दयानंद पांडेय
दूसरे महायुद्ध के समय बनी यह हवाई पट्टी आठ लोगों की जान की इस क़दर दुश्मन हो जाएगी, यह उसे क्या, किसी भी को नहीं मालूम था। लग रहा था कि जान अब गई कि तब गई। बस जहाज के उस जीप से टकरा जाने भर की देर थी। दोनों पायलट लगातार एक साथ गालियां और भगवान, दोनों उच्चारते जा रहे थे। सुबह का समय था। लग रहा था गांव के सारे लोग हवाई पट्टी पर ही बसने आ गए हों।
या कि कोई मेला लगा हो, सब लोग मेला देखने आ गए हों। उसने और भी हवाई पट्टी और हवाई अड्डे देखे थे। पर ऐसी हवाई पट्टी भगवान न किसी को दिखाए। उसने बिहार में बन रही नई सड़कों पर खलिहान होते देखा था। हाइवे पर हेलीकाप्टर उतरते देखा था। पर यहां तो हवाई पट्टी पर उपले पाथे जा रहे थे। न सि़र्फ पाथे जा रहे थे उनके ढेर के ढेर लगे हुए थे। चारपाइयां बिछी हुई थीं। साइकिल, मोटर साइकिल और जीप ऐसे चल रही थीं गोया हवाई पट्टी नहीं सड़क हो। लोग ऐसे टिके-बसे पड़े थे वहां जैसे वह हवाई पट्टी नहीं धर्मशाला हो! ग़नीमत कि कोई झोपड़ी या घर नहीं बना था। यह सारा दृश्य देख कर पायलट ने जहाज में बैठे नेता जी से कहा कि, ‘वापस लखनऊ चलते हैं। यहां लैंड करना जान जोखिम में डालना है।’
‘कहीं कुछ नहीं।’ नेता जी बोले, ‘जुगाड़ बना कर किसी तरह उतारो।’
‘क्या?’ पायलट चीख़ा।
‘अरे लैंड करो!’ नेता जी भी चीखे़।
‘चलिए देखते हैं।’ पायलट अबकी चीख़ा नहीं।
लेकिन नीचे वह क्या सभी देख रहे थे कि भीड़ बढ़ती जा रही थी। लोग दौड़-दौड़ कर हवाई पट्टी पर आ रहे थे। औरत, बच्चे, बूढ़े जवान सब के सब। हवाई पट्टी के चारों ओर फैले गेहूं के खेतों में भी लोग ही लोग थे। जो हवाई पट्टी की तरफ बढ़े आ रहे थे। यह नज़ारा देख कर पायलट फिर बुदबुदाया, ‘मुश्किल है सर।’
‘चाह लो तो सब आसान है, न चाहो तो सब मुश्किल है।’ नेता जी बोले, ‘यह प्रेस पार्टी अगर समय पर मुख्यमंत्री जी के कवरेज में नहीं पहुंची तो समझ लो कि पेमेंट भी तुम्हारा फंस जाएगा। लाखों रुपए तुम्हारी कंपनी के फंसेंगे और हमारी तो जो फज़ीहत होगी सो होगी ही।’
‘ओ.के. सर!’ पेमेंट की बात पर पायलट थोड़ा चिंतित हुआ और सेफ़ लैंडिंग की जुगत में लग गया। फिर भी बोला, ‘सर यह हेलीकाप्टर नहीं प्लेन है।’
‘तो प्लेन जगह देख कर ही प्लेन को लैंड करो।’
‘ओ.के. सर !’ पायलट बोला, ‘आई ट्राई माय बेस्ट !’
‘नहीं भाई, जान जोखिम में मत डालो।’ देवेंद्र बोला, ‘जान देकर मुख्यमंत्री को कवर करने का शौक़ नहीं है हम लोगों को। ख़बर लिखने आए हैं, ख़बर बनने नहीं।’
‘ओ.के. सर! ओ.के. सर!’ पायलट थोड़ा रिलैक्स हो कर बोला।
नेता जी ने हाथ जोड़ कर होठों पर उंगली रख कर देवेंद्र से चुप रहने का अनुरोध किया। देवेंद्र चुप हो गया।
पायलट प्लेन को उस हवाई पट्टी से कम से कम पचास क़िलोमीटर दूर उड़ा कर ले गया। हवाई पट्टी पर उपस्थित जनता को यह एहसास कराने के लिए कि जहाज अब यहां नहीं उतरेगा। जहाज तो गया! फिर कोई पांच सात मिनट प्लेन को पायलट यूं ही इधर-उधर उड़ाता रहा। दूसरा पायलट नक्शे पर कंपास घुमाता देखता रहा। फिर अचानक पायलट प्लेन को फिर उस हवाई पट्टी के पूर्वी छोर पर ले आया और ख़ूब नीचे तक ले आकर लगातार यों मंडराता रहा गोया बस अब वहां उतरने वाला हो! सारी की सारी जनता वहीं बटुर आई। टकाटक ऊपर ताकती हुई। पायलट मसखरी पर उतर आया। नेता जी से मुसकुराते हुए नीचे देखता हुआ बोला, ‘उतार दूं सर यहीं पर!‘
‘अरे नहीं। सारी पब्लिक हमें उतरते ही मार डालेगी। अगर एक को भी खरोंच लगी तो!’
‘अच्छा तो आप को लग रहा है कि आप प्लेन नहीं कार में हैं कि पब्लिक खरोंच लगने पर आप को मार डालेगी?’ रोमी बोला, ‘अरे हुजूर, यह प्लेन है। यहां जो लैंड कर गया प्लेन तो पहले प्लेन के परखचे उड़ेंगे, हमारी, आप की चटनी बनेगी, जहाज में आग लगेगी, फिर हम सब ईंट की तरह उस में पकेंगे। और ये बेचारे तो जाने कहां होंगे।!’
‘तो?’ नेता जी घबराए।
‘अरे ऐसा कुछ नहीं होगा सर! आप बिलकुल मत घबराएं।’ एक पायलट ने फिर आश्वस्त किया। बोला, ‘अभी तो पब्लिक का मज़ा लीजिए।’ कह कर पायलट सचमुच प्लेन को बिलकुल एयर फ़ोर्स के किसी लड़ाकू विमान की तरह कलाइयां खिलाते हुए लगातार हवाई पट्टी के पूर्वी छोर पर बिलकुल नीचे तक लगातार घुमाता रहा। गोल-गोल। गोल-गोल घुमाते हुए अचानक उस ने फर्राटा भरा, थोड़ा ऊपर गया और हवाई पट्टी के पश्चिमी छोर पर जहां सिवाय उपले और चारपाइयों के कुछ नहीं था, जहाज को अचानक लैंड कर दिया। अब जहाज रनवे पर बेतहाशा दौड़ रहा था। अपनी पूरी स्पीड के साथ। दूर-दूर तक ख़ाली थी हवाई पट्टी। सारा जन सैलाब पूर्वी छोर पर था। पायलट अपनी डिप्लोमेसी और पायलटी के अंदाज़ पर मन ही मन मगन होता हुआ नेता जी को इंगित कर बोला, ‘सर अब तो आपको चीफ़ मिनिस्टर साहब फज़ीहत नहीं करेंगे?’
