प्रसिद्ध उपन्यासकार राम कुमार भ्रमर इन दिनों बड़े-बड़े डाकुओं के बारे में लिखने की सोच रहे हैं। पेश है उन से एक बेलाग बातचीतः
भाजपा की लाइन पर आप लिखते रहे हैं?
- रिश्ता आप चाहे जो जोड़ लें। आप ऐसा शायद इस लिए कह रहे हैं कि एक निश्चित राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ लिखता रहा हूं। जुड़ाव मेरा रहा है। या शायद इस लिए भी कि महाभारत मैंने लिखा है।
लिखने को महाभारत तो नरेंद्र कोहली ने भी लिखा है?
- हां। पर मैं ने पहले लिखा। और वह ज़्यादा बिका। महाभारत पर चूकि मैं ने लिखा और एक खास विचारों वाला पाठक मुझ से जुड़ा महसूस करता है।
क्या महाभारत जैसी चीज़ भी आप ने एक खास विचारधारा के तहत लिखी?
- नहीं। महाभारत किसी विचार की तरह नहीं लिखा। लेकिन आज के संदर्भ में उन चरित्रों के बारे में जो सोचा वह लिखा। दरअसल महाभारत पात्रों के अंतर्द्वंद्व का उपन्यास है।
इसे कुछ ठीक से स्पष्ट करें।
- जैसे कि दुर्योधन मेरे यहां निगेटिव नहीं है। क्यों कि मेरे हिसाब से दुर्योधन जो था वह दुर्योधन ही हो सकता था। इसी तरह गांधारी के साथ जो बाध्यताएं जुड़ी हुईं थीं उस में स्त्री चाहे जितनी सख्त हो, सहज हो, निष्कलुष और निर्दोष हो तो भी जो उस की मानसिकता है वो गांधारी ही बना देगी औरत को। इसी लिए घोर सामाजिक विश्रंखलन की कहानी है महाभारत। मनुष्य की चरमोपलब्धि के बारे में जो हश्र होता है वह हुआ है महाभारत में। क्यों कि जब-जब पुराने मूल्य टूटते हैं और नए मूल्य बनते नहीं तो एक संत्रास पैदा होता है। तभी एक गांधारी, एक शकुनी, एक दुर्योधन और दुःशासन पैदा होता है।
पांडवों का अंतर्द्वंद्व आप को नहीं मथ पाया? जैसे कि नरेश मेहता ने महाप्रस्थान में मथा है।
- क्यों नहीं। पर महाप्रस्थान के अर्थ में नहीं।
फिर किस अर्थ में?
- जैसे कि इसी महाभारत में द्रोपदी को मैं ने संपूर्ण पाया। वह संपूर्ण स्त्री है। उस में ममता है, वीरता है, सहिष्णुता, धैर्य और असाधारण सहन शक्ति है।
पर पांडव?
- मगर एक भी पांडव ऐसा नहीं है जिस में संपूर्ण पुरुष हो। यह बड़ी मजेदार बात महसूस की मैं ने महाभारत में। यह पांचों पांडव मिल कर एक पुरुष बनते हैं। जैसे युधिष्ठिर को लीजिए। महाज्ञानी हैं, विद्वान और न्यायप्रिय हैं। पर वह पौरुष नहीं है उनमें जो भीम में है। जो एक स्त्री के लिए आवश्यक है, अनिवार्य है। यह भी संपूर्णता का हिस्सा है। पर युधिष्ठिर में नहीं है। दूसरी ओर भीम हैं जो असामान्य रूप से शक्ति संपन्न हैं, पौरुष संपन्न हैं। लेकिन विद्वान नहीं हैं, सहिष्णु नहीं हैं। वह अधूरे हो जाते हैं। तीसरी तरफ अर्जुन हैं। इनमें संपूर्ण पुरुष के गुण मौजूद हैं। पर एक कमी उनमें है। वह अनुगत हैं। श्रीकृष्ण के अनुगत हैं। पल-पल वह कृष्ण का उचित-अनुचित जोहते हैं। नकुल सहदेव तो बालक जैसे हैं।
चोपड़ा जब टी.वी. सीरियल महभारत पर बना रहे थे तो नरेंद्र कोहली ने बड़े दावे, उलाहने और तंज ठोके। पर आप चुप रहे?
