Sunday, 29 June 2025

शिवांगी गोयल बच्ची , तुम सीधे-सीध एक एफ़ आई आर क्यों नहीं लिखवा देती ?

दयानंद पांडेय

शिवांगी गोयल बच्ची , तुम सीधे-सीध एक एफ़ आई आर क्यों नहीं लिखवा देती ? कब तक लेखकों को कुत्तों की तरह आपस में लड़ाती रहोगी ? सोशल मीडिया पर चूहा-बिल्ली खेलने से कुछ नहीं होने वाला। सोशल मीडिया पर तुम्हारी तरफदारी करने वाले क्रांतिकारी लोग तुम्हारी बदनामी की इबारत लिख रहे हैं। तुम्हारा मजाक उड़ा रहे हैं। अफ़सोस कि तुम्हें इस का पता तक नहीं। कैसी कवयित्री हो ? ऐसे ही कविता लिखती हो ? सारे क़ानून तुम्हारे पक्ष में हैं। अदालतों में भी तुम्हारी जय-जय होगी l

POSH Act तक लगवा सकती हो। राजेंद्र यादव से ज़्यादा दुर्गति हो जाएगी कृष्ण कल्पित की। ज्योति कुमारी प्रसंग में तो विभूति नारायण राय ने राजेंद्र यादव को जेल जाने से बचा लिया था। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि सार्वजनिक स्थल पर यौन उत्पीड़न से निबटने के लिए 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में विशाखा गाइडलाइंस स्थापित की थीं। ये गाइडलाइंस 2013 में यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) लागू होने तक रही। अब POSH Act ने इसकी जगह ले ली है। इसमें विशाखा गाइडलाइंस की मूल भावना और सिद्धांत अब भी शामिल हैं। इस कारण राइटर्स रेज़िडेंसी की यह घटना POSH Act के तहत कार्यस्थल के रूप में गिनी जाएगी।

अलग बात है कि राजेंद्र यादव की इसी शॉक में सांस चली गई। उन की घाघरा पलटन बस मुंह बाए देखती रह गई। गौरतलब है कि एक समय बहुत आजिज आ कर यह घाघरा पलटन शब्द मन्नू भंडारी ने राजेंद्र यादव के लिए इस्तेमाल किया था। यहां भी यह उसी अर्थ में प्रयुक्त है। बहरहाल , विभूति नारायण राय भी राजेंद्र यादव को इस शॉक और मृत्यु से नहीं बचा पाए। पर क़ानूनी लाज से बचा ले गए। एफ आई आर में नामजद होने के बावजूद। सारा प्रोटोकाल , सारी वरिष्ठता भूल कर रात भर दरियागंज थाने में राजेंद्र यादव के साथ बैठे रहे कि पुलिस उन के साथ पुलिसियापन न करे। सुबह थाने से छुड़ा ले गए। जेल नहीं जाने दिया। जब की उन्हीं आरोप और धाराओं में उन का ड्राइवर उसी समय जेल भेजा गया। लंबे समय तक तिहाड़ी बना रहा।

कृष्ण कल्पित के पास तो कोई विभूति नारायण राय भी नहीं है। कानूनन जेल और सज़ा दोनों सुनिश्चित है। एफ आई आर लिखवाओ तो सही। लगभग अस्सी फीसदी लेखक समुदाय फ़ेसबुक पर तुम्हारे साथ , तुम्हारे पक्ष में खड़े हैं। तुम को ले कर वामपंथी लेखक दो नहीं , बीस फाड़ हो चुके हैं। उदय प्रकाश जैसे चुके हुए कुछ मुट्ठी भर लेखक कृष्ण कल्पित के पक्ष में आधे - अधूरे ढंग से खड़े दिखते हैं। अवसर आने पर पूरी तरह पलट जाएंगे। तुम्हारे साथ खड़े दिख रहे नब्बे प्रतिशत लेखक भी पक्का पलट जाएंगे। अदालत , पुलिस जाना हो तो एक प्रतिशत ही शायद खड़े मिलेंगे। यह लेखक क़ौम है ही इसी स्वाभाव की। ड्राइंग रूम में बैठ कर क्रांति की पिंगल छांटने वाले , सोशल मीडिया के क्रांतिकारी हैं। अवसरवादी हैं। अवसर पर साथ लेकिन नहीं देते। बहाना , ख़ामोशी और कायरता इन के स्थाई स्वभाव हैं।