‘नहीं भई। अब तो ठीक है!’ नेता जी बोले।
‘अरे बाप रे!’ पायलट अचानक खूब ज़ोर से चीख़ा।
‘अब क्या हुआ?’ नेता जी घबराए।
‘वह देखिए।’ पायलट ने बाईं तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘साला खुद भी मरेगा, हम लोगों को भी मारेगा।’
सबका जी धक से रहा गया।
एक जीप प्लेन के समानांतर हवाई पट्टी पर दौड़ रही थी। न सिर्फ़ दौड़ रही थी प्लेन से बाक़ायदा होड़ किए हुए लगातार आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी। बिना ख़तरे की परवाह किए। जीप का ड्राइवर न सिर्फ़ प्लेन से होड़ किए था बल्कि पायलट को लगातार ललकारता चल रहा था जैसे देखें कि, कैसे हम से आगे जा पाते हो, देखें तो भला? वह एक हाथ से स्टेयरिंग संभाले दूसरे हाथ से इशारों-इशारों में लगातार ललकार रहा था।
‘अगर कहीं आगे से मोड़ कर सामने आ गया या बगल में ही कहीं से टकरा गया तो समझिए प्रलय है सर।’ जीप वाले को इंगित करते हुए पायलट बौखला कर बोला।
‘तो उसको हाथ के इशारे से तुम भी रोको।’ नेता जी बोले, ‘रुकने को कहो।’
‘सर यह जीप नहीं प्लेन है!’ पायलट हड़बड़ाता हुआ चीख़ा, ‘कि उस की तरह हाथ बाहर निकाल कर इशारे करूं!’
प्लेन और जीप की समानांतर दौड़ जारी थी। और सब की जान सांसत में।
‘बस सर ईश्वर से प्रार्थना कीजिए सभी लोग।’ पायलट हड़बड़ी में चीख़ा। सामने दूर से भीड़ भी पास आती दिख रही थी।
सबके हाथ पांव फूल गए। सबने आंख मूंदी और हाथ जोड़ लिए। देवेंद्र ने देखा अपने को वामपंथी शो करने वाले कामरेड चंद्रशेखर ने भी आंख मूंदी, हाथ जोड़ा और ज़ोर-ज़ोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। तो विनय महामृत्युंजय के मंत्र पढ़ने लगा। देवेंद्र और बाक़ी साथी आंख बंद कर निःशब्द बैठ गए। चंद्रशेखर का हड़बड़ाया हुआ हनुमान चालीसा पाठ देख कर एक क्षण के लिए देवेंद्र को हंसी आ गई। पर मृत्यु की कल्पना करते ही वह भी संयत हो कर आंख मूंद कर ईश्वर को याद करता बैठा रहा।
अचानक प्लेन एक झटके के साथ रुक गया। पायलट ने इमरजेंसी ब्रेक लगाया था। प्लेन रुकते ही दोनों पायलटों ने एक साथ हाथ जोड़ कर ईश्वर को धन्यवाद दिया। बोले, ‘थैंक गॉड!’
पर सामने दौड़ती आती हुई भीड़ थी। दोनों पायलट फिर बोले, ‘ओह गॉड!’
पर सामने दौड़ती आती हुई भीड़ थी। दोनों पायलट फिर बोले, ‘ओह गॉड!’
‘क्या सर सिक्योरिटी के लिए नहीं कहा था एडमिनिस्ट्रेशन से?’ नेता जी को इंगित करते हुए एक पायलट ने कहा।
‘क्या पता?’ नेता जी आती भीड़ देख कर खुश होते हुए बोले, ‘पार्टी आफ़िस वालों ने कहा तो होगा।’
‘कहा होता तो कम से कम दो सिपाही तो नज़र आते यहां।’ एक पायलट घबराते हुए बोला, ‘प्लेन तो हमने संभाल लिया। सेफ लैंडिंग करवा दी पर अब यह भीड़ कौन संभालेगा?’
‘मैं संभालता हूं।’ नेता जी दहाड़ कर बोले, ‘फाटक खोलो।’
‘क्या बताऊं हेलीकाप्टर होता तो फ़ौरन टेक आफ़ कर लेता। अब यह प्लेन है, टेक आफ़ के लिए रन ज़रूरी है। रन कैसे हो इस भीड़ के आगे?’
‘भीड़ से तुम लोगों को परेशानी क्या है?’ नेता जी ठनके।
‘अरे यह भीड़ प्लेन के एक-एक पुर्जे उठा ले जाएगी। किस-किस को रोकेंगे आप?’ पायलट बोला, ‘अब आप लोगों की ज़िम्मेदारी है कि सभी लोग मिल कर भीड़ संभालिए। प्लीज़ प्लेन के पास किसी को आने मत दीजिएगा।’
‘यह कैसे संभव है?’ देवेंद्र बोला।
‘यही तो - यही तो!’ एक पायलट बड़े अफ़सोस के साथ बोला। साथ ही उसने प्लेन का फाटक खोल दिया और कहा, ‘फिर भी देखिए जो बन सके।’
फिर, एक एक कर सब लोग प्लेन से उतरे। और दोनों पायलट समेत आठों लोग प्लेन को चारों ओर से घेर कर हाथ जोड़े हुए खड़े हो गए। फिर देवेंद्र ने देखा कि भीड़ तो चारों तरफ से आ रही थी। कुछ लोग साइकिल, मोटर साइकिल और स्कूटर पर भी थे। वह जीप वाला भी अपनी जीप ले कर पास तक आ गया था। मूछों पर ताव देता उस का ड्राइवर बिलकुल विजेता मुस्कान लिए खड़ा था। उधर भीड़ थी कि पास आती जा रही थी।
हम सभी असहाय खड़े थे। हाथ जोड़े। रोमी ने चंद्रशेखर को छेड़ते हुए कहा, ‘कामरेड!’