- चोपड़ा से मेरा भी विवाद हुआ था सीरियल के शुरू में। जो कुछ अपभ्रंश किया है चोपड़ा ने और जैसा कि दूरदर्शन की व्यावसायिक समझ है उसमें फ़िल्म से इतर नहीं समझा उन्हों ने महाभारत को।
इस वक्त क्या लिख रहे हैं?
- कृष्ण पर लिख रहा हूं। आठ खंड छप चुके हैं। दो खंड छपने बाकी हैं। राम पर भी लिखना शुरू किया है। पांच खंड होंगे इसके।
नागर जी जब ऐसे विषयों को छूते थे तो उसमें काफी रम कर, घूम कर लिखते थे। क्या आप को भी इस की ज़रूरत जान पड़ती है?
- हां। इस मामले में भाग्यवान हूं। मध्यप्रदेश सरकार ने जब पर्यटन सलाहकार बनाया था तो मुझे काफी मदद मिली। बनवासी राम की बेशुमार जगहें देखने को मिलीं। क्यों कि राम ने बनवास के 14 सालों में से 11 बरस मध्य प्रदेश में बिताए हैं।
तो क्या राम का बनवास रूप ही भर लिखेंगे?
- हां, मुझे राम का बनवासी रूप ही सामने लाना है। वो राम जो - जनवादी राम है। आज के संदर्भ में ‘जनवादी’ नहीं। वो जो शबरी को स्वीकार करने वाला राम, अहिल्या को सामाजिक स्वीकार कराने वाला राम। मेरा राम-जनवाद शब्द अगर ब्रेंडेड नहीं है तो ऐसा राम जो जनवादी होगा।
ऐसा नहीं लगता आप को कि अगर भाजपा सरकारें नहीं होतीं तो आप मध्य प्रदेश में पर्यटक सलाहकार हो कर राज्यमंत्री का सुख नहीं भोग पाते। उत्तर प्रदेश में पुस्तक खरीद की चयन समिति में नहीं रहे होते?
- आप के सवाल का जवाब एक सवाल से ही देना चाहूंगा। कि अगर कांग्रेस नहीं होती तो क्या रामधारी सिंह दिनकर नहीं होते? पर मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस नहीं होती तो दिनकर-दिनकर नहीं होते। हां, वह राज्य सभा सदस्य नहीं होते।
आप कब हो रहे हैं राज्य सभा सदस्य?
- मुझे नहीं लगता कि राज्य सभा सदस्य होना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मैं मानता हूं कि राम कुमार भ्रमर होना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। क्यों कि राज्य सभा का तुफैल दो चार छह साल में चला जाता है। पर राम कुमार भ्रमर तो दो चार छह साल की चीज नहीं।
फिर भी भाजपा सरकार की मेहरबानियां तो आप पर खूब रही हैं?
- भाजपा सरकार राम कुमार भ्रमर पैदा करने की मशीन है, मैं नहीं मानता। राम कुमार भ्रमर भी कोई भाजपा पैदा कर सकता है, मैं नहीं मानता। यह तो ठीक वैसे ही है कि अगर मैं एक अच्छा उपन्यास लिखता हूं तो अच्छे चरित्र ढूंढता हूं। सरकार कोई अच्छी समिति बनाती है तो एक राम कुमार भ्रमर ढूंढती है या चुनती है।
आप डकैतों के बारे में भी खूब लिखते रहे हैं। भाजपा वाले भी जानते हैं?
- हां, लिखी मैं ने तीन किताबें। चंबल की रक्त कथा, पुतलीबाई, और डाकुओं के बीच। पर यह भूतकाल की बात हो गई। अब छोटे-छोटे डाकुओं पर क्या लिखूं? अब तो बड़े-बड़े ‘डाकू’ आ गए हैं। मुझे लगता है इन बड़े-बड़े डाकुओं पर अब लिखना चाहिए।
आप का संकेत राजनीतिक डाकुओं की तरफ है?
