दयानंद पांडेय
(बेटी
अनन्या और दुनिया की तमाम बेटियों के लिए)
नोएडा में अट्टा जैसी जगह में जब सुमि ने एक फ्लैट ले कर अकेले
रहना शुरू किया था तो जैसे उस के जान-पहचान और रिश्तेदारों पर पहाड़ टूट पड़ा था। एक
पारंपरिक परिवार की लड़की अकेली रहे और तिस पर अट्टा जैसी जगह में ? लगभग सभी ने नाक-भौं
सिकोड़ी थीं। नाक-भौं तो जब वह एम.सी.ए. की पढ़ाई करने नोएडा पहुंची थी तब भी सिकोड़ी
थीं लोगों ने लेकिन वह डिगी नहीं और अपने शहर लखनऊ को छोड़ कर नोएडा कूच कर गई थी। शुरू
के कुछ दिन उस ने हॉस्टल में गुजारे। पर हॉस्टल में उसकी दिक्कतें कम होने के बजाए
बढ़ गईं। सेक्टर 12 में हॉस्टल था और ग्रेटर नोएडा पढ़ने जाना होता था। आने-जाने, रहने-पढ़ने
किसी भी मायने में हॉस्टल मुफीद नहीं था। लड़कियों का घोषित हॉस्टल होने से लाइनबाज
शोहदे भी इर्द-गिर्द मंडराते रहते। एक बार तो सुमि के नाम से हॉस्टल में एक लफंगे का
फोन भी आ गया। वह लफंगा फोन पर सीधे-सीधे प्रपोज करने लगा। वह घबराई कि वह उस का नाम
कैसे जानता है ? पूछा उस ने उस से तो उस ने फोन काट दिया। उस ने बहुत जोर डाल कर सोचा
तो याद आया कि कुछ देर पहले मम्मी को फोन करने पी.सी.ओ. पर गई थी। फोन में कुछ ख़राबी
थी सो वह तेज-तेज बोल रही थी। इसी तेज-तेज बोलने में उस ने अपना नाम भी बोला था कि,
‘मम्मी मैं सुमित्रा बोल रही हूं।’ शायद इस लफंगे ने वहीं पी.सी.ओ. पर फोन पर बोलते समय नाम सुन
लिया होगा। तभी सुमित्रा डार्लिंग पर आ गया था। नहीं अमूमन लोग और सहेलियां उसे सुमि
नाम से ही बुलाते-जानते हैं।
सुमि तो वह अब बनी है। नहीं पहले तो सुमित्रा ही थी। सहेलियां
चिढ़ाती भी थीं कि, ‘क्या
बहन जी टाइप नाम रखा है ? बदलो इसे ! इस ऐतिहासिक टाइप नाम को बदलो।’ और नाम बदलने का यह दबाव भी बी.एस.सी. में आ कर बढ़ा। पर वह
टालती रही। लेकिन जब एम.एस.सी. में कुछ दोस्त टाइप शरीफ लड़के भी इस सुमित्रा नाम पर
गुरेज खाने लगे तो वह सर्टिफिकेट में न सही बोलचाल में सुमि बन गई। सुमि फिजिक्स में
एम.एस.सी. कर रही थी तब जब कि उस के परिवार और नाते रिश्तेदारों की तमाम लड़कियां हाई
स्कूल में ही मैथ वगैरह से पिंड छुड़ा कर होम-साइंस के रास्ते अब सोसियोलॉजी, एजूकेशन
जैसे सब्जेक्ट्स में एम.ए. कर रही थीं। एम.एस.-सी. में भी उसकी क्लास में सिर्फ चार लड़कियां थीं बाकी लड़के। हालांकि दिक्कत फिर भी थी। सुमित्रा
से सुमि बन कर बहन जी टाइप, ऐतिहासिक टाइप सुमित्रा नाम से संबोधन में ही सही छुट्टी
पा ली थी उस ने। पर हरकतों, मिजाज और लुक में फिर भी वह बहन जी ही रही ! लड़कों को यह
बात भी चुभती थी।
और कभी-कभी उस को भी।
लड़के जब ज्यादा बोर करते, इस बहन जी वाले लुक और मिजाज पर कमेंट्स
ज्यादा जब करते तो वह कहती, ‘क्या
बहन जी टाइप, बहन जी टाइप लगा रखा है ?’ वह जोड़ती,
‘जैसी हूं, वैसी हूं।’ और फिर जैसे डपटती, ‘तुम
लोगों से राखी बंधवाने को तो मैं कह नहीं रही हूं ?’ और मुसकुराती
तो सब बोलते, ‘नहीं,
नहीं सुमित्रा जी इतनी लिनिएंसी तो आप आगे भी बरतेंगी ही!’ कहते और फूट लेते सब लड़के। हां, लेकिन जब एम.एस.सी. प्रीवियस
में सुमि के नंबर 96 परसेंट आए तो लड़के ही नहीं यूनिवर्सिटी भी सीरियस हो गई इस बहन
जी टाइप सुमित्रा को ले कर। नहीं, सुमित्रा नहीं सुमि को ले कर। हां, सुमित्रा अब घर
में भी सुमि बन चली थी। सिवाय मम्मी को छोड़ कर। घर भर सुमि कहता पर मम्मी सुमित्रा
ही फरमातीं। तो जब सुमि 96 परसेंट नंबर लाई तो यह मम्मी भी सीरियस हुईं। सुमि के पापा
से बोलीं, ‘96 परसेंट लाई है, उड़ रही है, यह
तो ठीक है। पर अब फाइनल पार करे तब तक इस की शादी-वादी की भी चिंता करिए। सुमित्रा
के पापा बोले, ‘निश्चिन्त
रहो मणि जी से हम पहले ही बतिया चुके हैं। उन का लड़का एम. सी. ए. कर रहा है। वह बोले
क्या वादा किए बैठे हैं कि बेटे को एम. सी. ए. कर कहीं नौकरी में आ जाने दीजिए। शादी
आप ही की बेटी से होगी।’ कह कर
सुमित्रा के पापा निश्चिन्त हो गए। पर सुमित्रा की मम्मी नहीं। बोलीं, ‘वह तो ठीक है। पर दो चार जगह और भी नजर दौड़ाते रहिए। जब तक
तय न हो जाए शादी बेटी की तब तक निश्चिन्त बैठना ठीक नहीं।’ पर सुमित्रा के पापा निश्चिन्त ही रहे। पत्नी के बहुत टोका-टोकी
करने पर वह एक दिन मणि जी के यहां हो भी आए और फिर से समधी बनने का निश्चिन्त आश्वासन
पा लौट आए। साथ में लड़के की कुंडली फोटो भी लाए।
वापस आ कर पंडित जी से कुंडली मिलवाई। शादी बन रही थी और उन्हों
ने देखा लड़के की फोटो भी सुमि को पसंद आ गई थी। बेटी की शादी के चाव में खुश सुमित्रा
के पापा यह भी भूल गए कि उन की बेटी और मणि
जी का बेटा एक दूसरे को पहले ही से जानते हैं और कि वह उन के घर भी कभी-कभी आता-जाता
रहा है। बेटी के बाप थे न! सो भूल-भाल गए थे।
पर सुमित्रा की मम्मी नहीं भूली थीं। याद था कि मणि जी का लड़का
हैंडसम भी है और लंबा भी। तीसरे, एम.सी.ए. कर रहा है। सो सुमित्रा के पापा से एक दिन
बोलीं, ‘जब कुंडली मिल ही गई है और मणि जी शादी के
लिए तैयार भी हैं तो कम से कम बर-बरीक्षा ही कर लीजिए।’
‘कहा
था हम ने पर मणि जी बोले सब इकट्ठे हो जाएगा, आप काहे परेशान होते हैं।’ सुमित्रा के पापा विह्नल हो कर बोले।
‘दहेज-वहेज
भी पूछे हैं कि का लेंगे ?’ सुमित्रा
की मम्मी बोलीं, ‘कहीं
ऐन वक्त पर ढाका जइसा मुह बा दें तो ?’
‘पूछा
भई, पर दहेज की बात भी वह टाल गए हैं।’ वह बोले,
‘मणि जी तो कहते हैं कि हम कुछ नहीं मांगेंगे।
आप को जो देना होगा, दे दीजिएगा।’
‘यही
बात गड़बड़ लग रही है।’
‘तुम
को तो हर बात गड़बड़ ही लगती है।’ वह बोले,
‘अरे मर्द की जबान भी कोई चीज होती है ? और
मणि जी मर्द आदमी हैं।’
बात ख़त्म हो गई।
लेकिन बात सचमुच ख़त्म कहां हुई थी ?
सुमि इधर यूनिवर्सिटी टॉप कर गई थी और उधर मणि जी का बेटा एम.सी.ए.
कर के मुंबई में एक मल्टी नेशनल कंपनी ज्वाइन कर चुका था। सुमि मुंबई जाने के सपने
बुनने लगी थी। छोटी बहन ठिठोली फोड़ती कि, ‘दीदी
हम लोगों को फिल्मों की शूटिंग दिखाएगी। शाहरुख़, प्रीति जिंटा, तब्बू और आमिर ख़ान
से मिलवाएगी!’ फिर जैसे जोड़ती और पूछती, ‘है न दीदी ?’ सुमि
यह सब सुन कर मुसकुराती और कहती, ‘पहले
मुंबई पहुंचने तो दो !’
पर सुमि मुंबई नहीं नोएडा पहुंची। वह भी अकेली। पढ़ने के लिए।
हुआ यह कि सुमि के पापा निश्चिन्त थे मणि जी जैसी मर्दानी जबान पर और मगन थे अपनी बेटी
की उपलब्धियों पर। फिजिक्स जैसे विषय में यूनिवर्सिटी टॉप की थी उस ने। पर वह यह नहीं
जान पाए कि कॅरियर की भी एक ऐसी दुनिया है जो टॉपरों को भी कुचल देती है।
मणि जी का लड़का एक बार मुंबई से वापस आया तो ख़बर सुन कर सुमि
के पापा पहुंचे मणि जी के पास कि अब तो बर-बरीक्षा हो ही जाए। पर मणि जी ने कहा कि,
‘शुक्ला जी, हम ने बेटे से बात की है। आप के
आने के पहले ही बात की है। और वह इस शादी से इंकार करता है।’
‘क्यों
मणि जी ?’ सुमि के पापा अचकचाए, ‘क्यों ?’
‘वह कहता
है कि एम.सी.ए. लड़की से ही शादी करेगा !’
‘क्या
?’ सुमि के पापा जैसे बैठ से गए,
‘मेरी बेटी भी यूनिवर्सिटी टॉपर है मणि जी
!’
‘हां,
शुक्ला जी ! पर शादी मुझे नहीं, बेटे को करनी है !’
‘मणि
जी, भले मेरी बेटी टॉपर है पर मैं दहेज भी पूरा दूंगा।’ सुमि के पापा बोले,
‘मेरी हैसियत पांच सात लाख रुपए ही देने की
है। पर आप कहिएगा तो घर-दुआर बेंच कर पंद्रह बीस लाख तक दे दूंगा।’ कह कर वह मणि जी के पैर पड़ गए।
‘अरे
नहीं शुक्ला जी !’ मणि
जी सुमि के पापा को उठाते हुए बोले, ‘बात
दहेज-वहेज की नहीं है।’ वह बोले,
‘मेरा बेटा अमरीका जाना चाहता है। वहीं सेटिल्ड
होना चाहता है। तो वह चाहता है कि उसकी लाइफ पार्टनर भी उस के ही कॅरियर वाली हो ताकि
साथ-साथ रह सके। साथ-साथ रहे और काम भी करे ताकि खर्चे में कोई दिक्कत न आए। ऐसा वह
सोचता है !’ वह बोले, ‘दिक्कत मेरी ओर से नहीं, उसी की ओर से है।’
‘लेकिन
मणि जी मैं ने तो आप की जबान को मर्द की जबान मान कर कहीं और कोई शादी देखी भी नहीं।’
‘लेकिन
अब क्या करें ?’
‘बेटे
से एक बार मैं भी बात कर लूं ?’ कहते
हुए सुमि के पापा की हिचकियां बंध गईं। बोले, ‘मैं
ने तो उसे दामाद मान ही लिया है और मेरी बेटी भी शायद उसे पति मान चुकी है।’
‘हां,
पर वह अटल है। उस से मिलने से कोई फायदा नहीं। बल्कि आप को और तकलीफ होगी।’
‘फिर
ठीक है।’ कह कर सुमि के पापा अपने घर आ
गए। दूसरे दिन से उन्हों ने सुमि के लिए दूसरे रिश्ते खोजने की लगभग मुहिम चला दी।
रिश्ते खोजते-खोजते वह थक-से गए। वह अब किसी से यह बताते भी नहीं थे कि उन की बेटी
यूनिवर्सिटी टॉपर है। क्योंकि वह यह जान गए थे कि यह टॉपर होना सिर्फ मृगतृष्णा है। आज की तारीख़ में डिग्रियों, नौकरियों और दहेज
के मायने बदल गए थे, वह यह अब जान रहे थे। वह यह सब जान ही रहे थे कि अचानक एक दिन
सुमि बोली, ‘पापा मेरे लिए वर खोजना बंद कर दीजिए !’