‘हां, बोलो!’ चंद्रशेखर बेफिक्री से बोला।
‘कुछ नहीं कामरेड अपना हनुमान चालीसा एक बार फिर शुरू कर दो!’ रोमी बोला।
‘क्या बेवकूफी की बात करते हो!’ चंद्रशेखर बिदक गया।
‘नहीं तब जान बचाई थी, अब जहाज बचाओ।’
‘चलो पहले भीड़ फेस करो!’ चंद्रशेखर गंभीर हो कर बोला।
लेकिन भीड़ का पहला जत्था आ चुका था। यह भीड़ थोड़ी शरीफ थी। हाथ जोड़ने भर से मान गई थी। और थोड़ी दूर पर खड़ी हो कर बड़े रश्क से जहाज को देखने का सुख लेने लगी। एक लड़का अपनी साइकिल पर बैठे-बैठे ही दूसरे लड़के से बोला, ‘ई तो बहुत छोटा जहाज है। इस से बड़ा-बड़ा जहाज तो हम लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डा पर देख चुका हूँ।’
‘एतना नज़दीक से?’ दूसरे लड़के ने अपनी साइकिल पर टेक ले कर खड़े होते हुए पूछा।
‘हां, एतना नज़दीक से तो नहीं।’ वह ज़रा रुका और बोला, ‘पर लखनऊ के चिड़िया घर में खड़े जहाज में तो अंदर भी गया हूँ। वो भी इस से बड़ा है।’
‘वो उड़ता भी है क्या?’ उस लड़के ने फिर पूछा।
‘हां, उड़ता तो नहीं है।’
‘पर यह तो उड़ता है। वह बोला, ‘असल में तो ई नेता वाला जहाज है।’
‘तुम को कैसे पता?’
‘एक बार और एक नेता ऐसे ही जहाज में कई साल पहले यहां आए थे। वो क्या नाम था?’ वह जैसे याद करते हुए बोला, ‘हां कांशीराम।’
‘अच्छा?’ बड़े कौतूहल से पहले वाले से पूछा।
‘हां, पर तब फ़ोर्स बहुत थी। पूरी हवाई पट्टी चारों तरफ से फ़ोर्स घेरे हुए थी। कोई नज़दीक नहीं आ पाया था। बल्कि कुछ लोगों की पुलिस वालों ने पिटाई भी कर दी थी। बस सब दूर-दूर से देखते रहे।’
‘पर अब की तो फ़ोर्स नहीं आई है।’
‘क्या पता आ रही हो।’ वह बोला, ‘जहाज पहले आ गई, फ़ोर्स लेट हो गई हो!’
‘हो सकता है।’ मुंह पिचकाते हुए दूसरा बोला।
भीड़ बढ़ती और पसरती जा रही थी। सौ से अधिक लोग हो गए थे। इन के आगे आठ लोगों का हाथ जोड़ कर मना करना बेमानी हो गया था। अब लोग प्लेन को न सिर्फ़ क़रीब से बल्कि बड़े कौतूहल से छू-छू कर देख रहे थे। कोई प्लेन की बाडी छू रहा था, कोई पहिए, तो कोई उस के डैनों को लपक कर छू लेना चाहता था।
दोनों पायलटों की सांस ऊपर नीचे हो रही थी। होश गुम थे।
रोमी लोगों को मना करने के चक्कर में दो बार पिटते-पिटते बचा था। चंद्रशेखर किनारे जा कर अख़बार बिछा कर बैठ गया था। किसी से कुछ कहना, या मना करना दीवार में सिर मारने के बराबर हो गया था। एक शोहदा टाइप लड़का प्लेन के अंदर घुसने के जुगाड़ में था। देवेंद्र से वह कह रहा था, ‘अंदर से भी देखना है!’ बिलकुल धौंसियाने के अंदाज़ में। देवेंद्र ने हाथ जोड़ कर पायलट की ओर इंगित किया। वह लड़का पायलट से भी पूरी दबंगई से बोला, ‘अदर से भी देखना है।’
उसके साथ दो लड़के और आ जुड़े थे। लग रहा था कि पायलट ने अगर ग़लती से भी इंकार कर दिया तो पिट ज़रूर जाएगा। अजब हौच-पौच मचा हुआ था। हालत यह थी कि अगर कोई भी किसी को रोके तो उस का पिट जाना तय था। और संभव था कि पूरी भीड़ उसे पीटने लग जाती। लेकिन पायलट होशियार था। लोगों का मनोविज्ञान वह भी पढ़ रहा था। तो जब उस शोहदे टाइप लड़के ने अपनी ख्वाहिश फिर से दुहराई और पूरी दबंगई से कि, ‘अंदर से भी देखना है।’ तो पायलट ने तुरंत फुर्ती दिखाई। हाथ जोड़ कर बोला, ‘हां, भइया बिलकुल!’ और उस ने जोड़ा, ‘आइए!’ फिर लड़के को ले कर प्लेन के गेट की तरफ पूरी मस्ती से चला। देवेंद्र हैरत में पड़ गया उस पायलट की मस्ती को देख कर। वह भी इस तनाव में। वह कुछ अनिष्ट की चिंता में पड़ गया। लेकिन वह पायलट तो उन लड़कों को ले कर प्लेन के गेट तक गया और अचानक ठिठक कर रुक गया। शोहदों की अगुवाई कर रहे लड़के के कंधे पर हाथ रख कर बाक़ी लड़कों से भी वह पायलट मुखातिब हुआ, ‘भइया आप सब तो पढ़े लिखे लोग दिखते हैं।’
‘हां, हां बिलकुल!’ सभी लड़के लगभग एक सुर में बोले।
‘चलिए यह तो बहुत अच्छी बात है।’ पायलट बोला, ‘यह हम लोगों का बड़ा भारी सौभाग्य है भइया कि आप पढ़े लिखे लोग मिल गए।’
‘वो तो है।’ एक लड़का अकुलाते हुए बोला, ‘पर अंदर तो ले चलो!’
‘हां, भइया ले तो चलते हैं। पर एक समस्या है।’ पायलट ज़रा रुका और अंदाज़ा लगाया कि उस का दांव सही पड़ा है या नहीं। और जब उस को लगा कि वह सही जा रहा है तो बोला, ‘समस्या यह है कि अभी आप को अंदर ले तो चलता हूं।’ वह फिर ज़रा रुका और भीड़ की तरफ हाथ दिखाते हुए बोला, ‘पर जो कहीं पीछे-पीछे सारी जनता जनार्दन भी आ गई जहाज के अंदर तो हम आप तो फंस ही जाएंगे, प्लेन को भी कहीं नुकसान पहुंच गया, चरमरा गया, आग लग जाए या कुछ और हो जाए। अंदर जा कर कौन क्या कर दे, कौन जानता है?’ वह धीरे से बोला, ‘आप लोग तो पढ़े लिखे हैं और ज़िम्मेदार भी दीखते हैं। तो आप लोग तो कुछ गड़बड़ नहीं करेंगे। पर ये जनता जनार्दन! किस-किस को और क्या-क्या रोकेंगे?’
