Friday 31 January 2014

स्त्री मन को झकझोर देने वाली कहानियां

 [शन्नो अग्रवाल कोई पेशेवर आलोचक नहीं हैं । बल्कि एक दुर्लभ पाठिका हैं । कोई आलोचकीय चश्मा या किसी आलोचकीय शब्दावली, शिल्प और व्यंजना या किसी आलोचकीय पाठ से बहुत दूर उन की निश्छल टिप्पणियां पाठक और लेखक के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाती हैं । शन्नो जी इस या उस खेमे से जुडी हुई भी नहीं हैं । यू के में रहती हैं, गृहिणी हैं और सरोकारनामा पर यह और ऐसी बाक़ी रचनाएं पढ़ कर अपनी भावुक और बेबाक टिप्पणियां अविकल भाव से लिख भेजती हैं । ]
 
शन्नो अग्रवाल

प्रेम शब्द से सारी दुनिया परिचित है l यह एक ऐसी अनुभूति है जिस के बिना इंसान को सारा जीवन निरर्थक लगने लगता है l इस अनुभति के विभिन्न रूप लोगों के जीवन में देखने को मिलते हैं l प्रेम कहीं पूजा है, कहीं तपस्या है l प्रेम के बिना जीवन मरुथल है l इस के बिना इंसान को जीवन की राहें बहुत लंबी लगने लगती हैं l समय-समय पर इसके बारे में कहानियाँ भी लिखी गयी हैं l प्रेम राधा और मीरा ने कृष्ण से किया l प्रेम के उदाहरण लैला-मजनू, शीरीं-फरहाद भी हैं l प्रेम के नाम पर लोगों की गर्दनें भी कट गयी हैं l कई बार प्रेम लोगों के मरने के बाद भी अमर रहता है l उन की गाथायें गाई जाती हैं l शाहजहाँ का प्रेम मुमताज के लिए ताजमहल के रूप में देखने को मिलता है l स्त्री-पुरुष के संबंधों में प्रेम के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं l अपनी सात प्रेम कहानियों में प्रसिद्ध लेखक दयानंद पांडेय जी ने स्त्री-पुरुष के समकालीन प्रेम संबंधों का विवरण अपनी सरल, सहज सुंदर भाषा-शैली में जिस तरह किया है उसे पढ़ कर पाठक का मन आंदोलित हो उठता है l मन स्त्री-पुरुष के रिश्तों के बारे में गंभीरता से सोचने पर मजबूर हो उठता है l ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने प्रेम के तमाम पहलुओं पर गहन चिंतन करते हुये इन कहानियों को लिखा है l प्रेम के विभिन्न रंगों में लिपटी इन कहानियों को पाठक तक पहुँचाने की जिम्मेवारी को आपने बखूबी निभाया है l पढ़ कर मन कह उठता है 'काटा प्रेम-कीट ने जिस को, रास न आए फिर कुछ उस को l'



मैत्रेयी की मुश्किलें:

दयानंद जी की पहली कहानी की प्रेमिका मैत्रेयी लोगों पर हावी हो जाने के बारे में बदनाम है l लोग उस से दूर भागते रहते है l तकदीर की मारी ‘भड़भूजे के भाड़’ जैसी मैत्रेयी का अतीत अवसाद से भरा है l पहले के दो विवाह असफल होने के बाद नागेंद्र नाम के प्रेमी से अपने खोए हुए सुख को प्राप्त करना चाहती है l स्वभाव में एक तरफ उदारता की देवी और दूसरी तरफ बच्चों की तरह जिद पर अड़ने की आदत l नागेंद्र से वह बुरी तरह प्रेमासक्त है और एक पत्नी की तरह उस से मान-मनौवल की उम्मीद रखती है l प्रेमी को डर है समाज का पर उसे नहीं l शादी-शुदा प्रेमी मैत्रेयी के चक्कर में है l मैत्रेयी तो मन से उसे चाहती है पर नागेंद्र का प्रेम एक भँवरे की तरह है l और उस का मन मौका पाते ही अन्य स्त्रियों के लिए भी डावांडोल होता रहता है l ‘ब्यूटी एंड द बीस्ट’ वाली सिचुएशन है l नागेंद्र के शब्दों में‘ मर्द हूँ और लंपट किस्म का मर्द हूँ l विवाहित होने के वावजूद अगर उस के साथ हमबिस्तरी कर सकता हूँ तो बाकी और औरतों से भी राखी नहीं बंधवाई है l’ लेकिन ये सब जानने के बाद भी मैत्रेयी, जो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं है, उन औरतों की तरह असहाय महसूस करती है जो समाज में एक पति के बिना नहीं रह सकतीं l और इसी लिए वह नागेंद्र को अपने सम्मोहन के जाल में फंसा कर अक्सर शादी का जिक्र करती रहती है l उसे उस की पत्नी व बच्चों की कोई परवाह नहीं l वह भी ऐसी स्त्रियों की तरह है जो प्रेमी की पहली पत्नी के संग भी जिंदगी शेयर करने को तैयार हो जाती हैं l ऐसी औरतें बिना पुरुष के समाज में अपने को असुरक्षित समझती हैं l मैत्रेयी का कहना है ‘दरअसल मुझे लगता है कि बिना बाप की बेटी और पति के औरत की समाज में, परिवार में बड़ी दुर्दशा होती है l' शायद ये कहते हुये वह भूल जाती है कि कभी उसका भी अजय नाम का पति था जो उस की सुरक्षा नहीं कर पाया बल्कि अपने घर वालों के संग मिल कर दहेज को ले कर मैत्रेयी की दुर्गति कर डाली थी l फिर भी अजय उस का पहला प्यार था और मैत्रेयी को उसे भुलाना मुश्किल है l इस समाज में अकेले जीवन व्यतीत करने की वजाय वो जानते हुए भी नागेंद्र जैसे लंपट किस्म के इंसान तक से शादी करने को तैयार रहती है l और भावनात्मक व आर्थिक सुरक्षा की खोज में अपने से काफी बड़ी उम्र तक के पुरुष से शादी कर लेती है l कई बार मैरिज फेल होने पर या कम उम्र में बाप का साया सर से उठ जाने पर औरत के जीवन में जो असुरक्षा की भावना निहित हो जाती है उसे अपनी उम्र से काफी बड़े व्यक्ति से शादी करके पूरी करना चाहती है l ऐसे पतियों को अंग्रेजी में ‘शुगर डैडी’ कहते हैं l दयानंद जी ने इस प्रेम कहानी में बड़ी कुशलता से इन सब पहलुओं का शब्दांकन किया है l

बर्फ़ में फँसी मछली:

इस दूसरी प्रेम कहानी को पढ़ना शुरू करते ही आइडिया होने लगता है कि ये कहानी एक लव मैनियेक के बारे में है l इस के प्रेमी को प्रेम का असली अर्थ ही नहीं पता l उसे हर लड़की से प्यार हो जाता है l शुरू में कभी उसे भी 'लव एट फर्स्ट साइट' हुआ था लेकिन उस लड़की की शादी कहीं और हो जाने से धीरे-धीरे इन का लव हवा हो जाता है l बाद में खुद की शादी करने के बाद भी फुटकर प्यार के किस्से चलते रहते हैं l कुछ लोगों के लिए प्यार एक मृगतृष्णा के समान है, उस के पीछे भागते ही रहते हैं l पता नहीं किन-किन लोगों के बीच अजीब परिस्थितियों में फँस कर भी उन की प्रेमासक्ति नहीं खत्म होती l इस कहानी में भी एक ऐसा ही लव मैनियेक है जो प्यार के पीछे लगातार भागता रहता है l इसे हर स्त्री से प्यार हो जाता है या होता रहता है l प्रेम ना हुआ जैसे एक रोग हो गया l 'तू नहीं तो और सही’ वाली सोच के इस इंसान को प्यार का गूढ़ अर्थ ही नहीं पता l जिस तरह फूड से हद का लगाव रखने वालों को फूड मैनियेक कहा जाता है, उन का मन तरह-तरह के खाने ढूंढ कर खाने को मन करता है और रोज उसी चक्कर में रहते हैं उसी तरह इस कहानी में प्रेम के रसास्वादन से मन ना भरने वाले एक इंसान का ज़िक्र है l और ऐसे लोगों को लव मैनियेक कहना ही सही होगा l इन लोगों के लिए प्रेम शब्द एक आइसक्रीम या पान तमाखू की तरह है l हर बार जायका लेने के बाद फिर दूसरे फ्लेवर का खाना चाहते हैं l ऐसे इंसान आजीवन प्रेम के पीछे भागते रहते हैं l एक इंसान से प्रेम कर के चैन से नहीं रहना चाहते l दयानंद जी ये कहानी लिखते हुए इस लव मैनियेक के जीवन में कितने और पहलू जोड़ते रहे हैं l जिन में इंटरनेट से जुड़ी प्रेम की दुनिया भी है जिस से तमाम लोग दूर रहना चाहते हैं l केवल ऐसे लोग ही इन साइटों को यूज करते हैं जिन की मानसिकता विकृत हो या जो कैजुएल प्रेम या इस तरह के संबंधों के चक्कर में हों l प्रेम-संबंधों में कहानी का पात्र धीरे-धीरे अन्य देशों की स्त्रियों से जुड़ कर भी अपनी प्रेम-पिपासा नहीं बुझा पाता l एक रशियन लड़की रीमा जो 'बर्फ़ में फंसी मछली' की तरह है इस से बुरी तरह प्यार करने लगती है l वो जानती है कि रशियन आदमी केवल शरीर के भूखे होते हैं वो सच्चा आत्मिक प्यार करना नहीं जानते l लेकिन वो बेचारी ये नहीं जानती कि ये लव मैनियेक भी उसे उस तरह का प्यार नहीं दे सकता जिसे वह चाहती है l प्रेम-पत्रों के जरिये प्रेम कायम रहता है पर मिलने के पहले ही रीमा की मौत हो जाती है l और अंत में अपने ही कर्मों से बिछे जाल में ये लव मैनियेक भी मछली बन कर फँस जाता है l प्रेम के नाम पर पत्नी के हाथों जो दुर्गति होती है वो अलग l 'ना खुदा ही मिला ना बिसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के रहे' l ऐसे लोग अपनी मानसिकता से मजबूर होते हैं l इस तरह के प्रेम को एक मानसिक रोग कहना ही उचित होगा जिस का इलाज होना चाहिए वरना यदि कोई शादी-शुदा है तो देर-अबेर उस के घरेलू जीवन पर असर पड़ता है l दयानंद जी ने इस कहानी में एक पात्र के माध्यम से प्रेम का ऐसा अस्थिर रूप प्रदर्शित किया है जिस में एक लव मैनियेक अपनी सोच से लाचार है l और ऐसा प्रेम घर-परिवार को उजाड़ देता है l सीख देती हुई इस कहानी का समापन आपने बड़ी खूबी से किया गया है l

