Saturday, 5 April 2025

असदुदीन ओवैसी की मर्चेंट आफ वेनिस

दयानंद पांडेय



यह तो मालूम था कि गृह मंत्री अमित शाह से हद से अधिक ख़ौफ़ खाने वाले असदुदीन ओवैसी को क़ानून , इस्लाम और भारतीय मुसलमान के बारे में बहुत ज़्यादा मालूम है। क़ानून की बारीकियां , इस्लाम और मुसलमान की जहालत पर असदुदीन ओवैसी की बहुत अच्छी पकड़ है। और कि इस का दुरूपयोग वह बहुत ख़ूबी से करते हैं। यही उन की कुल कमाई , कुल उपलब्धि है।

पर कल आधी रात संसद में असदुदीन ओवैसी को सुनते हुए शेक्सपियर की मर्चेंट आफ वेनिस की याद आ गई। मानना पड़ा कि क़ानून ही नहीं , इस्लाम और मुसलमान ही नहीं , क़ानून के मद्देनज़र शेक्सपियर को भी वह बहुत जानते हैं। कल संसद में वक़्फ़ बिल संशोधन को ऐलानिया तौर पर फाड़ते हुए गांधी की दुहाई दी और कहा कि गांधी की तरह इसे फाड़ता हूं। फिर भी उसे फाड़ा नहीं।

स्टैपल्ड पन्नों को स्टैपल से अलग करते हुए कहा कि गांधी की तरह फाड़ता हूं। संशोधन को फाड़ा भी नहीं और फाड़ने का ऐलान भी कर दिया। ख़ून की एक बूंद भी नहीं गिरी और मांस भी काट लिया। नाख़ून कटवा कर शहीद बन जाना , इसे ही कहते हैं।

भारत में 1911 में वक़्फ़ बोर्ड बनाया भले मोहम्मद अली जिन्ना ने पर इस वक़्फ़ बोर्ड का सर्वाधिक दोहन और मज़ा असदुदीन ओवैसी ने ही लिया है। इस लिए वक़्फ़ बोर्ड बिल के संशोधन का सर्वाधिक नुक़सान असदुदीन ओवैसी को ही उठाना है। कमर इन की सब से ज़्यादा टूटी है। आठ रुपए एकड़ के किराए पर हज़ारों बीघा वक़्फ़ की ज़मीन असदुदीन ओवैसी के पास है। अमिताभ भट्टाचार्य का लिखा एक गाना याद आ गया है :

थोड़ी फुरसत भी मेरी जान कभी बाहों को दीजिए,
आज की रात मज़ा हुस्न का आँखों से लीजिए।