‘ये तो है!’ लड़का चिंतित हुआ।
‘तो भइया ऐसा करिए कि आप लोग थोड़ी ज़िम्मेदारी संभाल लीजिए।’ पायलट बोला, ‘भीड़ को थोड़ा जहाज से दूर करवाने में हम लोगों की मदद कीजिए।’ पायलट बोला, ‘आप लोग लोकल हैं और ज़िम्मेदार भी हैं। पढ़े लिखे तो हैं ही। चाहिए तो अपने जैसे कुछ और दोस्तों को ले लीजिए बस जनता जनार्दन को जहाज से एक फर्लांग दूर भेज दीजिए!’
‘फिर?’
‘फिर क्या आप सब भइया लोगों को हम चल कर अंदर से जहाज पूरा का पूरा दिखा देंगे।’ उस ने जोड़ा ‘जहाज की सीट पर बैठा दूंगा।’
‘ठीक है, पर धोखा मत देना!’ लड़के ने पायलट को तरेरते हुए कहा।
‘अरे नहीं भइया आप क्या बात कर रहे हैं?’ पायलट बोला, ‘हम अपने वादे के पक्के हैं!’
‘ठीक है!’
‘और भइया देखिएगा कि कुछ गड़बड़ न हो। जहाज में कोई तोड़फोड़ नहीं करे। आखि़र कुछ गड़बड़ होगा तो आप लोगों का इलाक़ा है, आप ही लोगों की बेइज्ज़ती होगी! और जो सब कुछ सही सलामत रहा तो भइया आप ही लोगों का नाम रोशन होगा।’
‘घबराओ मत!’ लड़के ने पायलट की पीठ पर पूरी दबंगई से हाथ रखा, ‘अभी हम सब को किनारे करवाते हैं।’ कह कर उस ने अपने साथियों को इशारा करते हुए कहा, ‘चलो जी, इन सब को पहले हटवाओ।’
भीड़ अब तक मक्खियों की तरह पूरे जहाज के इर्द गिर्द छा गई थी। जहाज का ऊपरी हिस्सा छोड़ कर हर जगह भीड़ ही भीड़ थी। मक्खियों की तरह छाई यह भीड़ उड़ाने पर मक्खियों की तरह उड़ने वाली भी नहीं थी। और तो और आस पास के गांवों से भीड़ चली आ रही थी गोया जहाज नहीं उतरा हो, मेला लगा हो। फिर बच्चे, जवान, बूढ़े सभी की ललक, उत्साह, लगन और उछाह कोई कैसे रोक सकता था भला? अपने पूरे भोलेपन, अपनी पूरी मासूमियत, अपनी पूरी सहजता और पूरी निष्ठा से जहाज को छू कर, देख कर और जी कर ये गांव वाले अपने को धन्य कर रहे थे। जिस नैसर्गिक सुख में वह आकंठ डूबे पड़े थे, आस पास के खेतों में फूले सरसों के पीले फूलों की मादकता और गेहूं की बालियों में भर रहे दूध का दुलार भी इन के सुख के आगे अब लजा रहा था। इन के चेहरों पर छाई अनकही हरियाली के आगे गेहूं के खेतों की हरियाली पानी मांग रही थी। ख़ास कर अबोध बच्चों की आंखों में समाई कौतूहल भरी तरलता उन के रंग बिरंगे स्वेटरों में और चटख हो रही थी। किशोर और जवान हो रही लड़कियों की इस जहाज को छूने की तड़प ऐसे लग रही थी गोया कोई ओस की बूंद बस अभी-अभी किसी फूल या पत्ती पर टपकी हो और अभी-अभी उगे टटके सूरज की लाली उसे लील जाना चाहती हो, उसे चाट कर जैसे तृप्त हो जाना चाहती हो या फिर वह ओस की बूंद ही अनायास छलक कर या छिटक कर टूट जाने को बेक़रार हो जाए। इन की तड़प कुछ-कुछ ऐसा ही दृश्य परोस रही थी। और पल्लू लिए हुई औरतों की दिपदिपाती आंखें मानो सूरज की चमक को भी फीका कर रही थीं। एक आदमी अपने कंधे पर बेटे को बिठाए जहाज के बाएं डैने के नीचे एक हाथ से बेटे को पकड़े और दूसरा हाथ कमर पर रखे जहाज के पहियों को बेसुध देख रहा था। बेख़बर। और उस का बेटा दोनों हाथों से जहाज के डैनों को ऐसे छूने की कोशिश कर रहा था, गोया डैनों को छूते ही वह उड़ जाएगा और उस की नाक से बहता नेटा सूख कर चिकना हो जाएगा। एक बूढ़ी औरत की झुर्रियों में जो उड़ान दिख रही थी; लग रहा था अगर वह जहाज को छू लेगी तो उस की झुर्रियां उड़न छू हो जाएंगी, वह जवान हो जाएगी। ऐसे जाने कितने दृश्य थे जो देवेंद्र को विभोर कर रहे थे। सोए हुए को जैसे जगा रहे थे। जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री!’ क्या ऐसे ही समय के लिए लिखी गई रही होगी? ‘तू अब तक सोई है आली/आंखों में भरे विहाग री! बीती विभावरी जाग री!’ देवेंद्र सोचता है। सोच कर अकुलाता है।
उधर भीड़ भी अकुला गई है। शोहदे लड़के पूरी ज़िम्मेदारी और पूरी गंुडई से लोगों को जहाज से दूर करने में जुट गए हैं। एक लड़के ने तो लोगों को डराने के लिए अपनी पैंट की बेल्ट निकाल कर हाथ में ले ली है और रह-रह कर उसे भांज रहा है, जम़ीन पर पटक रहा है। कह रहा है, ‘जहाज देखो पर दूर से। छू-छू कर नहीं। चलो हटो, दूर हटो!’ एक लड़का लोगों को ढकेल-ढकेल कर दूर कर रहा है। एकाध लोगों को थप्पड़ भी मार रहा है। लोग ललक भरी आंखों से दूर हट रहे हैं। गोया उन के सिर का ताज कोई छीन ले रहा हो। एक सपना हो जो शीशे की तरह टूट रहा हो। और यह शोहदे लड़के अपनी ललक पूरी करने के लिए लोगों की ललक छीन रहे हैं, लील रहे हैं।
ऐसा क्यों होता है?
देवेंद्र सोचता है। उस के द़तर में भी संपादक और मैनेजर ने अपनी तनख्वाह बढ़वाने के लिए, अख़बार मालिकों की नज़र में अपनी उपयोगिता दिखाने के लिए पिछले महीने खर्च घटाने की आड़ में एक साथ अख़बार से बीस लोगों के इस्तीफ़े जबरिया लिखवा लिए थे।
यह क्या है?
