पानी नहीं पीते , आचमन नहीं करते , उस में नहाते भी नहीं । गंगा सहित अपने देश की तमाम नदियों का यही हाल हो गया है । फिर आप तो मनुष्य हैं । मनुष्यता छोड़ कर सिर्फ मुस्लिम होने की पहचान काफी नहीं है । अपनी मुस्लिम पहचान के साथ अपने सभ्य शहरी होने की पहचान भी कायम करनी बहुत ज़रूरी है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया भर के मुसलमानों की पहचान खतरे में डाली है इस बात को समझना ज़रूरी है । भारत में मौलानाओं के कट्टर रवैए ने इस में बहुत इज़ाफ़ा किया है ।

अभी वाट्स अप पर एक लतीफ़ा चला है । लतीफ़ा ज़रूर है पर इस में एक गहरा संदेश भी छुपा है । लतीफ़ा अंगरेजी में है । लतीफ़े के मुताबिक़ अमरीका में एक टाइगर ने एक लड़की पर हमला कर दिया । लेकिन एक व्यक्ति ने लपक कर टाइगर से लड़की को बचा लिया और टाइगर को मार डाला । एक रिपोर्टर ने उस व्यक्ति की तारीफ करते हुए कहा कि एक अमरीकी हीरो ने टाइगर को मार कर लड़की को बचा लिया । उस आदमी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मैं विदेशी हूं । तो रिपोर्टर ने बात बदलते हुए कहा कि एक विदेशी हीरो ने टाइगर को मार कर लड़की को बचा लिया । फिर उस आदमी ने बताया कि , मैं पाकिस्तानी हूं । रिपोर्टर ने तुरंत रिपोर्ट बदल दी और ब्रेकिंग न्यूज़ चलाते हुए बताया कि एक आतंकवादी ने इनोसेंट टाइगर को मार डाला जब कि एक लड़की उस टाइगर के साथ खेल रही थी। 

सोचिए कि एक पाकिस्तानी , एक मुस्लिम की यह छवि अगर बन रही है तो यह खतरे की बड़ी घंटी है । मुस्लिम समाज को अपनी इस छवि को बदलने की कोशिश करनी चाहिए । न कि ऐसी बात सुनते ही हमलावर होने की । मुस्लिम समाज के उदार लोगों को आगे आ कर अपने समाज में बदलाव की तरकीब निकालनी चाहिए ।

नहीं अगर भारत का बहुसंख्यक हिंदू समाज एक अल्पसंख्यक समाज से इस तरह डर कर या बिदक कर अलग होने लगा है , डरने लगा है , वह समाज जो अभी तक गंगा जमुनी तहजीब में यकीन करता है तो यह बड़ी घटना है । यह जहरीले सेक्यूलर लोगों के झांसे में आ कर मुस्लिम समाज अपने को बरबाद नहीं करे । पूरा भारत हिंदूवादी नहीं है , संघी , भाजपाई नहीं है । उदार हिंदू ज़्यादा हैं इस देश में । और संयोग से मैं हिंदूवादियों और सेक्यूलरिज्म की दुकान चलाने वाले दोनों को ठीक से जानता हूं । कह सकता हूं कि मुस्लिम समाज की रक्षा के नाम पर यह सेक्यूलर ज़्यादा जहर घोलते हैं और मुसलमानों को उकसा कर उन का बहुत नुकसान करते हैं । मुट्ठी भर इन सेक्यूलर दुकानदारों के पास अपनी कोई ठोस ज़मीन नहीं है । संघी , भाजपाई की निंदा और उलाहने की एक हवा-हवाई दुकान है बस । मुस्लिम समाज को सोचना चाहिए कि आखिर उन के पास अपना एक सुलझा हुआ नेतृत्व क्यों नहीं है। क्यों उन्हें कुछ कट्टर लोग जब चाहते हैं , जहां चाहते हैं , गाय , बकरी , भेड़ की तरह हांक देते हैं । ए पी जे अब्दुल कलाम , अब्दुल हमीद जैसे लोग उन के आदर्श क्यों नहीं है । उन की अगुवाई आज़म खान या ओवैसी जैसे लोग ही क्यों करते हैं ? अशफाकुल्ला की जगह अफजल गुरु कैसे आप के आदर्श होने लगे ? फिर बार-बार मुसलमानों को ही अपनी देशभक्ति अब क्यों साबित करनी पड़ती है । कभी इस बिंदु पर सोचा है ? दुनिया भर में आप तबाही के पर्याय क्यों बनते जा रहे हैं , कभी सोचा है ?