‘क्यों
भई ?’ थोड़ी खीज, थोड़े दुलार से सुमि
के पापा बोले।
‘क्यों
शादी नहीं करनी क्या ?’ मम्मी
जी बिलबिलाईं।
‘शादी
करूंगी मम्मी जी !’ सुमि
बोली, ‘पर अब एम.सी.ए. करने के बाद ही।’
सुमि के पापा को जैसे राह मिल गई थी। हालां कि सुमि की मम्मी
इस पक्ष में नहीं थीं कि सुमि के एम.सी.ए. का इंतज़ार किया जाए। पर सुमि ने फैसला कर
लिया था और उस के पापा ने सहमति दे दी थी सो वह चुप न रहते हुए भी चुप लगा गईं। सुमि
ने फैसला भले कर लिया था कि अब एम.सी.ए. के बाद शादी करेगी पर उस का डिप्रेशन बढ़ता
ही जा रहा था। फिर भी वह एम.सी.ए. के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में लग गई। कुछ टॉपर
होने के कांप्लेक्स, कुछ शादी टूटने का डिप्रेशन, एंट्रेंस एग्जाम में वह सेलेक्ट नहीं
हो पाई। सुमि के पापा जैसे हार-से गए। मम्मी तो रोने लग गईं। पर सुमि नहीं हारी। सब
कुछ के बावजूद हौसला नहीं हारी। फिर से तैयारी शुरू की। कानपुर के एक कोचिंग से कॉरेसपॉन्डेंस
कोचिंग शुरू की। दिन-रात एक किया और अंततः दूसरी बार के एंट्रेंस एग्जाम में सेलेक्ट
हो गई एम.सी.ए. के लिए। ग्रेटर नोएडा में सीट मिली। दाखि़ला लिया और हॉस्टल में रहने
लगी। सुमि के पापा मणि जी के घर एक बार फिर गए कि, ‘अब तो
मेरी बेटी भी एम.सी.ए. करने लगी है।’ पर मणि
जी बोले, ‘शुक्ला जी, अब तो मेरा बेटा यू.एस.ए. जा रहा
है। जाने कब शादी करेगा, मुझे भी नहीं पता।’
शुक्ला जी लौट आए। पर अब की टूट कर नहीं लौटे। हां, इस बारे
में उन्हों ने न तो सुमि को बताया न सुमि की मम्मी को। अलबत्ता सुमि को एनकरिज करने
में लग गए।
सुमि भी धीरे-धीरे कॅरियरिस्ट होने की राह लग गई।
हॉस्टल में दिक्कत और चिल्ल-पों ज्यादा बढ़ गई तो वह सेक्टर
27 यानी अट्टा में एक छोटा-सा फ्लैट ले कर अकेले रहने आ गई। चार हजार रुपए महीने का
यह दो कमरे का एल.आई.जी. फ्लैट महंगा तो था, पर कनविनिएंट ज्यादा था। नोएडा के किसी
और सेक्टर में दो ढाई हजार रुपए में भी फ्लैट मिल सकता था पर सुमि ने अपने पापा को
समझाया कि, ‘फिर भी वह महंगा पड़ेगा।’
‘वह कैसे
?’ पापा ने पूछा।
‘वह ऐसे
कि पापा कनवेंस वाइज महंगा पड़ेगा।’ वह बोली,
‘अट्टा से लगभग सभी बसें गुजरती हैं और हर
जगह के लिए आसानी से मिल जाती हैं। कोचिंग वगैरह जाने में आसानी होगी। नोएडा के बाकी
किसी सेक्टर में यह फेसिल्टी नहीं है। तो रिक्शे, ऑटो के चक्कर में ज्यादा पैसे पड़
जाएंगे। दिक्कत होगी सो अलग।’ बेटी
की यह मैथमेटिक्स सुमि के पापा को ठीक लगी सो वह मान गए थे।
थे तो सुमि के पापा भी मैथमेटिक्स के ही टीचर और उन्हों ने
मैथमेटिक्स में ही एम.एस.सी. की थी पर आज के दिन ब दिन बदलते कॅरियर की मैथमेटिक्स
में वह अपने को फिट नहीं पाते थे। हां, लेकिन अपनी मैथमेटिक्स को वह थैंक्यू जरूर कहते
जिस के चलते वह कॉलेज में पढ़ाने के साथ-साथ कोचिंग भी चलाने लगे थे। यह कोचिंग का ही
बूता था कि वह सुमि की पढ़ाई का ख़र्चा उठा ले रहे थे।
खै़र, हॉस्टल में फोन पर जब सुमि का पूरा नाम सुमित्रा कह कर
लफंगे ने उसे प्रपोज करने की कोशिश की तो वह घबरा गई। दूसरी शाम उस ने फिर मम्मी को
फोन किया और पूरा किस्सा बताते हुए कहा कि, ‘मम्मी,
पापा से कहिए कि हमें एक मोबाइल ख़रीद दें !’
‘देखो
इंतजाम करती हूं !’
शुक्ला जी ने मामले की नजाकत समझी और नोएडा जा कर बेटी के लिए
मोबाइल ख़रीद दिया।
बात तेजी से लोगों के बीच फैली कि सुमि अब मोबाइल रखती है।
सवालों के तार भी सुलगे। शुक्ला जी के रिश्तेदारों, पट्टीदारों ने दबी जबान उलटे-सीधे
कमेंट्स भी पास किए। एक पट्टीदार यहां तक आ गए कि कहीं वह खुद भी ‘मोबाइल’ हो गई
तो ?’
‘मास्टर
साहब के दहेज का खर्च बच जाएगा और का !’ एक दूसरे
पट्टीदार ने बात पूरी की।
शुक्ला जी ऐसे कमेंट्स सुन कर बिफरे, पर रहे चुप-चुप ही। क्यों
कि सुमि जब नोएडा पढ़ने गई थी तब भी कमेंट्स बाजार में उछाल आया था। पर बेटी की शादी
और कॅरियर की झूम में शुक्ला जी ने कमेंट्स बाजार में आए उछाल को यूं ही उछाल दिया
था।
पर अब की वह बिफरे।
और जब सुमि अट्टा जैसी जगह में अकेले रहने पहुंची तो कान सब
के फिर खड़े हो गए। कमेंट्स बाजार में उछाल ही उछाल था। अश्लीलता और अभद्रता की हद तक।
इतना कि बात शुक्ला जी से होते-हवाते सुमि तक पहुंची। रिश्ते की एक बहन ने सुमि को
उस के मोबाइल पर बताया। लेकिन सुमि अब तक गरमी-बरसात खाते-खाते इतनी पक्की हो गई थी
कि डिप्रेस नहीं हुई। पर उसे मम्मी, पापा का ख़्याल आया। खास कर पापा का। क्यों कि इस
पुरुष प्रधान समाज में बेटी के कलंक पिता को ही ज्यादा फेस करने पड़ते हैं। यह बात वह
जानती थी सो पापा-मम्मी को फोन किया और बिना किसी भूमिका के पूछा, ‘पापा आप मुझ पर भरोसा तो करते हैं न !’
‘हां,
सुमि हां !’ शुक्ला जी का गला रुंध गया। बोले,
‘पर बेटी यह बात तुम्हें मुझ से पूछने की जरूरत
आई कैसे ?’
‘कुछ
नहीं पापा ! बस यूं ही !’
‘फिर
भी बेटी !’
‘पापा
आप तो जानते ही हैं इस मेल-मेंटालिटी वाली सोसाइटी को।’ वह बोली, ‘कुछ
बातें मुझ तक भी पहुंचती हैं। छन-छन कर ही सही। सो पापा मुझे लगा कि मैं ही आप से बात
कर लूं !’
‘ठीक
किया बेटी !’ शुक्ला जी बोले, ‘तुम इस सब की चिंता छोड़ो। मैं यह सब फेस करना सीख गया हूं।
बस तुम अपना कॅरियर, अपनी पढ़ाई देखो!’ वह जैसे
आशीर्वाद पर उतर आए, ‘टॉप
करो एम.सी.ए. भी !’
‘वो तो
है पापा !’ सुमि बोली, ‘पर मम्मी को भी समझा दीजिएगा। क्यों कि आप तो जानते हैं पापा
कि आप लोग टूटेंगे तो फिर मैं भी टूट जाऊंगी!’
‘नहीं
बेटी, तुम अपना मॉरल हाई रखो। हम लोग इतनी कच्ची मिट्टी के नहीं बने हैं।’ वह बोले, ‘फिर
हमें तुम पर यकीन है। यकीन नहीं होता तो इतनी दूर अकेले तुम्हें पढ़ने को भेजा ही क्यों
होता ?’
‘बस पापा
हमें आप से यही यकीन चाहिए था !’
‘ओ. के.
बेटा !’
सुमि इस के बाद और मनोयोग से पढ़ाई में लग गई। अब तक उस ने एक
कम्प्यूटर भी ले लिया और इंटरनेट सर्विस भी। इंटरनेट पर बड़ी देर-देर तक डटी रहती। खाना
बनाने का झंझट उस ने पाला नहीं था। हालां कि खाना बनाना उसे आता था तो भी समय बचाने
के लिहाज से उस ने टिफिन सर्विस ही बेहतर समझी। हां, कपड़े वह जरूर घर में ही धोती और
प्रेस करती थी।
वह भी पढ़ने से फुर्सत मिलती तो !
हां, जब बहुत सुलगती तो अट्टा पीर की मजार के चक्कर मार आती।
या थोड़ी देर वहां खड़ी रह लेती। टी.वी. वगैरह तो घर में रखा नहीं था। कभी एंटरटेनिंग
मूड होता तो कंप्यूटर पर ही सी.डी. लगा कर कुछ फिल्मी गाने-वाने सुन लेती। फिर भी जब
जी नहीं मानता तो मम्मी-पापा से बात कर लेती। कुछ सहेलियां भी थीं उस की लेकिन सभी
पढ़ने में ही मगन। ज्यादातर अपने घरों से दूर। कुछ के रिश्तेदार या जानने वाले इस नोएडा
या दिल्ली में थे पर वहां भी वह कम ही जाती थी। क्यों कि वहां पहुंचने पर कई बेतुके
सवाल सुलग जाते।
सुमि के भी एक दूर के रिश्तेदार थे जो नोएडा में सपरिवार रहते
थे। वह जाती कभी-कभार उनके यहां तो पाती कि सवालों की सिलवटें कई-कई हैं वहां और एक
यह डर भी कि कहीं सुमि उन के यहां रहने की पेशकश न कर दे। और यह डर भी इतना सतह पर
होता कि सुमि को साफ दिख जाता। जब हॉस्टल में रहती थी तो कभी-कभार उनके यहां रात में
रुकी भी पर जब देखा कि उन लोगों का डर, उन लोगों के ऊल-जलूल सवाल ज्यादा बढ़ गए हैं
तो वहां जाना एक दम से बंद कर दिया।
अट्टा में जब रहने लगी तब भी नहीं गई।
अट्टा में सब माल के पीछे थोड़ी दूर पर ही वह रहती और वह लोग
अट्टा बाजार में आते लेकिन सुमि की सुधि लेने कभी उस के फ्लैट पर नहीं जाते। कभी फोन
भी नहीं करते तो सुमि ने भी चुप्पी साध ली। बाकी सहेलियों के रिश्तेदारों का भी लगभग
यही हाल था। सो सब आपस में ही अपना-अपना सन्नाटा तोड़तीं। ब्वाय फ्रेंड सुमि ने बनाए
नहीं थे सो सब की सब गर्ल फ्रेंड ही थीं। और अब तक लगभग सभी के पास मोबाइल आ चुका था।
पर मोबाइल का मतलब हरदम बतियाना तो नहीं था। क्यों कि बतियाने का बिल भी भुगतना था।
सो सब एस.एम.एस. के जरिए आपस में सन्नाटा तोड़तीं। मोबाइल फोनों के रेट देखते हुए कई
बार मोबाइल बदल लेतीं। पर रोज-रोज तो मोबाइल नंबर बदला नहीं जा सकता था। वैसे भी अकेले
रहने के कारण बदनामी के बादल उड़ते रहते थे। फिर रोज-रोज मोबाइल बदलने की बात तो बदनामी
के बादल में इजाफा ही करना था। सो सभी गर्ल फ्रेंडों ने मिस-काल वाली कोडिंग शुरू कर
दी मोबाइल पर। जैसे कि सिर्फ एक रिंग
पर फोन काट देने का मतलब हम ठीक हैं, तुम कैसी हो ? तो दूसरी भी एक रिंग दे कर बता
देती कि ठीक हैं। ऐसे ही दो रिंग का मतलब होता कि पढ़ रहे हैं। तीन रिंग का मतलब सोने
जा रहे हैं, डिस्टर्ब मत करना। और जब चार रिंग और उस से ज्यादा हो जाए तो मतलब अब बात
करनी ही है, फोन उठाओ ! यह और ऐसे-वैसे कोड बनाते-बदलते इन गर्ल फ्रेंडों की पढ़ाई और
कॅरियर के बीच पसरा सन्नाटा टूटता जुड़ता रहता।
इस सन्नाटा तोड़ने-जुड़ने के बीच सुमि में और कई बदलाव आने लगे
थे। पहले वह कॅरियर कांशस नहीं थी, पर अब कॅरियर कांशस हो गई थी। और भरपूर !
एम.सी.ए. अब उस की मंजिल नहीं थी, न ही मणि जी का लड़का। वह
बात ऐसे करती गोया आकाश उस की सीमा ही न हो, आकाश से भी आगे जाने की बात करती। वह तो
कहती, ‘स्काई इज नॉट अवर लिमिट !’
एक बार उस के एक मामा जी नोएडा उस से मिलने गए और उस से कहा
कि, ‘जब इतनी ब्रिलिएंट हो, इतनी मेहनत करती हो
और अभी तुम्हारे पास उम्र भी है तो सर्विसेज में क्यों नहीं ट्राई करती ?’
‘सर्विसेज
मींस ऐडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस ?’
‘बिलकुल
!’
‘कोई
फायदा नहीं !’
‘क्यों
?’
‘है मेरी
एक फ्रेंड !’ वह बोली, ‘मुझ से तीन साल सीनियर है। फर्स्ट अटेंप्ट में ही सिलेक्ट हो
गई। लेकिन देखती हूं जब देखो तब उस के ट्रांसफर का बस्ता तैयार रहता है।’ वह बिलबिलाई, ‘कहीं
सेटिल्ड होकर रह ही नहीं सकती वह !’
‘अरे,
यह तो शुरू के दिनों की बात है !’