वह जैसे टूट जाता है।
भीड़ का जहाज के पास से हटना ज़रूरी था। पर इस तरह अपमानित हो कर? अपमानित करना तो ज़रूरी नहीं था? ख़ैर, धीरे-धीरे जहाज के पास से मक्खियों का छत्ता यानी भीड़ धीरे-धीरे छंट गई है। पायलट लड़कों को बड़ी आशा और प्रशंसा भरी नज़रों से देखता है और लगभग आदेश देते हुए कहता है, ‘हवाई पट्टी पर एक भी आदमी नहीं दिखना चाहिए। एक फर्लांग दूर कम से कम होनी चाहिए भीड़!’
‘जी सर, जी सर!’ लड़के अब पायलट की जी हुजूरी पर उतर आए हैं। उधर नेता जी बता रहे हैं कि, ‘पार्टी ऑफिस में बात हो गई है। हम लोगों को मीटिंग प्लेस पर ले जाने के लिए दो कार आ रही हैं और फ़ोर्स के लिए भी कहा जा चुका है।’
‘पर अभी तक क्यों नहीं कहा था?’ चंद्रशेखर बिदक कर पूछता है।
‘आफ़िस में जिस को यह मेसेज डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन को कनवे करना था वह बीमार हो कर हास्पिटलाइज़ हो गया है।’
‘ओह।’ चंद्रशेखर बोला, ‘तो साला हम लोगों को भी हास्पिटलाइज़ करवाना चाहता था?’
‘यहां आस पास कोई थाना या पुलिस चौकी नहीं है?’ विनय ने एक शोहदे लड़के से डपट कर पूछा।
‘थाना तो नहीं है पर एक-डेढ़ क़िलोमीटर पर पुलिस चौकी है।’ लड़का फुर्ती से बोला।
‘तो वहीं से पुलिस वालों को बुला लाओ।’ विनय ने कहा।
‘किस काम के लिए।’ लड़के ने पूछा ।
‘इस भीड़ को क़ाबू करने के लिए।’ विनय बोला।
‘इस भीड़ के लिए तो हम लोग ही काफी हैं सर। पुलिस को बुलाने की क्या ज़रूरत है?’
‘है न तुम नहीं समझोगे।’
‘क्या नहीं समझूंगा?’ लड़का तिरछा हो गया।
‘अरे कहीं पब्लिक में कोई भड़क गया तो? कोई मारपीट हो गई तो?’
‘तो पुलिस संभाल लेगी इस भीड़ को?’ लड़का तंज़ करते हुए बोला, ‘यह भीड़ पुलिस चौकी के पुलिस के वश की है भी नहीं।’
‘क्यों?’
‘पुलिस वाले आते ही पब्लिक से दो-दो, पांच-पांच रुपए की वसूली के चक्कर में पड़ जाएंगे।’ लड़का बोला, ‘तब पब्लिक ज़रूर भड़क जाएगी। फिर जहाज को आग लगा देगी।’
‘अच्छा?’ विनय बोला, ‘तब तो रहने दो।’
भीड़ वैसे भी अब जहाज से कुछ दूर हो गई थी। जहाज को अपलक निहारती भीड़ को देख कर देवेंद्र का मन हुआ कि वह भी धीरे से जा कर उस भीड़ में घुस जाए और उन के साथ ही वह भी जहाज को टुक-टुक निहारे। अपनी इस रूमानियत पर वह पुलकित हो गया। साथ ही अपनी इस नादानी पर उसे हंसी भी आई।
हड्डियों को चीरती ठंड और देह को सुख देती, सहलाती धूप के कोलाज में इस उपेक्षित पड़ी हवाई पट्टी पर खड़े जहाज को दूर से देखती भीड़ निराला की कविता ‘अबे सुन बे गुलाब! भूल मत, गर पाई खुशबू रंगों आब/खून-चूस खाद का तूने अशिष्ट/डाल पर इतरा रहा कैपिटलिस्ट!’ की आंच देती उपस्थित थी।
उधर शोहदे लड़कों को पायलट जहाज के भीतर बारी-बारी ले जा - ले आ रहा था। लड़के अपनी सफलता के नशे में चूर थे और पायलट अपनी डिप्लोमेसी के नशे में। मारे खुशी के पायलट ने लड़कों के लीडर को सिगरेट पेश किया तो लड़के ने झपट कर सिगरेट की पूरी डब्बी झटक ली। सिगरेट फूंकते हुए उस ने डब्बी को ग़ौर से घूरा और पायलट से पूछा, ‘इंपोर्टेड है?’
‘हां, है तो!’ पायलट इतराया।
‘शराब भी है क्या?’ पूछते हुए लड़के ने पायलट के कंधे पर हाथ रख दिया। जैसे वह उस का कितना बड़ा यार हो।
‘नहीं - नहीं!’ पायलट उस लड़के से छिटकते हुए बोला।
‘बीयर भी नहीं है?’
‘नहीं तो?’
‘हमने सुना है जहाज में बीयर, शराब हमेशा होती है। और लड़कियां घूम-घूम कर पिलाती हैं।’ लड़के ने जोड़ा, ‘हमने कई पिक्चर में देखा भी है।’
‘हां, हां वह यात्री विमानों में होता है। ख़ास कर इंटरनेशनल लाइट्स में।’ पायलट बोला, ‘यह तो चार्टर्ड प्लेन है सिक्स सीटेड।’
‘मतलब?’ लड़के ने बोला।
‘छोटा जहाज है। थोड़ी-थोड़ी दूरी के लिए!’ पायलट ने कंधे उचका कर कहा, ‘अभी आप ने भीतर जा कर देखा ही है। कोई लड़की नहीं, कोई शराब नहीं।’
‘क्या पता अंदर छुपा लिया हो फिर दिखाया हो?’ लड़का शरारती मुसकान के साथ बोला।
‘नहीं भइया आप से क्या छुपाना?’ पायलट सफाई देते हुए बोला, ‘चलिए फिर से देख लीजिए।’
‘चलो!’ लड़के ने जैसे आदेश दिया।
‘आइए भइया!’ पायलट उसे ले कर फिर से प्लेन के भीतर जाता है। लड़का उदास हो कर प्लेन की सीढ़ियों से उतरता है। पायलट से कहता है, ‘अच्छा एक काम करो! इस जहाज में एक बार हम लोगों को भी बैठा कर उड़ा दो!’ वह ज़रा रुकता है और कहता है, ‘ज़्यादा नहीं तीन चार चक्कर!’
