Monday 19 August 2024

पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की हैसियत में नहीं हैं नरेंद्र मोदी

दयानंद पांडेय 

पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के कयास लगाने वाले लगा रहे हैं। क्यों कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल दिल्ली पहुंचे हैं। मेरा मानना है कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की हैसियत में नहीं हैं नरेंद्र मोदी। होते तो कब का लगा चुके होते। नोबिल प्राइज की लालसा अलग है। पर असल समस्या यह है कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लेफ्ट की मदद से जो आग लगाएंगी , उसे सेना , केंद्रीय पुलिस बल सब के सब मिल कर बुझा नहीं पाएंगे। न दंगे संभाल पाएंगे। ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी और रोहिंगिया को दंगा प्रशिक्षित कर दिया है। भारत - पाकिस्तान विभाजन के समय में भी पश्चिम बंगाल जिस तरह जला था , लोग भूले नहीं हैं। 

डायरेक्ट एक्शन आज भी पश्चिम बंगाल के लोगों को याद है। डायरेक्ट एक्शन जिन्ना का फरमान था। डायरेक्ट एक्शन मतलब हिंदुओं को देखते ही मारो। बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं पर हमले अभी भी जारी हैं , मंदिरों और स्त्रियों पर लूट - पाट , अत्याचार और बलात्कार अभी भी थमा नहीं है। सोचिए कि बांग्लादेश में आंदोलन आरक्षण को ले कर हो रहा था। पर परिणति क्या हुई ? हिंदू स्त्रियों के साथ बलात्कार , सामूहिक बलात्कार। मंदिरों की तोड़ - फोड़। हिंदुओं के घर दुकान लूटे गए। जलाए गए। 

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बांग्लादेश से भी ज़्यादा उग्र और हिंसक हैं। जिन की लगाम ममता बनर्जी और लेफ्ट के हाथ है। समूचे देश में खड़े मिनी पाकिस्तान भी इन के समर्थन में खुल कर आ जाएंगे। नहीं पश्चिम बंगाल , पंजाब , केरल और दिल्ली चारो ही प्रदेश राष्ट्रपति शासन मांगते हैं। पश्चिम बंगाल इस में नंबर एक पर है। बीते कई सालों से पश्चिम बंगाल में क़ानून व्यवस्था ठेंगे पर है। पर डरपोक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैसियत नहीं है कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सोच भी सकें। और कि देश हित में भी यही है। नहीं देश में दंगाइयों का क्या है , नागरिकता देने वाले क़ानून सी ए ए को ले कर भी देश में दंगे फैला देते हैं। शहर-शहर शाहीन बाग़ बसा लेते हैं। 

देखना दिलचस्प होगा कि स्वत: संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल पर क्या रुख़ अख़्तियार करता है कल। क्यों कि पश्चिम बंगाल तो मुस्लिम सांप्रदायिकता के एटम बम पर बैठा हुआ है। 

मुस्लिम आतंक से जितना मोदी सरकार डरती है , कांग्रेस सरकारें भी इतना नहीं डरती थीं। यह तथ्य है। मुस्लिम आतंकियों को दुरुस्त करने के लिए आप को योगी के प्रधान मंत्री बनने तक प्रतीक्षा करनी ही होगी। 

कश्मीर में हिंदू अनुपस्थित थे। ज़्यादातर हिंदुओं का नरसंहार हो चुका था। शेष भाग चुके थे। मैदान ख़ाली था। पश्चिम बंगाल में मैदान ख़ाली नहीं है। बहुत से हिंदू उपस्थित हैं। नरसंहार देखने के लिए। मोदी इसी नरसंहार से बचाना चाहते हैं। इसी लिए डरपोक बने बैठे हैं। सेना या केंद्रीय पुलिस नरसंहार नहीं न कर सकती , इस लिए , इस बिंदु पर कमज़ोर है। हालां कि पश्चिम बंगाल का बंटवारा , बांग्लादेशियों और रोहिंगिया को देश से बाहर करना भी एक उपाय है। 

क्यों कि ममता बनर्जी अब भस्मासुर हैं , बस एक शिव चाहिए , नचा कर भस्म करने के लिए। इस विकट समय को वही शिव नहीं मिल रहा। ई डी , सी बी आई पर हमले हुए। संदेशखाली में स्त्रियों के साथ शाहजहां शेख़ ने क्या - क्या नहीं किया। शिव जी शांत रहे। डाक्टर बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या पर भी चुप हैं। शांत हैं। जाने कब जागेंगे शिव। और इस भस्मासुर को नचाएंगे। नचाएंगे तो ज़रूर। अब बस यही एक उम्मीद है। बाक़ी लोकतंत्र , अदालत - फदालत , संविधान वग़ैरह सब कुछ सेक्यूलरिज्म के ठेंगे पर है। क्या कहा , मां , माटी , मानुष ! तो ज़माने धत्त तेरे की !