‘क्यों
? मैं तो देखती हूं अकसर अख़बारों में कि डी.एम., कमिश्नर भी आए दिन बदलते रहते हैं।
वे भी थोक भाव में।’ वह जैसे
बिफरी।
‘तो तुम
क्या करना चाहती हो ?’ मामा
जी ने पूछा, ‘प्राइवेट सेक्टर की नौकरी ? यानी पूंजीपतियों
की गुलामी ?’
‘नहीं
मैं अपनी ख़ुद की कंपनी खोलूंगी।’
‘कब
?’
‘अरे,
अभी पढ़ाई तो पूरी कर लूं।’
‘वो तो
ठीक है।’ मामा जी बोले, ‘पर सोचो यह कंपनी खोलने के लिए लाइसेंस या और जरूरी फॉर्मेलिटीज
कौन निर्धारित करेगा ? जानती हो यही ब्यूरोक्रेट्स !’
‘तो क्या
हुआ ?’ वह बोली, ‘यह तो एक प्रोसीजर है !’
‘पर यह
प्रोसीजर तय करने वाली तुम खुद क्यों नहीं बन सकती ?’ मामा जी बोले, ‘रही
बात आए दिन ट्रांसफर्स की तो यह बात सभी ऐडमिनिस्ट्रेटर्स पर लागू नहीं होती।’ मामा जी बोलते जा रहे थे, ‘जो लालची
या भ्रष्ट होते हैं या झक्की उन्हीं पर लागू होती हैं।’
‘ये तो
है !’
‘अरे,
डॉक्टर ने कहा है कि डी.एम.की पोस्टिंग चाहिए !’ मामा
जी बोले, ‘सोचो सुमि जब तुम ऐडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस
में आओगी तो समझो कि देश का भाग्य लिखोगी। डी.एम., कमिश्नर कोई सीमा नहीं है। भारत
सरकार में सेक्रेटरीज तक आते-आते तुम प्लैनिंग करोगी देश के लिए। उस प्लैनिंग को इंप्लीमेंट
करोगी। तब एक नहीं लाखों कंपनियों का भाग्य लिखोगी !’ वह बोले, ‘कभी
इस तरह भी सोच कर देखो!’
‘आप ठीक
कह रहे हैं। पर मैं अभी इस बारे में नहीं सोच रही।’ वह बोली,
‘जरूरी नहीं कि कोई कंपनी ही खोलूं। वो तो
अभी आप ने एक बात कही तो मैंने यह बात कह दी।’ वह बोली,
‘अभी तो एम.सी.ए. करने के बाद भी मेरी पढ़ाई
ख़त्म होने वाली नहीं है।’
‘अरे
अब क्या करोगी ?’
‘एम टेक
कर सकती हूं। गेट में ऐडमिशन ले सकती हूं।’ सुमि
बोली, ‘और जो आप देश का, कंपनियों का भाग्य लिखने
की बात कर रहे हैं, हो सकता है मैं विश्व का भाग्य लिखूं!’
‘वो कैसे
भई सुमि ?’ मामा जी चौंके।
‘न्यूक्लियर
साइंटिस्ट बन के। क्या पता मैं मुंबई में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ज्वाइन कर लूं।
हो सकता है नासा ज्वाइन करूं।’ वह बोली,
‘मैं इस की तैयारी भी कर रही हूं।’
‘अरे,
गजब !’ मामा जी उचक कर बोले, ‘मतलब स्काई इज नॉट अवर लिमिट वाली बात तुम हवा में नहीं कहती
?’
‘बिलकुल
नहीं।’
‘तो फिर
यू.एस.ए. गए मणि जी के बेटे का क्या होगा ?’ मामा
जी कुछ-कुछ मजाक, कुछ-कुछ गंभीर हो कर बोले।
‘क्या
कह रहे हैं मामा जी।’ सुमि
किंचित् शर्माते हुए पर चहक कर बोली, ‘वह तो
मेरी स्पेस से जाने कब का गुम हो चुका है !’
‘क्या
?’
‘तो क्या
मामा जी !’
‘मतलब
नासा ज्वाइन कर मेरी भांजी भी कल्पना चावला जैसी बनेगी !’
‘नहीं
मामा जी !’ वह बोली, ‘कल्पना चावला या कल्पना चावला जैसी क्यों ?’
‘फिर
?’
‘सुमित्रा
शुक्ला ही क्यों नहीं ?’
‘देखो
बेटा, यह उड़ान बड़ी दूर की है, देरी भी बहुत होगी। फिर तुम्हारी शादी वगैरह की चिंता
में जो तुम्हारे मम्मी-पापा गल रहे हैं उन का क्या होगा?’
‘समझा
लूंगी उन को भी !’ सुमि
संजीदा हो कर बोली।
‘तो क्या
सुमि के अंतरिक्ष यानी सुमि के स्पेस में शादी नाम का कोई स्पेस शटल गुजरेगा भी कि
नहीं ?’
‘गुजर
भी सकता है मामा जी !’ वह बोली,
‘पर मुझे पहले अपना स्पेस तो बना लेने दीजिए
!’
इस तरह लगभग-लगभग ‘ऊधो
मोहि जोग सिखावन आए’ वाली
बात हो गई। दरअसल सुमि के मामा नोएडा अनायास नहीं सायास आए थे। पर आए यह जताते हुए
कि अनायास आए हैं। उन्हें दरअसल सुमि के मम्मी पापा ने उन्हें यह समझा कर भेजा था कि
वह सुमित्रा के मन की थाह ले लें कि वह शादी के बारे में क्या सोचती है ? सुमि के पापा
तो जान गए थे कि सुमि ने अपनी शादी अपने कॅरियर के साथ कर ली है पर सुमि की मम्मी यह
मानने को तैयार नहीं थीं। परंपरा के मुताबिक वह अब सुमि के हाथ पीले कर देना चाहती
थीं। वह जब-तब बड़बड़ाती भी रहतीं कि, ‘जवान
जहान बेटी है कहीं हाथ से निकल गई तो समाज में क्या मुंह दिखाएंगे ?’ वह कहतीं, ‘पहले
से ही एक बदनामी हो गई है कि नोएडा, दिल्ली जैसी जगह में अकेली रहती है।’ लेकिन जब भी वह सुमि से शादी की चर्चा करतीं तो वह कहती, ‘अरे मम्मी, अभी टाइम कहां है ?’
‘चौबीस
साल की हो गई।’ मम्मी
कुढ़ती हुई बोलतीं, ‘अब कब
टाइम आएगा ?’
‘जब आएगा
तब बता दूंगी मम्मी !’ वह बड़े
प्यार से बोलती।
कुछ दिन बाद मम्मी फिर वही शादी की टेर लेतीं तो सुमि कहती,
‘क्या मम्मी, आप के पास शादी के अलावा और कोई
सब्जेक्ट नहीं है क्या ?’
‘हां,
नहीं है।’ वह बोलतीं, ‘मेरे लिए सिर्फ तुम ही नहीं हो, एक और बैठी है।’
‘वह भी
पढ़ तो रही है न ?’
‘मैं
कुछ सुनने वाली नहीं।’ मम्मी
कहतीं, ‘शादी कर लो फिर जा कर ससुराल में और आगे की
पढ़ाई करना।’
‘ओह पापा
आप ही मम्मी को समझाइए।’ वह कहती
कि, ‘क्या बताऊं? दुनिया कहां से कहां जा रही है
पर मम्मी के स्पेस में शादी के सिवाय कुछ समाता ही नहीं।’
‘तुम्हारी
मम्मी ठीक कहती हैं बेटी।’ सुमि
के पापा कहते, ‘कॅरियर
जरूरी है पर शादी भी जरूरी है !’ कह कर
वह मां-बेटी के बीच लगभग असहाय हो जाते। उन की यह असहायता तब और बढ़ जाती जब कोई पड़ोसी,
कोई रिश्तेदार, कोई मित्र कोई नया किस्सा लिए हाजिर हो जाता।
वह और डिप्रेस हो जाते !
उस दिन मेहता जी खांसते-खंखारते आए और बोले, ‘शुक्ला जी, अब तो अजब-गजब हो रहा है !’
‘क्या
हो गया मेहता जी !’ सुमि
के पापा ने बड़ी सहजता से पूछा।
‘कुछ
नहीं भइया शुक्ला जी !’ वह खंखारे
फिर बोले, ‘अब जमाना पलट गया है !’
‘हुआ
क्या ?’
‘हुआ
? अरे क्या-क्या नहीं हो गया !’ वह बोले,
‘मामला ऐसे पलटा है गोया आसमान धरती पर आ गया
हो !’
‘पहेलियां
ही बुझाएंगे या कुछ फरमाएंगे भी मेहता जी !’
‘कुछ
नहीं भइया शुक्ला जी, पहले बाप बेटों पर रूल करते थे और अब बेटे बाप पर रूल करने लगे
हैं।’
‘क्या
मतलब ?’
‘अरे
एक किस्सा हो तो बताएं। यहां तो एक साथ तीन-तीन किस्से सामने आ रहे हैं !’ मेहता जी सस्पेंस बढ़ाते जा रहे थे।
‘मेहता
जी, कुछ बताएंगे भी या सस्पेंस ही क्रिएट किए रहेंगे !’
‘मेरे
तीन डॉक्टर दोस्त हैं। तीनों अपने-अपने बेटों के चक्कर में गुगली खा रहे हैं।’
‘क्या
मतलब है ?’
‘एक डॉक्टर,
सक्सेना हैं। उन का बेटा अमरीका में इंजीनियर है। अब शादी करने इंडिया आ रहा है।’
‘यह तो
अच्छी बात है।’ शुक्ला
जी सहज होते हुए बोले।
‘हां,
अच्छी बात तो है।’ मेहता
जी बोले, ‘पर वह लगे हाथ बाप पर एहसान भी कर रहा है
और उन के लाखों रुपए भी बर्बाद कर रहा है।’
‘अच्छा
दहेज नहीं ले रहा होगा।’
‘नहीं
भइया, दहेज-वहेज का तो कोई मसला ही नहीं। क्यों कि शादी तो वह अपनी ही मर्जी से कर
रहा है। वह भी पंडितों में।’
‘तो फिर
?’
‘उस की
फरमाइश है कि शादी के बाद जो हफ्ता दस रोज यहां रहेगा तो उसे वेस्टर्न स्टाइल का कमरा,
बाथरूम वगैरह चाहिए।’
‘क्यों,
अटैच्ड बाथरूम वगैरह तो डॉक्टर साहब के घर में होगा ही !’
‘है भइया
शुक्ला जी, पर उस में बाथ टब, स्टीम बाथ वाले तामझाम नहीं हैं।’ मेहता जी बिदकते हुए बोले, ‘सो तोड़-फोड़
मचाए हुए हैं घर में। क्या तो बेटा हनीमून यहीं मनाएगा। और डॉक्टर साहब इसी में खुश
हैं। खुश हैं कि शादी में चलने ही के लिए सही बेटे ने बाप को पूछ तो लिया।’ मेहता जी बोलते जा रहे थे, ‘चलो
वेस्टर्न बाथरूम चाहिए, अच्छी बात है। पर उस को बनाने के लिए पैसे भी भेज देता बेटा
तो डॉक्टर सक्सेना इस बुढ़ौती में व्यर्थ के खर्च के झमेले से तो बच जाते !’
‘ये तो
है।’ शुक्ला जी किंचित चिंतित होते
हुए भी बोले।
‘पर क्या
करें भइया शुक्ला जी बेटे के बाप ठहरे !’ मेहता
जी बोले, ‘और सुनिए डॉक्टर आनंद का किस्सा। बेटे को
भेजा सिंगापुर पढ़ने के लिए। पढ़ने के बाद वहीं दो लाख रुपए महीने की नौकरी करने लगा।
एक दिन अचानक बाप को फोन किया। कहने लगा कि पापा मैं शादी करना चाहता हूं।’
डॉक्टर आनंद बोले, ‘हां,
बेटा मैं भी यही सोच रहा हूं। लड़की देख भी रखी है। आओ देख कर पसंद कर लो। पसंद कर लोगे
तो उसी से शादी कर देंगे।’
मेहता जी बोले, ‘जानते
हैं लड़का क्या बोला ?’
‘क्या
बोला ?’
‘बोला
कि पापा लड़की तो मैं ने पसंद कर ली है। फिर डॉक्टर आनंद बोले तो हमें क्यों फोन किया
बेटे ? वह बोला कि पापा यह पूछना था कि शादी सिंगापुर से करेंगे कि इंडिया से ?’ मेहता जी बोले, ‘भइया
शुक्ला, डॉक्टर साहब बताते हैं कि गुस्सा तो बहुत आया पर अपने को उन्हों ने काफी कंट्रोल
किया और प्रैक्टिकल होते हुए कहा कि बेटा तुम जहां खुश रहो। तुम कहोगे तो इंडिया से
शादी कर लेंगे, तुम कहोगे तो सिंगापुर से शादी कर लेंगे। तुम को जहां पसंद हो बताओ।
हम तैयार मिलेंगे। क्यों कि बेटा तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है।’ तो जानते हैं बेटा क्या बोला? बोला कि ठीक है पापा, ‘उस से’ डिसकस
कर के फिर फोन करूंगा।’
‘उस से
मतलब ?’
‘मतलब
अपनी बिलवेड से डिसकस करने की बात।’ मेहता
जी बोले, ‘तो भइया उस ने उस से डिसकस किया और बाप को
फोन किया कि पापा ठीक है हम लोग इंडिया से ही शादी करेंगे। अब ये बताइए कि आप लखनऊ
से ही शादी करेंगे कि बेंगलूर से ?’
‘बेंगलूर
से क्यों ?’
‘अरे
भई लड़की बेंगलूर की है।’
‘अच्छा-अच्छा
!’