नई धारा की ओर से संक्षिप्त सफाई और निर्णायक मंडल के एक सदस्य प्रियदर्शन की फ़ेसबुक टिप्पणी कम से कम तुम्हारे पक्ष में खड़ी नहीं दिखती। अपनी सफाई रखते हुए , अपना चेहरा साफ़ करने की क़वायद भर है। तुम्हारी अस्मिता , तुम्हारे अपमान की उन्हें कोई चिंता नहीं। चिंता है तो बस अपनी। अपने संस्थान और अपने चेहरे की। तुम को क्या लगता हैं राम ने रावण से युद्ध सीता के लिए लड़ा था ? ऐसा सोचती हो तो बिलकुल ग़लत सोचती हो। राम ने रावण से युद्ध अपनी प्रतिष्ठा के लिए लड़ा था। अपना चेहरा साफ़ करने के लिए लड़ा था। उन की चिंता थी कि बिना सीता अयोध्या लौट कर वह लोगों को क्या जवाब देंगे। तुलसी की रामायण में तो नहीं पर वाल्मीकि रामायण में राम की इस चिंता के इस के स्पष्ट विवरण उपस्थित हैं। यह कुछ लेखक जो तुम्हारे साथ सोशल मीडिया पर खड़े दिख रहे हैं राम की तरह अपनी उसी प्रतिष्ठा के तहत उपस्थित हैं। अपनी-अपनी अयोध्या को एड्रेस करने के लिए। तुम्हारे साथ कोई नहीं खड़ा है। सब की अपनी-अपनी अयोध्या है। और तुम जानती ही हो कि श्रीकांत वर्मा लिख गए हैं कि कोशल में विचारों की कमी है। अगर बात अभी नहीं समझ आई तो लो यह पूरी कविता पढ़ो। शायद बात पूरी समझ आए इस सेना की :

महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो !

युद्ध नहीं हुआ –

लौट गये शत्रु ।

वैसे हमारी तैयारी पूरी थी !

चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं

दस सहस्र अश्व

लगभग इतने ही हाथी ।

कोई कसर न थी ।

युद्ध होता भी तो

नतीजा यही होता ।

न उनके पास अस्त्र थे

न अश्व

न हाथी

युद्ध हो भी कैसे सकता था !

निहत्थे थे वे ।

उनमें से हरेक अकेला था

और हरेक यह कहता था

प्रत्येक अकेला होता है !

जो भी हो

जय यह आपकी है ।

बधाई हो !