फ़ोन पर फ्लर्ट:

फ़ोन पर फ्लर्ट में ऐसे प्रेम संबंध की गंध है जहाँ दयानंद जी की लेखनी ने उन शादी-शुदा औरतों व पुरुषों के प्रेम को उघाड़ा है जो चोरी-छुपे घरवालों की आँखों में धूल झोंक कर किसी से प्रेम-संबंध बना कर आनंद लेते हैं l इस तीसरी कहानी में प्रार्थना नाम की औरत अपने बच्चे की पढ़ाई और अच्छी जिंदगी जीने के सपने बुनती है और शायद किसी अधेड़ उम्र के प्रेमी को अपने शरीर और अदाओं से लुभा कर अपने जाल में फंसाए हुए है l लेकिन वो खुद भी मेहनत कर के पैसे कमाने का जुगाड़ सोचती है l उस के प्रेम संबंध की सब बातें एक दिन किसी से रांग नंबर डायल हो जाने पर वार्तालाप के जरिए पता लगती हैं l प्रार्थना उस व्यक्ति की आवाज़ को अपने प्रेमी की आवाज़ समझ कर इतराते हुए बेबाक उस से काफी देर तक बातें करती रहती है l ये पुरुष भी धोखा दे कर मजा लेने में कम नहीं होते l पीयूष मौके का फायदा उठा कर प्रार्थना को अपनी असलियत न बता कर फोन पर ही बातों में फंसा कर उस के बारे में तमाम कुछ जान लेता है l लेकिन वास्तव में ऐसे पुरुष मिलने से डरते हैं कि उन की पोल खुल जाएगी l प्रार्थना को पीयूष की सचाई का पता लगने पर उससे बेरुखाई व नाराजी हो जाती है कि उस दिन फोन पर फ्लर्ट करने वाला उसका प्रेमी नहीं बल्कि पीयूष था l जाहिर है कि दयानंद जी ने ऐसे प्रेम-संबंधों के बारे में बताने की कोशिश की है जिन में औरत केवल एक प्रेमी को ही चाहती है या कहिए कि वफादार होती है l हर किसी को वो मन से नहीं चाह पाती l उस ने फोन पर फ्लर्ट धोखे में किसी को अपना प्रेमी समझते हुए किया था l

एक जीनियस की विवादास्पद मौत:

इस चौथी कहानी में जीनियस, स्मार्ट और खुद्दार विष्णु जी अच्छी नौकरी और इज्ज़त सब को एन्जॉय करते हुए लोगों में धाक जमाए हैं कि उन के मीठे शांत समुंदर जैसे जीवन में बिंदु नाम की एक नमकीन लहर आ जाती है l इस दुनिया में जलने वालों की कमी नहीं l आफिस के लोगों ने बिंदु और विष्णु जी के बारे में तिल का ताड़ बना कर उन के प्रेम के झूठे चर्चों का ऐसा तूफ़ान उठाया कि एक दिन विष्णु जी अपनी अच्छी-खासी नौकरी से ही हाथ धो बैठे l और बीवी बच्चों को लखनऊ में ही छोड़ अपना बोरिया-बिस्तर बांध कर दूर दिल्ली में जा कर उन्हें छोटी-मोंटी कंसल्टेंसी कर के गुजारे के लिए काम चलाना पड़ा l लेकिन बिंदु तो स्त्री है और पुरुषों का खेला कब रुका है l उस पर अब उस के नए बास ने हावी होना शुरू कर दिया l एक औरत अपनी इज्ज़त या तो खोए या दाग लगने के पहले कोई और रास्ता टटोले l सो मजबूरन बिंदु ने भी नौकरी पर लात मार कर दिल्ली का ही रास्ता पकड़ा l जहाँ वो विष्णु जी की शरण में आईं l ‘आसमान से गिरे तो खजूर में अटके’ वाली बात हुई l यहाँ भी धक्के खाने पड़े l कुछ औरतें पुरुषों का सहारा लेते हुए छली जाती हैं धीरे-धीरे l और कभी औरत भी मजबूरी में किसी का सहारा पा कर उस का इस्तेमाल करती है और भूल जाती है कि उस पुरुष की जिंदगी में पहले से ही बीवी के रूप में एक औरत है l और वो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उस औरत व उस के परिवार को चोट पहुँचा रही है l बिंदु जी अब बिंदु नहीं रहीं बल्कि विष्णु जी की ज़िंदगी पे इस कदर छा गयीं कि पत्नी व उन में कोई फरक ही नहीं रहा l जिस पत्नी के लिए उन्हों ने अपने घर वालों को छोड़ दिया था किसी दिन अब उस प्रेम को भूल कर बिंदु से उन का लगाव हो गया l और बिंदु एक दिन इतनी स्मार्ट हो गयीं कि उन का प्रेम-वेम सब एक तरफ रह गया l विष्णु जी की पत्नी व बच्चों का कोई ख्याल किए बिना वे उन का सब पैसा गड़प कर गईं साथ में उन को भी खा गईं l मतलब ये कि खुद्दार विष्णु जी अपनी जान से ही हाथ धो बैठे l इसे औरत का प्रेम नहीं बल्कि किसी को प्रेम के झूठे अहसास में रखना कहते हैं l एक पुरुष को अपने जाल में फंसा कर उस का इस्तेमाल कर के अपना उल्लू सीधा करना कहते हैं l लेकिन औरत की मजबूरी का फायदा उठाने में कभी पुरुष भी पीछे नहीं रहते l बिंदु का प्रेम विष्णु जी के प्रति एक छलावा है जिस में वह अपना स्वार्थ ढूँढती है l वो केवल अपनी आर्थिक व भावनात्मक सुरक्षा के बारे में सोचती है l पैसे की तंगी या फिर परिस्थितियों से मजबूर औरतों की मानसिकता कितनी बदल जाती है कि वो अपने स्वार्थ में अंधी हो कर परवाह नहीं करतीं कि उन के प्रेमी पहले से ही शादी-शुदा हैं l इस तरह की बातें दयानंद जी की इस कहानी के प्रेम-संबंध से साफ विदित होती हैं जिन्हें पढ़ते हुए मन कभी आक्रोश व कभी संवेदनशीलता से भर उठता है l

प्रतिनायक मैं:

ये पाँचवीं कहानी इकतरफा प्रेम की कहानी है जिस में प्रेमी की प्रेमिका को कुछ पता नहीं कि उसे शादी के पहले कोई और लड़का चाहता था l कुछ लोग मन ही मन में किसी को प्यार करते रहते हैं और बताने की हिम्मत नहीं कर पाते l और एक दिन वो जिस से प्यार करते हैं उस की शादी भी हो जाती है l प्यार भी अजीब जगहों व परिस्थितियों में होते हुए सुना है व प्यार करने की कोई खास उम्र भी होना जरूरी नहीं l कभी स्कूल-कालेज के दिनों में पढ़ते हुए तो कभी जान-पहचान के बच्चों में भी एक दूसरे के लिए प्रेम के बीज कब पनपने लगें इस के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता l इस कहानी में भी धनंजय बचपन से ही किसी जान-पहचान वालों की बेटी शिप्रा को वह पहली बार देखने पर ही चाहने लगा था यानि ‘लव एट फर्स्ट साइट’ l शिप्रा को देखते ही उस पर रीझ गया l पर संकोच या शर्म जो भी कहो उस के कारण वो उस लड़की को बता ना सका और फिर एक दिन शिप्रा की शादी भी हो गई l 'कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे’ वाली बात हो गई l खैर, समय बीतता गया पर धनंजय शिप्रा को भूल न सका l वो शिप्रा की याद मन में दफनाए उस की पूजा करता रहा l कई बार देखा-सुना गया है कि ऐसे लोग फिर किसी और से शादी न कर के कुंवारे रहना ही पसंद करते हैं l तो यहाँ धनंजय की भी यही हालत हुई l इतना गहरा आत्मिक प्यार कि शिप्रा की शादी हो जाने के बाद भी वो मन में बसी रही l कल्पना में ही उस से शिकवे-शिकायत करता रहा l कुछ साल बाद एक दिन शिप्रा से मुलाक़ात के दौरान मौका मिलते ही अकेले में इतने सालों से मन का अनकहा गुबार निकाल लिया l शिल्पा लड़की होने के नाते झिझक रही थी l लेकिन ‘अब पछताए का होत जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत’, अब तो बहुत देर हो चुकी थी l शिप्रा ने अपनी तरफ से कुछ कबूल नहीं किया l लेकिन कोई उस से इतना प्यार करता है कि उस के लिए शादी भी ना की इस के अहसास से उस की आँखें भीग जाती हैं l ऐसे केस में अगले जन्म में मिलने के वादे के अलावा और कुछ नहीं सूझता और प्रेमिका के दिए हुए रुमाल को ही प्रेमी सीने से लगाये रहता है l दयानंद जी ने इस कहानी के प्रेम संबंध में समाज की वो झलक दिखाई है जिस में एक पुरुष अपनी प्रेमिका की पावन यादों में ही जीवन व्यतीत कर देता है l कोई उस पर लांछन नहीं लगाता ना ही किसी की उँगली या भौहें उस पर उस तरह उठती हैं जिस तरह एक अकेली स्त्री के साथ होता है l 

सुंदर भ्रम:


दो प्रेमियों की कहानियों में अक्सर ही प्रेमी या प्रेमिका के पिता की मृत्यु होने पर या तो वह अपने जीवन की तरफ से उदासीन हो जाते हैं या किसी लक्ष्य को ले कर उस में अपने को गुम कर देते हैं l जैसे कि इस में अनु के साथ हुआ l घर में केवल बेटियाँ हैं तो अनु परिवार का पेट भरने के लिए आगे की पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करने लगती है l ऐसा करते हुए वह जीवन की तरफ से उदासीन हो जाती है l उस का प्रेमी देव अपनी प्रेमिका का यहाँ-वहाँ पीछा करते हुए आहें भरा करता है l उस की मन ही मन में पूजा करते हुए उस के आने-जाने की जगहों पर चक्कर काट कर अपनी टांगें घिसा करता है l कभी-कभी प्यार के जुनून में चिट्ठियाँ लिख कर उन की ढेरी लगाता रहता है l ऐसे प्रेमी मजमून दिल में लिए या कागज के टुकड़ों पर लिख कर ही रह जाते हैं l कागज का वो टुकड़ा प्रेमिकाओं के हाथ में सही समय पर नहीं पहुँच पाता l प्रेमी उन्हें पोस्ट करने से हिचकिचाते हैं l कभी इत्तफाक से मौका आया बात करने का तो या तो हकलाने लगते हैं या नर्वस होते हुए मन में जो कुछ रिहर्स किया होता है वो सब कहना या पूछना ही भूल जाते हैं l और भी हादसे होते रहते हैं l अगर प्रेमिका को संदेह हो जाता है कि कोई उस का पीछा करता है तो डर से या घबरा कर उस लड़के से कन्नी काटने लगती है l और प्रेमिकायें कभी अचानक सीन से गायब हो जाती हैं तो प्रेमी चिंता के मारे घुलता रहता है l हर समय घुट-घुट कर जीता है लेकिन बेशर्मी से हर बात की खोज खबर रखता है किंतु डरता भी रहता है कि कहीं मन की बात कह देने से जूते न पड़ें या उसे जेल की हवा न खानी पड़े l और अगर कभी ऐसा हुआ कि प्रेमिका के दीदार ना हो पाए और उस का पता-ठिकाना ना मिल पाए तो प्रेमी घबरा जाता है कि कहीं उस की प्रेमिका की शादी ना हो गई हो l प्रेम-ग्रस्त इंसान क्या-क्या फितूर की बातें नहीं सोचता l यही सब इस कहानी के नायक देव के साथ होता रहा l एक ऐसा प्रेमी जो मन में ही बातें सोच कर छटपटाता रहता है लेकिन अपनी प्रेमिका से कुछ कह नहीं पाता l उसे अपनी प्रेमिका के आगे कोई भी अन्य लड़की सुंदर नहीं लगती l और उस दीवानेपन में कुछ बदकिस्मत प्रेमी मानसिक संतुलन खो बैठते हैं जैसा कि इस कहानी में भी हुआ l सालों से प्रेम-अग्नि में जलता हुआ वह अपनी हर किस्म की भावनाओं को चिट्ठियों में प्रकट करता रहा l कुछ लोग किसी से प्रेम करते हुये जीवन भर ऐसे ही घुटते रहते हैं l अतीत की यादों के नशे में ही धुत रहते हैं l ये नहीं कि ‘जो बीत गया सो बीत गया, अब आगे की सुधि ले l’ देव कल्पना में ही अनु से इश्क लड़ाते हुए अपनी प्रेम-पीड़ित भावनाओं को चिट्ठियों में लिख कर ढेर लगाता रहा किंतु उन्हें पोस्ट करने की हिम्मत ना कर पाया l जिंदगी के कई साल बीत जाने पर ही वो उन चिट्ठियों को अनु को पोस्ट करने की हिम्मत कर पाता है l दयानंद जी ने अपने निपुण लेखन से प्रेम की अधीरता व पीर दोनों को ही इस कहानी में दर्शाया है l

वक्रता:

इस कहानी के प्रेमी को कालेज के दिनों से ही प्रेम रोग लग गया था l वो एक ही लड़की से प्रेम करता है l कभी-कभी परिस्थितियाँ विपरीत होने पर एक खास प्रेमिका ना मिल पाने पर कुछ लोग विद्रोही बन कर और लड़कियों से भी प्यार का स्वांग रचाने लगते हैं और उन का जीवन नष्ट कर देते हैं l  ऐसा ही इस कहानी के नायक परितोष उर्फ ‘अवनींद्र’ ने किया  'शुरू में तो तुम्हारे प्रतिशोध में कुछ कन्याओं से खेला l उन्हें जी भर कर उलीचा l उलीच-उलीच तबाह करता रहा l कुछ समय बाद पाया कि वह तुम्हारी बिरादर कन्यायें तबाह हुई हों, या ना हुई हों, मैं ज़रूर तबाह हो गया l’ परितोष व पश्यंति दोनों ही अपनी दुनिया में एक दूसरे के लिए प्यार के सदाबहार मंजर में डूबे रहे l परिस्थितियों के बहाव में शादी अन्यत्र हो जाने पर भी एक दूसरे को भूल नहीं पाए l रसिक परितोष की रग-रग में पश्यंति  इतनी समाई थी कि सपने में भी उस का नाम मुँह से निकल जाता था l यहाँ तक कि उन दोनों ने अपने बच्चों को भी एक दूसरे का नाम दे डाला l प्रेमी की बेटी पश्यंति  और प्रेमिका का बेटा परितोष हो गया l प्रेमिका ने तो अपने बेटे को अपने प्रेमी के डीलडौल में ढालना चाहा और काफी सफल भी हुई उस में l दोनों के लाइफ पार्टनर के गुज़र जाने के बाद उन का रास्ता साफ हो जाता है किंतु एक दूसरे का अता-पता ना मालूम होने से अपनी-अपनी दुनिया में रहते हुए यादों में ही हिलगे रहते हैं l पर एक दिन किस्मत से वह अपने बच्चों की प्रेम कहानी में उलझ कर अजीब परिस्थितियों में फिर मिलते हैं l पर उन के बच्चे नहीं जानते कि उन के माँ-बाप आपस में कभी प्रेमी रहे थे l और इत्तफाक से एक दिन उन के माँ-बाप जब पार्क में मिलते हैं तो प्रेमिका इतनी मोटी हो चुकी होती है कि प्रेमी परितोष उसे पहचान नहीं पाता l किंतु असली प्रेम में मोटापा से कुछ फर्क नहीं पड़ता l मिलते ही वही प्रेमियों वाले गिले-शिकवे चालू हो जाते हैं l जैसे यहाँ पश्यंति  का शिकायत भरा लहजा 'मैं ठूँठ दीवार बन कर भरभराती गई l कोई नहीं आया मुझे संभालने l तुम भी जाने किस दुनिया में भटक रहे थे l वैसे तुम से मैं ने कोई उम्मीद भी न की थी l’ अकेलापन झेलते हुए और उम्र के इस पड़ाव में जैसा होता है पश्यंति  का भी आत्मविश्वास मजबूत होने की वजाय भरभरा कर ढह रहा था l जिसे उस ने अपनी बातों में जाहिर करने में संकोच नहीं किया l जहाँ सच्चा प्यार होता है वहाँ किसी और से शादी हो जाने पर भी दोनों एक दूसरे को भूल नहीं पाते ये कहानी उस का उदाहरण है l अब दोनों प्रेमी अपने बच्चों के प्रेम के आगे मजबूर हैं किंतु एक तो चाहता है कि बच्चों की शादी हो किंतु दूसरा इसे जीवन में फ़िल्मी किस्म का मोड़ समझ कर उन बच्चों की शादी को राजी नहीं होना चाहता l किंतु प्रेमिका परितोष की माँ की इच्छा का उल्लेख करके खोये हुये संबंध को आगे बढ़ाना चाहती है l जो धागा अब तक छोटा था उसे अब एक नए रिश्ते में बांध कर संजोना चाहती है l वो दोनों तो जीवन साथी नहीं बन सके किंतु अब आपस में प्यार करने वाले इन दोनों बच्चों को वो दर्द ना सहना पड़े जिस से वो खुद गुजर चुके हैं l पश्यंति  का कहना है ’हमारे साथ जो हुआ सो हुआ, अब इन के साथ तो ऐसा वैसा कुछ ना होने दो प्लीज.....!’ इस कहानी में परितोष की पत्नी पर तरस आता है कि अपना फर्ज निभाते हुए एक दिन वह इस दुनिया से ही चली गई l और उस का पति परितोष पति परमेश्वर बन कर भी मन से उसे नहीं चाह सका बल्कि अपनी प्रेमिका की यादों में ही आजीवन डूबा रहा l एक औरत जो ऐसे इंसान की पत्नी होती है उस के अभागे जीवन की बिडम्बना इस कहानी में अप्रत्यक्ष रूप से जाहिर होती है l