‘तो भइया
शुक्ला जी डॉक्टर आनंद फिर सरेंडर कर गए बेटे के आगे और बोले कि बेटा तुम बेंगलूर से
करो, लखनऊ से करो, सिंगापुर से करो चाहे कहीं से करो हम तुम्हारे साथ हैं। तो लड़का
बोला कि ठीक है पापा उस से डिसकस कर के फोन करते हैं।’ मेहता जी बताते जा रहे थे, ‘हमने
डॉक्टर आनंद से पूछा कि इस तरह बेटे के आगे सरेंडर क्यों कर दिया ? तो वह कहने लगे
कि मेहता जी क्या है कि बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी है। डॉक्टर साहब कहने लगे
कि मेहता जी, शादी बेटे की ही होनी है और उस ने अपनी शादी तय कर ली है। ऐसे में अगर
मैं विरोध करूं भी, असहमति जताऊं भी तो क्या फायदा ? परिवार में सिवाय खटास आने के
और कुछ नहीं होगा। फिर बेटा जिम्मेदार है, समझदार है, हम से ज्यादा सेलरी उठा रहा है
इसी उम्र में तो उस की बात मान लेने में हर्ज क्या है, ?’ मेहता जी बोले, ‘मैं
ने जाति-बिरादरी की बात उठाई तो डॉक्टर साहब बोले, ‘दुनिया
ग्लोबलाइज हो गई है। और मैं तो मेडिकल साइंस जानता हूं। इस सब में भी कुछ नहीं रखा’। और फिर जानते हैं, डॉक्टर आनंद बड़े खुशनसीब निकले। एक दिन
बेटे ने फोन कर के कहा कि, ‘पापा
ठीक है हम लोग लखनऊ से ही शादी करेंगे। आप तारीख़ें वगैरह पक्की कर के हमें बता दीजिए
!’ मेहता साहब बोले, ‘डॉक्टर आनंद तो फिर भी खुशनसीब निकले लेकिन डॉक्टर श्रीवास्तव
तो बहुत ही बुरे फंसे।’
‘उन का
क्या हुआ मेहता जी ?’ शुक्ला
जी असहज होते हुए बोले।
‘कुछ
नहीं। हुआ तो डॉक्टर आनंद वाला ही, बेटे के आगे सरेंडर वाला हाल पर जरा ज्यादा शार्ट
कट के साथ।’ मेहता जी शुक्ला जी के बिना पूछे
ही चालू रहे, ‘डॉक्टर
श्रीवास्तव का बेटा भी डॉक्टर है। नौकरी लंदन में करता है। पढ़ा यहीं लखनऊ मेडिकल कालेज
का ही है। यहीं अपनी एक बैचमेट से टांकेबाजी कर बैठा था। लड़की इलाहाबाद की थी। दूसरी
बिरादरी की थी फिर भी दोनों के मां-बाप ने मिल कर शादी की तारीख़ें तय कर लीं। नवंबर
की कोई तारीख़ तय हुई थी। डॉ. श्रीवास्तव जब मिलते तब ठनकते कि मेहता जी इलाहाबाद बारात
में चलने के लिए तैयार रहिए। मैं भी उन्हीं की टोन में टोन मिलाता हुआ कहता, ‘तैयार हूं भाई पहले बारात ले तो चलिए।’ मेहता जी बोले, ‘पर अचानक
एक दिन देखता क्या हूं कि भरी दोपहर में डॉक्टर श्रीवास्तव अपने बेटे-बहू को लिए कार
से निकल रहे हैं हार फूल माला से गुंथे हुए। मैं हकबकाया। पूछ बैठा कि सगाई-वगाई कर
के आ रहे हैं क्या डॉक्टर साहब ! वह बोले, ‘नहीं
मेहता जी हम तो शादी कर के आ रहे हैं, इलाहाबाद से।’ मेहता
जी बताने लगे, मैं ने शिकायती लहजे में पूछा कि भइया डॉक्टर साहब हम को बारात में क्यों
नहीं ले गए ? तो डॉक्टर साहब कहने लगे कि कहां मेहता जी ! बारात गई कहां ? कहिए कि
हमीं लोग किसी तरह पहुंच गए इलाहाबाद शादी में, यही बहुत था। मैं ने पूछा क्या मतलब,
तो डॉक्टर साहब बोले कि भइया मेहता जी, अचानक बेटे का दो दिन पहले रात में फोन आया
कि, ‘पापा मम्मी को ले कर इलाहाबाद पहुंचिए। मैं
भी फ्लाइट पकड़ कर पहुंच रहा हूं। परसों शादी कर रहा हूं।’
‘ऐसा
क्यों किया उस ने ?’ शुक्ला
जी ने मेहता जी से सादा-सा सवाल किया।
‘क्या
तो उस की बिलवेड उस के बिना रह नहीं पा रही थी। उस के पास लंदन जाना चाहती थी और उस
के मां-बाप बिना शादी के भेजने को तैयार नहीं थे।’ मेहता
जी बोले।
‘अजब
है !’ कह कर शुक्ला जी ख़ामोश हो गए।
मेहता जी भी बताते-बताते थक गए थे। सारा हाल बता कर उन का पेट भी हल्का हो गया था सो
वह शुक्ला जी के घर से चल दिए।
मेहता जी तो चले गए पर अब ड्राइंग रूम में सुमि की मम्मी शुक्ला
जी से जिरह करने के लिए हाजिर हो गईं। शुक्ला जी समझ गए कि अब खै़र नहीं है। सो वह
भी घर से बाहर निकलने की जुगत में लग गए। लेकिन सुमि की मम्मी जो इस बीच चाय पिलाने
के बहाने ड्राइंग रूम में आते जाते मेहता जी की सारी बातें कान लगा कर सुन रही थीं
बोलीं, ‘सुमि के पापा जी कहीं जाइए नहीं।’
‘क्यों
क्या हुआ ?’
‘कुछ
नहीं, सुमि को अभी फोन मिलाइए और शादी के बारे में बात कीजिए !’
‘अरे,
उस को पढ़ाई तो पूरी कर लेने दो !’
‘कुछ
नहीं।’ सुमि की मम्मी बोलीं, ‘मेहता जी ने जितने किस्से अभी सुनाए हैं, वह सब बड़े लोगों के
बेटे हैं। और फिर बेटे हैं, बेटियां नहीं !’ वह बोलीं,
‘फिर
हमारी तो बेटी है। कहीं यह भी ऐसी वैसी बात पर अड़ गई तो मैं तो सुमि के पापा जी, जी
नहीं पाऊंगी!’ कह कर वह रोने लगीं। सुमि के
पापा उन्हें चुप कराते हुए बोले, ‘रोओ
नहीं। मौका देख कर बात करूंगा।’
‘नहीं
अभी बात करिए !’
‘अरे
कोई लड़का-वड़का देख भी तो लूं।’ वह बोले,
‘कहीं बात आगे बढ़े तब तो उसे की कनसर्न मांगूं
?’
‘क्या
मांगूं ?’
‘अरे,
उस की राय मांगूं ! और क्या ?’ शुक्ला
जी बोले, ‘फिर उस की पढ़ाई और कॅरियर की चिंता मुझे भी
है। फिर वह जब कह चुकी है कि एम.सी.ए. के बाद ही शादी करेगी तो क्या बार-बार टोकना
?’
‘आप तो
कुछ समझते ही नहीं।’ वह बोलीं,
‘समझते ही नहीं कि आप बेटे के नहीं बेटी के
बाप हैं। बेटों के बापों से मुकाबला मत करिए।’
‘समझता
हूं भई !’ वह बोले, ‘पर मैं अपनी बेटी की भावनाएं भी समझता हूं। कह कर शुक्ला जी
ने हाथ के इशारे से बता दिया कि बस यह चैप्टर यहीं समाप्त !
लेकिन चैप्टर समाप्त कहां हुआ था ?
कुछ दिन बाद एम.सी.ए. फाइनल का रिजल्ट आ गया था और सुमि का
सेलेक्शन भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के लिए संभावित था। घर में खुशियों का जैसे खजाना
आ गया था। पर सुमि की मम्मी जी फिर भी सुमि की शादी की चिंता में थीं। सुमि के पापा
जी पर उन का जोर नहीं चल पा रहा था। क्यों कि वह तो बेटी के सफल कॅरियर में ही बहके
हुए थे। हार कर सुमि की मम्मी जी अपने ससुर की शरण में गईं। उन से ही गुहार की कि,
‘अपने बेटे को समझाएं। समझाएं कि कॅरियर लड़कों
का होता है, लड़कियों का नहीं !’
सुमि के बाबा ने बहू की गुहार को गंभीरता से लिया। खानदान की
नाक का सवाल बनाते हुए सुमि के पापा को समझाया-बुझाया। पर सुमि के पापा ने कोई इफ बट
किए बिना अपने पिता के आगे सरेंडर कर दिया और कहा कि आप की भी नातिन है, आप ही सीधे
उस से बात करिए। पिता ने अपने बुढ़ापे का बहाना लिया और कहा कि नई पीढ़ी है, नया ख़ून
है, कहीं तू-तड़ाक कर गई तो इस बुढ़ापे में तकलीफ होगी। पर सुमि के पापा ने अपने पिता
को आश्वस्त किया कि सुमि ऐसी उद्दंड नई पीढ़ी वाली लड़कियों में से नहीं है, दुनिया देख
रही है; सभ्यता, सलीका जानती है सो बात करने में कोई हर्ज नहीं है।
सुमि के बाबा ने सुमि को समझाने का बीड़ा उठाया। समझाया भी कई-कई
चक्रों में। पर सुमि के कॅरियरस्टिक तर्कों-कुतर्कों में अभी वह उलझे ही थे कि भाभा
एटॉमिक रिसर्च सेंटर में न्यूक्लियर साइंटिस्ट के पद पर उस के सेलेक्शन की ख़बर आ गई।
तैयारी शुरू हो गई उसके मुंबई जाने की।
मम्मी की बात, बाबा की बात, यानी सुमि की शादी की बात धरी की
धरी रह गई।
सुमि की मम्मी अब उंगलियों पर उस की उमर जोड़ती सुमि के पापा
से जब तब उस की शादी की बात चलाती हुई कहतीं, ‘बताइए
26-27 बरस की हो गई !’ पर सुमि
के पापा ज्यादातर समय चुप ही रहते। जब ज्यादा होता तो कहते, ‘सुमि की मम्मी, तुम्हारी ही कोख से पैदा हुई सुमि बदल गई, तुम
भी बदलो।’ वह कहते, ‘जिंदगी का मतलब सिर्फ शादी
ही नहीं है। और फिर 26-27 की उम्र कोई ज्यादा नहीं है ऐसी तेज और होनहार लड़की के लिए।’ वह जोड़ते, ‘सुमि
अब न्यूक्लियर साइंटिस्ट हो गई है। अपनी जिंदगी की साइंस भी उसे ही तय करने दो !’
सचाई एक यह भी थी कि सुमि के पापा की नजर में सुमि के मैच का
कोई लड़का भी नहीं था। सचाई यह भी थी कि सुमि के मैच के लड़के से शादी करने के लिए उतने
पैसे भी उन के पास नहीं बचे रह गए थे। सुमि की पढ़ाई में पैसे खर्च हुए ही थे। छोटी
बेटी और बेटे की पढ़ाई का खर्च भी बढ़ता जा रहा था। बेटा बीटेक कर रहा था तो छोटी एम.बी.ए.।
सरकार ने भी कोचिंग पर अब रोक लगा दी थी। शादी के लिए पैसा लाते भी तो शुक्ला जी कहां
से लाते ? पर सुमि की मम्मी की चिंताओं का पार नहीं था। वह बार-बार सुमि की उम्र जोड़तीं
और कहतीं आख़िर बेटी की मां हूं। फिर बतातीं कि इस उमर में तो मैं तीन बच्चों की मां
बन गई थी। मेरे दो बच्चे पढ़ने जाने लगे थे और ये है कि कहती है कि, ‘सॉरी मम्मी, शादी के बारे में अभी कोई डिसकशन नहीं !’ वह बिलबिलातीं तो सुमि के पापा जैसे आध्यात्मिक हो जाते, मनोवैज्ञानिक
हो जाते। कहते, ‘बताइए
बच्चे जब छोटे होते हैं, बोल भी नहीं पाते तब भी बिन कहे मां बच्चों की बात समझ जाती
है। बच्चे को क्या चाहिए जान जाती है।’ वह जैसे
जोड़ते, ‘पर वही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं और कई बातें
साफ-साफ कहते हैं और वही मां उन की बात नहीं समझ पाती !’
‘मां
का दिल आप मर्द क्या समझें ?’ सुमि
की मम्मी लगभग असहाय हो कर कहतीं और किचेन में घुस कर बरतन खटर-पटर कर पटकने लगतीं।
गोया सारा गुस्सा, सारा मलाल बर्तनों पर ही उतार देतीं।
ऐसे ही एक रोज किचेन में सुमि की मम्मी खटर-पटर किए पड़ी थीं
कि मेहता जी सपत्नीक आ पहुंचे।
सब का किस्सा सुनाने वाले मेहता जी आज कल खुद किस्सा बने घूम
रहे थे।
मेहता जी का मंझला बेटा एम.बी.ए. कर लखनऊ की ही एक प्राइवेट
कंपनी में नौकरी कर रहा था और दफ्तर की ही एक लड़की के चक्कर में पड़ा था। न सिर्फ लड़की के चक्कर में पड़ा था, खुले आम उस के साथ घूमता था, न सिर्फ
घूमता था बल्कि जब तब वह उस के साथ घर भी आ जाती थी। यहां तक तो ठीक था। पर अब वह उस
से शादी करना चाहता था। बिरादरी से बाहर की होने के बावजूद मेहता जी को तो कोई ख़ास
आपत्ति नहीं थी। घुमा फिरा कर वह लगभग राजी थे पर अपनी पत्नी को राजी नहीं कर पा रहे
थे। उन की पत्नी को ऐतराज था और सख़्त ऐतराज था। यों तो ऐतराज उन के कई थे। पर बड़े ऐतराज
दो तीन थे। एक तो यह कि बिना शादी के ही वह उन के लड़के के साथ घूम रही थी। दूसरे, शादी
हुए बिना ही वह ससुराल आने लगी थी और अकसर। तीसरा ऐतराज और सख़्त था कि वह बिना शादी
हुए ससुराल आ जाती थी और उन के पांव भी नहीं छूती थी। ऐतराज दरअसल यही महत्वपूर्ण था
कि वह उन के पांव क्यो नहीं छूती थी ? डॉक्टर आनंद ने एक बार मजाकवश ऐतराज जताते हुए
पूछा कि, ‘आखि़र वह आप के पांव क्यों छुए ?’