- हां। कुछ ऐसा ही।
भाजपा में कोई डाकू मिला?
- मैं नहीं मानता कि हर पार्टी दूध की धुली हुई है। मैं यह भी नहीं मानता कि कोई राजनीतिक पार्टी.....मैं किसी राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लूंगा।
पर छोटे डाकुओं के नाम आप लेते और लिखते रहे हैं?
- हो सकता है किसी दिन नाम ही ले कर लिखना पड़ जाए। हो सकता है संस्मरण जो आजकल लिख रहा हूं, उसी में लिखूं।
फिल्मों में आप बड़े जोर शोर से गए थे। वापस कैसे हो गए?
- चार पांच फ़िल्में लिखीं। वहां का टेंपरामेंट नहीं झेल सका। वापस आ गया।
आप ने नौकरियां बहुतेरी कीं पर कोई ढाई दशक से फ्रीलांसिंग पर ही फिदा हैं?
- हां, युगधर्म, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, सूर्या समेत कई नौकरियां कीं। हिंद पाकेट बुक्स का चीफ़ एडिटर भी रहा। पर1969 से फ्रीलांसिंग शुरू की तो शुरू है। बीच में सूर्या की एक महीने की संपादकी छोड़ कर।
फ्रीलांसिंग के फायदे और मुश्किलात?
- मुश्किलात कम सुख ज़्यादा है। किसी की मर्जी का मुहताज नहीं। लेखक जब नौकर हो जाता है तो मालिक का मुहताज हो जाता है। दूसरी बात मैं मनचाहा लिखता हूं। पर बहुत कठिन भी है यह। मैं समझता हूं मेरी पीढ़ी में मेरा और स्वर्गीय शरद जोशी का फ्रीलांसिंग का अनुभव सब से बड़ा है।
[१९९२ में लिया गया इंटरव्यू]
भाजपा की लाइन पर आप लिखते रहे हैं?
- रिश्ता आप चाहे जो जोड़ लें। आप ऐसा शायद इस लिए कह रहे हैं कि एक निश्चित राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ लिखता रहा हूं। जुड़ाव मेरा रहा है। या शायद इस लिए भी कि महाभारत मैंने लिखा है।
लिखने को महाभारत तो नरेंद्र कोहली ने भी लिखा है?
- हां। पर मैं ने पहले लिखा। और वह ज़्यादा बिका। महाभारत पर चूकि मैं ने लिखा और एक खास विचारों वाला पाठक मुझ से जुड़ा महसूस करता है।
क्या महाभारत जैसी चीज़ भी आप ने एक खास विचारधारा के तहत लिखी?
- नहीं। महाभारत किसी विचार की तरह नहीं लिखा। लेकिन आज के संदर्भ में उन चरित्रों के बारे में जो सोचा वह लिखा। दरअसल महाभारत पात्रों के अंतर्द्वंद्व का उपन्यास है।
इसे कुछ ठीक से स्पष्ट करें।
- जैसे कि दुर्योधन मेरे यहां निगेटिव नहीं है। क्यों कि मेरे हिसाब से दुर्योधन जो था वह दुर्योधन ही हो सकता था। इसी तरह गांधारी के साथ जो बाध्यताएं जुड़ी हुईं थीं उस में स्त्री चाहे जितनी सख्त हो, सहज हो, निष्कलुष और निर्दोष हो तो भी जो उस की मानसिकता है वो गांधारी ही बना देगी औरत को। इसी लिए घोर सामाजिक विश्रंखलन की कहानी है महाभारत। मनुष्य की चरमोपलब्धि के बारे में जो हश्र होता है वह हुआ है महाभारत में। क्यों कि जब-जब पुराने मूल्य टूटते हैं और नए मूल्य बनते नहीं तो एक संत्रास पैदा होता है। तभी एक गांधारी, एक शकुनी, एक दुर्योधन और दुःशासन पैदा होता है।
पांडवों का अंतर्द्वंद्व आप को नहीं मथ पाया? जैसे कि नरेश मेहता ने महाप्रस्थान में मथा है।
- क्यों नहीं। पर महाप्रस्थान के अर्थ में नहीं।
फिर किस अर्थ में?
