Friday, 22 February 2013

‘समांतर कोश’ मेरे कंधों पर बेताल की तरह सवार था : अरविंद कुमार

दयानंद पांडेय 

क्या आप को मालूम है कि भगवान शिव के लिए 2317 शब्द हिंदी में उपलब्ध हैं? इसी तरह ईश्वर के लिए 188 शब्द, अल्लाह के 33, इच्छा के लिए 60, प्रेमपात्र के लिए 71, प्रेमपात्रा के लिए 57, आकाश के लिए 36, वसंत के लिए 31, वर्षा के लिए 28, मोती के लिए 30, साहस के लिए 35 और रात के लिए 57 शब्द हिंदी में उपलब्ध हैं? यह सारी जानकारियां प्रतिष्ठित पत्रकार अरविंद कुमार ने अपने हिंदी के पहले थिसारस में परोसी हैं। यह हिंदी थिसारस ‘समांतर कोश’ नाम से शीघ्र ही नेशनल बुक ट्रस्ट दिल्ली से छपने जा रही है। आगामी दिसंबर महीने में (सम्भवत: 13 दिसंबरर को) इस समांतर कोश का विमोचन दिल्ली में होगा।

इस समांतर कोश के दो खण्डों के 1,768 पृष्ठों में 1,100 शीर्षकों और 23,759 उप शीर्षकों के अंतर्गत 1,60,850 अभिव्यक्तियां हैं। यह हिंदी, उर्दू और बोलचाल के अंग्रेजी शब्दों का सुसमृद्घ संकलन है। इसे पूरा करने के लिए 66 बरस की उम्र में भी अरविंद कुमार ने 12-12 घंटे रोज कम्प्यूटर पर काम किया है। वे पत्रकार, कला नाटक फ़िल्म समीक्षक के साथ-साथ लेखक, कवि और अनुवादक हैं।

पेश है हिंदी थिसारस के बाबत अरविंद कुमार से बातचीत :

अरविंद कुमार कहते हैं कि, `अभी तक हिंदी पाठ्य शब्द कोशों का उपयोग ही पूरी तरह नहीं करते, उन के लिए थिसारस एक पूर्णत: अपरिचित और नयी चीज़ होगी। जिन से मैं ने कुछ बात की, हद से हद वे इसे एक तरह का पर्यायवाची कोश समझते हैं। पर ऐसा है नहीं दरअसल समांतर कोश केवल पर्यायवाची शब्दों का संकलन नहीं है। इस के अनोखे आयोजन के कारण संगति के आधार पर अनेक शब्द समूहों तक पहुंचा जा सकता है। जैसे स्पर्श से गंध, गंध से दृष्टि, या विवाह से सगाई और घुड़चढ़ी और कोहबर, या विसंगति के आधार पर विपरीत शब्दों तक भी जैसे विवाह से तलाक या सुख से दु:ख।’ अरविंद जी कहते हैं कि, ‘रौजेट के अंग्रेजी थिसारस की तरह हिंदी में भी अपना थिसारस हो-इसी कामना से मैं इसमें जुटा रहा। मुझे आशा है कि इस से हिंदी भाषियों की आवश्यकताओं की कुछ पूर्ति होगी।’

उल्लेखनीय है कि अरविंद कुमार को इस समांतर कोश को तैयार करने में कोई बीस बरस से भी ज़्यादा समय लगा। तब वह प्रसिद्घ हिंदी फ़िल्म पत्रिका ‘माधुरी’ के संपादक थे। यह १९७६ की बात है। जब उन्हों ने इस हिंदी थिसारस पर काम शुरू किया। यह आसान नहीं था। यह कि हिंदी फ़िल्मों का ग्लैमर छोड़ कर आदमी थिसारस जैसे काम पर लग जाए। यह अरविंद कुमार ही कर सकते थे। वैसे भी अरविंद कुमार का जीवन काफी संघर्षों भरा रहा है। कंपोजिंग से भी नीचे, डिस्ट्रीब्यूटर जैसे पद से काम शुरू कर के हिंदी पत्रकारिता में ‘माधुरी’ और ‘सर्वोत्तम’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के संस्थापक संपादक बनने का गौरव हिंदी में शायद एकमात्र अरविंद कुमार को ही है।

