बांसुरी की तान जब पॉप गायकी में थिरके तो समझिए कि अनाइडा गा रही हैं। बांसुरी की तान और अपनी गायकी की नाद पॉप में पिरो कर अनाइडा जब बहकाती हैं तो लोग अनायास ही थिरकने लगते हैं। अब यही अनाइडा अपनी गायकी की गूंज ले कर लखनऊ आईं। परसों एम.बी. क्लब में अपनी पॉप गायकी से वह लखनऊ को लूट लेना चाहती हैं।
इटली में पैदा हुई अनाइडा ‘यूरेजियन’ हैं। उन के पिता यूनानी हैं और मां पारसी। उन का नाम अनाइडा ग्रीक भाषा का है। अनाइडा के पिता का हिंदुस्तान में इनवेस्टमेंट का कारोबार है सो वह सात बरस पहले हिंदुस्तान आईं। इस के पहले वह अमरीका, यू.ए.ई., सिंगापुर सहित कई देशों में रह चुकी हैं। पढ़ाई-लिखाई उन की कई देशों में हुई। वह डबल ग्रेजुएट हैं। बी.एस.सी और बी.ए.। माता-पिता डाक्टर या वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, पर वह बन गईं गायिका। वह बताती हैं कि, ‘साढ़े पांच साल की उम्र में ही पहला गाना गाया था।’ वह मिमिक्री भी करती थीं। थिएटर भी खूब किए। प्रोफ़ेशनल भी और स्कूल में भी। गाना थिएटर का ही एक हिस्सा था सो उन्हों ने परसियन क्लासिकल और वेस्टर्न क्लासिकल सीखा। इन दिनों वह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीख रही हैं। उन के छोटे गुरु हैं प्रदीप सिंह और बड़े गुरु हैं सत्यनारायण सिंह। सत्यनारायण सिंह का निधन इसी साल हो गया।
अनाइडा ने शास्त्रीय संगीत का कोई ‘स्फेसिफ़िक’ घराना नहीं चुना है। अनाइडा कई भाषाओं में गाती हैं पर सब से ज़्यादा गाने उन्हों ने अंग्रेजी और अरबी में गाए हैं। इन दिनों वह हिंदी में गा रही हैं। वह बताती हैं कि, ‘जब मैं हिंदुस्तान आई तो मुझे लगा कि मुझे यहां की भाषा में ही गाना चाहिए। पर जब मैं हिंदुस्तानियों को अंग्रेजी स्टाइल में गाते देखती थी तो बड़ी तकलीफ होती। मैं ने सोचा कि मैं भी ऐसी भाषा गाऊं जो देश के ज़्यादातर लोग समझते हैं। मैं ने सोचा कि जो आप की भाषा है उस पर इफ्तखार होना चाहिए। मैं भले ही हिंदुस्तानी नहीं हूं पर कोशिश है कि सही तरीके से, सही तलफ्फुज़ से गाऊं। काफी करीब हो जाऊं, हिंदी भाषा के। इसी लिए मैं हिंदी से बहुत क्लोज्ड हो कर गाती हूं। इस लिए भी कि मुझे शौक था अगर इंडिया में हूं तो मुझे लोगों को समझना चाहिए। इस लिए भी मैं हिंदी में गाती हूं।’ अनाइडा बताती हैं कि, ‘हिंदी बोलने सीखने में मुझे तीन-चार महीने लगे। पर ग्रामर अभी भी ‘परफ़ेक्ट’ नहीं है। जब मैं ने गाना शुरू किया तो तो मेरे गीतकार मनोहर अय्यर और कंपोज़र संतोष नायर ने मुझे काफी मेहनत से ‘चीज़ों’ को सिखाया। मुझे हिंदी ठीक से नहीं आती थी तो गाने रोमन में लिख-लिख कर दिए। आज भी मैं रोमन में ही लिखे हिंदी गीत गाती हूं।’ हिंदी पॉप गाने वाली अनाइड ने ‘रघुपति राघव राजा राम’ जैसे भजन भी गाए हैं। एलबम ‘जोगी’ के इस भजन में उन के साथ पांच गायक कलाकार हैं। इस भजन को पॉप में गाने के बावजूद उस का भाव, आदर भाव बिलकुल वही है, ट्यून भी वही है पर ‘बीट’ वेस्टर्न का दिया है। तो ‘रघुपति राघव राजा राम’ हमें एक नए ‘लय’ में ले जाता है। अनाइडा इन दिनों अंग्रेजी गानों को अंग्रेजी में ही ‘फ़ीवर’ में गा कर धूम मचाए हुई हैं। हिंदी में अनाइडा के दो एलबम हैं और दोनों ही हिट हैं। एक ‘लव टुडे है नहीं आसान’ और ‘नाज़ुक-नाज़ुक’। ‘लव टुडे है नहीं आसान’ अनाइडा का पहला एलबम कैसेट है और इसी में उन का ‘हॉट लाइन’ भी है, साथ ही उन का सब से हिट और फ़ेवरिट गीत ‘दिल ले ले’ भी है।
अनाइडा का दूलरा एलबम ‘नाज़ुक-नाज़ुक’ है। वह कहती हैं कि, ‘सब से अच्छा गाना नाज़ुक-नाज़ुक है।’ नाज़ुक-नाज़ुक गीत में दरअसल नृत्य उस पर हावी है। यही हाल इस एलबम के ‘हिलोरी’ गाने में भी है। नृत्य यहां भी गीत पर भारी है। ‘हू-हल्ला-हू’ गीत में वह फंतासी बुनती हैं और परियों के देश में, प्यार की पेंग मारते हुए ले जाती हैं। फ़िदा बहुतेरे होते हैं पर नायिका पर। पर ये सीधे-साधे सरल से लड़के से प्यार कर बैठती है पर वह लड़का मेंढक बन जाता है तो उस के प्यार की पुलक आंच में बदल जाती है। दरअसल अनाइडा के गीतों में प्यार की यही तड़प और सरल भावनाएं जब ‘लय’ में गुंथ कर, पॉप में पैठ कर आंखों और कानों में पसरती हैं तो अनाइडा की गायकी की इयत्ता अपने आप ही ‘विरलता’ की सूचना दे जाती है। अनाइडा की गायकी ईस्ट-वेस्ट का ‘ब्लेंड’ है। उन की गायकी की सहजता इण्डियन टेंपरामेंट ठीक वैसी ही ‘सूट’ करती है जैसे आप खाएं अमरीकी ‘हैमबरगर’ पर जब इसमें धनियां की पत्ती पड़ जाती है तो इस ‘स्वाद’ पर मज़ा आ जाता है। अनाइडा के पॉप गीतों में ‘कोरियोग्राफ़ी’ काफी महत्वपूर्ण तत्व है और काफी मादक भी। पर अनाइडा कहती हैं कि, ‘जो आप माता-पिता के साथ भी बैठ कर देख सकते हैं।’ सच भी यही है। अनाइडा हिंदुस्तान के अन्य पॉप गायकों से ‘डिेफ़रेंट’ इस लिए भी हैं कि वह मोर इंडियन हैं। उन की गायकी में, उन की गायकी के फ़िल्मांकन में अपेक्षतया विद्रूपता कम है। वह स्लिम हैं और सौंदर्यबोध भी उन्हें भाता है। लेकिन वह सेक्सी कपड़े नहीं पहनतीं। वह कहती हैं कि, ‘मैं वलगरिटी नहीं चाहती।’ उन की स्लिम देह, हल्के ग्रे रंग की उन की आंखें बहुत नाज़ुक और विजुवल अपीलिंग की गंध परोसती हैं। ठीक अपने ‘नाज़ुक-नाज़ुक’ गीत की तरह।
‘लव टुडे है नहीं आसान’ में सरोज खान की नृत्य संरचना और हंसी मजाक, हलके-फुलके मूड में भारतीय संगीत को अनाइडा इस तरह पिरोती हैं कि ‘लव टुडे है नहीं आसान’ एक मुहावरा बन जाता है। तीन साल पहले अपनी गायकी की यात्रा करने वाली अनाइडा ने अभी बाबा सहगल के साथ एक कार्टून फ़िल्म ‘लाइन किंग’ के लिए ‘हकूना मटाटा’ डूएट गाया है। हकूना मटाटा अफ्रीकी शब्द है, जिस का अर्थ यह है कि ‘फिकर मत करो, खुश रहो’। अनाइडा अपनी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसा ही जीती हैं। वह कहती हैं कि, ‘मैं ज़्यादा कुछ प्लान नहीं करती।’ डूएट और गाने की बात चली तो वह बोलीं, ‘लकी अली के साथ गाना चाहूंगी। लकी अली महमूद के बेटे हैं और उन्हों ने मुझे आफ़र दिया भी है।’ फ़िल्मों में गाने की बात चली तो वह बोलीं, ‘फ़िल्मों के कुछ प्रस्ताव तो हमें मिले ज़रूर पर हमने रिफ़्यूज़ कर दिया। क्यों कि आज-कल के फ़िल्मी गाने मुझे ‘सूट’ नहीं करते। एक तो वह डबल मीनिंग के हैं दूसरे लीरिक अच्छे नहीं हैं।’ खुदा पर भरोसा रखने वाली अनाइडा को हिंदी फ़िल्मों के गाने बहुत पसंद हैं पर पुराने हिंदी फ़िल्मों के गाने। ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ उन का सब से पसंदीदा गाना है। ‘दोस्त-दोस्त न रहा’, ‘बाबू जी धीरे चलना’ जैसे फ़िल्मी गाने भी अनाइडा की पसंद में शुमार हैं। आर.डी. वर्मन उन के पसंदीदा संगीतकार हैं। इन दिनों रहमान के संगीत पर वह फ़िदा हैं। अनाइडा की तमन्ना है कि गाने का ‘यूज’ कर के वह बच्चों के लिए कुछ अच्छा करें। लाइफ़ में कुछ अच्छे ‘मेसेज’ देने के लिए वह गानों का इस्तेमाल करना चाहती हैं। परसनलिटी में वह हिंदुस्तान में मदर टेरेसा से प्रभावित हैं जब कि उन के पसंदीदा एक्टर एंथनी क्वीन हैं। खाने में उन्हें मिर्ची पसंद नहीं है। सफ़ेद रंग उन्हें सब से ज़्यादा भाता है और भारतीय कपड़े भी। अनाइडा अब भारतीय नागरिक हो चुकी हैं। जब उन से पूछा कि वह कैसा पति पसंद करेंगी? तो वह बोलीं, ‘टफ क्योश्चन।’ फिर अनाइडा अंग्रेजी में बोलीं, ‘जिस का दिल बहुत कोमल हो पर बाहर से ‘स्ट्रांग’ हो। मतलब पुरुष हो।’ उन्हों ने जोड़ा, ‘मेरा मतलब फिजिकली ही नहीं मन से भी है। कि वह मन से भी स्ट्रांग हो।’
क्या वह आगे भी हिंदुस्तान में रहना चाहेंगी? पूछने पर वह बोलीं, ‘आइंदा के बारे में मैं ज़्यादा नहीं सोचती।’ जब यह पूछा कि आप को गाते हुए तीन साल हो गए लेकिन आप के एलबम की संख्या दो ही क्यों है? तो अनाइडा बोलीं, ‘गाना कोई टूथपेस्ट नहीं है कि उसे हरदम प्रोड्यूस करें।’ भारतीय पॉप सिंगरों के बीच आप अपने आप को किस नंबर पर पाती हैं? पूछने पर वह बोलीं, ‘मैं चूहा दौड़ में शामिल नहीं।’ जब ‘आइडियल’ की बात चली तो वह बोलीं, ‘बेहतर गाना ही मेरा आइडियल है।’
अनाइडा का कहना है कि, ‘हम जो टी.वी. में हैं वह रीयल लाइफ़ में नहीं हैं। तो बच्चों को सही चीज़ें देखने देना चाहिए। अगर आप माइकल जैक्सन जैसा रीयल लाइफ़ में भी ‘बिहेव’ करें तो पुलिस ले जाएगी। जो कल्चर वेस्ट में है वह वेस्ट में भले अन-इजी न लगे पर जब आप इंडिया में हैं तो इंडियन कल्चर का रिस्पेक्ट ज़रुर करें।’ अटक-अटक कर हिंदी लेकिन फ़र्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली अनाइडा का लखनऊ के बारे में कहना है कि, ‘यह सिटी आफ़ नज़ाकत है।’ वह अपने अलबम के बारे में कहती हैं, ‘मेरे अलबम नीट एंड क्लीन हैं। जिन्हें आप सपरिवार देख सकते हैं। मैं अशलीलता को पसंद नहीं करती। ऐसे ही फ़िल्मों में गाने के बजाए स्टेज शो पर ज़्यादा ध्यान देती हूं। मैं चाहती हूं कि भारतीय गाने भारतीय परिवेश के अनुरुप ही गाए जाएं। गानों को डबल मीनिंग और अशलीलता से दूर ही रखा जए। क्यों कि गाने सिर्फ़ सुने ही नहीं देखे भी जाते हैं।’