सौ बात की एक बात दुनिया में मुस्लिम समाज से लोग क्यों बिदक रहे हैं , क्यों डर रहे हैं । और कि मुस्लिम बहुल बस्ती को मिनी पाकिस्तान का दर्जा क्यों देने लगे हैं । क्या पाकिस्तान ही आप का आदर्श है । आप की मंज़िल क्या पाकिस्तान की तरह बरबाद जीवन जीना है ? अगर ऐसा ही है तब तो मुझे कुछ नहीं कहना । लेकिन मैं अपने तमाम मुस्लिम दोस्तों को जितना जानता हूं उस हिसाब से जानता हूं कि मुस्लिम समाज भी सभ्य शहरी बन कर सम्मान से जीना चाहता है । कबीलाई समाज नहीं बनना चाहता । तो दोस्तों अपने को , अपने समाज को अब से सही बदलिए । यह क्या कि माई नेम इज खान कहते ही दुनिया भर के हवाई अड्डों पर आप के कपड़े उतरने लगें । ओला ड्राइवर कहने लगे कि वह तो मिनी पाकिस्तान है , वहां हम नहीं जाएंगे । और आधी रात आप को बीच रास्ते उतार दे । जब , तब एयरटेल जैसी स्थिति आ जाए । पासपोर्ट के लिए भी आप को जब-तब लड़ना पड़े । पहले तो ऐसा नहीं था । यह हम कौन सा भारत और कौन सा समाज बना रहे हैं । निश्चित ही आप भी ऐसा समाज और ऐसा भारत या ऐसी दुनिया नहीं क़ुबूल करेंगे । देश के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलना सीखिए। निकलिए मिनी पाकिस्तान की कट्टर छवि से ।

जैसे पूरा देश ए पी जे अब्दुल कलाम का नाम सुनते ही श्रद्धा से सिर झुका लेता है , अल्लाह ताला से मनाईए कि माई नेम इज खान सुन कर उसी गुमान से सब का सिर गर्व से आप के लिए उठ जाए । न सिर्फ़ भारत में बल्कि समूची दुनिया में । कबीलाई सोच और ओवैसी , आज़म खान जैसे दुकानदारों की घृणित सोच से छुट्टी लीजिए यह लोग आप का नुकसान कर रहे हैं । बहुत ज्यादा नुकसान । मुस्लिम समाज पर अब और बट्टा न लगने दीजिए । मुस्लिम बन कर ही नहीं , सच्चे भारतीय बन कर जीना सीखिए , सब कुछ सामान्य हो जाएगा । भारतीय पहले बनिए । लीजिए अमीर खुसरो के कुछ दोहे पढ़िए और अपना मुस्तकबिल संवारिए :

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पिया को, दोऊं भए इक रंग।।

खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।

खुसरो मौला के रूठते, पीर के सरने जाय।
कह खुसरो पीर के रूठते, मौला नहीं होत सहाय।

उज्ज्वल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखन में तो साध है, पर निपट पाप की खान।।

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डाले केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भई चहूँ देस।।

खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जलाय।
आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजाय।।

श्याम सेत गोरी लिए, जनमत भई अनीत।
इक पल में फिर जात हैं, जोगी काके मीत।।

अंगना तो परबत भया, देहरी भई बिदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

साजन ये मति जानियो, तोहे बिछड़त मोको चैन।
दिया जलत है रात में, और जिया जलत दिन रैन।।

पंखा हो कर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो, तेरे लेखन भाव।

रैन बिना जग दुखी है, और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी, और दुखी दरस बिन नैन।।

नदी किनारे मैं खड़ा, सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरो मैं सांवरी, अब किस विध मिलना होय।।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाएंगे, जैसे रणरेही का खेत।।

खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बांचे कोय। 
बेद कुरान पोथी पढ़े, प्रेम बिना न होय।।

आ साजन मेरे नैनन में, सो पलक ढांप तोहे दूं।
न मैं देखूं औरन को, न तोहे देखन दूं।।

अपनी छवि बनाय के, मैं तो पी के पास गयी।
जब छवि देखि पीहूं की, सो अपनी भूल गयी।।

खुसरो सरीर सराय है, क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा साँस का, बाजत है दिन रैन।।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-06-2018) को "करना ऐसा प्यार" (चर्चा अंक-3010) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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