Saturday 16 May 2015

सिर्फ़ फेंकू कला से ही मुमकिन नहीं हुआ है नरेंद मोदी के महाविजय का एक साल



नरेंद मोदी के महाविजय के आज एक साल हो गए ।

यह दिन उन के समर्थकों और भक्तों के लिए ख़ुशी का दिन तो है ही , उन के आलोचकों और विरोधियों के लिए भी सोचने का दिन है । बल्कि उन्हीं के लिए ज़्यादा है। कि आखिर मोदी की प्रचंड आलोचना और अंध विरोध के बावजूद यह आदमी कैसे इतना सफल हो गया , इतने लोगों को आख़िर कैसे अपने पक्ष में कर ले गया ? यह फेंकू , सांप्रदायिक, पूंजीपतियों का समर्थक आदि खोखले, कमजोर और आधारहीन आरोपों और कुतर्कों का अब कोई मतलब नहीं रहा गया है। कुतर्क की जगह सुतर्क और विरोध की कोई नई और पुख्ता ज़मीन खोजनी चाहिए मोदी विरोधियों को । विरोध के नाम पर फासिज्म की पुरानी इबारत अब अप्रासंगिक हो चुकी है दोस्तों ! जाति-पाति, हिंदू-मुसलमान, हिंदू-ईसाई की मूर्खता भरी राजनीति और इन के तुष्टिकरण की बिसात पर लोगों की भावनाओं से खेल कर किसी का विरोध अब नहीं चलने वाला , यह बात भी समय रहते मोदी विरोधियों को समझ लेनी चाहिए । वह चाहे उन की पार्टी में उपस्थित विरोधी हों , या पार्टी के बाहर , यह सब के समझने की बात है । कि हवा हवाई बातों से विरोध की बात भी अब हवा हो गई ।

लफ्फाज़ी और विरोध दोनों दो बात है ।


आख़िर बड़ौदा और बनारस में बिना एक भी जनसभा किए , सिर्फ़ नामांकन कर के ही मोदी का लाखों वोटों से जीतना, न सिर्फ़ ख़ुद का जीतना बल्कि अपने सब लोगों को जिता कर प्रचंड बहुमत से लोकसभा में ले आना सिर्फ़ फेकू होने की कला से ही नहीं हुआ। विदेश नीति में अमरीका से लगायत चीन तक को एक ही धागे में गांठ लेना , पाकिस्तान को उस की भरपूर औकात में ला देना भी फेंकू कला से ही मुमकिन नहीं हुआ है । न ही यमन से लगायत नेपाल तक में फंसे भारतीयों को निकाल ले आना , नेपाल और कश्मीर की विपदा में सफलता से राहत कार्य भी फेंकू कला से संभव नहीं बना । ममता बनर्जी से लगायत नीतीश कुमार जैसे धुर विरोधियों के विरोध को कुंद करना भी किसी फेकू कला के तहत तो नहीं हुआ । धुर असहमति के बावजूद कश्मीर में मुफ्ती सरकार का गठन भी फेंकू कला का परिणाम नहीं है । यह ठीक है कि मंहगाई कम करने में  मोदी कामयाब नहीं हुए हैं और कि भूमि अधिग्रहण बिल पर बुरी तरह फंस गए हैं लेकिन कोई टू जी , कोई कोयला , कोई कामन वेल्थ आदि अभी तक सामने नहीं आया है , यह भी कम संतोष की बात नहीं है। अब आप कुर्ता , कोट , सूट-बूट के मूर्खतापूर्ण आरोपों से ही अपनी खुजली मिटा कर खुश हैं तो ख़ुश रहिए, यह आप का अपना चयन है , आप को मुबारक़ ! यह साहब , यह पत्नी जशोदाबेन आदि का घिसा-पिटा रिकार्ड आप की अपनी कुंठा और भड़ास है । बहुत बाजा बजा चुके हैं इन सब का , कुछ नया और तार्किक खोजिए, विरोध खातिर आप ध्यान इस बात पर भी ज़रूर दीजिए कि विरोध की कमज़ोर ज़मीन और कुतर्क मोदी को ज़्यादा शक्ति संपन्न बनाए जा रहे हैं । ख़ास कर वह विरोध जो कुछ लोग भारत द्रोह की हद तक जा कर कर रहे हैं । यह विवेकहीन लोग यह बात भी भूल जाते हैं मोदी अंध विरोध में कि मोदी भारत नहीं हैं और भारत मोदी नहीं हैं । मोदी की नीतियों और उन की सरकार के काम-काज पर गौर कीजिए । मंहगाई और जन विरोधी नीतियों का पर्दाफाश कीजिए । यहां जो छेद हो , उसे बेपरदा कीजिए ! घाघ राजनीतिज्ञों के लाक्षागृह में मत झुलसिए, न झुलसायिए , जिन के पास खोखले विरोध की विसात के सिवाय कुछ नहीं है । 

एक गांव में एक खूब काला व्यक्ति था। उस की शादी हुई और खूब गोरी पत्नी मिल गई। गोरी पत्नी उस के जी का जंजाल बन गई । बात-बेबात वह उस पर शक करता और फिर कोई न कोई बहाना खोज कर उस की खूब पिटाई भी करता। इतना कि गांव के लोग बटुर जाते बीच-बचाव करने के लिए। पहले यह सब कभी-कभी होता था , फिर नियमित हो गया और फिर अति हो गई इस सब की। गांव के लोग आजिज आ गए। एक दिन जब उस काले व्यक्ति ने पत्नी की बेबात पिटाई शुरू की तो फिर गांव के लोग इकट्ठे हुए । पिटाई से पत्नी को बचाया और पूछा कि अब आज क्या हो गया ? वह काला व्यक्ति बोला , इस को खीर बनाने नहीं आती। लोगों ने खीर मंगवाई , जो उस की पत्नी ने बनाई थी और दो-तीन लोगों ने चखा । सब ने एक सुर से कहा कि खीर तो ठीक बनी है , इस में कमी क्या है ? वह काला व्यक्ति खीझ कर बोला ,  लेकिन इस में हल्दी कहां है ? लोगों ने चकित हो कर एक सुर से कहा कि खीर में हल्दी पड़ती भी कहां है ? तो वह काला व्यक्ति गुर्रा कर बोला , लेकिन मुझे खीर में हल्दी अच्छी लगती है ! गांव के लोग उठ कर खड़े हो गए , यह कहते हुए कि, फिर तुम्हारा कोई इलाज नहीं है। संयोग से नरेंद्र मोदी के साथ भी यही हो गया है । उन के आलोचकों की भी यही बीमारी है कि उन्हें भी नरेंद्र से खीर में हल्दी की दरकार है और नरेंद्र मोदी उन्हें खीर में हल्दी नहीं दे पा रहे ! और बात-बेबात उन की जब-तब पिटाई चालू है। अब सर्वदा की तरह इस चीन यात्रा में भी नरेंद्र मोदी से खीर में हल्दी की गुहार शुरू है ! 



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