राजसूय पूरा हुआ

आप चक्रवर्ती हुए –

वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं

जैसे कि यह –

कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता

कोसल में विचारों की कमी है ।

तो कोशल की तरह यह सभी भी अधिक दिन तक नहीं टिक सकते। इस लिए भी कि सब के अपने-अपने राजसूय हैं , सब के सब चक्रवर्ती हैं। पर तुम भाग्यशाली हो कि त्रेता नहीं , कलयुग में हो। कोशल न सही , क़ानून सौ फीसद तुम्हारे पक्ष में है। तुम सच कहो , झूठ कहो , यह तुम्हारी मर्जी है। पर तुम्हारा हर कहा , क़ानून के लिए सच है। ऐसे सभी प्रसंग में हर स्त्री का कुछ भी कहा , क़ानून के लिए सच है। क़ानून के पन्ने बताते हैं कि राइटर्स रेजिडेंस भी कार्यस्थल है और कार्यस्थल पर कृष्ण कल्पित के ख़िलाफ़ तुम्हारा कहा POSH Act के क़ाबिल है। बहुत कड़ा क़ानून है यह। ज़मानत दूभर है। बस एक ही समस्या है कि मायके पक्ष से तुम भले व्यवसायी हो पर ससुराल पक्ष से ब्राह्मण हो। और भारतीय राजनीति और वामपंथी लेखकों के गलियारे में जाति बहुत बड़ा फैक्टर है। तथ्य और तर्क से पहले जाति और धर्म पर विचार होता है। फिर किधर खड़ा होना है , तय होता है। ब्राह्मण हो जाना तो ख़ैर हर दृष्टि से अपराध है। वह सर्वदा का दोषी है। रहेगा। स्थापित सत्य है। नो इफ , नो बट। बहुत मुमकिन है कि उदय प्रकाश तुम्हारे इसी ब्राह्मण पक्ष से विचलित हो कर कृष्ण कल्पित के पक्ष में उपस्थित हो गए हों।


इस लिए भी कि अभी कल तक कुछ लेखक लोग कृष्ण कल्पित को ब्राह्मण समझ कर पूरी ताक़त से प्रहार कर रहे थे , यह जानते ही कि वह बढ़ई हैं या कोई ओ बी सी हैं , उन के प्रहार क्षीड़ होते गए हैं। वैसे भी तुम वामपंथ खेमे के प्लस-माइनस भी ख़ूब जानती होगी। एक सांसद चंद्रशेखर दुराचारी होने के बाद भी सिर्फ़ इस लिए सुरक्षित है कि वह दलित है। गो कि दुराचार भी दलित के साथ ही संपन्न हुआ है। और निरंतर। नियमित। पर इस ख़बर पर सारे के सारे सिरे से ख़ामोश हैं। एक पत्ता भी नहीं खड़का है।

बहुत समय नहीं बीते एक दुराचारी खुर्शीद अनवर को बचाने के लिए यही वामपंथी लेखक समुदाय पूरे प्राण से लगा हुआ था। उसे शहीद और महान बताने में बड़े-बड़े लेखक और संपादक खर्च हो गए थे। एक आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली आई हुई नार्थ ईस्ट की उस लड़की के साथ यह लेखक बहादुर लोग नहीं खड़े हुए। दुराचारी खुर्शीद अनवर को बचाने में लग गए। वह तो जब वह क़ानूनी रूप से घिर गया तो बालकनी से छलांग मार कर मर गया। यह कमज़र्फ फिर उसे शहीद बताने लगे। खुर्शीद अनवर भी शराब के नशे में उस नार्थ ईस्ट की बेटी के साथ बलात्कारी बन गया था।

कम से कम अपनी सफाई में खुर्शीद अनवर ने यही बताया था कि आंदोलन की थकान उतारने के लिए शराब पी और शराब का नशा उतारने में बलात्कार हो गया। जनसत्ता के तत्कालीन संपादक ओम थानवी ने खुर्शीद अनवर की ताजपोशी और उस की मासूमियत के बखान में लेख लिखे। गो कि ओम थानवी वामपंथी नहीं हैं। पर कंधे से कंधा मिला कर चलने की बीमारी उन्हें है , तो है। लेखक तो लेखक , लेखिकाएं और आगे हैं। कोसो आगे।

नया ज्ञानोदय में जब विभूति नारायण राय ने कुछ छिनार लेखिकाओं को संकेतों में इंगित कर दिया तो विभूति के पक्ष में बहुत से लेखक ही नहीं , लेखिकाओं ने भी शहर-शहर विभूति के पक्ष में हस्ताक्षर अभियान चलाए। जुलूस निकाले। हालां कि भले अप्रिय और अभद्र बात विभूति ने कही थी पर सच कही थी। फिर भी अपनी वाइस चांसलरी बचाने के लिए तुरत-फुरत माफ़ी मांग ली थी। रवींद्र कालिया ने भी।