‘मैं
सास हूं उस की !’ मिसेज
मेहता बिफरीं, ‘इस लिए
उसे मेरे पांव छूने चाहिए।’ वह बोलीं,
‘बताइए शादी से पहले ही उस का यह बर्ताव है,
मेरी इस तरह उपेक्षा कर रही है तो शादी के बाद क्या करेगी ?’
‘चलिए
मेहता जी, आप शादी की तैयारी कीजिए !’ डॉक्टर
आनंद मुसकुराते हुए बोले, ‘भाभी
जी ने तो अपने को अभी से उस की सास घोषित कर लिया है तो फिर दिक्कत की कोई बात है नहीं
!’
‘क्यों
नहीं दिक्कत है ?’ मिसेज
मेहता बिदकीं, ‘दिक्कत
ही दिक्कत है!’
‘भाभी
जी आप इतनी खूबसूरत हैं, इतनी यंग दिखती हैं तो हो सकता है वह आप को अपनी सहेली का
दर्जा देते हुए ही आप के पैर न छूती हो !’
डॉक्टर आनंद फिर मजाक पर आ गए।
‘तो हम
को मम्मी जी, मम्मी जी क्यों बोलती है ?’ मिसेज
मेहता बोलीं, ‘भाई
साहब वह मुझे सहेली नहीं दुश्मन समझती है, मुझे हर्ट करती है, ह्यूमिलिएट करती है!’
‘अच्छा,
आप के बेटे को तो प्यार करती है ?’
‘कहीं
प्यार व्यार नहीं करती !’ मिसेज
मेहता का वार जारी था, ‘वह तो
अपने बाप का दहेज बचाने के लिए मेरे बेटे को फंसाए पड़ी है।’
‘तो आप
को दहेज भी चाहिए क्या ?’
‘किस
को काटता है दहेज ?’
‘हमें
तो भाई काटता भी है, हर्ट भी करता है और ह्यूमिलिएट भी करता है यह दहेज लेना!’ डॉक्टर आनंद मिसेज मेहता के वजन में ही बोले, ‘मैंने तो भाई अपने बेटे की शादी में दहेज-वहेज जैसी कोई बात
चलाई भी नहीं।’
‘आप क्या
दहेज की बात चलाते जब शादी आप के बेटे ने खुद तय कर ली !’
‘नहीं
भाभी जी, आप यहां गलत बोल रही हैं।’ डॉक्टर
आनंद बोले, ‘मेहता
जी जानते हैं कि मैं भी जहां बेटे की शादी की बात चला रहा था, विद आउट लेन-देन चला
रहा था।’ डॉक्टर आनंद बोले, ‘क्यों मेहता जी
?’
‘हां,
भई डॉक्टर आनंद सही बोल रहे हैं।’ मेहता
जी बोले, ‘बच्चों की खुशी में ही हम सब की खुशी है,
इस लिए तुम भी जिद छोड़ो, मान जाओ !’
‘कैसे
मान जाऊं ?’
‘मान
जाइए भाभी जी !’ डॉक्टर
आनंद बोले, ‘नहीं कहीं बेटा आप लोगों की मर्जी के बगैर
शादी कर लेगा तो क्या पोजीशन बनेगी आप लोगों की?’ वह बोले,
‘जमाना बदल गया है भाभी जी, आप भी अब बदलिए
!’
लेकिन मिसेज मेहता नहीं बदलने
से बाज नहीं आ रही थीं, लोगों और खुद मेहता जी के लाख समझाने पर भी मान नहीं रही थीं
और उन की होने वाली बहू भी उन के पांव नहीं छू रही थी सो बात अटकती जा रही थी।
ख़ैर, मिसेज मेहता जब मेहता जी के साथ शुक्ला जी के घर आईं
तो शुक्ला जी के घर भी सुमि की शादी पुराण का पाठ सुमि की मम्मी और बाबा चला रहे थे।
सुमि के पापा को हाजिर नाजिर मान कर !
और सुमि ?
सुमि तो मुंबई में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में बैठी एक और
सपना बुनने में लग गई थी। नासा ज्वाइन करने का सपना।
पर यहां शुक्ला जी के ड्राइंग रूम में सुमि की मम्मी के सपने
टूट रहे थे। उन को लग रहा था कि अब वह सुमि का कन्यादान नहीं कर पाएंगी। अपने ससुर
से इस चर्चा में लगी पड़ी थीं कि मिसेज मेहता और मेहता जी आ पड़े और साथ ही अपनी समस्या
भी इस चर्चा में नत्थी कर बैठे। पूछ बैठे सुमि के बाबा जी से कि, ‘पंडित जी आप बुजुर्ग हैं, अनुभवी हैं, आप ही कुछ निदान सुझाइए
! बताइए कि बच्चों को कैसे रास्ते पर लाया जाए कि वह मां-बाप की इच्छा का भी सम्मान
करना सीखें।’
लेकिन सुमि के बाबा जी ने अपनी इस तीसरी पीढ़ी के कॅरियर, प्रेम
और लंपटई का निदान ढूंढ पाने में अपने को अक्षम बता दिया। पर हां, एक नई स्थापना भी
वह दे बैठे। बोले, ‘सब इंगलिश
मीडियम की पढ़ाई का कसूर है। बच्चों के बिगड़ने की जड़ में अगर कोई है तो वह है इंगलिश
मीडियम की पढ़ाई, इंगलिश मीडियम का खाना, इंगलिश मीडियम का कल्चर और इंगलिश मीडियम का
रहन-सहन।’ वह कहने लगे, ‘जब तक यह इंगलिश मीडियम रहेगा, बच्चे नहीं सुधरेंगे। किसी के
भी बच्चे !’
पर इस पूरे प्रसंग में शुक्ला जी चुप ही रहे।
लेकिन सुमि का कॅरियर चुप नहीं था। नासा में उस के जाने की
संभावनाएं शहर के कई हलकों में चर्चा का सबब बन चली थीं। शुक्ला जी के कॉलेज में भी
यह चर्चा चलती। तमाम साथी अध्यापक उन्हें रश्क से देखते तो कुछ जलन के साथ भी देखते,
पर तमाम विद्यार्थी सम्मान के भाव से जब उन्हें देखते तो उन का माथा और ऊंचा हो जाता।
और याद आता अपनी बेटी सुमि द्वारा जब तब गाया जाने वाला वह गाना। जब वह टीन एज थी और
बाल सुलभ ठुमके के साथ गाती थी, ‘दिल
है छोटा-सा, छोटी-सी आशा, मस्ती भरे मन में, भोली-सी आशा, चांद तारों को छूने की आशा,
आसमानों में उड़ने की आशा !’
सुमि जब यह फिल्मी गाना गाती थी तब शुक्ला जी उस के मन की गहराई
की थाह नहीं लगा पाए थे, नहीं जान पाए थे कि उन की यह भोली-सी बेटी, भोली-सी आशा लिए
सचमुच आसमान में उड़ने की आशा बांध रही है, अपने पैरों को तौल रही है। क्यों कि वह तो
तब अपनी बाल सुलभ ठुमके के साथ ‘कुचि-कुचि
रकमा!’ भी गाती और गाते-गाते पढ़ने बैठ
जाती। बोलती, ‘बाप
रे, बड़ा होमवर्क है और इतने सारे चैप्टर रिवाइज करने हैं !’
और आज सचमुच वह आसमान में उड़ने के लिए छलांग तो लगा ही चुकी
है। वह सोचते। वह यह भी सोचते कि क्या उन की सुमि भी कल्पना चावला के टक्कर की या उस
से आगे की साइंटिस्ट बन सकेगी ?
यह और ऐसे कई सवाल खुद से ही करते और सुलगते रहते भीतर ही भीतर।
सुमि को ले कर सुलगने वाले समाज में और भी बहुतेरे थे। शुक्ला
जी के कॉलेज का स्टाफ, रिश्तेदार, जान-पहचान और मुहल्ले के लोग। लफंगे और शोहदे टाइप
के लोग भी! किसिम-किसिम के कमेंट्स !
ज्यादातर कमेंट्स सुमि के अविवाहित रह जाने को ले कर होते।
कोई कहता, ‘मुंबई में तो भइया बिन शादी ब्याह के भी औरतें
मर्दां के साथ रहती हैं।’ कोई
कहता, ‘साइंटिस्टों की दुनिया वैसे भी परदे में रहती
है। भीतर-भीतर पता नहीं क्या-क्या हो जाता है !’ तो कोई
सुमि के नासा जाने की संभावना टटोलता हुआ बोलता, ‘बंध
जाएगी किसी अंग्रेज के गले
! इंडियन मर्द तो उस के नसीब में रहा नहीं।’ तरह-तरह
की अभद्र और अश्लील टिप्पणियां कभी छन-छन कर तो कभी किसी बरतन की तरह छमक कर शुक्ला
जी के कानों और आंखों से दिल में घाव करती रहतीं। पर बेटी सुमि के कॅरियर की चमक एंटीबायटिक
बन कर उन के घावों को सुखाती रहती !
वह सोचते कि अगर सुमि बेटी नहीं बेटा होती तो क्या तब भी ऐसी
ही टिप्पणियां, ऐसी ही अश्लील, अभद्र टिप्पणियां फिर भी लोग करते ? फिर वह सोचते कि
काश सुमि बेटी नहीं, बेटा होती। लेकिन फिर दूसरे ही क्षण वह सोचते कि बेटी होते हुए
भी जो कॅरियर की उछाल सुमि ने ली है, समाज में जो उन का मस्तक ऊंचा किया है, क्या पता
कल्पना चावला की तरह देश का मस्तक भी ऊंचा करे ! बेटी हो कर भी जो मन को संतोष दिया
है सुमि ने, जो नाम रोशन किया है सुमि ने, इस निम्न मध्यवर्गीय बाप की बेटी ने, यह
कोई बेटा भी भला कर पाता ? नहीं, यह सुमि ही कर सकती है, सिर्फ उन की बेटी सुमित्रा ही कर सकती है !
शुक्ला जी आश्वस्त हो जाते यह सब अकेले-अकेले ही सोच कर।
लेकिन एक दिन सुमि का फोन आया तो वह टूट से गए। कुछ देर पहले
ही किसी ने कमेंट किया था कि वह बेटी की कमाई खा रहे हैं, इसी लिए उस की शादी नहीं
कर रहे। वह इस घाव को अभी सुखा ही रहे थे कि सुमि का फोन आ गया। रो पड़े वह फोन पर ही।
बोले, ‘बेटी मैं टूट गया हूं। मुझे संभालो !’
‘क्या
हुआ पापा।’ उधर से सुमि घबराई। शुक्ला जी
कुछ बोल नहीं पाए।
‘क्या
हुआ पापा !’
‘कुछ
नहीं बेटी मैं टूट गया हूं।’ वह बोले,
‘मैं बिलकुल अकेला पड़ गया हूं। तुम नहीं समझतीं
कि क्या-क्या ताने सुनने पड़ते हैं !’
‘एबाउट
माई मैरिज न पापा !’
‘हां,
बेटी !’ वह रुंधे गले से ही बोले, ‘अब तो लोग कहने लगे हैं कि मैं बेटी की कमाई खा रहा हूं इस
लिए उस की शादी नहीं कर रहा हूं। अब बोलो बेटी मैं क्या करूं ?’
‘पापा
आप मेरे साथ तो हैं ना ?’ सुमि
बोली, ‘आप ही टूट जाएंगे तो सोचिए मेरा क्या होगा
?’ कहते-कहते सुमि भी रो पड़ी। बोली,
‘पापा एक आप ही तो हैं जो मेरे साथ हैं। आप
ही के भरोसे से तो मैं इतना आगे आ पाई हूं।’ वह बोली,
‘थोड़ा-सा और मुझ पर ट्रस्ट कर लीजिए ! और फिर
पापा मैं आप के साथ हूं ! प्लीज पापा ! प्लीज !’
‘ठीक
है सुमि मैं तुम्हारे साथ हूं।’ वह बोले,
‘पर बेटी, मेरा भी ध्यान रखना। मुझे नासा ज्वाइन
करने अमरीका नहीं जाना, इसी समाज में रहना है। यह भी ध्यान रखना बेटा कि तुम्हारी स्पेस
अब और है, हमारी स्पेस और !’
‘नो पापा,
आप के बिना मेरी कोई स्पेस नहीं है !’ वह बोली,
‘जो स्पेस मैं ने बनाई है, वह आप को ले कर
ही बनाई है। फिर पापा हम यहां जो न्यूक्लियर साइंटिस्ट बने हैं तो ह्यूमन सोसाइटी की
बेहतरी ही के लिए। फिर आप तो मेरी रीढ़ हैं पापा ! बस थोड़ा-सा अपने को संभालिए, मुझ
पर ट्रस्ट कीजिए। और लोगों का क्या है ? उन की बातों पर कान ही मत दीजिए !’
‘ओ. के.
बेटा, तुम अपना ध्यान रखना !’ कह कर
शुक्ला जी ने बात ख़तम कर दी।
पर बात ख़तम सचमुच में नहीं हुई थी।
सुमि की मम्मी फिर से उस के मामा को उस के पास मुंबई भेजने
की तैयारी में लग गईं कि वह जा कर उसे फिर से समझाएं। समझाएं कि शादी-वादी कर के अपनी
गृहस्थी बसाए। नहीं उमर जब निकल जाएगी तो ये साइंस-फाइंस किसी काम नहीं आने वाली।
मामा जी गए मुंबई !
सुमि देखते ही समझ गई। मुसकुराई और बोली, ‘फिर ऊधो मोहि जोग सिखावन आए !’
