Thursday, 21 February 2013

प्रोटोकाल के चक्कर में नहीं पड़ताः घरभरन

सूर्य को रोज प्रणाम करने वाले सर रवींद्र घरभरन मारीशस के उपराष्ट्रपति हैं पर बतियाते हैं तो ऐसे जैसे मेड़ पर बैठ कर बतिया रहे हों। हालां कि वह फर्राटे से ब्रिटिश उच्चारण से सनी अंग्रेजी बोलते हैं, दूसरे ही क्षण वह भोजपुरी की मिठास में घुली ‘हमनी हमनी’ बोल कर गदगद हो जाते हैं और पहाड़ी राग में भोजपुरी गीत की धुन गुनागुनाने लगते हैं। वह फ्रेंच और हिंदी भी उसी बेलागी से बोलते हैं। वह बताते हैं कि, ‘हमारे पुरखे गोरखपुर के थे।’ वह भोजपुरी में जोड़ते हैं, ‘मजदूरी करे मारीशस गइल रहलैं।’ श्री घरभरन अपने बीते दिनों की याद करते हैं और कहते हैं कि, ‘मैं तो आकाश का पंछी था।’ वह जैसे जोड़ते हैं, ‘मैं आज़ादी पसंद हूं। प्रोटोकाल के चक्कर में नहीं पड़ता।’ और सचमुच ऐसा है। वह बातचीत और व्यवहार में एक शालीनता, एक अपनापन तो घोलते हैं पर औपचारिकता नहीं बरतते। प्रोटोकाल के प्रेशर में नहीं उबलते। ऐसे सर रवींद्र घरभरन 1968-1976 तक भारत में मारीशस राजदूत रहे। 27 सितंबर 1929 को मारीशस में पैदा हुए घरभरन ने 1959 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से बैरिस्टरी पास की थी। एक समय प्रसिद्ध वकील रहे श्री घरभरन 1992 में मारीशस के पहले उपराष्ट्रपति बने, जब देश गणतंत्र बना। अभी वह लखनऊ आए तो उन से बातचीत की। पेश है बातचीत के संपादित अंशः- 
  • जून 1997 में आप का टर्म खत्म हो रहा है। क्या आप आगे भी उपराष्ट्रपति बने रहना चाहेंगे? 
-मैं तो थक गया हूं। चार बार हार्ट अटैक हो चुका है। घोड़ा बहुत बूढ़ा हो गया है। 
  • फिर आगे क्या करने का इरादा है? 
-पुस्तक लिखूंगा। आटोबायग्राफ़ी। खास कर राजनीतिक संस्मरण। 
  • कोई खास संस्मरण अभी सुनाना चाहेंगे? 
-वंडर फुल मेमोरी की बारात है। 
  • आप की मातृभाषा क्या है? 
-मातृभाषा सब भाषा से अच्छी है। हिंदी, भोजपुरी दोनों। 
  • मातृभाषा तो एक ही हो सकती है? 
-माता की भाषा तो भोजपुरी ही थी। और कोई भाषा नहीं बोलती थी वह। हम फ्रेंच बोल कर उन्हें चिढ़ाते थे। त मातृभाषा भोजपुरी भइल। हां, पिता हिंदी बोलते थे। अध्यापक थे। 
  • आप के पुरखे कितने साल पहले गोरखपुर से मारीशस गए? 
-18 वीं सदी में। मज़दूर बन कर। पर हमारे पिता ने मज़दूरी नहीं की। दादा ने भी मज़दूरी नहीं की। 
  • गोरखपुर में अपना मूल गांव ढूंढने की कोशिश की आप ने? 
-नहीं की। पर पिता-दादा बताते थे कि पुरखे गोरखपुर से गए थे। हमारे पिता मारीशस में ही जन्मे और मैं भी। पर मेरा बेटा और बेटी दिल्ली में जन्मे। बेटा शंखनाद 9 अक्टूबर 1970 को और बेटी यजना समिधा 4 अप्रैल 1974 को। बेटा-बेटी दोनों इंग्लैंड में पढ़े। बेटे ने बर्मिंघम यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की और इस समय वह मेरी तरह वकील है। मैं क्रिमिनल प्रैक्टिस करता था पर बेटा बिजनेस मामले देखता है। बेटी ने भी बर्मिंघम यूनिवर्सिटी से बी.एस.सी. आनर्स किया है। अब वह एक ग्रुप आफ़ कंपनीज़ की चेयरमैन है। उस का कारोबार टूरिज़्म, उड्डयन आदि कई क्षेत्रों में फैला है। जेमिनी इण्टरनेशनल ट्रेवल एण्ड टूर्स ऐस्टोरेंट है। 
  • बेटी की शादी हो गई? 
-बेटी बियाह करी अब की जून में। 15 जून के। शादी मारीशस से ही होगी। दामाद वकील है। 
  • बेटे की शादी हो गई? 
