Friday 22 April 2016

केंद्र की सरकार , कांग्रेस और नैनीताल हाईकोर्ट तीनों ही बेईमानी भरी क़वायद में गश्त कर रहे हैं

हरीश रावत
उत्तराखंड के निवर्तमान मुख्य मंत्री हरीश रावत का जलवा तो देखिए कि राष्ट्रपति शासन के मद्दे नज़र नैनीताल हाईकोर्ट का लिखित आदेश अभी किसी के हाथ नहीं है। इस लिए कि अभी दोनों जजों ने आदेश लिखवा कर दस्तखत ही नहीं किया है। लेकिन हरीश रावत ने आज दोपहर आनन फानन कैबिनेट की बैठक बुला ली । लेकिन शाम होते ही सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के मौखिक आदेश पर भी स्टे दे दिया है। इतनी जल्दी क्या थी हरीश रावत । सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद रावत कह रहे हैं कि  वह निवर्तमान मुख्य मंत्री हैं । यह ठीक वैसे ही है जैसे मुलायम सिंह कहते हैं कि  मैं सी बी आई से सर्टिफाइड ईमानदार हूं ।
बहरहाल इस बात से तो मैं भी पूरी तरह सहमत हूं कि किसी भी सरकार के बहुमत का फैसला विधान सभा या लोक सभा के फ्लोर पर ही होना चाहिए। संविधान में भी यह पूरी तरह स्पष्ट है । लेकिन जब फ्लोर पर इस की नौबत आती है तो आप भाग लेते हैं । ख़रीद-फरोख्त पर आ जाते हैं। शक्तिमान घोड़े की नौटंकी पर उतर आते हैं । उसे ऐसे श्रद्धांजलि परोसते हैं जैसे वह कितना बड़ा शहीद हो। विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत जैसे अपने सहयोगियों को संभाल नहीं पाते और राजनीतिक विधवा रुदन पर आ जाते हैं। विधायकों की खरीद फरोख्त से आगे निकल कर जजों की ख़रीद फरोख्त पर आ जाते हैं । यह क्या है ? 
जी हां , मैं बहुत साफ कहना चाहता हूं कि राष्ट्रपति शासन रद्द करने के बाबत नैनीताल हाईकोर्ट के दोनों जज कल बिक गए थे । जिस तरह की उन की टिप्पणियां राष्ट्रपति को ले कर आई हैं वह यही बताती हैं । कहा कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं हैं । अब इन मूर्ख न्याय मूर्तियों को कौन समझाए कि इस देश में जनता जब अपने पर आती है तो भगवान मान रहे राजा को भी नहीं बख्शती । राम की पूजा करती है लेकिन राजा राम द्वारा दिए गए सीता वनवास को आज भी माफ़ नहीं करती । ऐसे अनेक उदहारण भरे पड़े हैं । ठीक वैसे ही जैसे भारतीय राजनीति में आया राम , गया राम के उदाहरण । लोग भूले नहीं हैं कि हरियाणा में देवीलाल विधानसभा चुनाव जीत कर आए लेकिन सरकार कांग्रेस के भजन लाल ने बनाई । अभी पूर्व कानून मंत्री और कांग्रेसी नेता हंसराज भारद्वाज ने साफ बताया है कि बीते समय में कैसे तो सोनिया मुलायम सिंह की सरकार गिराने को उत्सुक थीं । 
ख़ैर , ऐसे मामलों में अमूमन अगर आदेश नहीं लिख पाते हैं जज तो उसे रिजर्व कर लिया करते हैं। लेकिन यहां तो मौखिक आदेश पर ही सारा कुछ हो गया । इन जजों को संयम बरतना था और हरीश रावत को धैर्य । केंद्र की मोदी सरकार को भी राष्ट्रपति शासन की हड़बड़ी भरी गड़बड़ी से बचना था । पर क्या संसद , क्या , सरकार , क्या न्यायालय सभी धन और अनैतिकता के तराजू पर हैं । जिस का पलड़ा भारी , वही सिकंदर । वैसे मैं ने कल ही अभी लिखा था कि 

 नैनीताल हाईकोर्ट के दोनों जजों ने कांग्रेस का नमक अदा किया है । यह अदालती नहीं राजनीतिक फ़ैसला है। कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करना यही बताता है। राष्ट्रपति पर जिस तरह की छिछली टिप्पणी की है इन जजों ने वह भी इन जजों के चश्मे को बहुत स्पष्ट बता देता है । बड़े-बड़े अक्षरों में लिख कर रख लीजिए सुप्रीम कोर्ट नैनीताल हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलट देगा ।
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सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला  पलटा तो नहीं है पर स्टे ज़रूर लगा दिया है । पलटना इस लिए नहीं हो पाया कि आदेश ही नहीं आया है अभी । उत्तराखंड की उलटबासी में अभी कई बेईमान इबारतें लिखी जानी शेष हैं । इस लिए भी कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार , कांग्रेस और उस के हरीश रावत और नैनीताल हाईकोर्ट तीनों ही बेईमानी भरी क़वायद  में गश्त कर रहे हैं । दिक्कत यह है कि सुप्रीम कोर्ट भी दूध की धोई नहीं है । बस एक क्षीण सी उम्मीद बची हुई है न्याय की । न जाने क्यों ?

अगर सुप्रीम कोर्ट भी बेईमानी पर नहीं उतरी तो कायदे से उत्तराखंड विधान सभा बहाल कर जिन विधायकों की सदस्यता रद्द हुई है , उन्हें भी बहाल कर सरकार का शक्ति परीक्षण विधान सभा के फ्लोर पर ही किया जाना चाहिए । दूध का दूध , पानी का पानी वहीं होना चाहिए । गरज यह कि हार्स ट्रेडिंग में जो बाजी मार ले जाएगा , सिकंदर वही कहलाएगा। शक्तिमान फैक्टर बहुत बड़ा है ।

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