‘क्या
सुमि ?’ मामा जी बोले, ‘तुम तो बस आते ही शुरू हो गईं।’
‘क्या
?’
‘अरे,
आते ही तो सारा पोल मत खोलो !’
‘अच्छा,
अच्छा ! सॉरी, वेरी सॉरी !’
शाम को बैठे मामा जी सुमि के साथ और बोले, ‘‘बेटी अब तो तुम्हारा स्ट्रगल ख़त्म हो गया ! अब क्या दिक्कत
है ?’
‘स्ट्रगल
ख़त्म हो गया ?’ सुमि
चौंकी। बोली, ‘मामा
जी स्ट्रगल तो अब शुरू हुआ है।’
‘क्या
?’ अब मामा जी चौंके। बोले, ‘तो इस के पहले क्या कर रही थी?’
‘वो स्ट्रगल
के पहले के स्टेप्स थे।’
‘क्या
?’
‘हां,
मामा जी !’ वह बोली, ‘आप की तरह लखनऊ में सचिवालय की फाइलें नहीं निपटानी हैं यहां।
न ही पापा की तरह लेक्चर ख़त्म कर घर जाने की छुट्टी होती है यहां।’ वह बोली, ‘एक-एक
डिटेल्स पर यहां सालों खपाना पड़ता है फिर भी कुछ हासिल होगा ही, कोई गारंटी नहीं !’
‘खै़र,
छोड़ो यह सब और मेन प्वाइंट पर आओ !’
‘मामा
जी, आप पापा जी से क्यों नहीं कुछ बात करते ?’ वह बोली,
‘उन की अंडरस्टैंडिंग को क्यों नहीं आब्जर्व
करते ?’
‘इस लिए
सुमि कि मैं तुम्हारी मम्मी का छोटा भाई हूं पति नहीं।’ वह बोले, ‘और तुम्हारी
मम्मी मुझे आज भी चपत लगा सकती हैं।’
‘वह चपत
तो मैं भी खा सकती हूं मम्मी की।’ वह बोली,
‘लेकिन मामा जी थोड़ा-सा समय और दे दीजिए न
! और मम्मी को भी समझाइए प्लीज !’
सुमि की इस प्लीज के आगे मामा जी टिक नहीं पाए।
बैरंग लौट आए मुंबई से मामा जी !
पर शहर में कुछ गलियों, कुछ सड़कों, कुछ ड्राइंग रूमों का रंग
अभी भी सुमि की चर्चाओं में खिला हुआ है। कोई उस की तारीफ में कसीदे पढ़ता है तो कोई
अश्लील और अभद्र फब्तियां कसता है तो कोई सुमि के बाप शुक्ला जी को लानतें भेजता है
!
पर सुमि के स्पेस में अब यह सब कुछ पहुंचने से रह जाता है।
हर बार उस के स्पेस की स्ट्रगल डेनसिटी से यह सब अनायास ‘स्लिप’ हो जाता
है !
और सुमि के पापा शुक्ला जी ?
शुक्ला जी की दूसरी बेटी एम.बी.ए. करने के बाद अब दिल्ली में
एक मल्टी नेशनल कंपनी ज्वाइन कर चुकी है। वह अब उस को सेटिल्ड कराने में लग गए हैं।
तरह-तरह के आरोपों टिप्पणियों से बेपरवाह हो चले हैं वह !
हां, सुमि के स्पेस में अपनी बहन को इनकरेज करने की स्पेस जरूर शेष है वह स्लिप नहीं होती।
सुमि का स्पेस
पृष्ठ-200
मूल्य-200 रुप॔ए
प्रकाशक
जनवाणी प्रकाशन प्रा. लि.
30/35-36, गली नंबर- 9, विश्वास नगर
दिल्ली- 110032
प्रकाशन वर्ष-2006
|
सुमी का स्पेस का अंगरेजी अनुवाद
Story
Sumi's Space
Dayanand Pandey
[
For all daughters of
the
world including
my
daughters
Ananya
and Purwa ]
It was as if a mountain had
fallen over the heads of Sumi’s relatives and all those who knew her when she
rented a flat and started living at a place like Atta in Noida. A traditional
girl living alone and that too at a place like Atta. Almost everyone was
displeased. They were displeased then also when she went to Noida for her MCA
studies. But she cared the least for them, left her city Lucknow and proceeded
for Noida. Initially, for some days she stayed in a hostel. But, instead of
getting lesser, her problems increased. The hostel was in Sector 12 and Sumi
had to go to Noida for her studies. In terms of transportation, fooding and
lodging, the hostel was not suitable by any means. Since it was a girls'
hostel, scoundrels were always seen wandering around the hostel. Once a rogue’s
phone call came for Sumi at the hostel. That rogue straight away proposed to
her over the phone. Sumi was alarmed. How did he knew her name? When she asked
this the rogue disconnected. After much thinking she recollected that she had
gone to the PCO to make a phone call to her mother. There was some disturbance
in the line and she was speaking loudly over the phone. While speaking loudly
she had said, ‘Mummy, I am Sumitra.’ Perhaps this rogue had heard her
conversation at the PCO. That is why he was addressing her as ‘Sumitra
Darling’, otherwise her friends and others called her Sumi.
She has become Sumi now.
Earlier she was Sumitra. Her friends used to tease her, ‘What a sisterly type
of name you have? Change it! Change this historic name?’ The pressures to
change the name increased when she was in B. Sc. She avoided it while she was
doing her M. Sc. Some of her good friends also objected to her name. It was
then that, although not in her certificate, she transformed from Sumitra to
Sumi. Sumi was doing her M. Sc. when all the other girls of her family and
relations, after getting rid of Maths and clearing their High School with Home
Science, were doing M. A. with subjects like Sociology and Education. In M. Sc.
also there were only 4 girls. All other were boys. However, problems were still
there. Although by changing her name from Sumitra to Sumi, she got rid of being
addressed as sisterly or the historic Sumitra, by her activities, attitude and
looks she was still sisterly. The boys did not like this.
And sometimes she also did
not like it.
When the boys bored her too
much and when their comments on her sisterly looks and temperament crossed
limits, she used to retaliate, ‘Why you people always crib about my being
sisterly type.’ She would add, ‘I am what I am.’ Then as if she rebuked them, ‘I am not asking you people to let me
tie a Rakhee on your wrist? When she used to smile after saying this, the boys
would say, ‘No, no, Sumitra ji. This much of leniency you will demonstrate in
future also.’ And then they would vanish from the scene. However, not only the
boys, the University also got serious about this sisterly Sumitra, when she
secured 96 per cent marks in M.Sc. Previous. Sumitra had become Sumi at home
also. Except for her mummy, everyone called her Sumi. For her she was still
Sumitra. So, when she secured 96 percent marks, her mother said to her Papa,
‘It is good that she had secured 96 per cent and is flying high. But now, think
of getting her married also by the time she clears her final examination.’
Sumitra’s Papa replied ‘Don’t worry about this. I have already talked to Mani
ji on this issue. His son is doing his MCA. He has given his words that once
his son completes his MCA and gets a job, his marriage will be solemnised with
Sumi only.’ Sumi’s Papa felt relaxed and carefree after saying this, but.
Sumi’s mummy was still worried, 'That is all right. But still. keep on eye at
2-3 other places also. We should not sit relaxed till Sumi’s marriage gets
fixed.’ But Sumitra’s Papa remained carefree. When his wife insisted a lot, he
once again went to Mani ji and came back with an assurance from him. This time
he brought the boy’s photographs and Kundli also.
He asked the Pandit ji to
match the boy’s Kundli with his daughter’s. They matched and he observed that
Sumi also liked the boy. Sumitra’s Papa, in the happiness of his daughter’s
marriage getting fixed, forgot that his daughter and Mani ji’s son knew each
other and that he often came to their house also.
But Sumitra’s Mummy
remembered everything. She remembered that Mani ji’s son was tall and handsome.
And he was doing MCA too. So one day she said to Sumitra’s Papa.’ The Kundli’s
have matched and Mani ji has also agreed for the marriage. Let us go ahead with
an engagement ceremony.’
‘I asked Mani ji for this
but he told me not to worry. Mani ji said that everything will be done
together.’
‘Did you talked to him
regarding dowry? Sumi’s Mummy asked ‘What if he makes some unusual demand at
the last moment?’
‘I asked about dowry also
but he avoided the topic.’ Papa replied, ‘Mani ji says there is no demand from
him and we can give whatever we wish.’
‘It sounds fishy.’
‘For you everything is
fishy.’ He said, ‘A man honours his words and Mani ji is a man.’
The topic closed.
But in reality it was not
closed.
Sumi topped in the
University. At the same time, Mani ji’s son, after completing his MCA joined a
multinational company at Mumbai. Sumi started dreaming of going to Mumbai. Her
younger sister teased her, ‘Didi, will you take us to film shooting?’ Will you
take us to Shahrukh, Preity Zinta, Tabu and Amir? Will you Didi? Hiding her
smile Sumi would say, ‘Let me reach Mumbai first!’
But Sumi did not reach
Mumbai. Instead she reached Noida. That too alone. She went to Noida to pursue
her studies. It so happened that Sumi’s Papa, sitting carefree with faith on
Mani ji’s words and happy with her daughter’s achievement of topping the
University with a subject like Physics, never realised that there is one more world where even the toppers are
crushed in pursuit of careers.
When Mani ji’s son came back
from Mumbai, Sumi’s Papa approached Mani ji for solemnising the engagement
ceremony,. But Mani ji said, ‘Shukla ji, I had a talk with my son. I had talked
to him even before you came. He is not ready for this marriage.’
‘Why Mani ji?’ Sumi’s Papa
was taken a back, ‘Why?’
‘He says that he will marry
an MCA girl only.’
‘What!’ Sumi’s Papa almost
sat down, ‘My daughter is also a University topper Mani ji!’
’I know Shukla ji. But it is
my son and not me who has to marry.’
‘Mani ji, though my daughter
is a topper, still I will give a good dowry. Though my capacity is only 5-7 lac
rupees but if you want I will sell my house and property to give you 15-20
lacs.’ Saying this, he fell on Mani ji’s feet.
‘No, no Shukla ji!’ Mani ji
lifted him up and said, ‘Dowry has got nothing to do with this. My son want to
settle in America. So he wishes that his life partner should also pursue a
similar career. This will enable them to live together and share the expenses
so that they don’t face any problem. This is what he thinks. The problem is
from his end and not mine.’
‘But Mani ji, relying on your
words I have not looked anywhere else for her marriage.’
‘Well, what can be done
now?’
‘Can I also talk to your
son?’ Sumi’s father was having hiccups, ‘I have already accepted him as my
son-in-law and perhaps my daughter also regards him as her husband.’
'You can. But it will be of
no use. He is adamant.'
‘What to do then?’ Saying
this Sumi’s father came back. The very next day he started his campaign of
searching another boy for Sumi’s marriage. He got tired of searching a suitable
boy. Now he did not tell anyone that his daughter is a University topper
because he realised that it was just a mirage. He realised that now the meaning
of degrees, jobs and dowry have changed. He was in the process of realising all
this when, one day, all of a sudden Sumi said to him, ‘Papa, please stop trying
for my marriage now.‘
‘But why?’ Sumi’s Papa asked
with a mixture of irritation as well as love in his voice.
‘Don’t you wish to get
married?’ Her mother blurted.
‘I will mummy!’ Sumi said,
‘But after completing MCA.’
It was as if Sumi’s Papa got
a remedy. Though Sumi’s Mummy was not in the favour to wait till Sumi completes
her MCA. But, since Sumi had decided and her father had given his consent, she
had not option but to agree. Sumi’s depression, inspite of postponing the
marriage till completing her MCA,
increased. Yet she got down to prepare for MCA entrance examinations. Partly
due to the complex of being a topper and partly due to her depression on
account of broken marriage, she could not get through the entrance examination.
Sumi’s father felt defeated. Her mother cried. But Sumi did not lose courage.
She started preparing again. She took correspondence coaching from a coaching
institution of Kanpur. She left no stone unturned and finally she was selected
at the entrance examination. She got a seat at Greater Noida. She went there,
took admission and started living at a hostel. Sumi’s father once again
approached Mani ji, ‘Now my daughter is doing MCA.’ Mani ji replied, ‘Shukla
ji, My son is going to USA. I don’t know when he will marry.’
Shukla ji came back. But not
as a defeated man. However, he didn’t said a word about it to Sumi or her
mother. Instead, he started encouraging Sumi to pursue her career.
Gradually, Sumi also got
busy in pursuing her career.
When the problems and
disturbance at the hostel increased she shifted to a small flat in Sector 27 in
Atta. Though this 2-room LIG flat at a monthly rent of 4 thousand rupees was
expensive, yet it was convenient. She could have got a flat in any other sector
of Noida at a reasonable rent of 2 thousand but she explained to her father
that it would be more expensive.
Papa asked, ‘How can it be
more expensive?’
Sumi explained, ‘It would be
expensive in terms of conveyance. Almost all buses for almost every destination
are routed through Atta. It would be easier for me to go to my coaching or
other places. This facility is not available from any other Sector of Noida. I
will have to pay more for Rickshaw or Auto. Apart from this there will be other
problems.’ Sumi’s Papa was convinced by her Mathematics.
Though Sumi’s Papa was an M.
Sc. In Mathematics yet he found himself unfit in the gradually changing career
of today’s mathematics. However, he always thanked his Mathematics which
enabled him not only to teach at the college but run his own coaching also. It
was by virtue of this coaching that he was able to bear the expenses incurred
for Sumi’s education.
So, when that rogue tried to
propose Sumi over the phone, Sumi grew nervous. The next evening she made a
phone call to her Mummy, narrated the whole incident to her and said, ‘Mummy,
pleaseask Papa to buy me a mobile.’
‘I will arrange for it.’
Shukla ji understood the
gravity of the situation, went to Noida and bought a mobile for her daughter.
The news that Sumi keeps a
mobile spread like fire. Some burning questions also propped up. Shukla ji’s
relations and friends passed some subdued comments also. One of them went to
the extent of saying.’ What if she herself turns mobile?’