तो सर्वदा इनाम-इकराम , मुफ्त की यात्रा की लालसा-अभिलाषा में सांस लेने वाले यह हिंदी के बेरीढ़ लेखक कितना तुम्हारे साथ खड़े होंगे और लड़ेंगे , वह भी नहीं जानते। इधर-उधर होने में तनिक देर नहीं लगती इन्हें। लेकिन भारतीय क़ानून तुम्हारे पक्ष में पूरी तरह शत-प्रतिशत खड़ा है। तुम कैसी कविता लिखती हो , नहीं जानता। तुम्हारा जीवन , तुम्हारी अभिलाषा क्या है नहीं जानता। कुछ लोग कह रहे हैं कि इस बहाने तुम्हें बहुत प्रसिद्धि मिल गई है। तुम ने प्रसिद्धि के लिए ही यह सारा तानाबाना बुना है। मैं ऐसी बातों और ऐसी प्रसिद्धि से सहमत नहीं होना चाहता। दुहराता हूं वह सवाल फिर से कि : शिवांगी गोयल बच्ची , तुम सीधे-सीध एक एफ़ आई आर क्यों नहीं लिखवा देती ? कब तक लेखकों को कुत्तों की तरह आपस में लड़ाती रहोगी ?

देवेंद्र कुमार की एक लंबी कविता है बहस ज़रूरी है। उस के दो छोटे अंश है :

समन्वय, समझौता, कुल मिला कर
अक्षमता का दुष्परिणाम है
जौहर का किस्सा सुना होगा
काश! महारानी पद्मिनी, चिता में जलने के बजाए
सोलह हजार रानियों के साथ लैस हो कर
चित्तौड़ के किले की रक्षा करते हुए
मरी नहीं, मारी गई होती
तब शायद तुम्हारा और तुम्हारे देश का भविष्य
कुछ और होता!
यही आज का तकाजा है
वरना कौन प्रजा, कौन राजा है?

(बहस जरूरी है)

दिक्कत है कि तुम सोचते भी नहीं
सिर्फ दुम दबा कर भूंकते हो
और लीक पर चलते-चलते एक दिन खुद
लीक बन जाते हो
दोपहर को धूप में जब ऊपर का चमड़ा चलता है
तो सारा गुस्सा बैल की पीठ पर उतरता है
कुदाल,
मिट्टी के बजाय ईंट-पत्थर पर पड़ती है
और एकाएक छटकती है
तो अपना ही पैर लहुलुहान कर बैठते हो
मिलजुल कर उसे खेत से हटा नहीं सकते?

(बहस जरूरी है)

तो बच्ची , सोशल मीडिया पर ही नहीं , क़ानूनी रूप से लड़ो। सोशल मीडिया के जौहर से निकलो। माता - पिता ने इतना सुंदर नाम दिया है तो अपने शिवांगी नाम के अर्थ को भी तनिक समझो और इसे जियो।

Thursday, 26 June 2025

किसी से कुछ कहना क्या , किसी से कुछ सुनना क्या !

दयानंद पांडेय


ग्रेटर नोएडा वेस्ट की हमारी सोसाइटी में रात दो बजे भी कोई अकेली औरत टहल सकती है l निर्भय l निर्द्वंद्व l टहलती दिखती भी हैं कुछ औरतें l रात देर तक जागने के कारण बालकनी से जब-तब देखता भी हूं यह स्त्रियों का बेखटक टहलना l पचास एकड़ की इस सोसाइटी में कुत्तों से भले कोई डरे पर किसी और से नहीं l


लेकिन बीते दिनों एक रात दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी l