[१९९६ में लिया गया इंटरव्यू]
इटली में पैदा हुई अनाइडा ‘यूरेजियन’ हैं। उन के पिता यूनानी हैं और मां पारसी। उन का नाम अनाइडा ग्रीक भाषा का है। अनाइडा के पिता का हिंदुस्तान में इनवेस्टमेंट का कारोबार है सो वह सात बरस पहले हिंदुस्तान आईं। इस के पहले वह अमरीका, यू.ए.ई., सिंगापुर सहित कई देशों में रह चुकी हैं। पढ़ाई-लिखाई उन की कई देशों में हुई। वह डबल ग्रेजुएट हैं। बी.एस.सी और बी.ए.। माता-पिता डाक्टर या वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, पर वह बन गईं गायिका। वह बताती हैं कि, ‘साढ़े पांच साल की उम्र में ही पहला गाना गाया था।’ वह मिमिक्री भी करती थीं। थिएटर भी खूब किए। प्रोफ़ेशनल भी और स्कूल में भी। गाना थिएटर का ही एक हिस्सा था सो उन्हों ने परसियन क्लासिकल और वेस्टर्न क्लासिकल सीखा। इन दिनों वह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीख रही हैं। उन के छोटे गुरु हैं प्रदीप सिंह और बड़े गुरु हैं सत्यनारायण सिंह। सत्यनारायण सिंह का निधन इसी साल हो गया।
अनाइडा ने शास्त्रीय संगीत का कोई ‘स्फेसिफ़िक’ घराना नहीं चुना है। अनाइडा कई भाषाओं में गाती हैं पर सब से ज़्यादा गाने उन्हों ने अंग्रेजी और अरबी में गाए हैं। इन दिनों वह हिंदी में गा रही हैं। वह बताती हैं कि, ‘जब मैं हिंदुस्तान आई तो मुझे लगा कि मुझे यहां की भाषा में ही गाना चाहिए। पर जब मैं हिंदुस्तानियों को अंग्रेजी स्टाइल में गाते देखती थी तो बड़ी तकलीफ होती। मैं ने सोचा कि मैं भी ऐसी भाषा गाऊं जो देश के ज़्यादातर लोग समझते हैं। मैं ने सोचा कि जो आप की भाषा है उस पर इफ्तखार होना चाहिए। मैं भले ही हिंदुस्तानी नहीं हूं पर कोशिश है कि सही तरीके से, सही तलफ्फुज़ से गाऊं। काफी करीब हो जाऊं, हिंदी भाषा के। इसी लिए मैं हिंदी से बहुत क्लोज्ड हो कर गाती हूं। इस लिए भी कि मुझे शौक था अगर इंडिया में हूं तो मुझे लोगों को समझना चाहिए। इस लिए भी मैं हिंदी में गाती हूं।’ अनाइडा बताती हैं कि, ‘हिंदी बोलने सीखने में मुझे तीन-चार महीने लगे। पर ग्रामर अभी भी ‘परफ़ेक्ट’ नहीं है। जब मैं ने गाना शुरू किया तो तो मेरे गीतकार मनोहर अय्यर और कंपोज़र संतोष नायर ने मुझे काफी मेहनत से ‘चीज़ों’ को सिखाया। मुझे हिंदी ठीक से नहीं आती थी तो गाने रोमन में लिख-लिख कर दिए। आज भी मैं रोमन में ही लिखे हिंदी गीत गाती हूं।’ हिंदी पॉप गाने वाली अनाइड ने ‘रघुपति राघव राजा राम’ जैसे भजन भी गाए हैं। एलबम ‘जोगी’ के इस भजन में उन के साथ पांच गायक कलाकार हैं। इस भजन को पॉप में गाने के बावजूद उस का भाव, आदर भाव बिलकुल वही है, ट्यून भी वही है पर ‘बीट’ वेस्टर्न का दिया है। तो ‘रघुपति राघव राजा राम’ हमें एक नए ‘लय’ में ले जाता है। अनाइडा इन दिनों अंग्रेजी गानों को अंग्रेजी में ही ‘फ़ीवर’ में गा कर धूम मचाए हुई हैं। हिंदी में अनाइडा के दो एलबम हैं और दोनों ही हिट हैं। एक ‘लव टुडे है नहीं आसान’ और ‘नाज़ुक-नाज़ुक’। ‘लव टुडे है नहीं आसान’ अनाइडा का पहला एलबम कैसेट है और इसी में उन का ‘हॉट लाइन’ भी है, साथ ही उन का सब से हिट और फ़ेवरिट गीत ‘दिल ले ले’ भी है।