सवाल है कि इस ग्लैमर की ज़िंदगी के बावजूद अरविंद कुमार को हिंदी थिसारस का ध्यान आया भी कैसे? अरविंद कुमार बताते हैं, ‘हिंदी थिसारस होना चाहिए यह बात मेरे मन में 1952 में जगी थी। रौजेट द्वारा अंग्रेजी थिसारस के प्रकाशन के पूरे सौ साल बाद। थिसारस से मेरा पहला साबका उसी साल पड़ा। तब मैं 22 साल का था। पर तब मैं ने यह नहीं सोचा था कि हिंदी के पहले थिसारस ‘समांतर कोश’ का मुख्य रचयिता भी मैं ही हूंगा। तब तो बस यही सोचता था कि कभी न कभी, कोई न कोई हिंदी में थिसारस बनाएगा और हम जैसे सभी लोग उस का उपयोग करेंगे।’

अरविंद कुमार बताते हैं कि, ‘समांतर कोश का अंतिम चरण था कंप्यूटरीकरण। यह मार्च 1992 में शुरू हुआ। अब तो बस एक ही लगन थी कि किसी तरह जल्दी से जल्दी काम पूरा हो। सुबह से शाम रोज कम से कम 12 घंटे काम और काम के अलावा कुछ और नहीं। कई बार मैं झुंझला जाता था। लगता था कि समांतर कोश मेरे कंधों पर बेताल की तरह सवार है, पूरा हुए बगैर वह मुझे मरने न देगा, न दम लेने की फुरसत देगा।’ अरविंद जी बताते हैं कि, ‘समांतर कोश का कंप्यूटरीकरण जिस्ट कार्ड के बिना सम्भव नहीं था। जिस्ट कार्ड कंप्यूटर में लगने वाला एक बोर्ड है, जिस का मूल आविष्कार कानपुर की आई.आई.टी. ने किया है और इस का विकास भारत सरकार के पुणे स्थित संस्थान सी-डैक  में हआ है। इस की सहायता से देवनागरी में डाटाबेसों की रचना संभव हो गयी।’ वह कहते हैं, ‘जिस्ट कार्ड से देवनागरी में नहीं हर लिपि में जिस का आधार उच्चारण है, उस लिपि और भाषा के स्तर पर पूरे देश के एकीकरण का महाद्वार खुल जाता है। इस कार्ड की सहायता से समांतर कोश भारत की सभी भाषाओं में थिसारसों की रचना का आधार बन सकता है। द्विभाषीय और बहुभाषीय थिसारस यह समांतर कोश भी बन सकते हैँ।’ वह कहते हैं कि, ‘आज कंप्यूटर की दुनिया में यह पूरी तरह संभव है। चाहिए बस शिक्षा शक्ति, साधन और हर भाषा से कुछ उत्साही कर्मियों की टोली। क्यों कि यह काम न तो कोई अकेला कर सकता है, न इसे एक जीवन काल में पूरा किया जा सकता है।’

अरविंद कुमार भाग्यशाली हैं कि उन्हें इस थिसारस के काम में उनकी पत्नी ने तो उन का साथ दिया ही, उन के शल्य चिकित्सक बेटे डा. सुमीत कुमार ने भी जान लड़ा दी। अरविंद जी थिसारस का काम कंप्यूटर पर कर सकें इस के लिए डा. सुमीत ने अरब देशों में जा कर नौकरियां कीं। उन के लिए कंप्यूटर खरीदे। न सि्र्फ़ कंप्यूटर खरीदे खुद सीखा औ कंप्यूटर शब्द संकलन के कंप्यूटरीकरण और डाटा के पाठ में परिवर्तन की पेंचीदा प्रक्रिया में पूरी मदद की।