एक लड़की रोज़ की तरह आधी रात टहल रही थी l दो शोहदों ने उस के साथ छेड़खानी की l अभद्रता की l बाद में पता चला कि वह दोनों लड़के पिए हुए भी थे l लड़की कॉरपोरेट सेक्टर में काम करती है l उस ने घर जा कर तुरंत यह बात बताई l उस के पिता ने तुरंत यह बात सोसाइटी के वाट्सअप ग्रुप पर विस्तार से लिख दी l आधी रात हंगामा हो गया l रात भर वाट्सअप ग्रुप पर क्रांति होती रही l लेकिन दूसरी सुबह लड़की के पिता ने पुलिस को भी इनफ़ॉर्म किया l पुलिस आई l लड़कों की शिनाख़्त हुई l पता चला वह दोनों लड़के एक फ्लैट में किराएदार थे l बैचलर थे l शराब पी कर मस्ती कर रहे थे l हफ़्ते भर पहले ही किराएदार बन कर सोसाइटी में आए थे l

पूरी सोसाइटी के लोग इकट्ठे हुए l मीटिंग हुई l मेंटेनेंस से मकान मालिक का नंबर ले कर मकान मालिक से संपर्क किया गया l पुलिस ने तो उन दोनों लड़कों को थाने ले जा कर टाइट किया ही , मकान मालिक ने भी उसी दिन घर ख़ाली करने को कह दिया l दूसरी सुबह वह लड़के इस सोसाइटी से मय सामान के घर ख़ाली कर गए l फिर दुबारा नहीं दिखे l इस मसले पर पूरी सोसाइटी एक हो गई l आपस में बहुतों के बहुत मतभेद थे , झगड़े और विवाद थे पर सब कुछ , सब लोग भुला कर एकजुट हो गए l शोहदों को बेइज्जत हो कर भागना पड़ा l सोसाइटी में वैसे भी बैचलर को किराए पर घर देने की मनाही है l

लड़की के पिता ने वाट्सअप ग्रुप पर ही पूरी सोसाइटी को धन्यवाद ज्ञापित किया l न अपनी पहचान छुपाई , न बेटी की l सब ने उन को सैल्यूट किया l गौर तलब है कि वह लड़की या अन्य स्त्रियां आज भी सोसाइटी में बेधड़क टहलती हैं l जब चाहती हैं तब l आधी रात भी l

बहरहाल एक छोटी सी सोसाइटी में एक लड़की से छेड़खानी पर पूरी सोसाइटी में एकजुटता दिखी और परिणाम भी तुरंत मिला l पर क्रांति की अलख जगाने वाले , व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाले , मोदी , ट्रंप की रोज माँ-बहन करने वाले हिंदी लेखक ऐसे किसी मसले पर एकजुट नहीं हो सकते l आधी रात भी l जान सभी गए पर आहिस्ता-आहिस्ता l गोया रुख़ से सरकती जाए है नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता !

एक लंपट और शराबी लेखक का नाम लेने में , उस की निंदा करने में लेखक लोग भयभीत हो गए l हाई हैडेड स्त्री लेखिकाएं भी हिजाब ओढ़ कर बैठ गईं l घाघरा पलटन टाइप लेखिकाएं भी गुदगुदा कर रह गईं l अजब है हमारा हिंदी लेखक समाज भी l राजनीतिक दलाली करने वाले लेखकों से , अपनी अम्मा और आत्मा बेच कर एजेंडा चलाने वाले लेखकों से तो कोई उम्मीद करना अपने ही से घात करना है l

पुनश्च : बात बेबात फेसबुक पर हवा ख़ारिज करने और विवादित रहने की बीमारी से ग्रसित कृष्ण कल्पित इस पूरे मसले पर सिरे से ख़ामोश हैं। और वह कहते हैं न कि जग अभी जीता नहीं है और मैं अभी हारा नहीं हूं कि ध्वनि भी है। शिवांगी गोयल की कोई बात सामने नहीं आई है। कयास भी बहुत सारे हैं। फिर भी यह एक पोस्टर भी तैर रहा है। बाक़ी रमानाथ अवस्थी की गीत पंक्ति है : किसी से कुछ कहना क्या , किसी से कुछ सुनना क्या , अभी तो और चलना है ! अभी तो और थकना है।