दयानंद जी ने हर प्रेम कहानी को एक नए खाके में ढाल कर प्रस्तुत किया है l आप की कहानियाँ 'मैत्रेयी का मुश्किलें', ‘फोन पर फ्लर्ट’ व ‘एक जीनियस की विवादास्पद मौत’ में काफी समानता है जहाँ प्रेमिकाएं अपने प्रेमी की पत्नी व बच्चों के प्रति हृदय हीन हैं l इन सभी कहानियों को आप ने स्त्री और पुरुष दोनों के मानसिक गठन पर ध्यान देते हुए लिखा है l स्त्री अपने संबंध में मजबूती चाहती है चाहें वो पत्नी हो या प्रेमिका, लेकिन पुरुष की प्रवृत्ति एक भँवरे की तरह है जो केवल फूल की सुंदरता के रसपान के बारे में सोचता है l पढ़ते हुए जिज्ञासु मन कहानी के पात्रों में ऐसा उलझ जाता है कि इन प्रेम संबंधों की समस्याएं पाठक से आंतरिक सवाल और जबाब करने लगती हैं l जैसे कि: क्या वास्तव में मैत्रेयी जैसी प्रेमिका की नागेंद्र जैसे प्रेमी से शादी हो सकती है? क्या वाकई समाज इस की इजाजत दे सकेगा? मैत्रेयी, बिंदु और प्रार्थना जैसी औरतें जिस भावनात्मक सुरक्षा की खोज में हैं क्या उन के प्रेमी लोग उन्हें आजीवन दे सकेंगे? क्या मैत्रेयी शादी के बाद एक ‘लंपट’ इंसान के साथ खुश रह सकेगी? और फिर शादी उस के या किसी और के साथ हो भी गई तो बाद में उस के पति का कायर साबित होना व पति की पहली पत्नी व अन्य लोगों का उसपर तमाम तरह से दोषारोपण करना आदि को सहते-सहते जिंदगी और भी भयानक हो जाए, तब क्या होगा? जब वह समाज में इज्जत पाने की बात करती है तो उस पर सवाल उठता है कि क्या इस तरह के प्रेमी से शादी कर के वो समाज की निगाहों में सम्मान पा सकती है? मन कहता है बिलकुल नहीं l क्यों कि तब समाज पीठ पीछे कहेगा कि इस अमुक स्त्री ने किसी का घर उजाड़ कर अपना घर बसाया है l कई बार प्रेम की भूल-भुलैया में पड़ कर प्रेमी लोग कन्फ्यूज हो जाते हैं l सच्चे प्यार का अर्थ ना समझते हुए कुछ लोग शारीरिक आकर्षण के पीछे भागते हैं l ऐसे प्रेम-संबंधों और शादियों से पुरुष की पहली बीवी व बच्चों के जीवन उजड़ जाते हैं l शादी करते हुए पत्नी को नहीं पता होता कि कब पति जीवन भर के लिए किए वादों को भूल जाए l और प्रेमिकाएं नहीं जानतीं कि कब प्रेमी बदल जाए, कब भँवरा रसपान कर के उड़ जाए l मैत्रेयी के शब्दों में ‘बातों-बातों में ताजमहल बनवाने वाले बहुतेरे मिलते हैं पर साथ निभाने वाले मर्द शायद इस समाज में नहीं हैं l’ और 'बर्फ़ में फँसी मछली' के लव मैनियेक पर मन सवाल करने लगता है कि उस के जैसे लोग शादी क्यों करते हैं व औरतें क्यों ऐसे लोगों से प्रेम करने लगती हैं? अंतर्मन बिचलित होता है पर प्रेम-सागर में न जाने कितने प्रेमी डूबे हैं और न जाने कितने डूबते रहेंगे l प्रेम इंसान को देश, समाज, जाति, धर्म आदि सभी बंधनों को तोड़ कर अपने पाश में जकड़ लेता है l और दयानंद जी ने अपनी सातों प्रेम कहानियों में बड़ी कुशलता से इस तरह के सभी प्रेम-संबंधों के विभिन्न रूप दिखाए हैं l स्त्री-पुरुष के कानूनी व गैरकानूनी संबंधों का शब्दों में अच्छा चित्रण किया है जहाँ जिंदगी कभी रोती है, कभी मुस्काती है l ऐसे प्रेम-संबंधों से परिवार व समाज पर क्या प्रतिक्रिया होती है ये इन सभी सातों कहानियों से साफ जाहिर होता है l एक बार पढ़ना शुरू करो तो कहानी का अगला मोड़ क्या होगा इस की जिज्ञासा अंत तक बाँधे रहती है l तमाम तरह की प्रेमानुभुतियों से युक्त ये कहानियाँ कभी पाठक को सतर्क करती हैं, कभी नसीहत देती हैं l प्रेम के अस्थिर रूप से विरक्ति व इसका गूढ़ अर्थ समझने को बाध्य करती हैं l जिस शादी को सात जन्मों का बंधन कहते हैं उस पर सोचते हुए एक स्त्री के मन को ये कहानियाँ झकझोर देती हैं l प्रेम के नाजुक धागों के बारे में सोच कर मन कहना चाहता है:

'घर-आँगन रचे प्रेम-रंगोली

प्रेम के रंग में बरसे होली

पावन प्यार की उठे सुगंध

ना मन टूटें और ना संबंध l'   


दयानंद जी के लिए लेखन उन के ही शब्दों में एक 'प्रतिबद्धता' है जिस में सामाजिक समस्यायों की झलक के साथ अनेकों बार इंसान के मन की पीड़ा की चीत्कार उठती रहती है l जीवन-समाज का विपुल अनुभव आप के लेखन को निखारता है l तमाम उपन्यासों, कहानियों और कविताओं के रचयिता वरिष्ठ साहित्यकार दयानंद जी को इन कहानियों के लेखन पर हार्दिक बधाई व शुभकामनायें l आप साहित्य के आकाश पर इसी तरह निरंतर अपने लेखन से ऊँची उड़ान भरते रहें l लेखनी से आप का सरोकार हमेशा बना रहे ऐसी मेरी कामना है।
[ जनवाणी प्रकाशन,दिल्ली से प्रकाशित सात प्रेम कहानियां की भूमिका]  

-शन्नो अग्रवाल
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