‘ठीक है भइया जी! बस जब वापसी में जाएंगे तो आप लोगों को भी घुमा देंगे।’ पायलट बोला, ‘आखि़र आप लोगों ने इतनी ज़िम्मेदारी से भीड़ को संभाला है।’
‘धोखा मत देना।’ लड़का तरेरते हुए बोलता है, ‘नहीं पेट्रोल डाल कर दियासलाई दिखा देंगे तुम्हारे जहाज को! और यही रिपोर्टर लोग न्यूज़ लिखेंगे इस की। आंखों देखा हाल।’
‘अरे नहीं भइया इस की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
‘पायलट हाथ जोड़ कर बोला, ‘आप लोगों को हम घुमाएंगे। ज़रूर घुमाएंगे।’
‘घुमाएंगे नहीं उड़ाएंगे।’
‘हां, हां। वही-वही। उड़ाएंगे भइया।’
दोनों पायलट में एक पायलट लगातार प्लेन की निगरानी में था और दूसरा पायलट लड़कों की मिज़ाज़पुर्सी में। कि तभी बारी-बारी दो कार हवाई पट्टी पर आ कर रुकीं। एक-एक कार में तीन-तीन लोग बैठ गए। एक पायलट लपक कर आया और नेता जी से हाथ जोड़ कर खुसफुसाया, ‘सर जल्दी फोर्स भिजवाइए नहीं इन लड़कों को बहुत देर तक मैं नहीं झेल पाऊंगा।’ वह बोला, ‘मेरी तो अब फटने वाली है। बहुत हो गया।’
‘फ़ोर्स भी आ रही है। भारी फ़ोर्स! घबराओ नहीं।’ नेता जी उचक कर बोले, ‘वेल डन!’
दोनों कार पायलट को वहीं छोड़ निकल गईं। सांय-सांय!
‘वेल डन! पायलट ने मुंह-बिचका कर नीचे पुच्च से थूका और एक भद्दी सी गाली दी फिर दुहराया, ‘वेल डन!’
हवाई पट्टी के बाद सड़क बहुत अच्छी नहीं थी। रास्ते में पुलिस चौकी दिखी तो विनय ने कार रुकवा दी। पर पुलिस चौकी में कोई था ही नहीं। एक चाय वाले ने बताया, ‘सब की ड्यूटी मुख्यमंत्री में लगी है।’ कार फिर चल पड़ी। हिचकोले खाती कार जैसे तैसे आगे बढ़ रही थी। आधे घंटे बाद जा कर कहीं मेन रोड आई तो सड़क की दशा थोड़ी सुधरी।
सभास्थल पर पहुंचने पर पता चला कि मुख्यमंत्री का हेलीकाप्टर आ चुका है। पर वह अभी सभास्थल पर नहीं आए हैं। किसी लोकल नेता का भाषण चल रहा था। और वह बीच-बीच में ‘मुख्यमंत्री जी बस हमारे बीच में आने ही वाले हैं’ संपुट की तरह जोड़ता जा रहा था। सभा स्थल पर ही लखनऊ से आए रिपोर्टरों के ब्रेकफास्ट की व्यवस्था है। ठीक मंच के बगल में। कनात लगा कर। हालां कि लंच का समय हो चला है पर रिपोर्टरों का ब्रेकफास्ट चल रहा है। बीच ब्रेकफास्ट में हूटर सायरनों की आवाज़ सुन कर विनय खड़ा हो जाता है। चंद्रशेखर अफना कर पूछता है, ‘क्या हो गया?’
‘लगता है सी एम आ गए।’ विनय आकुल हो कर बोला।
‘तो?’ चंद्रशेखर ठंडे स्वर में पूछता है।
‘नहीं चलना तो पड़ेगा यहां से!’
‘क्यों भाषण यहां से नहीं सुनाई देगा क्या?’ चंद्रशेखर बोला, ‘या अपनी शकल दिखा कर ही सी एम का भाषण नोट करोगे?’
‘और फिर भाषण भी वही पुराना। जैसे रिकार्ड बज रहा हो। हर जगह वही-वही बातें। बस दो चार लोकल इशू का ज़िक्र अलग से। ऐसे जैसे किसी कपड़े पर पैवंद!’ रोमी बोला।
‘हां, पर इस मुग़ालते में मत रहना बेटा कि पुराना भाषण ही लिख मारना।’ संजय बोला, ‘पता है बरेली के एक रिपोर्टर ने पिछले ह़ते सी एम की एक रैली कवर कर के लखनऊ रिपोर्ट भेज दी। लीड बन कर छप भी गई। पर बाद में पता चला कि सी एम तो बरेली गए ही नहीं थे। वह रैली कैंसिल हो गई थी। देर हो जाने के कारण। पर पट्ठे ने रिपोर्ट - घर बैठे पुरानी कतरनों को निकाल कर लिख दी।’
‘ओह!’ फिर क्या हुआ उस का?’ देवेंद्र ने पूछा।
‘हुआ क्या अख़बार ने खेद प्रकाश छोटा सा छाप दिया। रिपोर्टर को सस्पेंड कर लखनऊ से अटैच कर दिया है।’ संजय ने बताया।
‘ख़ैर, हम लोग तो अब यहां से चलें।’ विनय फिर बोला।
‘हां-हां।’ चंद्रशेखर बोला।
सभी लोग मंच के बगल की कनात से निकल कर मंच के सामने बनी प्रेस गैलरी में आ गए। लोकल रिपोर्टरों ने उचक-उचक कर, लपक-लपक कर लखनऊ के रिपोर्टरों को सलाम बजाया। देवेंद्र ने ग़ौर किया इलेक्ट्रानिक मीडिया के भी दो लोग सी एम को कवर करने लखनऊ से आए हैं। उस ने चंद्रशेखर को कुरेद कर उन सब को दिखाया भी। चंद्रशेखर बोला, ‘लगता है साले सब सी एम के तलवे चाटते उन के साथ ही आए हैं।’
‘सो तो है।’ देवेंद्र ने निरापद भाव से कहा।
‘लेने दो सालों को विजुअल!’ चंद्रशेखर बोला, ‘प्रिंट में रहने का नुकसान और इलेक्ट्रानिक में रहने का फ़ायदा आखि़र यों ही तो नहीं है।’
‘ये तो है!’
मुख्यमंत्री का भाषण शुरू हो गया था। वह रत्नगर्भा धरती का बखान कर रहे थे और हुंकार रहे थे, ‘कुंडा का गुंडा! अब उस की गुंडई और नहीं चलने देंगे। सांप के फन की तरह कुचल कर रख देंगे।’ वगै़रह-वगैरह।
मुख्यमंत्री का भाषण ख़त्म हो गया है। डाक बंगले पर लंच की व्यवस्था है। लंच चल रहा है। अचानक संजय मुख्यमंत्री के पास पहुंचता है, ‘भाई साहब आज तो हम लोगों को आपने मरवा ही दिया था?’