-नाईं। बेटा भी लेहड़ा बा अबहिन। वकालत कै रहल बा। 
  • आप की पत्नी? 
-पत्नी पद्मावती घर संभालती है। शादी मेरी मुंबई में हुई थी। 31 दिसंबर 1959 में। पर हैं वह मारीशस की। वह पहली लड़की थीं मारीशस की जो स्कालरशिप ले कर भारत पढ़ने आई थीं। मद्रास में। मारीशस में टेलीविज़न की वह पहली न्यूज रीडर थीं। 
  • तो न्यूज़ रीडरी क्यों छोड़ दी उन्हों ने? 
-जब राजदूत बनि के भारत अइलीं त छोड़ देहलीं। 
  • आप वकील थे। राजनीति में कैसे आ गए? 
-मारीशस के फ्लक जिले के गांव सेंट जूलियन में पैदा हुआ। मेरे पिता अध्यापक थे। मेरा परिवार गांव को नेतृत्व देता था। बाद में जब इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास कर आया तो वकालत शुरू की। बहुत प्रसिद्ध हूं वकालत में। कोई मेरे हाथ फांसी नहीं गया। उसी समय आज़ादी का दौर आया तो राजनीति में आ गया। तभी चुनाव लड़ने को कहा गया। पर मैं नहीं लड़ा। मेरे भाई भृगुनाथ घरभरन तब मिनिस्टर थे। 25 साल मिनिस्टर रहे। डिप्टी प्राइम मिनिस्टर भी रहे 3-4 बरस। खैर, बाद में चुनाव दो बार लड़ा। एक बार हार गया। एक बार जीत कर मिनिस्टर भी बना। पर फिर चुनाव हार कर वापस वकालत में आ गया। बाद में 1992 में जब देश गणतंत्र बना तब पहला उपराष्ट्रपति बना। 
  • किताबें पढ़ते हैं? 
-मैं मुंशी प्रेमचंद को बहुत चाहता हूं। दिनकर जी थे उन्हें भी। 
आप के मारीशस में अभिमन्यु अनत हैं। जिन्हों ने भारत से गए मज़दूरों के बंधुआ होने की कथा ‘लाल पसीना’ उपन्यास में बड़े विस्तार से लिखी है...। 
हां, उन्हें भी जानता हूं। पढ़ा भी है। 
  • हॉबी? 
-अभी तो गार्डेनिंग, वाकिंग। एक समय टेबल टेनिस का चैंपियन था। 
  • और सिनेमा? 
-जब जवान था तब सिनेमा देखता था। हिंदी गाना बहुत पसंद है। गज़ल खास कर। भोजपुरी गाने भी। राग पहाड़ी (कहकर वह ‘ड ड ड’ कह कर पुरी धुन गुनगुनाने लगते हैं। मारीशस में तो आज-कल भोजपुरी गानों का कंपटीशन होता है टी.वी. पर। ए क्षेत्र में बड़ा काम होत बा। 
  • लखनऊ आ कर कैसा लगा? 
-पूर्वज के धरती पर आइल हईं। अद्भुत अनोखी भावना। शब्द नहीं कहने लायक। 
  • आप गोरखपुर जाना चाहते थे? 
-हां, गोरखपुर जाना चाहता था। थोड़ा हवा लेने के लिए। शुरुआत में प्लान बनाया था पर दिल्ली आ कर कैंसिल कर दिया। हेलीकाप्टर से जाने के नाते नहीं गया। अब यहां से कल मद्रास जाएंगे। तिरुपति जाएंगे। वहां शांति मिलती है। बेटे-बेटी को भी अच्छा लगता है। मिस नायडू हैं वहां। सच कहीं न ससुरारी जात हईं। 
  • तो आप धर्म में विश्वास रखते हैं? 
-बिलकुल। मैं ढाई सौ इकाइयों वाली आर्य सभा का प्रधान रह चुका हूं और आर्य समाजी होते हुए भी सनातनी भी अपने मंदिरों का प्रधान बनाए हुए हैं। 
  • आप के अराध्य देवता कौन हैं? 
-सूर्य। मैं रोज सूर्य को प्रणाम करता हूं। शिव की भी पूजा करता हूं। 
  • आप शाकाहारी हैं कि मांसाहारी? 
-मैं इंगलैंड जा कर थोड़ा बिगड़ गया। पर विशेष दिनों जैसे मंगलवार आदि को शाकाहारी ही रहता हूं। 
  • मारीशस में लोग भारत किस तरह याद करते हैं? 
-अपनी मातृभूमि की तरह। यही इकलौता देश है जिसे हम मातृभूमि मानते हैं। 
  • पर फ्रेंच बोलने वाले? 
-उनको छोड़िए। देश तो हम चलाते हैं। पर अब उन का नज़रिया भी बदला है। वैसे फ्रांस ने भी हमारी बहुत मदद की है। 

[१९९७ में लिया गया इंटरव्यू] 

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