सुपरिचित अभिनेत्री और कथक नर्तकी चेतना जालान बीते 10-12 बरसों से कथक को उस के पारंपरिक खोह से बाहर निकाल कर नए-नए और कठिन से कठिन प्रयोग कर रही हैं। कलकत्ता में ‘पदातिक’ नाम से एक रेपेट्री चला रही चेतना जालान सुप्रसिद्ध अभिनेता श्यामानंद जालान की पत्नी हैं।
चेतना जालान खुद भी एक समर्थ अभिनेत्री हैं। हज़ार चौरासी की मां, एवं, इंद्रजीत, आधे-अधूरे तथा सखाराम बाइंडर जैसे नाटकों में चेतना जालान का अभिनय काफी चर्चित रहा है। वह ‘बोल्ड’ सीन देने के लिए भी जानी जाती रही हैं। जिस में कुलभूषण खरबंदा जैसे अभिनेता उन के सह कलाकार होते हैं। नाटक के साथ-साथ वह कथक भी बखूबी करती हैं और इन दोनों ही विधाओं को वह पावरफुल मानती हैं। तो भी कथक के लिए वह काफी चिंतित दिखती हैं और छटपटाती रहती हैं। कथक में मेलोडी करने व ढूंढने वाली चेतना जालान इसी छटपटाहट में कहती हैं, ‘कथक की स्थिति बड़ी भयावह है। अगर इसी तरह रहा तो कथक नृत्य बिलकुल खत्म हो जाएगा।’
चेतना जालान प्रतिप्रश्न करती हुई बोलीं, ‘आप ही बताइए कि कथक के कितने शो होते हैं? जब कि कथक नृत्य इतना डायनमिक माध्यम है। इस में कोई बंधाव नहीं है। इस का वेस्टर्न डांस तक में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ वह कहती हैं, ‘कोई भी शास्त्रीय नृत्य ऐसा नहीं है जिसे आप जिस तरह चाहे जहां इस्तेमाल कर लें, क्यों कि एक कथक के कितने आयाम हैं!’
पर चेतना जालान इस सारी खूबी के बावजूद कथक की वर्तमान स्थिति को ले कर काफी उद्विग्न दीखती हैं। खास कर इस के ‘पिछड़ेपन’ को ले कर और निरंतर ‘ठस’ होते जाने को ले कर। वह कहती हैं, ‘हम ट्रेडीशन में
खो रहे हैं। नाच सीमाबद्ध होता जा रहा है कि एक देवी पूजा कर दो, ये कर दो, वो कर दो बस! एकदम असहज और पारंपरिक बना दिया है इसे लोगों ने। जो लोगों की समझ में ज़्यादा आता नहीं।’ वह कहती हैं कि, ‘कथक जो एक समय रजवाड़ों की चीज़ था, तब लोग रसिक थे, कथक समझते थे जानते थे कि कथक क्या है। पर आज सामान्य जनता नहीं जानती। तो ज़रूरी है कि कथक को ऐसे ढंग से पेश करें कि सब लोग इसे समझें। एक-एक झलकियों में ‘अंग’ दिखा दिए, कुछ मिनट के अंतराल में आज की नारी को बदल दिया। तो यह भी तो कथक था! तो मेरा कहना है कि कथक नृत्य की एक तकनीक है। इसे तकनीक के रूप में खुल कर इस्तेमाल करना चाहिए। सिर्फ़ कथक की तकनीक ही नहीं प्रस्तुत की जानी चाहिए, जब कि आज-कल यही हो रहा है बरसों से पर खाली तकनीक से क्या होता है? करते जाइए एक-दो-तीन, एक-दो-तीन। तो क्या होता है। अगर आज दो बीघा ज़मीन स्टाइल में आप चीज़ों को दिखाएंगे तो कौन देखेगा? एक अकेला व्यक्ति क्या दिखाएगा? तो मेरा कहना है कि आप इस नृत्य की खाल बदल दीजिए, वेषभूषा बदल दीजिए और रूह वही रहने दीजिए। उस की आत्मा मत बदलिए।’ चेतना जालान खुद भी ऐसा दस-बारह वर्षों से कर रही हैं। कथक में तरह-तरह के प्रयोग कर रही हैं। कठिन से कठिन प्रयोग। वह कई बार पौराणिक आख्यानों को भी उठाती हैं। लेकिन साथ ही साथ उसे आज के संदर्भों से भी जोड़ती चलती हैं। अब कि जैसे ‘शक्ति’ नृत्य में वह एक साथ दुर्गा, इंदिरा गांधी, किरन बेदी, सुष्मिता सेन, सती दाह जैसे ढेर सारे प्रसंगों पर कई-कई नृत्य दृश्य उपस्थित कर देती हैं। अपनी पूरी टोली को उसमें गूंथ लेती हैं। कथा वहा आज की कहती हैं पर शैली कथक की होती है। अभी तुलसी दास कृत रामचरित मानस के ‘बालकांड’ में वह ‘बैटमैन’ को भी दिखाती हैं। रामायण में वह कीर्तन व गायन की शैली भी साथ ही साथ बरकरार रखती हैं। आज को संदर्भों के साथ। उन से यह पूछने पर कि पौराणिक आख्यानों को लेते हुए आपने कथक में जो नए-नए प्रयोग किए हैं उन को ले कर क्या आप की आलोचना भी हुई है? वह बोलीं, ‘कभी नहीं, मैं ने तो रामायण को बनारस के पंडितों को भी दिखा दिया है, पर उन्हों ने तब कुछ नहीं कहा। फिर मैं तो आज की कहानी के लिए कथक में ‘जाज’ शैली को भी अपना लेती हूं। कोई कुछ नहीं कहता। अभी रामायण का अपना आईटम दूरदर्शन के सी.पी.सी में मैंने रिकार्ड कराया है। वहां भी किसी ने कुछ नहीं कहा।’
चेतना कहती हैं कि, ‘मेरी यह रामायण लोग काफी पसंद कर रहे हैं, इसी लिए अब मैं ‘बालकांड’ के बाद ‘अयोध्या कांड’ भी कथक में तैयार करने जा रही हूं।’ चेतना कहती हैं कि, ‘अब गेरुआ वस्त्र में आप रामायण दिखाएंगे तो कौन देखेगा? सब भाग जाएंगे, लेकिन यह सब करने के लिए अंदर से पक्का कलाकार बनना पड़ेगा। सिर्फ़ चोला पहन कर आप आज की पब्लिक को कुछ नहीं दिखा सकते। यह भी है कि आप चीज़ों को सीधे-सीधे उठा कर दिखाएंगे तो भी कोई नहीं देखेगा।’ वह कहती हैं कि, ‘जैसे बालकांड के बाद मैं अयोध्या कांड करने जा रही हूं तो उस को जस का तस नहीं रख रही हूं। इस के पीछे हमने तीन साल रिसर्च किया है, इतिहास
समझा है, भारत को समझा है और सिर्फ़ उत्तर भारत को ही नहीं दक्षिण भारत सहित समूचे भारत को समझा है। तब तैयार किया है।’ वह कहती हैं कि, ‘अब आतताई सिर्फ़ पुरुष नहीं है। औरतों की विरोधी सास, ननद भी हैं। रूप कंवर को किस ने मारा? औरतों ने ही। तो मैं इस बात को भूलती नहीं हूं अपने आईटम में।’ वह कहती हैं कि ‘अगर आप में माहिरी है तो आप कुछ भी कर सकते हैं। सो कथक को पारंपारिकता की खोह से निकालना, उसे ज़िंदा रखने के लिए बहुत ज़रूरी है।’ वह कहती हैं कि, ‘इस सब से ज़्यादा ज़रूरी है कि आयोजक, खास कर सरकारी आयोजक स्टेज पर सुविधा दें, ताकि कथक को सचमुच आधुनिक बनाया जा सके। अब आप लाइट ही नहीं दे पाएंगे, मंच पर साइक्लोरामा (सफ़ेद परदा) भी नहीं दे सकेंगे आप तो हम कथक को उस की खोह से क्या खाक निकाल पाएंगे? उस को मरने से कैसे बचा पाएंगे? नए-नए प्रयोग करना तो बहुत दूर की बात हो जाती है ऐसे में। तो इसी लिए मैं कहती हूं कि कथक की स्थिति बड़ी भयावह है। कथक को इस से उबारना बहुत ज़रूरी है। तो अच्छा होगा कि आप चेतना जालान के बारे में कम लिखें।
[१९९६ में लिया गया इंटरव्यू]
चेतना जालान खुद भी एक समर्थ अभिनेत्री हैं। हज़ार चौरासी की मां, एवं, इंद्रजीत, आधे-अधूरे तथा सखाराम बाइंडर जैसे नाटकों में चेतना जालान का अभिनय काफी चर्चित रहा है। वह ‘बोल्ड’ सीन देने के लिए भी जानी जाती रही हैं। जिस में कुलभूषण खरबंदा जैसे अभिनेता उन के सह कलाकार होते हैं। नाटक के साथ-साथ वह कथक भी बखूबी करती हैं और इन दोनों ही विधाओं को वह पावरफुल मानती हैं। तो भी कथक के लिए वह काफी चिंतित दिखती हैं और छटपटाती रहती हैं। कथक में मेलोडी करने व ढूंढने वाली चेतना जालान इसी छटपटाहट में कहती हैं, ‘कथक की स्थिति बड़ी भयावह है। अगर इसी तरह रहा तो कथक नृत्य बिलकुल खत्म हो जाएगा।’
चेतना जालान प्रतिप्रश्न करती हुई बोलीं, ‘आप ही बताइए कि कथक के कितने शो होते हैं? जब कि कथक नृत्य इतना डायनमिक माध्यम है। इस में कोई बंधाव नहीं है। इस का वेस्टर्न डांस तक में इस्तेमाल किया जा सकता है।’ वह कहती हैं, ‘कोई भी शास्त्रीय नृत्य ऐसा नहीं है जिसे आप जिस तरह चाहे जहां इस्तेमाल कर लें, क्यों कि एक कथक के कितने आयाम हैं!’
पर चेतना जालान इस सारी खूबी के बावजूद कथक की वर्तमान स्थिति को ले कर काफी उद्विग्न दीखती हैं। खास कर इस के ‘पिछड़ेपन’ को ले कर और निरंतर ‘ठस’ होते जाने को ले कर। वह कहती हैं, ‘हम ट्रेडीशन में

चेतना कहती हैं कि, ‘मेरी यह रामायण लोग काफी पसंद कर रहे हैं, इसी लिए अब मैं ‘बालकांड’ के बाद ‘अयोध्या कांड’ भी कथक में तैयार करने जा रही हूं।’ चेतना कहती हैं कि, ‘अब गेरुआ वस्त्र में आप रामायण दिखाएंगे तो कौन देखेगा? सब भाग जाएंगे, लेकिन यह सब करने के लिए अंदर से पक्का कलाकार बनना पड़ेगा। सिर्फ़ चोला पहन कर आप आज की पब्लिक को कुछ नहीं दिखा सकते। यह भी है कि आप चीज़ों को सीधे-सीधे उठा कर दिखाएंगे तो भी कोई नहीं देखेगा।’ वह कहती हैं कि, ‘जैसे बालकांड के बाद मैं अयोध्या कांड करने जा रही हूं तो उस को जस का तस नहीं रख रही हूं। इस के पीछे हमने तीन साल रिसर्च किया है, इतिहास

[१९९६ में लिया गया इंटरव्यू]
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