‘क्या हो गया?’ मुख्यमंत्री मुसकुरा कर पूछ रहे हैं।
‘इससे तो बेहतर होता कि हम लोग बाई रोड आए होते!’ विनय उचक कर बीच में बोला।
‘पहेली ही बुझाएंगे कि कुछ बताएंगे भी आप लोग?’ मुख्यमंत्री ने पूछा।
‘कुछ नहीं। जिस हवाई पट्टी पर हम लोगों का प्लेन उतरा वहां उपले पाथे जा रहे थे। बेशुमार भीड़ थी। और फोर्स टोटली नदारद थी।’ चंद्रशेखर ने डिटेल देते हुए कहा, ‘वह तो पायलट सब होशियार थे, डिप्लोमेसी में एक्सपर्ट थे सो जान बच गई।’ फिर जीप के रेस की, भीड़ के घेर लेने जैसे ब्यौरे भी चंद्रशेखर ने मुख्यमंत्री को बताए।
मुख्यमंत्री ने पीछे खड़े एसपी को मुड़ कर तरेरा और आंखों ही आंखों में डपटा।
‘सर, हमारे पास कोई प्रायर इनफार्मेशन थी नहीं। इनफार्मेशन मिलते ही फोर्स वहां पहुंच गई है! प्लेन सेफ है सर!’ झुक कर पूरी विनम्रता से एस पी ने सी एम को बताया।
‘बताइए समय से आप के पार्टी आफ़िस ने इनफ़ार्म ही नहीं किया।’ विनय ने फिर उतावली दिखाई।
अब सी एम ने पत्रकारों के साथ आए अपनी पार्टी के नेता जी को तरेरा।
‘असल में पाठक जी को इनफ़ार्म करना था। वह कल ही हास्पिटलाइज़ हो गए।’
‘तो आप भी हास्पिटलाइज़ हो गए होते!’ यहां आने की क्या ज़रूरत थी?’ मुख्यमंत्री बोले, ‘अगर मीडिया के हमारे मित्रों को कुछ हो गया होता दुर्भाग्य से तो मैं देश को मुंह दिखाने लायक़ होता भला? मुंह पर कालिख पुतवा देते आप लोग!’
‘अरे वह तो कहिए चंद्रशेखर जी हम लोगों के साथ थे। तो चंद्रशेखर जी ने हनुमान चालीसा पढ़नी शुरू कर दी। सो बच गए!’ देवेंद्र ने गंभीर हो गए माहौल को लाइट करने की कोशिश की।
‘अरे, चंद्रशेखर जी!’ मुख्यमंत्री मुसकुराते हुए बोले, ‘आप तो कामरेड ठहरे और फिर हनुमान चालीसा!’
‘क्या करें वह स्थिति इतनी संगीन हो गई थी। जान पर बन आई थी तो बचपन के संस्कार ने ज़ोर मारा।’ चंद्रशेखर सकुचाते हुए बोला, ‘फिर मरता क्या न करता?’
‘ये तो है।’ मुख्यमंत्री बोले, ‘अभी पिछले ह़ते हम खुद फंस गए थे। देवेंद्र जी भी थे। क्यों देवेंद्र जी याद है वो गाज़ियाबाद में?’
‘हां-हां!’ देवेंद्र बोला, ‘वह तो पायलट होशियार थे कि असली संकट हम लोगों को पता ही नहीं चलने दिया।’’
‘पर संकट निकल गया!’ मुख्यमंत्री हाथ जोड़ कर बोले, ‘ईश्वर की कृपा थी।’
लंच ख़त्म हो गया था।
सब लोग वापसी की तैयारी में पड़ गए।
मुख्यमंत्री इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों को साथ ले कर निकल गए। मुख्यमंत्री का काफिला निकला तो सब लोग निकले।
लखनऊ से आई प्रिंट मीडिया की टीम भी पृथ्वीगंज के लिए चल पड़ी। पृथ्वीगंज हवाई पट्टी के लिए। रास्ते में चंद्रशेखर ने देवेंद्र से पूछा, ‘गाज़ियाबाद में हुआ क्या था?’
‘हुआ ये कि मुख्यमंत्री को इटावा और गाज़ियाबाद में तीन चार जगह भाषण देना था। तो लखनऊ से हेलीकाप्टर में चार पत्रकारों को और दो नेताओं को ले जाने की व्यवस्था हुई। दो पत्रकार आ नहीं पाए। तो दो पत्रकार और दो नेता हेलीकाप्टर में इटावा के लिए चले। बीयर-सीयर पीते हुए। पर वहां सैफई हवाई पट्टी पर ही हेलीकाप्टर से पत्रकारों को उतार कर बाई रोड इटावा भेजा गया। क्या तो मुख्यमंत्री को बाई प्लेन आना था और हवाई पट्टी चूंकि सैफई में ही थी सो प्लेन वहीं लैंड करता और फिर मुख्यमंत्री को पत्रकारों के हेलीकाप्टर से इटावा आना था।’ देवेंद्र बोला, ‘इन फैक्ट मुख्यमंत्री को टाइम बचाने की गरज से प्लेन और हेलीकाप्टर दोनों चाहिए था। सो फिलर के तौर पर पत्रकारों को हेलीकाप्टर में बैठा दिया गया। ख़ाली क्यों जाए हेलीकाप्टर? तो इटावा की जनसभाओं के बाद मुख्यमंत्री ने हेलीकाप्टर छोड़ दिया सैफई में और गाज़ियाबाद के लिए प्लेन ले लिया।
हम लोग फिर हेलीकाप्टर से गाज़ियाबाद गए। वहां भी कई जनसभाएं थीं। ख़त्म होते-होते सूरज डूबने को आ गया। अब हिंडन एयर बेस पर वापस आए तो हेलीकाप्टर के पायलट ने हाथ जोड़ लिया कि, ‘अंधेरा होने वाला है। ऐसे में लखनऊ के लिए उड़ना रिस्क है। सुबह ही चल पाऊंगा।’ मुख्यमंत्री के डे अफसर जो उन के सचिव भी थे, उन तक बात पहुंचाई गई। उन्हों ने डी.एम. गाज़ियाबाद को बुलाया जो एक सरदार था, उस से पत्रकारों को लखनऊ मेल से लखनऊ भिजवाने का इंतज़ाम करने को कहा। उस ने हामी भर दी और इंतज़ाम में जुट गया। कि तभी मुख्यमंत्री का काफिला आ गया। उन के डे अफसर ने उन्हें बताया कि हेलीकाप्टर के पायलट ने अंधेरे का रिस्क लेने से इंकार कर दिया है। कह रहा है कि अब सुबह ही उड़ पाएगा।’
‘तो यह लोग कैसे जाएंगे।’
‘लखनऊ मेल से अरेंजमेंट करने को डी.एम. से कह दिया है।’
‘तो इन की न्यूज़?’