अरविंद जी बताते हैं कि, ‘समांतर कोश में कोटियों और उप कोटियों में परस्पर संबंध की स्थापना के लिए एक पूर्णत: मौलिक आयोजन का विधान किया गया है। यह विधान रौजेट और अमर सिंह के विधान से बिल्कुल भिन्न है। समांतर कोश की रचना की मूल प्ररेणा का स्रोत रौजेट का अंग्रेजी थिसारस ही था। इस लिए इस की रचना में पहले रौजेट के विधान का ही अनुसरण करने की कोशिश की।

लेकिन कुछ ही महीनों बाद उसे त्याग देना पड़ा। क्यों कि अंग्रेजी में बहुत से शब्दों से जो संदर्भ निकलते हैं, हिंदी में, भारतीय मानस में वे नहीं निकल कर कुछ अन्य संदर्भ बनते हैं। फिर हमने अमर सिंह के ‘अमर कोश’ के विधान को अपनाने की कोशिश की। लेकिन उसे भी त्यागना पड़ा। वैसे अमर कोश अपने काल की एक महान रचना है। लेकिन उस की रचना वर्ण व्यवस्था के चरम काल में हुई थी। उस का विधान अपने युग का दर्पण है। उस में मानवीय क्रिया-कलाप और गतिविधि के वर्गीकरण का आधार है वर्ण व्यवस्था। पूजा-पाठ, ज्ञान बुद्घि ब्राह्मण वर्ग के अन्तर्गत युद्घ शस्त्राशस्त्र, क्षत्रिय वर्ण के अधिकार में, व्यापार, कृषि वैश्यों के जिम्मे और सेवा शूद्रों के हिस्से। स्पष्ट है कि यह वर्गीकरण आज के भारत में न तो चल सकता है, न ही सही शब्दों की तलाश में सहायता दे सकता है।’

अरविंद जी कहते हैं कि, ‘शब्द रथ है भाव का, विचार का। इस रथ पर सवार हो कर बात एक आदमी से दूसरे आदमी तक पहुंचती है। इस रथ पर सवार हो कर ज्ञान और विज्ञान सदियों के फ़ासले तय करते हैं। इस तरह किसी भी भाषा के उपभोक्ताओं के हाथों में थिसारस या समांतर कोश एक शक्तिशाली उपकरण होता है। यह न केवल उन की शब्द संपदा को कई गुना बढ़ा देता है बल्कि अभिव्यक्ति की राह में आने वाली अनेक कठिनाईयों को दूर कर देता है। थिसारस ग्रीक शब्द थैजौरस का हिंदीकरण है। इसका अर्थ ही है ‘कोश’। शब्दश: थिसारस भी एक तरह का शब्दकोश होता है क्यों कि इस में शब्दों का संकलन होता है। वास्तव में थिसारस या समांतर कोश और शब्दकोश एक दूसरे के बिलकुल विपरीत होते हैं। किसी शब्द अर्थ जानने के लिए हम शब्द-कोश का सहारा लेते हैं। लेकिन जब बात कहने के लिए हमें किसी शब्द की तलाश होती है तो लाख शब्दों को समाए होने के बावजूद शब्दकोश हमें वह शब्द नहीं दे सकता। तब थिसारस हमारे काम आता है। शब्दकोश अगर अस्पष्ट को स्पष्ट करता है तो अमूर्त को मूर्त करता है समांतर कोश। यह क्षमता ही थिसारस की शक्ति का मूल है। और इसी के कारण यह भाषा के बेहतर उपयोग का सशक्त उपकरण बन जाता है। गरज यह है कि किसी भी ज्ञात शब्द के सहारे हम किसी भी अज्ञात या विस्मृत शब्द तक तत्काल पहुंच सकते हैं।’

[११९६ में लिया गया इंटरव्यू]

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