Wednesday, 18 June 2025

सोने की टोटी वाला सद्दाम हुसैन जब भिखारियों की तरह मिला

दयानंद पांडेय

एक समय था कि इराक़ का तानाशाह सद्दाम हुसैन अपने बाथरूम में सोने की टोटी लगाए था l सोने के टोटी से आए पानी से नहाता था l पर अपने अंतिम समय में अखिलेश यादव की तरह सोने की टोटी , टाईल नहीं ले जा पाया l लेकिन तब के दिनों अमरीका और उस के 35 मित्र राष्ट्रों को लंबे समय तक छकाता रहा l मित्र राष्ट्र की सेनाएं रोज़ ऐलान करतीं कि आज इतने टैंक मारे l यह किया , वह किया l पर सचमुच कुछ नहीं l क्यों कि सद्दाम हुसैन ने जगह-जगह रबर के टैंक खड़े किए था l रोज़ यही खड़े कर देता था l

अमरीका और मित्र राष्ट्र हवाई हमला कर ख़ुश रहते l पर सद्दाम हुसैन का यह झांसा बहुत दिन नहीं चल पाया l अपना भूमिगत महल छोड़ कर सद्दाम हुसैन को भागना पड़ा l अमरीकी सैनिकों ने जब सद्दाम हुसैन को गिरफ़्तार किया तब वह एक कच्चे , मिट्टी वाले बंकर में लेटा हुआ मिला l बंकर क्या लगभग कब्र थी वह l ऊपर लकड़ी के पटरे से ख़ुद को ढँक कर छुपा पड़ा था l दीनहीन दशा में l भिखरियों की तरह l लस्त-पस्त l

यहाँ तक कि गिरफ़्तार होने के बाद भी वह लगातार बताता रहा कि मैं सद्दाम हुसैन नहीं हूं l लेकिन भिखारियों की तरह दिखने वाला वह सद्दाम हुसैन ही था l अंतत: सद्दाम हुसैन को फाँसी हुई l

मुस्लिम जगत में मातम मना l

अब वह एक था सद्दाम हुसैन कहलाने के क़ाबिल भी नहीं रहा l मुस्लिम जगत ही उसे भूल चुका है l सद्दाम हुसैन को अपने रासायनिक हथियारों पर बड़ा भरोसा था l मुस्लिम ब्रदरहुड पर बड़ा भरोसा था l और सब से बड़ी बात कि तेल के कुएं पर बड़ा नाज़ था l पर उस की ज़िद , सनक और तानाशाही में कुछ काम न आया l

ईरान के ख़ोमाईंनी भी अब सद्दाम हुसैन की राह पर चलते हुए उसी दुर्गति को प्राप्त होने को उत्सुक दिखते हैं l किसी अज्ञात बंकर में छुपे हुए l एक पुरानी कहावत याद आती है कि बातें चाहे कोई जितनी और जैसी भी कर ले पर उछलना अपने ही दम पर चाहिए l इस लिए भी कि मुस्लिम ब्रदरहुड की सरहद सिर्फ़ आतंक तक ही है l

सीधी लड़ाई में अब मुस्लिम ब्रदरहुड अपनी हैसियत जितनी जल्दी जान ले बेहतर है l तेल के कुएं अब उस का कवच-कुंडल बनने को तैयार नहीं हैं l तेल के कुएं , आतंक और ख़ून खराबा करने का लाइसेंस जब देते थे , तब देते थे l अब वह दिन विदा हुए l

विदा हुए वह दिन जब तलवार के दम पर पारसियों के ईरान को मुस्लिम ईरान बना कर उसे जहन्नुम बना दिया l आतंक का पर्याय बना दिया l यह तलवार नहीं , विज्ञान , तकनीक , डिप्लोमेसी और बुद्धि का दिन है l मनुष्यता और व्यवसाय का है l अब हर चीज़ का विकल्प है l तेल और तेल के कुएं का भी l सर्वदा आतंक की ध्वजा फहराने वाले मुस्लिम ब्रदरहुड के तहस-नहस का भी l

