Sunday 18 January 2015

नरेश सक्सेना का सतहत्तरवां जन्म-दिन और विवादों और मतभेदों की तुर्शी

नरेश सक्सेना के साथ

लखनऊ के साहित्यिक हलके में विवादों और मतभेदों की तुर्शी हरदम तारी रहती है । नरेश सक्सेना इस विवाद के आकाश में अभी नए केंद्र हैं । रायपुर साहित्य समारोह में जा कर वह विवाद के घेरे में आए हैं ।  वीरेंद्र यादव ने जनसत्ता में लेख लिख कर इस पर गहरा हस्तक्षेप किया । नरेश सक्सेना ने इस पर तीखा प्रतिवाद किया । वाद , विवाद अभी जारी है । इसी बीच 16 जनवरी को नरेश सक्सेना का सतहत्तरवां जन्म-दिन मनाया गया समारोहपूर्वक । इस मौके पर रेवांत पत्रिका ने एक शाम कविता के नाम लखनऊ के जयशंकर प्रसाद सभागार में आयोजित किया । शहर के लेखक , कवि इकट्ठे हुए । विवाद भूल कर वीरेंद्र यादव भी । उन्हें बुके के साथ बधाई दे कर वह गले मिले । यह सुखद था । होना भी यही चाहिए । वाद-विवाद अपनी जगह , जीवन अपनी जगह । लेकिन विवाद जैसे इन दिनों नरेश सक्सेना के साथ-साथ चलने के अभ्यस्त हो गए हैं ।  नलिन रंजन सिंह ने जो फेसबुक पर अपनी टिप्पणी दर्ज की है वह यहां  गौरतलब है । आप भी पढ़िए और इस मौके की कुछ फ़ोटो लुक कीजिए । 


माऊथ हॉर्गन बजाते नरेश सक्सेना
16 जनवरी को कवि नरेश सक्सेना जी का जन्म दिन था | इस अवसर पर 'रेवांत' पत्रिका की संपादक अनीता श्रीवास्तव की ओर से 'एक शाम कविता के नाम' कार्यक्रम का आयोजन किया गया था | रेवांत की ओर से दिए जाने वाले 'मुक्तिबोध' सम्मान के निर्णायकों में शामिल वीरेंद्र यादव और अखिलेश, रेवांत के प्रधान संपादक जन संस्कृति मंच के कौशल किशोर समेत शहर के तमाम साहित्यकार इस अवसर पर मौजूद थे | हम सब को उम्मीद थी कि नरेश जी की कोई नयी कविता सुनने को मिलेगी लेकिन कविता के बजाय नरेश जी ने 'प्यार हुआ इकरार हुआ' की धुन माउथ हार्गन पर सुनाई | हाँ उन्होंने समकालीन कविता के बारे में जो वक्तव्य दिया वह अवश्य निराशाजनक रहा | उन्होंने कहा-'मार्क्सवादी आलोचकों ने कविता का कबाड़ा कर दिया | कन्टेन्ट को इतना ठूँस देने की वकालत की कि फॉर्म की घोर उपेक्षा हो गयी |' उन्होंने कार्यक्रम में एक सस्वर गीत गाने वाली गायिका की चर्चा की और छंदों का महत्व बताया | उन्होंने कहा कि 'आजकल कविता लिखने वाले गद्य भी नहीं पढ़ते छंद क्या जानेंगे ?' अच्छी कविताओं का उदहारण देते हुए उन्होंने जिन कविताओं के हिस्से प्रस्तुत किये उनमें शब्दों का खेल अधिक था | चमत्कार पैदा करने वाली,शब्दों की पुनरावृत्ति करती हुयी लगभग तुकांत कवितायेँ बाल कवितायेँ अधिक लगीं | एक कविता तो वास्तव में एक बाल पत्रिका में छपी थी |ऐसा लगा जैसे वे फॉर्म के नाम पर शब्दों के खेल से रची हुयी मंचीय कविता के निकट खड़े हों |
नलिन रंजन सिंह
नरेश सक्सेना की तमाम कविताओं का मैं प्रशंसक हूँ | उनके कविकर्म पर 'अलाव' और 'उद्भावना' में मैं लिख चुका हूँ | लेकिन नरेश जी के वक्तव्यों से निराशा हुयी | कवि और आलोचक दोनों होना शायद आसान नहीं है | सच है, हर कोई मुक्तिबोध नहीं हो सकता | मुझे लगता है विचार,संवेदना और शिल्प - तीनों कविता के लिए जरुरी हैं | सही है कि सपाट बयानी के नाम पर सिर्फ गद्य या सिर्फ कन्टेन्ट कविता नहीं है; ठीक उसी तरह सिर्फ तुकबंदी,सिर्फ छंद चमत्कार या सिर्फ शब्दों के खेल से भी सार्थक कविता नहीं बनती | कविता के फॉर्म में बदलाव दुनिया भर में आया तो हिंदी कविता उससे अछूती कैसे रहती ! अगर कविता में विचार और संवेदना नहीं,कहन नहीं तो काहे की कविता ! सामान्य शब्दों से कथ्य को केंद्र में रखकर भी बड़ी कविता लिखी जा सकती है | ऐसी ही एक कविता नरेश जी के लिए -

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?
क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।
(राजेश जोशी)

यहां दिलचस्प यह भी है कि जैसे नरेश सक्सेना ने अपने जन्म-दिन पर अपनी कविता पढ़ने के बजाय अपने प्रिय कवियों की कविताएं सुनाईं , माऊथ हॉर्गन सुनाया वैसे ही नलिन रंजन सिंह ने भी अपनी बात रखते हुए नरेश सक्सेना के लिए राजेश जोशी की कविता पेश कर दी है । गरज यह की चिंगारी अभी सुलगती रहेगी । ज़िक्र ज़रूरी है कि रायपुर साहित्य समारोह के बिना पर कुछ लोगों ने घोषित रूप से इस कार्यक्रम का बहिष्कार भी किया ।

काव्यपाठ करते हुए



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