Tuesday 6 August 2024

आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं

दयानंद पांडेय 


असल में इस्लाम और वामपंथ दोनों ही हिंसा , हत्या और अराजकता की बुनियाद पर खड़े हैं। यह दोनों दुनिया में जहां भी बहुमत में होते हैं , मनुष्यता को तार-तार करने में ज़रा भी नहीं चूकते। संकोच नहीं करते। तानाशाही और हिंसा के स्तंभ लेनिन , स्टालिन , माओ ने करोड़ों लोगों की हत्या की और करवाई। माओ तो मनुष्य का मांस तक खाता था। अपने ही साथियों का मांस खाता था। ऐसे अनेक विवरण दर्ज हैं। लेकिन ऐसे तमाम विवरण पर सायास कालीन बिछा दी गई है। 

भारत में लेकिन इन के अनुयायी आज कल सेक्यूलर चैंपियन की छवि गढ़ कर बगुला भगत बन कर उपस्थित हैं। बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की आदमक़द मूर्तियां खंडित होते देख कर पश्चिम बंगाल में नक्सल हिंसा की याद आ गई। जब रवींद्रनाथ टैगोर की मूर्तियां जगह-जगह तोड़ी गई थीं। बेटों के रक्त में भात सान कर मां को खिलाया गया जैसी अनेक घटनाएं सामने आ गईं। अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमा की याद आ गई , जिसे डाइनामाइट लगा कर तालिबानियों ने उड़ा दिया। दुनिया हाथ जोड़ती रह गई पर तालिबान नहीं माने। बांग्लादेश में तमाम हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदुओं के घर , दुकान और स्त्रियां लूटी जा रही हैं। वह ऐसा न करें , ऐसी कोई अपील भी दुनिया में कहीं से किसी ने अभी तक नहीं की है। भारत सरकार ने भी नहीं। 

भारत को भी बर्बाद करने में , निरंतर बर्बाद करने में मुख्यत: दो लोगों का ही हाथ है। इस्लाम और वामपंथ का। हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में देश और समाज को झोकने में ही इन्हें सुख मिलता है। भारत ही क्यों ब्रिटेन , फ़्रांस , इजराइल आदि हर कहीं की यही कथा है। मुस्लिम देशों का भी बुरा हाल है। सोचिए न कि दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं। पर हसीना , जान बचाने के लिए किसी मुस्लिम देश नहीं , भारत आईं। सेना द्वारा दिए गए 45 मिनट में देश छोड़ने का संदेश मिलते ही उन्हें पहला नाम भारत ही सूझा। कोई मुस्लिम देश नहीं। अभी भी किसी मुस्लिम या कम्युनिस्ट देश नहीं , यूरोप में ठिकाना तलाश रही हैं। अमरीका ने उन का वीजा रद्द कर दिया है। ब्रिटेन ने भी लाल झंडी दिखा दी है। 

फिर ?

असल में इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता कलंक है मनुष्यता के माथे पर। दुनिया और समाज इन से मुक्ति का तलबगार है। पर मुक्ति मिलती दिखती नहीं। वह दिन दूर नहीं जब भारत भी इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में झुलसने को बेबस और अभिशप्त हो जाएगा। हम नहीं , न सही पर  हमारी अगली पीढ़ी को यह हिंसा , हत्या और अराजकता भोगनी ही है। देश में बढ़ती नफ़रत की राजनीति को देखते हुए इसे रोक पाना अब कठिन लगता है। बहुत कठिन। क्यों कि इस्लाम और वामपंथ का संयुक्त हमला भारत पर हो चुका है। इस हमले को रोकने की तरक़ीब फ़िलहाल तो नहीं दिखती। 

आप को दिखती हो तो कृपया बताइए। 

अंबेडकर ने भारत में इस्लाम और वामपंथ के संयुक्त हमले को बहुत पहले पहचान लिया था। इस बाबत अंबेडकर ने लिख-लिख कर आगाह किया है। लेकिन लोग तो लोग अंबेडकर के अनुयायी ही इस तथ्य पर आंख मूंद गए। जय भीम , जय मीम के शिकार हो गए। बांग्लादेश का ख़तरा , भारत के ऊपर अब किसी चील की तरह मंडरा रहा है। मोदी सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं। क्यों कि लड़ाई बाहर से ज़्यादा भीतर है। वामपंथ और इस्लाम के पैरोकार बांग्लादेश की बुनियाद पर भारत में भी वैसी ही हिंसा , हत्या और अराजकता की मन्नत खुलेआम मांग रहे हैं। तानाशाही का हवाला दे रहे हैं। जैसे कभी श्रीलंका की बर्बादी में भारत की बर्बादी देखने की उम्मीद पाल लिया था इन लोगों ने। ऐलान किया था कि अब अगला नंबर भारत का है। 

अब इन लोगों की मनोकामना है कि भारत में भी बांग्लादेश की तरह हिंसा , हत्या और अराजकता का तांडव शुरू हो जाए। इन की मनोकामना और तैयारी देखते हुए मान लीजिए कि आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं। बांग्लादेश ने रास्ता दिखा दिया है। कोई चमत्कार ही बचा सकता है इस हिंसा , हत्या और अराजकता से। इस हमले का बड़ा बहाना मोदी विरोध भी है।