अनाइडा का दूलरा एलबम ‘नाज़ुक-नाज़ुक’ है। वह कहती हैं कि, ‘सब से अच्छा गाना नाज़ुक-नाज़ुक है।’ नाज़ुक-नाज़ुक गीत में दरअसल नृत्य उस पर हावी है। यही हाल इस एलबम के ‘हिलोरी’ गाने में भी है। नृत्य यहां भी गीत पर भारी है। ‘हू-हल्ला-हू’ गीत में वह फंतासी बुनती हैं और परियों के देश में, प्यार की पेंग मारते हुए ले जाती हैं। फ़िदा बहुतेरे होते हैं पर नायिका पर। पर ये सीधे-साधे सरल से लड़के से प्यार कर बैठती है पर वह लड़का मेंढक बन जाता है तो उस के प्यार की पुलक आंच में बदल जाती है। दरअसल अनाइडा के गीतों में प्यार की यही तड़प और सरल भावनाएं जब ‘लय’ में गुंथ कर, पॉप में पैठ कर आंखों और कानों में पसरती हैं तो अनाइडा की गायकी की इयत्ता अपने आप ही ‘विरलता’ की सूचना दे जाती है। अनाइडा की गायकी ईस्ट-वेस्ट का ‘ब्लेंड’ है। उन की गायकी की सहजता इण्डियन टेंपरामेंट ठीक वैसी ही ‘सूट’ करती है जैसे आप खाएं अमरीकी ‘हैमबरगर’ पर जब इसमें धनियां की पत्ती पड़ जाती है तो इस ‘स्वाद’ पर मज़ा आ जाता है। अनाइडा के पॉप गीतों में ‘कोरियोग्राफ़ी’ काफी महत्वपूर्ण तत्व है और काफी मादक भी। पर अनाइडा कहती हैं कि, ‘जो आप माता-पिता के साथ भी बैठ कर देख सकते हैं।’ सच भी यही है। अनाइडा हिंदुस्तान के अन्य पॉप गायकों से ‘डिेफ़रेंट’ इस लिए भी हैं कि वह मोर इंडियन हैं। उन की गायकी में, उन की गायकी के फ़िल्मांकन में अपेक्षतया विद्रूपता कम है। वह स्लिम हैं और सौंदर्यबोध भी उन्हें भाता है। लेकिन वह सेक्सी कपड़े नहीं पहनतीं। वह कहती हैं कि, ‘मैं वलगरिटी नहीं चाहती।’ उन की स्लिम देह, हल्के ग्रे रंग की उन की आंखें बहुत नाज़ुक और विजुवल अपीलिंग की गंध परोसती हैं। ठीक अपने ‘नाज़ुक-नाज़ुक’ गीत की तरह।
‘लव टुडे है नहीं आसान’ में सरोज खान की नृत्य संरचना और हंसी मजाक, हलके-फुलके मूड में भारतीय संगीत को अनाइडा इस तरह पिरोती हैं कि ‘लव टुडे है नहीं आसान’ एक मुहावरा बन जाता है। तीन साल पहले अपनी गायकी की यात्रा करने वाली अनाइडा ने अभी बाबा सहगल के साथ एक कार्टून फ़िल्म ‘लाइन किंग’ के लिए ‘हकूना मटाटा’ डूएट गाया है। हकूना मटाटा अफ्रीकी शब्द है, जिस का अर्थ यह है कि ‘फिकर मत करो, खुश रहो’। अनाइडा अपनी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसा ही जीती हैं। वह कहती हैं कि, ‘मैं ज़्यादा कुछ प्लान नहीं करती।’ डूएट और गाने की बात चली तो वह बोलीं, ‘लकी अली के साथ गाना चाहूंगी। लकी अली महमूद के बेटे हैं और उन्हों ने मुझे आफ़र दिया भी है।’ फ़िल्मों में गाने की बात चली तो वह बोलीं, ‘फ़िल्मों के कुछ प्रस्ताव तो हमें मिले ज़रूर पर हमने रिफ़्यूज़ कर दिया। क्यों कि आज-कल के फ़िल्मी गाने मुझे ‘सूट’ नहीं करते। एक तो वह डबल मीनिंग के हैं दूसरे लीरिक अच्छे नहीं हैं।’ खुदा पर भरोसा रखने वाली अनाइडा को हिंदी फ़िल्मों के गाने बहुत पसंद हैं पर पुराने हिंदी फ़िल्मों के गाने। ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ उन का सब से पसंदीदा गाना है। ‘दोस्त-दोस्त न रहा’, ‘बाबू जी धीरे चलना’ जैसे फ़िल्मी गाने भी अनाइडा की पसंद में शुमार हैं। आर.डी. वर्मन उन के पसंदीदा संगीतकार हैं। इन दिनों रहमान के संगीत पर वह फ़िदा हैं। अनाइडा की तमन्ना है कि गाने का ‘यूज’ कर के वह बच्चों के लिए कुछ अच्छा करें। लाइफ़ में कुछ अच्छे ‘मेसेज’ देने के लिए वह गानों का इस्तेमाल करना चाहती हैं। परसनलिटी में वह हिंदुस्तान में मदर टेरेसा से प्रभावित हैं जब कि उन के पसंदीदा एक्टर एंथनी क्वीन हैं। खाने में उन्हें मिर्ची पसंद नहीं है। सफ़ेद रंग उन्हें सब से ज़्यादा भाता है और भारतीय कपड़े भी। अनाइडा अब भारतीय नागरिक हो चुकी हैं। जब उन से पूछा कि वह कैसा पति पसंद करेंगी? तो वह बोलीं, ‘टफ क्योश्चन।’ फिर अनाइडा अंग्रेजी में बोलीं, ‘जिस का दिल बहुत कोमल हो पर बाहर से ‘स्ट्रांग’ हो। मतलब पुरुष हो।’ उन्हों ने जोड़ा, ‘मेरा मतलब फिजिकली ही नहीं मन से भी है। कि वह मन से भी स्ट्रांग हो।’
क्या वह आगे भी हिंदुस्तान में रहना चाहेंगी? पूछने पर वह बोलीं, ‘आइंदा के बारे में मैं ज़्यादा नहीं सोचती।’ जब यह पूछा कि आप को गाते हुए तीन साल हो गए लेकिन आप के एलबम की संख्या दो ही क्यों है? तो अनाइडा बोलीं, ‘गाना कोई टूथपेस्ट नहीं है कि उसे हरदम प्रोड्यूस करें।’ भारतीय पॉप सिंगरों के बीच आप अपने आप को किस नंबर पर पाती हैं? पूछने पर वह बोलीं, ‘मैं चूहा दौड़ में शामिल नहीं।’ जब ‘आइडियल’ की बात चली तो वह बोलीं, ‘बेहतर गाना ही मेरा आइडियल है।’
अनाइडा का कहना है कि, ‘हम जो टी.वी. में हैं वह रीयल लाइफ़ में नहीं हैं। तो बच्चों को सही चीज़ें देखने देना चाहिए। अगर आप माइकल जैक्सन जैसा रीयल लाइफ़ में भी ‘बिहेव’ करें तो पुलिस ले जाएगी। जो कल्चर वेस्ट में है वह वेस्ट में भले अन-इजी न लगे पर जब आप इंडिया में हैं तो इंडियन कल्चर का रिस्पेक्ट ज़रुर करें।’ अटक-अटक कर हिंदी लेकिन फ़र्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली अनाइडा का लखनऊ के बारे में कहना है कि, ‘यह सिटी आफ़ नज़ाकत है।’ वह अपने अलबम के बारे में कहती हैं, ‘मेरे अलबम नीट एंड क्लीन हैं। जिन्हें आप सपरिवार देख सकते हैं। मैं अशलीलता को पसंद नहीं करती। ऐसे ही फ़िल्मों में गाने के बजाए स्टेज शो पर ज़्यादा ध्यान देती हूं। मैं चाहती हूं कि भारतीय गाने भारतीय परिवेश के अनुरुप ही गाए जाएं। गानों को डबल मीनिंग और अशलीलता से दूर ही रखा जए। क्यों कि गाने सिर्फ़ सुने ही नहीं देखे भी जाते हैं।’
[१९९६ में लिया गया इंटरव्यू]
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