- जैसे कि इसी महाभारत में द्रोपदी को मैं ने संपूर्ण पाया। वह संपूर्ण स्त्री है। उस में ममता है, वीरता है, सहिष्णुता, धैर्य और असाधारण सहन शक्ति है।
पर पांडव?
- मगर एक भी पांडव ऐसा नहीं है जिस में संपूर्ण पुरुष हो। यह बड़ी मजेदार बात महसूस की मैं ने महाभारत में। यह पांचों पांडव मिल कर एक पुरुष बनते हैं। जैसे युधिष्ठिर को लीजिए। महाज्ञानी हैं, विद्वान और न्यायप्रिय हैं। पर वह पौरुष नहीं है उनमें जो भीम में है। जो एक स्त्री के लिए आवश्यक है, अनिवार्य है। यह भी संपूर्णता का हिस्सा है। पर युधिष्ठिर में नहीं है। दूसरी ओर भीम हैं जो असामान्य रूप से शक्ति संपन्न हैं, पौरुष संपन्न हैं। लेकिन विद्वान नहीं हैं, सहिष्णु नहीं हैं। वह अधूरे हो जाते हैं। तीसरी तरफ अर्जुन हैं। इनमें संपूर्ण पुरुष के गुण मौजूद हैं। पर एक कमी उनमें है। वह अनुगत हैं। श्रीकृष्ण के अनुगत हैं। पल-पल वह कृष्ण का उचित-अनुचित जोहते हैं। नकुल सहदेव तो बालक जैसे हैं।
चोपड़ा जब टी.वी. सीरियल महभारत पर बना रहे थे तो नरेंद्र कोहली ने बड़े दावे, उलाहने और तंज ठोके। पर आप चुप रहे?
- चोपड़ा से मेरा भी विवाद हुआ था सीरियल के शुरू में। जो कुछ अपभ्रंश किया है चोपड़ा ने और जैसा कि दूरदर्शन की व्यावसायिक समझ है उसमें फ़िल्म से इतर नहीं समझा उन्हों ने महाभारत को।
इस वक्त क्या लिख रहे हैं?
- कृष्ण पर लिख रहा हूं। आठ खंड छप चुके हैं। दो खंड छपने बाकी हैं। राम पर भी लिखना शुरू किया है। पांच खंड होंगे इसके।
नागर जी जब ऐसे विषयों को छूते थे तो उसमें काफी रम कर, घूम कर लिखते थे। क्या आप को भी इस की ज़रूरत जान पड़ती है?
- हां। इस मामले में भाग्यवान हूं। मध्यप्रदेश सरकार ने जब पर्यटन सलाहकार बनाया था तो मुझे काफी मदद मिली। बनवासी राम की बेशुमार जगहें देखने को मिलीं। क्यों कि राम ने बनवास के 14 सालों में से 11 बरस मध्य प्रदेश में बिताए हैं।
तो क्या राम का बनवास रूप ही भर लिखेंगे?
- हां, मुझे राम का बनवासी रूप ही सामने लाना है। वो राम जो - जनवादी राम है। आज के संदर्भ में ‘जनवादी’ नहीं। वो जो शबरी को स्वीकार करने वाला राम, अहिल्या को सामाजिक स्वीकार कराने वाला राम। मेरा राम-जनवाद शब्द अगर ब्रेंडेड नहीं है तो ऐसा राम जो जनवादी होगा।
ऐसा नहीं लगता आप को कि अगर भाजपा सरकारें नहीं होतीं तो आप मध्य प्रदेश में पर्यटक सलाहकार हो कर राज्यमंत्री का सुख नहीं भोग पाते। उत्तर प्रदेश में पुस्तक खरीद की चयन समिति में नहीं रहे होते?