ट्रंप और नेतन्याहू मोदी की तरह ढकोसलेबाज़ नहीं हैं

दयानंद पांडेय


यह अच्छा ही है कि नेतन्याहू और ट्रंप नरेंद्र मोदी की तरह सब का साथ , सब का विकास और सब का विश्वास जैसे ढकोसले में नहीं पड़ते l अर्जुन की तरह सीधे मछली की आंख देख रहे हैं l उन की नज़र में ही नहीं , उन की कार्रवाई में भी आतंकी , आतंकी दिख रहा है l ईरान जिस तरह तमाम इस्लामिक आतंकी संगठन खड़े कर दुनिया में आतंक का तराना गाता रहता है , उसे करेक्ट करना बहुत ज़रूरी है l बहुत ज़रूरी l

नेतन्याहू ने खोमैनी को आगाह किया है कि सद्दाम हुसैन जैसी दुर्गति हो सकती है l ख़बर यह भी है कि खोमैनी , ट्रंप की हत्या की फ़िराक़ में था l ट्रंप और अमरीका दोनों ही गुंडई में मास्टर हैं l नेतन्याहू जुनून से लबालब l इस्लामिक ब्रदरहुड के नाम पर आतंक का सफाया बहुत ज़रूरी है l इस दुनिया से विदा होना ही चाहिए आतंक का हर कोना l हर हाल होना चाहिए l

मनुष्यता और शांति के लिए यह बहुत ज़रूरी है l तेल के कुएं, मनुष्य का ख़ून बहाने का लाइसेंस नहीं है , यह बात हर किसी को जान लेने में ही भलाई है l

अलग बात है इस पूरे परिदृश्य में भारत की स्थिति त्रिशंकु जैसी है l भारत , चीन , टर्की और पाकिस्तान को छोड़ कर हर किसी के साथ है l रूस के साथ भी , अमरीका के साथ भी l ईरान के साथ भी , इजराइल के साथ भी l

लिख कर रख लीजिए कि तमाम इफ बट के बावजूद तीसरा विश्व युद्ध नहीं होना है , न परमाणु युद्ध l लेकिन इस्लामिक आतंकवाद इतना ख़तरनाक है कि अगर उस के पास परमाणु बम हो तो जाने क्या कर दे l

पाकिस्तान के परमाणु बम की कुंजी , अमरीका के हाथ है इस लिए उस के हाथ बंधे हुए हैं l ईरान , परमाणु बम बनाए , अमरीका इसी लिए नहीं चाहता l उस की दादागिरी को घाव भी लगता है l इजराइल इस मुहिम में अमरीका का सहचर है l रूस और चीन, अमरीका के ख़िलाफ़ होते हुए भी , प्रेक्षक l भारत त्रिशंकु ! इधर का होते हुए भी उधर का दिखाई देता है l उधर का होता हुए भी इधर का दिखाई देता है l

सरकार अगर मोदी की नहीं , किसी और की होती तब भी शायद यही मंजर होता l आप्रेशन सिंदूर प्रसंग में कांग्रेस तो तुर्कीए का नाम लेने में भी कांप जाती है l नहीं लेती l मुस्लिम वोट बैंक का भय है कांग्रेस को l भारत से ही आज काले कपड़े पहने एक समूह का वीडियो आया है l जिस में नारा लग रहा है : ईरान से आवाज़ आई , शिया-सुन्नी भाई-भाई ! इस लिए मोदी सरकार मुसलमानों के दंगे और हिंसा से डरती है l बुरी तरह भयभीत !

और दुनिया ?

