Saturday, 23 November 2019

तो चुप रह कर भी सरकार बनाई जाती है


सुबह ज़रा कुछ देर से होती है मेरी। सोया ही था। कि पत्नी ने अचानक आ कर बताया कि देवेंद्र फडनवीस ने शपथ ले ली है। बिस्तर में लेटे-लेटे ही , आंख बंद किए ही पत्नी से पूछा कि कहां से यह अफ़वाह लाई हो ? पत्नी ने बताया कि फेसबुक से। मैं ने कहा कि फेसबुक पर ऐसे ही अफ़वाह फैलती रहती है। तो पत्नी ने कहा कि लेकिन आज तक वाली अंजना कश्यप बता रही है। मैं ने कहा , किसी वीडियो पर फर्जी आडियो बना लिया होगा। पत्नी से यह कह तो दिया पर अब लेटे-लेटे मुश्किल होने लगी। उठा। घड़ी में सुबह के 9 - 30 बज रहे थे। टी वी खोला। यही ख़बर चल रही थी। मैं अवाक रह गया। अब शाम हो गई है। किसिम-किसिम की ख़बरें आ-जा रही हैं। फिर भी अभी इस ख़बर पर जाने क्यों यक़ीन करने को जी नहीं कर रहा। पर सच से इंकार कैसे करुं। कांग्रेसियों और उन के बगलबच्चा वामपंथियों की तरह कुतर्क भी करना भी नहीं आता। जो भी हो , खेल दिलचस्प हो गया है। गज़ब का दिन है , अख़बार में छपा है उद्धव ठाकरे मुख्य मंत्री बनेंगे और टी वी में ख़बर है कि देवेंद्र फडनवीस मुख्य मंत्री बने।

अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि चुप रहना भी एक कला है। महाराष्ट्र में सत्ता साधने के लिए भाजपा ने इसी कला का उपयोग किया। जब कि शिवसेना बयान बहादुरी के बूते रोज सरकार बना रहा थी। बयान बहादुरी के बहाने निरंतर आग मूत रही थी। जहर उगल रही थी। शिवसेना जैसे सरकार बना रही थी , सरकार वैसे तो नहीं ही बनती। अब चबा-चबा कर अपना विरोध जता रही कांग्रेस अभी तक विधानमंडल दल का नेता तक तो चुन नहीं पाई है। आगे की क्या बात करें। समर्थन देने के लिए भी इतने दिन , इतनी कमेटियां बना दीं लेकिन पक्का फैसला लेने के नाम पर सोई रही। ऐसी विषम स्थिति में इतना समय कोई ज़िम्मेदार पार्टी तो नहीं लेती। शिवसेना जैसी चूहा लेकिन प्रवृत्ति से गुंडा पार्टी को शेर बनाने वाले शरद पवार का पावर भी कल रात ही भाजपा ने छीन लिया। शरद पवार के पास अब खुद को सांत्वना देने और शिवसेना को ठोंक कर बच्चों की तरह सुलाने के अलावा कोई काम शेष नहीं रह गया है। बाकी बातें शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के वाट्स अप स्टेटस और मीडिया के सामने आंसुओं से भरी नम आंखों ने कह दिया है। शरद पवार निश्चित रूप से महाराष्ट्र की राजनीति के आचार्य हैं लेकिन अमित शाह राष्ट्रीय स्तर पर जोड़-तोड़ और तोड़-फोड़ के नए आचार्य के रूप में उपस्थित हैं फ़िलहाल। जब कि नरेंद्र मोदी वैश्विक कूटनीतिज्ञ बन कर दुनिया के सामने उपस्थित हैं। शिवसेना , शरद पवार और कांग्रेस जाने क्यों और जाने किस मद में इस बात को भूल गए। 

फिर शरद पवार खुद इसी तरह छल-कपट कर के ही पहली बार मुख्य मंत्री बने थे महाराष्ट्र के। यह बात भी वह क्यों भूल गए। नहीं इसी महाराष्ट्र ने एक समय यह भी देखा है जब शालिनी ताई पाटिल अपने ही पति वसंत दादा पाटिल को सत्ताच्युत कर खुद मुख्य मंत्री बन बैठी थीं। हरियाणा में जब देवीलाल जीत कर आए और राज्यपाल जी डी तपासे ने रात में चुपचाप एक कमरे में भजनलाल को शपथ दिला दिया था , इंदिरा गांधी के इशारे पर। शरद पवार यह भी क्यों भूल गए। इतना ही नहीं एक समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को बर्खास्त कर राज्यपाल रोमेश भंडारी ने आधी रात जगदंबिका पाल को मुख्य मंत्री पद की शपथ दिला दी थी। अलग बात है , 24 घंटे में ही हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से जगदंबिका पाल को हटना पड़ा। कल्याण सिंह को वापस शपथ दिलानी पड़ी थी रोमेश भंडारी को। 