‘Master Sahab’s expenses
towards dowry will be saved.’
Another relation completed
his remark.
Shukla ji was furious on
hearing such comments but he remained silent. There was a similar rise in the
comments’ market when Sumi had gone to Noida. But engulfed between Sumi’s
marriage and career Shukla ji didn’t care a least for this rise.
But this time he was
furious.
And now, when Sumi had
shifted to a place like Atta, the comments’ market rose to its peak. Now the
comments were vulgar and indecent. They reached Shukla ji as well as Sumi. One
of Sumi’s cousins told her everything on her mobile. However by now, Sumi had
become seasoned and so she was not depressed. But she thought of her parents.
She specially thought of her father because in this male-dominant society a
father suffers more on account of his daughter. She was aware of this fact so
she made a phone call to them and came directly to the point by asking, ‘Papa,
do you have faith in me?’
‘Yes Sumi, I have!’ Shukla
ji said in a choked voice, ‘But dear why are you asking this.’
‘Just like that Papa.’
‘But still dear...’
‘Papa, you very well know
this society’s male mentality.’ She said, ‘News, though filtered, reach me too.
So I thought it would be better to talk to you.’
‘You did the right thing
dear.’ Shukla ji said, ‘You don’t worry about all this. I have learned how to
face all this. You pay attention to your career and studies.’ Then he blessed
her, ‘Top in MCA also.’
‘I will do so Papa,’ said
Sumi, ‘You explain everything to Mummy. You know Papa that I will break down if
you people will lose courage.’
‘You keep your moral high we
are not so weak. And we believe in you. It is because of the faith we have in
you that we have send you so for alone for your studies.’
‘Thank you, Papa. That’s
what I need.’
Sumi got more involved in
her studies. Now she had taken a computer also with internet facility. She
spent a lot of time on internet. To save time, instead of cooking her own food,
she resorted to tiffin service. However, she washed and ironed her clothes at
home.
That too when she got time
out from her studies.
Whenever she got frustrated,
she made a trip to the tomb of Atta Peer and at times stayed there for a while.
She did not have a TV at her house. Very seldom, she played the CD on the
computer itself and enjoyed few songs. If not relieved by that, she talked to
her parents. She had some friends but they too were busy pursuing their
studies. Most of them, like her, were far from their homes. Some of them had
relations or friends in Delhi or Noida. But for fear of unwanted questions, she
seldom visited them.
One of Sumi’s distant
relative lived with his family in Noida. Whenever Sumi visited them, she
noticed that he atmosphere at their home was full of unspoken questions. The
fear that Sumi might shift to their house can be clearly visualised on their
faces. While she was staying in the hostel, she stayed overnight at their place
but when she noticed that their fear and stupid questions increased, she
stopped going there.
She didn’t went there even
when she started living at Atta.
At Atta, she lived behind
the Sub Mall. Her relatives often came to Atta Bazaar but never visited her
flat. They never made a phone call also. So Sumi also kept distance from them.
The same was the case with the relatives of her other friends. So they broke the
silence between themselves. Sumi had no boy friend so all were girl friends and
almost everyone of them was equipped with a mobile. They never always talked
over phone because the bill was also to be paid. They conveyed messages to each
other through SMS. They changed their mobile connections in accordance with the
change in rates. But the connections cannot be changed so frequently. Living
alone itself was a big reason to be defamed. Changing mobile connection meant
attracting more defamation. So all the girl friends started sending coded
missed calls to each other. Giving just one ring meant ‘I am all right, how are
you?’ A single ring in reply meant ‘I am also OK.‘ Similarly 2 rings stood for
‘I am studying’ while 3 rings meant.’ I am going to sleep. Please do not
disturb.’ Continuous rings meant ‘I wish to talk, pick up the phone.’ These
were the ways by which these girls managed to break the silence prevailing
between their studies and career.
In between all this, lot of
changes occurred in Sumi. Earlier she was not career conscious. But now she
was. And now she was fully conscious.
MCA was not her destination
now. Neither Mani ji’s son was her goal. She talked as if she wished to go
beyond the sky. She used to say, ‘Sky is not our limit.’
Once her Mama ji came to
meet Noida to meet her. He asked, ‘When you are so brilliant and work so hard
why don’t you try at services?’
‘Services! You mean
administrative services.’
‘Yes.’
‘It is of no use.’
‘Why?’
She said, ‘One of my
friends, 3 years senior to me got selected in the very first attempt. But I
observe that her transfer bag is always kept ready. She cannot settle at one
place.’
‘Well, it happens only
during the initial phase.’
‘But I often read in news
papers. DMs and Commissioners are frequently changed.
‘Then what are your plans? A
job in the private sector? A slave to capitalist?’
‘No, I will open my own
company.’
‘When?’
‘First let me complete my
studies.’
Mama ji said, ‘Well, it is
OK. But have you thought who will decide for the license and other formalities
for opening the company? You know there bureaucrats!’
‘So what? That is the
procedure!’
Mama ji questioned, ‘Why
don’t you yourself become one to decide the procedures. As for the transferred.
It is not applicable on all administrators.’ Mama ji continued, ‘It applies
only to those who are corrupt and greedy.’
Sumi agreed.
Mama ji continued, ‘Has the
doctor suggested that you should become DM. Think Sumi, when you will go in
administrative service, you will write the country’s future. D. M., Commissioner
are not the limits. You will chalk up the plans for the country by the time you
become a Secretary. You will implement these plans. You will decide the destiny
of not one but thousands of companies. Think on these lines sometimes.’
Sumi replied, ‘You are right
Mama ji. But right now I am not concentrating on this. I am not definite of
opening a company. My MCA is not complete yet.’
‘Then what will you do?’
‘I may go for M. Tech. Take
admission in GATE. You talking of country and companies. Who knows I may write
the world’s future.’
‘How!’ Mama ji was startled.
‘By becoming a nuclear
scientist. Who knows I may join Bhabha Atomic Research Center. I may also join
NASA. I am preparing for the same.’ ‘O God!’ Mama ji jumped. ‘You mean you are
serious about sky is not your limit.’
‘Of course.’
‘Then what will happen to
Mani ji’s son who has gone to USA.’ Mama ji was a bit jovial as well as a bit
serious.
‘What are you talking Mama
ji? Shyly Sumi spoke up, ‘He has vanished from my space a long time back.’
‘What?’
‘Yes Mama ji.’
‘It means after joining NASA
my niece will be like Kalpana Chawla.’
‘No Mama ji ! Sumi said,
‘Why Kalpana Chawla?’
‘Then?’
‘Why not Sumitra Shukla?’
‘Look dear. It is a
far-fetched dream. It will take a lot of time. What will happen to your parents
who are worried for your marriage?’
Sumi was serious now, ‘I
will talk to them. They will understand.’
‘Will a Space Shuttle called
marriage ever pass through Sumi’s space.’
‘It may Mama ji. But first
let me make my own space!’ Mama ji’s visit was similar to ‘Udho Mohe Jog
Sikhavan Aae.’ In fact Mama ji has not come to Noida just like that. He had
come with a purpose. Though he posed that he had come just like that. Sumi’s
parents have sent him to find out what was going on in Sumi’s mind and what
were her views on marriage? Sumi’s Papa know that Sumi as entered into a
wedlock with her career but her mother did not believe in this. She wished that
Sumi should get married according to the traditions. She used to grumble, ‘She
is young. How will we face the society if she goes haywire?’ She would say,
‘Already we have been much defamed because of her living alone at Noida.’
Whenever she tried to talk to Sumi about marriage, Sumi just closed the topic
by saying, ‘Mummy. I don’t have time right now.’
‘You are 24.’ Mummy would
say, ‘When do you think the time will come.’
‘I will let you know when
the time will come.’ Sumi would reply lovingly.
But after some days, Mummy
would again bring forward the subject of marriage. At this Sumi would say,
‘Mummy, don’t you have any other subject besides marriage?’ ‘Yes, I have no
other subject. You are not the only one. I have one more daughter.’
‘But she is also studying?’
‘I don’t want to hear
anything. I want you to get married. You can continue with your studies at your
in-laws place.’
‘Oh Papa, Please explain
this to Mummy. The world has changed so much but nothing else enters in Mummy's
space except marriage .’
‘Your Mummy is right, dear,
‘Papa would say, ‘Like career, marriage is also necessary.’ In between their
arguments Papa found himself helpless. And this helplessness increased wen some
friend or relative came up with some new story.
And he would be depressed.
The other day Mr. Mehta came
coughing and panting and said, ‘Shukla ji, strange things are happening these
days.’
‘What happened?’
‘What happened! What has not
happened? The sky has come down to earth.’
‘Please tell clearly what
has happened?’
‘Oh Shukla ji, earlier
fathers used to rule over their sons but now sons are ruling over their
fathers.’
‘What do you mean?’
‘There is not one event to
tell you. There are 3 such events.’ Mehta ji was adding to the suspense.
‘Mehta ji will you tell me
something or go on creating this suspense.’
‘I have 3 doctor friends.
All of them are puzzled due to their sons.’
‘What does this mean?’
‘One is Dr. Saxena. His son
is an engineer in America. Now he is coming to India to marry.’
‘This is good.’ Shukla ji
said.’
‘Of course it is good.’
Mehta ji said, ‘But he is wasting lacs of rupees of his father.’
‘He must not be taking any
dowry.’ Shukla ji guessed’
‘No, no. Dowry has got
nothing to do with it. He is marrying a girl of his own choice. That too, in a
Pandit family.’
‘Then?’
‘For the 10-15 days he will
be staying here, he has demanded a western style room and bathroom.’
‘But Dr. Saxena must be
having attached bathrooms at his home!’
‘He has Shukla ji. But there
are no tubs and other accessories for steam bath etc. so the whole house is
being renovated. Dr. Saxena is happy with all this. He is happy that at least,
even if it is for the sake of marriage only, his son has remembered him.’ Mehta
ji added, ‘But if he would have sent some money, Dr. Saxena, at this old age,
would have been saved from unnecessary expenses.’
‘You are right.’ Shukla ji
commented in a worried tone.
‘What to do Shukla ji.
That’s the cost of being the father of a son. Now let me tell you about Dr.
Anand. He sent his son to Singapore for studies. After his studies he got a job
there and is getting 2 lac rupees per month. One day he made a phone call to
his father and told him that he wished to marry. Dr. Anand said that he was
also thinking of the same and that he had seen a girl. He asked his son to come
and see the girl and marry if she is OK. for him. Do you know what the son
said?’
‘What?’
'He said that he had already
chosen a girl. Then Dr. Anand asked the reason for his phone call.
He said that he wanted to
ask his father where he should marry. Singapore or India. Mehta ji forwarded
the story, ‘Shukla ji, Dr. Anand told me that he got very angry at this but
controlled himself and becoming practical suggested his son to marry wherever
he wished. He asked his son to tell him where he wished to marry and he would
be there. His son said that he would discuss it with ‘her’ and let him know.’
‘What does ‘her’ mean?’
‘It means his beloved. So he
discussed with his beloved and called back to tell his father that they will
marry in India. He further asked his father where he wished the marriage to
take place-Lucknow or Bangalore?’
‘Why Bangalore?’
‘Because the girl is from
Bangalore.’
‘I see.’
‘So Shukla ji, Dr. Anand
once again surrendered before his son. He told his son that he will be with him
irrespective of the place he marries. His son again said that he would discuss
it with her and let him know. Mehta ji was telling, ‘I asked Dr. Anand why he
surrendered before his son? Dr. Anand said that he was happy in his son’s
happiness. Dr. Anand further told me that his son has selected a girl and
arranged for his marriage on his own and there was nothing except bitterness
that he would achieve by expressing his disagreement. Dr. Anand also said that
at this age his son was drawing more salary then him so there was no harm in
accepting what he said. When I raised the question of caste, Dr. Anand said that
the world has become globalised. I know medical science. Caste or creed are
meaningless.. You know Shukla ji. Dr. Anand was fortunate. One day his son
called to tell him that hey would marry in Lucknow. He asked his father to go
for the dates and let him know.’ Mehta ji further said, ‘Dr. Anand was
fortunate but not Dr. Srivastava.’
‘What happened to him Mehta
ji.’ Shukla ji felt uneasy, ‘Nothing much. It was the same as was the case of
Dr. Anand surrendering before his son but in a short-cut.' Mehta ji went on
uninterrupted. 'His son is also a doctor in London. He was a student of Lucknow
Medical College. He got involved with a batchmate here only. The girl is from
Allahabad and belongs to a different caste yet their parents sat down and fixed
the dates of their marriage. Whenever Dr. Srivastava met me he always asked me
to be ready to accompany the Baraat to Allahabad. The marriage was fixed for
some date in November. Suddenly one afternoon, I saw Dr. Srivastava coming out
of his car with his son and daughter-in-law and lots of flowers and garlands. I
was surprised and asked if he was coming back after engagement. He told me that
he was coming from Allahabad after attending the marriage. I complained to him
for not taking me with the Baraat. Dr. Srivastava told me that there was no
Baraat and they themselves somehow reached in time to attend the ceremony. He
further explained that 2 days earlier they received a call from their son to
reach Allahabad for the marriage as he was also taking a flight for Allahabad.'
Shukla ji asked a simple
question, 'Why he did so?'
'Because his beloved could
not live without him/ She wanted to be with him in London and her parents were
not ready to send her without marriage.'
'That's strange!' Shukla ji
went into a silent mode after saying this. Mehta ji was also tired now after
speaking this much. He also felt lighter and relieved after sharing everyhting
so he left.
Mehta ji had left but now
Sumi's Mummy was in the room, all set to argue with Shukla ji. Shukla ji knew
that it was difficult to escape from her. He was about to go out of the house
when Sumi's mother stopped him. She had been moving in and out of the room on
the pretext of serving tea and had
overheard the entire conversation. She called out, 'Sumi's Papa. Please don't
go anywhere.'
'Why? What had happened?'