इस्लामिक आतंकवाद से तो समूची दुनिया डरती है l चीन और रूस भी l कई मुस्लिम देश भी l

Friday, 6 June 2025

भारत की डिप्लोमेसी का यह सूर्य समूची दुनिया में चमक रहा है

दयानंद पांडेय


एलन मस्क और ट्रंप कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ने लगे हैं। ट्रंप के स्त्रियों के साथ आपत्तिजनक वीडियो बाज़ार में उतर चुके हैं। एलन मस्क ने ट्रंप को चंदा देने से इंकार कर दिया है। एलन मस्क की कंपनी स्टार लिंक को आज भारत ने सेटेलाइट इंटरनेट का लाइसेंस दे दिया है। आज ही कनाडा के राष्ट्रपति ने जी सेवन में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री को निमंत्रण दे दिया है। आज ही चीन का जानी दुश्मन ताइवान , भारत से हथियार ख़रीदने भारत आ गया है। एप्पल ने डोनाल्ड ट्रंप की 25 प्रतिशत टैरिफ की धमकी के बावजूद भारत में अपनी रणनीति को मजबूत करते हुए टाटा ग्रुप को आईफोन और मैकबुक की मरम्मत का बड़ा जिम्मा सौंप दिया है। टाटा, जो पहले से ही भारत में आईफोन असेंबल करता है। अब कर्नाटक में विस्ट्रॉन की इकाई के साथ मिलकर आफ्टर-सेल्स सर्विस प्रदान करेगा। राफेल का महत्वपूर्ण हिस्सा अब भारत में बनेगा। शशि थरुर , सलमान खुर्शीद , असदुद्दीन ओवैसी , सुप्रिया सुले जैसे तमाम लोग भारत और आपरेशन सिंदूर के यशोगान में हर्षित हैं। और भी बहुतेरी बातें हैं। क्या - क्या गिनवाएं। इस तरह भारत की डिप्लोमेसी का यह सूर्य समूची दुनिया में चमक रहा है।

ताइवान भारत से वही हथियार ख़रीदने आया है , जिन्हों ने आपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को और चीनी हथियारों को उन का रसगुल्ला घुमा कर खिला दिया। सिंधु जल के लिए पाकिस्तान चिट्ठी पर चिट्ठी लिख कर रोज गिड़गिड़ा रहा है। फिर भी एक श्वान बहादुर गांधी निरंतर नरेंदर , सरेंडर की काल्पनिक अंत्याक्षरी के नशे में धुत्त हो कर कह रहा है कि मोदी कुछ बोल नहीं रहा है। इस श्वान बहादुर गांधी को नहीं मालूम कि डिप्लोमेसी भी एक तत्व है। श्वान बहादुर गांधी की तरह सर्वदा पृष्ठ भाग से नहीं भौंका जाता। हताशा में अग्र भाग से शौच नहीं किया जाता। सकारात्मक परिणाम पाने के लिए चालें चुपचाप चली जाती हैं।

जिस कश्मीर को लोग पत्थरबाजी और आतंक के कारण जानते थे , उसी कश्मीर में दुनिया का सब से ऊंचा , पेरिस के एफिल टॉवर से भी ऊंचा , चिनाब पुल भी इस श्वान बहादुर गांधी को नहीं दिखता। श्वान बहादुर गांधी के इस बेसुरे गायन में कुछ लेखक , पत्रकार भी मिले सुर मेरा तुम्हारा के गायन में गच्च हैं। इन नितंब नरेशों ने भेड़ की भीड़ बनने में ही अपने को खर्च करने में व्यस्त कर रखा है। आपरेशन सिंदूर की पीड़ा में उपजे इस आपरेशन को आप क्या नाम देना चाहेंगे ?

यह भी कि श्वान बहादुर गांधी , पाकिस्तान और इन लेखकों , पत्रकारों की युगलबंदी को कौन सा सलाम देना चाहेंगे ? लाल सलाम , कि हरा सलाम ! कि कोई और सलाम !

कि बकरीद मनाने के लिए गटर का ढक्कन चुराने वाले पाकिस्तानियों की बारात में बैंड बजाने के लिए भेज देंगे ? हरिशंकर परसाई का वह लिखा याद कीजिए :

इस देश के बुद्धिजीवी सब शेर हैं। पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।

आज की तारीख़ में पाकिस्तान वही सियार है और भारत के बुद्धिजीवी वही शेर !