- आप के सवाल का जवाब एक सवाल से ही देना चाहूंगा। कि अगर कांग्रेस नहीं होती तो क्या रामधारी सिंह दिनकर नहीं होते? पर मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस नहीं होती तो दिनकर-दिनकर नहीं होते। हां, वह राज्य सभा सदस्य नहीं होते।
आप कब हो रहे हैं राज्य सभा सदस्य?
- मुझे नहीं लगता कि राज्य सभा सदस्य होना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मैं मानता हूं कि राम कुमार भ्रमर होना ज़्यादा महत्वपूर्ण है। क्यों कि राज्य सभा का तुफैल दो चार छह साल में चला जाता है। पर राम कुमार भ्रमर तो दो चार छह साल की चीज नहीं।
फिर भी भाजपा सरकार की मेहरबानियां तो आप पर खूब रही हैं?
- भाजपा सरकार राम कुमार भ्रमर पैदा करने की मशीन है, मैं नहीं मानता। राम कुमार भ्रमर भी कोई भाजपा पैदा कर सकता है, मैं नहीं मानता। यह तो ठीक वैसे ही है कि अगर मैं एक अच्छा उपन्यास लिखता हूं तो अच्छे चरित्र ढूंढता हूं। सरकार कोई अच्छी समिति बनाती है तो एक राम कुमार भ्रमर ढूंढती है या चुनती है।
आप डकैतों के बारे में भी खूब लिखते रहे हैं। भाजपा वाले भी जानते हैं?
- हां, लिखी मैं ने तीन किताबें। चंबल की रक्त कथा, पुतलीबाई, और डाकुओं के बीच। पर यह भूतकाल की बात हो गई। अब छोटे-छोटे डाकुओं पर क्या लिखूं? अब तो बड़े-बड़े ‘डाकू’ आ गए हैं। मुझे लगता है इन बड़े-बड़े डाकुओं पर अब लिखना चाहिए।
आप का संकेत राजनीतिक डाकुओं की तरफ है?
- हां। कुछ ऐसा ही।
भाजपा में कोई डाकू मिला?
- मैं नहीं मानता कि हर पार्टी दूध की धुली हुई है। मैं यह भी नहीं मानता कि कोई राजनीतिक पार्टी.....मैं किसी राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लूंगा।
पर छोटे डाकुओं के नाम आप लेते और लिखते रहे हैं?
- हो सकता है किसी दिन नाम ही ले कर लिखना पड़ जाए। हो सकता है संस्मरण जो आजकल लिख रहा हूं, उसी में लिखूं।
फिल्मों में आप बड़े जोर शोर से गए थे। वापस कैसे हो गए?
- चार पांच फ़िल्में लिखीं। वहां का टेंपरामेंट नहीं झेल सका। वापस आ गया।
आप ने नौकरियां बहुतेरी कीं पर कोई ढाई दशक से फ्रीलांसिंग पर ही फिदा हैं?
- हां, युगधर्म, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, सूर्या समेत कई नौकरियां कीं। हिंद पाकेट बुक्स का चीफ़ एडिटर भी रहा। पर1969 से फ्रीलांसिंग शुरू की तो शुरू है। बीच में सूर्या की एक महीने की संपादकी छोड़ कर।
फ्रीलांसिंग के फायदे और मुश्किलात?
- मुश्किलात कम सुख ज़्यादा है। किसी की मर्जी का मुहताज नहीं। लेखक जब नौकर हो जाता है तो मालिक का मुहताज हो जाता है। दूसरी बात मैं मनचाहा लिखता हूं। पर बहुत कठिन भी है यह। मैं समझता हूं मेरी पीढ़ी में मेरा और स्वर्गीय शरद जोशी का फ्रीलांसिंग का अनुभव सब से बड़ा है।
[१९९२ में लिया गया इंटरव्यू]
भ्रमर जी की तस्वीर भी लगाइए।
ReplyDeleteराम कुमार जी का नंबर हो तो देवें
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