'Nothing. Just make a call
to Sumi and ask her about the marriage?'
'Let her complete her
studies at least.'
'No way. All the stories
Mehta ji told were of sons of rich people. And they were sons not daughters,
but Sumi is our daughter. I will die if she also becomes adamant and anything
goes wrong. She started crying. Sumi's Papa consoled her, 'Don't cry. I will
talk to her.'
'No, talk now.'
'Let me see some boy first.
Then I will ask for her consent.'
'What?'
'I mean her opinion.' Shukla
ji said, 'I am worried for her studies and career also. When she had said that
she will marry after completing her MCA then why should I disturb her?'
She rebuked, ‘You don’t
understand anything. You should understand that you are the father of a
daughter and not a son. Don’t try to compete with fathers of sons.’
‘I understand dear!’ He
said, But I also understand the emotions of my daughter.’ With this Shukla ji
motioned with his hand to close the chapter.
But the chapter was not
closed yet.
The MCA results were out
after a few days and Sumi’s selection to Bhabha Atomic Research Centre was
almost certain. There was happiness all around at the home. But Sumi’s Mummy
was still worried for Sumi’s marriage. She was not able to force Sumi’s Papa.
He was carried away by the successful career of his daughter. A defeated Sumi’s
Mummy sought the help of her father-in-law. She pleaded to him, ‘Please explain
to your son that boys and not girls pursue a career.’
Sumi’s grandfather took a
serious note of her daughter-in-law's worries and tried to explain everything
to Sumi's Papa in terms of family's honour. Without any If and buts, he
surrendered before his father and said, ‘She is your grand daughter also. Why
don’t you talk to her directly.’ Sumi’s grandfather made excuses on the pretext
of his old age and said, ‘She belongs to a new generation and is young blood.
What if she misbehaves? I will be pained in this old age.’ Sumi’s father
reassured him that Sumi was not from the disobedient lot of the new generation.
He said, ‘Sumi is watching the world. She is civilised and cultured. There is
no harm in talking to her.’
Sumi’s grandfather accepted
the challenge. He, in many rounds, tried to explain everything to Sumi. He was
still at finding solution to Sumi’s careeristic reasoning when the news came
that Sumi was selected as nuclear scientist at Bhabha Atomic Research Centre.
Preparations began for her going to Mumbai.
Mummy’s and grandfather’s
worry for Sumi’s marriage remained where they were and Sumi left for Mumbai.
Sumi’s Mummy counted her age
on fingertips and every now and then coaxed her father, ‘Sumi is 26-27 now.’
But, most of the time, Sumi’s Papa remained silent. However, when Mummy would
persist then he would say, ‘Born out of you, your daughter Sumi has changed.
You also change yourself. Marriage is not the only meaning of life. 26-27 is
not overage for a brilliant girl like Sumi. Sumi is a nuclear scientist now.
Let her decide about the science of her life.’
There was one more truth
that there was no boy in his sight who could match Sumi. It was also true that
he had not much money left with him to marry Sumi with a boy of her match. Much
money was spent on Sumi’s education. Expenses towards the studies of the
younger daughter and son were also on the rise. His son and daughter were
pursuing their B. Tech and MBA. The government had put a ban on coaching. There
was no way Shukla ji could arrange funds for her marriage. But Sumi’s Mummy’s
worries were boundless. Every now and then she calculated Sumi’s age and said,
'After all I am the mother of a daughter.’ Then she would add, ‘At her age I
was the mother of three. My two children had started going to school. ‘Sorry
Mummy, no discussion regarding marriage’ is the answer I get every time.’
Sumi’s Papa would become spiritual on her continuous whining. Some times he
would become a psychologist and say, ‘Just see, when children are small and not
even able to speak, then too a mother understands what they want. But when the
same children grow old and very clearly explain what they want, a mother is not
able to understand!’ ‘Men can never understand a mother’s heart.’ An almost
helpless Sumi’s mother would say and go into the kitchen and pour all her anger
and frustration on the utensils.
One such day, when Sumi’s
mother was in the kitchen, Mehta ji arrived with his wife.
Mehta ji, who had been a
story letter had himself become a story.
Mehta ji’s middle son, after
completing his MBA was working with a private company at Lucknow and was having
an affair with a colleague in his office. He went out openly with her. Not only
did he went out, very often he brought her home and was bent upon marrying her.
She did not belong to his caste but Mehta ji had no objections to it. He was
ready but was not able to make his wife accept her. His wife had many
objections and some of these objections were very serious. One was that she was
going out with her son before her marriage. Secondly although not yet married,
she used to come to Mehta’s place. The third serious objection was that
although she came to her place before getting married, she never touched her
feet. In fact her not touching Mrs. Mehta’s feet was the most important
objection. Once Dr. Anand said jokingly, ‘Why should she touch your feet?’ ‘I
am her mother-in-law.’ Mrs. Mehta was furious. ‘She should touch my feet.’ Tell
me, if this is her behaviour before marriage and if this is the way she avoids
me before marriage, what will she do after marriage?’
Dr. Anand smiled, ‘Mehta ji,
make preparations of marriage. Bhabhi ji has already declared herself as her
mother-in-law. So there is no problem now.’
Mrs. Mehta dissuaded, ‘Why
no problems? There are so many problems.’
‘Bhabhi ji you are so
beautiful. You look so young. May be she regards you as her friend and does no
touch your feet.’
‘Then why does she address
me as Mummy ji?’ Mrs. Mehta questioned again. ‘Bhai Sahab, she doesn’t regard
me as a friend. She regards me as her enemy, hurts me and humiliates me!’
‘But he loves your son.’
‘She doesn’t love him!’ Mrs.
Mehta’s accusation continued in the discussions. She has trapped my son to save
her father's dowry.'
'But do you need the dowry?'
'Who doesn't want?'
Well, I don't want. It hurts
as well as humiliates. I didn't speak a word about dowry while arranging my
son's marriage.' Dr. Anand clarified.
'How can you talk of dowry
when your son fixed his marriage on his own?'
'No Bhabhi ji, you are
mistaken. Mehta ji knows that I had not spoken a word about dowry at the place
where I was arranging my son's marriage.'
Mehta ji came to his rescue,
'Dr. Anand is right. Our happiness lies in the happiness of our children. You
also leave your stubbornness.'
'Why should I?'
Dr. Anand also advised Mrs. Mehta on the same
lines and said, 'Think what will be your position if your son marries without
your consent? Times have changed Bhabhi ji. You also change yourself.'
But Mrs. Mehta was not
agreeing. Everything stopped on the point that the would be daughter-in-law was
not touching her feet.
So, when Mehta ji and his
wife came to Shukla ji's place, Sumi's mother and her grandfather were
discussing about Sumi's marriage. Shukla ji was a silent spectator.
And Sumi?
Sumi was sitting at the
Bhabha Atomic Research Centre nurturing a new dream. The dream of joining NASA.
But here in Shukla ji's drawing-room, Sumi's
mother's dreams were being shattered. She felt that now she will not be able to
solemnise the kanyadaan of her daughter. She was discussing this problem with
her father-in-law when Mrs. and Mr. Mehta dropped in and attached their own
problem with her problem. They asked Sumi’s grandfather to suggest a remedy to
their problem as he was a veteran and experienced person. They asked him the
way to bring back their children on the right path so that they learn how to
respect the wishes of their parents.
But Sumi’s grandfather
declared himself unable to find a remedy to his third generation’s love towards
career and their disapproving behaviour. However, he came forward with a new
hypothesis that all this was due to the English Medium. He said, ‘Education of
English medium, fooding of English Medium, culture of English medium and life
style of English medium are the root cause behind the spoiling of our children.
They can never improve in this English medium.’
Shukla ji remained a silent,
subdued spectator through out this episode.
But Sumi’s career was not
subdued. The probabilities of her going to NASA became a topic of discussion in
many pockets of the city. It was discussed at Shukla ji's college. His colleagues
eyed him with envy while the students' respect made him hold his head high. All
this made him remember the song, ‘Dil Hai Chhota Sa, Chhoti Si Aasha, Masti
Bhare Tan Mein, Bholi Si Aasha, Chaand Taaron Ko Chhoone Ki Aasha, Aasmano Mein
Udne Ki Aasha’, which his Sumi used to sing when she was a teen aged girl.
He was not able to judge the
depth of her heart when Sumi used to sing this song. He never realised that her
innocent daughter was really hoping to fly over the skies. Because then she
also sang ‘Kuchi Kuchi Rakma’ and sat down to study grumbling about the
homework and the number of chapters to be revised.
And today, she had almost
taken a plunge in the skies. He used to think if his Sumi matched or surpassed
Kalpana Chawla.
He asked such questions to
himself and passions inflamed within himself.
There were others too in the
society who were inflamed by Sumi’s achievements. Staff of Shukla ji’s college,
relations, people who knew them, people of the locality, rogues and scoundrels.
Various comments also flew in the air.
Most of these comments
pertained to her being unmarried. Some said, ‘In Mumbai, women live with men
without even marrying them.’ Others said, ‘A scientist’s world is always behind
curtains. No one knows what happens behind the curtain.’ Some would comment on
the possibilities of going to NASA by saying, ‘She will run away with some
white man. An Indian is not in her fate.’ Such remarks and comments, sometimes
directly and sometimes filtered, reached Shukla ji, reached his heart through
his eyes and ears and bruised his heart. But Sumi’s shining career proved to be
on antibiotic for such wounds.
He seldom used to think if
people would have passed such vulgar and indecent remarks had Sumi been a boy.
Then he wished Sumi to be a boy instead of a girl. But the very next moment he
used to be proud of Sumi’s career and the glory, pride and satisfaction she had
provided to her lower middle income group’s father. Only Sumi, his daughter
Sumitra could have done this.
Thinking alone Shukla ji
always convinced and satisfied himself in this way.
But one day, while talking
to Sumi over phone, he broke down. A short while ago someone commented that he
was living on his daughter’s earnings and so not marrying her. He was nursing
the wound inflicted by this comment when Sumi called. He cried over the phone.
‘Dear help me. I have broken down.’
‘What happened Papa?’ Sumi
was nervous. Shukla ji could not speak a word.
‘What happened Papa.’
‘I have broken down dear. I
am all alone, you don’t know what all I am going through.’
‘About my marriage Papa.’
‘Yes, dear.’ His voice was
still choked. ‘Now people have started saying that I am not marrying you
because I am living on your earnings. Tell me dear, what should I do?’ ‘Papa, I
believe you are with me.’ What will happen to me if you will lose courage.’
Sumi also wept. ‘Papa, you are the only one who is with me. I have come so for
just because of the faith I have in you. Please trust me for some more time. I
am with you Papa.’ Please Papa! Please!’
‘Its all right Sumi. I am
also with you. But think of me also dear. I don’t have to go America to join
NASA. I have to live in this society. Our spaces are different.’
‘No, Papa. Without you,
there is no space of mine. The space I have formed has been formed with you in
mind. We have become nuclear scientists for the betterment of society. You are
the strength behind me. Control yourself and trust me. Don’t give a ear to such
comments.’
‘OK dear. Take care of
yourself.’ Shukla ji closed the topic.
But the topic was not
closed.
Sumi’s Mummy was once again
busy in making preparations to send his Mama ji to Mumbai to convince her once
again to marry and settle down. Once she exceeds the age, this science is not
going to help.
Mama ji went to Mumbai.
Sumi understood his
intentions the moment they met. She smiled and said, ‘Phir Udho Mohe Jog
Sikhawan Aae’ ‘What Sumi.’ Mama ji protested, ‘You started once again.’
‘What? OK. OK., I am sorry.’
In the evening they sat
together. Mama ji said, ‘So Sumi, your struggle is over now! What is the
problem now?’
‘My struggle has started
now.’
‘What ?’ Mama ji was taken
aback. ‘What were you doing till now?’
‘Those were the steps prior
to the struggle.’
‘’What ?’
‘Yes Mama ji.’ She said, ‘I
don’t have to clear files at the Secretariat like you. Neither do I have to go
back home after lecture like Papa. Here we put down our years on each and every
detail. Yet there is no guarantee that we can achieve anything.’
‘Anyway, leave all this and
come to the point.’
‘Mama ji, why don’t you talk
to Papa? Why don’t you observe his understanding.’
‘It is because I am not the
husband but the younger brother of your mother. Your Mummy can slap me even
today.’
‘I am also ready to be
slapped. Please give me some more time and explain it to Mummy also.’
Mama ji could not stand
before Sumi’s ‘Please’.
Unsuccessful, Mama ji
returned back from Mumbai.
But the city’s lanes, roads
and drawing rooms were still flooded with discussions on Sumi. Some praise her
while some pass vulgar and indecent comments while some curse her father Shukla
ji.
But now all this do not
reach Sumi’s space. All this automatically ‘Slip’ from the struggle density of
her space.
And Sumi’s Papa Shukla ji?
Shukla ji’ second daughter
has joined a multinational company at Delhi after completing her MBA. Shukla ji
is busy in settling her there. He does not care about all the comments and
remarks.
Of course, there is still
room in Sumi’s space to encourage her sister. She doesn’t ‘Slip' on this point.
(Translated by Shahid
Maqbool)
(Courtesy : Vaagarth)
Dayanand
Pandey
Born in a village Baidauli
of district Gorakhpur on 30th January, 1958. M.A. with Hindi.
Lok Kavi Ab Gaate Nahin,
Apne-Apne Yudh, Darakte Darwaze, Jaane-Anjaane Pul (Novel), Ek Genious Ki
Vivadaspad Maut, Sunder Ladkiyon Wala Shahar, Badki Di Ka Yaksh Prashan, Samwad
(Story collection), Premchand Vyaktitva Aur Rachnadrishti (Edited) and 'Mere
Priye Khiladi' Hindi translation of Sunil Gavaskar's famous book 'My Idols'
स्वागत.................वंदन...... ......... .अभिनन्दन............ ..मेरे प्रिय मित्र.. ................जय श्री राम....
ReplyDeletebehtreen kahani
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