Friday 22 September 2017

गोदी मीडिया का स्लोगन दे कर प्रणव रॉय खुद काले धन की गोद में न बैठे होते तो शायद यह दिन न आता


अंध सेक्यूलरिज्म का झांसा राजनीति से उतर कर मीडिया में भी अपनी परिणति पर आ गया है । तो भी एन डी टी वी का इस तरह बिक जाना दुखद है । भारतीय पत्रकारिता का यह दुर्भाग्यपूर्ण दिन है । लेकिन गोदी मीडिया का स्लोगन दे कर प्रणव रॉय खुद काले धन की गोद में न बैठे होते तो शायद यह दिन न आता । एन डी टी वी बिकाऊ तो पहले ही से था । पहले उसे कांग्रेसियों और वामपंथियों ने ख़रीद रखा था अनौपचारिक रुप से । लेकिन अब उस के शेयर बिके हैं । इस कारण उस का मालिकाना हक़ बदल गया है । पहले वह कांग्रेस और लेफ्ट का स्पीकर था अब संभवतः भाजपा का स्पीकर बन जाएगा । किसी भी मीडिया हाऊस का किसी का स्पीकर बनना दुर्भाग्यपूर्ण होता है । उस से भी ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण होता है उस का बिक जाना । एन डी टी वी ने न्यूज़ के नाम पर नमक में दाल इतना खिला दिया कि उस का यह हश्र होना ही था । व्यवसाय करते हुए , मनी लांड्रिंग करते हुए , दुनिया भर के अनाप-शनाप काम करते हुए आप मीडिया के नाम पर सारे अनैतिक काम करें और सरकार से लड़ते भी रहें , और कि कोई आप को छुए भी नहीं , मुमकिन नहीं होता । लेकिन प्रणव रॉय को कोई यह समझाने वाला नहीं रहा कि मनी लांड्रिंग और माइकल टाईसन का मुक्का एक साथ नहीं चल सकता । इस लिए भी कि व्यवसाय और मीडिया दोनों दो चीज़ हैं । अगर एन डी टी वी सिर्फ़ मीडिया होता , व्यवसायी नहीं तो बात कुछ और होती । होशियार व्यवसायी सरकार बदलते ही अपनी दुनिया , अपने सरोकार , अपनी प्रतिबद्धता बदल लेता है । लेकिन मीडिया को नहीं बदलना चाहिए । इस लिए भी कि मीडिया अपने आप में मुकम्मल प्रतिपक्ष होता है । लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुस्तान में अब ऐसा मीडिया नहीं रहा जिस के लिए अकबर इलाहाबादी लिख गए हैं :

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो 
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो

तो अपने व्यावसायिक हित साधने के लिए प्रणव रॉय ने रवीश कुमार जैसे सिंसियर रिपोर्टर को नफ़रत का तोपखाना बना दिया । एक समय की जांबाज रिपोर्टर रही प्रभा दत्त की बेटी बरखा दत्त को पूरमपूर दलाल बना कर नीरा राडिया का कैरियर बना दिया । विनोद दुआ जैसे प्रतिभाशील एंकर को नागफनी बना दिया । एन डी टी वी को एकपक्षीय और जहरीली रिपोर्टिंग का अड्डा बना दिया । प्रणव रॉय खुद भी एक प्रतिभाशील टेलीकास्टर रहे हैं लेकिन उन्हों ने अपने आप को भी भड़भूज बना लिया । जब कि वह न्यूज़ चैनल की दुनिया के रामनाथ गोयनका बन सकते थे । अलग बात है कि बाद के दिनों में रामनाथ गोयनका भी अपने व्यावसायिक हितों के मद्देनज़र झुक गए थे । यह राजीव गांधी का समय था । ब्रिटिश राज में नहीं झुके थे गोयनका , न इंदिरा गांधी के इमरजेंसी राज में लेकिन एक एक्सप्रेस बिल्डिंग के अवैध एक्सटेंसन को बचाने के लिए वह राजीव गांधी सरकार के आगे झुक गए । प्रणव रॉय ने पहले दूरदर्शन फिर स्टार न्यूज़ और फिर एन डी टी वी के मार्फ़त भारत की पत्रकारिता को निश्चित रुप से एक मोड़ , एक शार्पनेस दी । एक तेवर दिया । भूत प्रेत और अंधविश्वास नहीं परोसा । खांटी न्यूज़ परोसी । वह जल्दी हिंदी नहीं बोलते हैं कैमरे पर और अंगरेजी में ही सांस लेते हैं । लेकिन हिंदी में लिया पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ का वह लंबा इंटरव्यू मेरे मन में अभी भी किसी तस्वीर की तरह टंगा हुआ है जिस में उन्हों ने परवेज़ मुशर्रफ की तबीयत से धुलाई की थी । बिना किसी चीख़-चिल्लाहट के मुशर्रफ को कई बार निरुत्तर कर दिया था । मुशर्रफ की घिघ्घी बंध-बंध गई थी इस इंटरव्यू में । प्रणव रॉय की समझ पर भी कभी संदेह नहीं रहा लेकिन एकपक्षीय रिपोर्टिंग करते-करवाते उन का एप्रोच बाद के दिनों में ख़ुदा होने का हो गया । हबीब जालिब के एक शेर में जो कहें तो :