बहरहाल आप कूटनीति कहिए , छल-कपट कहिए , ख़रीद-फरोख्त कहिए भाजपा के देवेंद्र फडनवीस ने आज सुबह मुख्य मंत्री पद की आनन-फानन शपथ ले ली है। अब आप विचारधारा , सिद्धांत , लोकतंत्र आदि के जो भी पहाड़े पढ़ने हों , पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं। मेरा आकलन तो यह था कि भाजपा या तो एन सी पी से हाथ मिला कर सरकार बनाएगी या फिर कांग्रेस को तोड़ कर सरकार बनाएगी। शिवसेना में भी टूट की उम्मीद थी। लेकिन एन सी पी टूट कर इस तरह भाजपा के साथ जाएगी , यह उम्मीद तो नहीं ही थी। फिर टूट का मंज़र अभी अपना सिलसिला और बढ़ाने वाला है। सब से ज़्यादा मुश्किल शिवसेना को ही है अपने विधायकों को ले कर। शिवसेना का एक मूर्ख कल तक कह ही रहा था कि जो शिवसेना को तोड़ेगा , उस की खोपड़ी तोड़ दी जाएगी। अब वह कहां है , पता नहीं है। अभी तो शिवसेना ने अपने विधायकों को एक होटल में रख कर उन के मोबाइल ले लिए हैं। खबर यह भी है कि शिवसेना अपने विधायकों को राजस्थान भी ले जाने वाले हैं। कांग्रेस भी अपने विधायकों को पहले राजस्थान ले गई थी , फिर ले जाने वाली है। शरद पवार भी अपने विधायकों की यही घेरेबंदी करने वाली है। अपने विधायकों को बटोरने में लगे हैं। गोया विधायक न हों , भेड़-बकरी हों। हालां कि यह कहना भी भेड़-बकरी का अपमान है। याद कीजिए प्रेमचंद की मशहूर कथा , दो बैलों की कथा। इस कथा के बैल हीरा , मोती जैसे निष्ठावान नहीं हैं यह विधायक। बिकाऊ हैं। 

खैर , राज्यपाल ने देवेंद्र फडवनीस को शपथ भले दिला दी हो लेकिन विधानसभा में बहुमत प्राप्त करना अभी इतना आसान नहीं है। कर्नाटक में येदुरप्पा का इतिहास भी दुहराया जा सकता है। येदुरप्पा को शपथ के बाद भी इस्तीफ़ा देना पड़ा था। कुछ समय बाद फिर वह मुख्य मंत्री बन गए , यह अलग बात है। मुझे याद है एक समय मायावती ने भी कल्याण सिंह सरकार को गिराने के लिए अपने विधायकों को ताले में बंद कर रखा था। किसी बाहरी से तो छोड़िए , परिवार के लोगों से भी मिलने पर प्रतिबंध था। विधानसभा में भी वह अपने सारे विधायकों को साथ ले कर पहुंची। लेकिन विधानसभा पहुंचते ही मायावती के कई विधायकों ने फ़ौरन पाला बदल लिया। मार-पीट शुरू हो गई। मायावती को उलटे पांव अपनी जान बचा कर बच्चों की तरह बकइयां-बकइयां भागना पड़ा था। भारतीय लोकतंत्र में अब सिद्धांत , विचार , पार्टी आदि फिजूल बात हो चली है। अब सब कुछ कुर्सी ही है। सत्ता ही है। बतर्ज़ बाप बड़ा न भैय्या , सब से बड़ा रुपैय्या। कोई भी , कैसे भी , कुछ भी पा सकता है। नहीं झारखंड में एक निर्दलीय विधायक मधु कौड़ा को भी हम मुख्य मंत्री के रूप में हम देख ही चुके हैं। अभी तो गोपीनाथ मुंडे के भतीजे एन सी पी के धनंजय मुंडे जो सुबह अजित पवार के साथ थे , शरद पवार से मिलने पहुंचे हैं। जो भी हो 30 नवंबर या इस से पहले भी देवेंद्र फडनवीस के विश्वास मत प्राप्त करने तक अभी बहुत सी मुलाकातें , शह और मात के विभिन्न शेड देखने को मिलेंगे। कल रात ही लिखा था कि शरद पवार भाजपा और अमित शाह की बिछाई बिसात पर खेल रहे हैं। अमित शाह ने अभी अपनी बिसात उठाई नहीं है। वह जो कहते हैं  न कि अभी तो तेल देखिए , तेल की धार देखिए। साथ ही राजनीति के सांप और सीढ़ी का खेल देखिए। कि किस को चढ़ने के लिए सीढ़ी मिलती है , किस को सांप निगलता है। देखना दिलचस्प होगा कि सुबह का भूला , शाम को लौटता भी है कि नहीं। भूला भी है कि नहीं , यह भी गौरतलब है। अभी जल्दी ही नितिन गडकरी ने हंसते हुए सच ही कहा था कि क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी , कभी भी संभव है। इस बात का परीक्षण भी अभी इस बाबत शेष है। 




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