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था 
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था 

वह गांधी का वह कहा भी भूल गए कि साध्य ही नहीं , साधन भी पवित्र होने चाहिए । ब्लैक मनी की आंधी में ऐसे गिरफ़्त हुए कि पत्रकारिता छोड़ कर गिरोहबंदी पर आमादा हो गए । दूरदर्शन की सरकारी पत्रकारिता की आदत उन्हें भ्रष्ट बना गई । अपने इस भ्रष्ट आचरण को छुपाने के लिए प्रणव रॉय ने सेक्यूलरिज्म की आड़ ली और निगेटिव पत्रकारिता की नदी में बह चले । खबरों की समझ और धार की ख़ुशबू को गैंग के एक पक्षीय गटर में बहा दिया । तरुण तेजपाल ने काले धन की नदी में जैसे तहलका को और ख़ुद को तबाह कर लिया , ठीक वही काम प्रणव रॉय ने एन डी टी वी को तबाह कर , कर दिया है । तरुण तेजपाल और प्रणव रॉय दोनों ही ने सेक्यूलरिज्म को गंगा समझ लिया कि सेक्यूलरिज्म की गंगा में नहा कर सारे आर्थिक पाप , सारे धतकरम धो ले जाएंगे । यहीं फंस गए यह दोनों । तरुण तेजपाल तो शुरू ही से तहलका के दलदल में खड़े थे , झूठ और फरेब के दलदल में थे , प्रणव रॉय बाद में इस दलदल में धंसे । ऐसा फंसे कि फिर निकलना मुश्किल हो गया । हम अभी प्रणव रॉय के आर्थिक अपराधों की गठरी नहीं खोल रहे । यहां यह विषय है भी नहीं । लेकिन सरकार के सुर में सुर मिलाने वाली पत्रकारिता के इस कठिन समय में सरकार के सुर में सुर न मिलाने वाले एन डी टी वी का इस तरह बिक जाना , वह भी भाजपा से संबद्ध व्यवसाई स्पाईस जेट के अजय सिंह के हाथ बिक जाना निश्चित ही भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है । इस लिए भी कि भारत में वर्तमान में विपक्ष वैसे ही मरणासन्न है , ऐसे में मीडिया भी सरकार के साथ मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ! गाने में व्यस्त है तो कोई तो एक मीडिया होना ही चाहिए जो सत्ता के सुर में सुर न मिला जनता का सुर भी बने । प्रणव रॉय ने काले धन की हवस में खुद को जेल जाने से बचाने के लिए एन डी टी वी का यह सौदा कर के ठीक नहीं किया है । फिर से दुहरा दूं कि गोदी मीडिया का स्लोगन दे कर प्रणव रॉय खुद काले धन की गोद में न बैठे होते तो शायद यह दिन न आता । समय आ गया है कि मीडिया को काले धन की गोद से उतार कर जनता के हितों के लिए खड़ा किया जाए और सत्ता के सुर में सुर मिलाने वाली मीडिया को भी सबक सिखाया जाए । फ़िलहाल तो बशीर बद्र के यह तीन शेर बड़ी शिद्दत से याद आ रहे हैं :

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आयेगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी का ग़ुलाम है

मैं ये मानता हूँ मेरे दिये तेरी आँधियोँ ने बुझा दिये
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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