‘मेरा तो यहां नोएडा में आफ़िस है ही। यहीं से रिपोर्ट भेज दूंगा।’ देवेंद्र ने विनम्रता से कहा।
‘नोएडा से आप जो रिपोर्ट फाइल कीजिएगा, कट पिट कर लखनऊ में कैसे छपेगी मैं जानता हूं।’ मुख्यमंत्री बोले, ‘आप दोनों लोग मेरे साथ प्लेन से चलिए और लखनऊ में ही रिपोर्ट लिखिए।’
फिर मुख्यमंत्री ने साथ आए दो नेताओं को ‘लखनऊ मेल से आइए या सुबह हेलीकाप्टर से,’ कह कर हम लोगों को साथ ले लिया। जाने क्या हुआ कि प्लेन ने टेक आफ़ किया कि पांच मिनट बाद ही कंट्रोल रूम से उस का संपर्क टूट गया। कोई दस मिनट तक प्लेन एक ही जगह गोल-गोल चक्कर काटता रहा। चांदनी बिखरी थी सो रात में भी हिंडन नदी साफ दिख रही थी। लगातार वहीं जब प्लेन चक्कर काटता रहा तो मैं ने बगल में बैठे मुख्यमंत्री के सचिव को नीचे की तरफ दिखाया और बताया कि, ‘यह देखिए प्लेन एक ही जगह लगातार बड़ी देर से चक्कर काट रहा है।’ उन्हों ने भी देखा तो पीछे मुड़ कर पायलट से पूछा कि, ‘बात क्या है? सब ठीक तो है न?’
‘जी सर!’
‘तो एक ही जगह चक्कर क्यों काट रहे हो?’
‘नहीं तो सर!’ पायलट बोला, ‘एवरीथिंग इज इन आवर कंट्रोल!’
सब लोग निश्चिंत हो गए। मुख्यमंत्री अपने झोले से भुना चना मखाना निकाल कर हम सब को खिलाने लगे। थोड़ी देर बाद ही चंबल दीखने लगा। चांदनी में चंबल के बीहड़ों को आकाश से निहारना अलौकिक है। उस के सौंदर्य का बखान शब्दों में बांधना मेरे लिए मुश्किल है। ठीक वैसे ही जब हेलीकाप्टर से दिन में चलें तो नीचे की हरियाली आप का मन मोह लेती है। तो दिन की दुपहर में हरियाली और रात की चांदनी में चंबल के बीहड़ों को निहारने का अनिर्वचनीय सुख सचमुच अकल्पनीय है डियर चंद्रशेखर! मुझे तो बच्चन जी का वह गीत याद आ गया कि, ‘चांदनी में सब क्षमा है।’ फिर बगल में ताज की झलक! ताज और चंबल का कंट्रास्ट! ताज की चमक में, चंबल की गमक!’ देवेंद्र बोला, ‘लेकिन यह सारा सुख लखनऊ में उतर कर एक क्षण के लिए सुन्न हो गया। जब दोनों पायलट जहाज से उतर कर एयरपोर्ट को दोनों हाथों से स्पर्श कर हाथ माथे पर लगा कर एक दूसरे से चिपट कर रोने लगे। लॉबी में आ कर सी एम के सचिव ने जब पूछा, ‘क्या बात है बड़े सेंटीमेंटल हो रहे हैं आप लोग!’
‘कुछ नहीं सर जब आप ने पूछा था कि एक ही जगह क्यों चक्कर काट रहे हैं तो सर मालूम है आप को तब कंट्रोल रूम से हमारा संपर्क टूट गया था। हम लोग बड़ी उलझन में थे। कि चीफ मिनिस्टर सर प्लेन में हैं और कहीं कुछ अनहोनी हो गई तो? इसी लिए एक ही जगह चक्कर काट कर कंट्रोल रूम से संपर्क बनाने में लगे थे।’ वह बोला, ‘थैंक गॉड कि हम लोग सकुशल यहां लैंड कर गए!’
‘अरे!’
कह कर सी एम के सेक्रेट्री भी उस पायलट से गले लग गए। और फिर तो सभी एक दूसरे से गले मिलने लगे और कहने लगे कि पता नहीं कौन इतना भाग्यशाली था जिसके भाग्य से हम सभी बच गए। और हमारी आंखों के आगे हवाई दुर्घटनाओं में मारे गए कई नेताओं के चेहरे घूम गए।’ देवेंद्र बोला, ‘और देखो आज भी हम लोग किस मूर्खता में फंस कर बचे हैं। यह मूर्खता हम सब की जान भी ले सकती थी।’
‘ये तो है।’ चंद्रशेखर बोला।
‘और यह भी जान लो डियर कि अगर अभी भी फोर्स वहां नहीं होगी और मुझे लगा कि सेफ टेक आफ़ नहीं हो पाएगा तो तय मान लो कि मैं तो उस प्लेन में बैठने से रहा।’
‘तो ख़बर कैसे लिखेंगे देवेंद्र जी!’ संजय बोला, ‘या कि नहीं लिखेंगे?’
‘देखो डियर ख़बर लिखना रोजी रोटी है। कोई बार्डर की तैनाती नहीं कि सरहद बचानी ही है सो जान दे दूं।’ देवेंद्र बोला, ‘फिर ये दो कौड़ी का भाषण लिखने के लिए जान पर खेलना मेरी समझ से तो बाहर है!’
‘और वह भी उपेक्षितों की तरह!’ चंद्रशेखर बोला, ‘मुख्यमंत्री तो इलेक्ट्रानिक मीडिया को साथ लेकर सेफ ज़ोन में घूम रहा है, कवरेज, फुटेज और बाइट के नाम पर। और हम प्रिंट मीडिया वालों को बाबा आदम के जमाने वाली हवाई पट्टी पर उतार देता है मरने के लिए जहां उपले पाथे जा रहे हैं। न कोई बाउंड्री, न बैरिकेटिंग। न कोई रख-रखाव!’ वह बोला, ‘ठीक कहते हैं देवेंद्र जी अगर सेफ टेक आफ़ की नौबत नहीं दिखी तो मैं भी नहीं बैठूंगा।’
‘एक बात बताऊं कामरेड चंद्रशेखर तुम्हें।’ देवेंद्र बोला, ‘चुनावी कवरेज में जो रोमांच पहले हुआ करता था वह अब इस कदर रिरियाहट और अपमान में बदल जाएगा, मैं नहीं जानता था। पहले हम लोगों को अपनी रिपोर्टरी पर जिस तरह नाज़ हुआ करता था अब उतनी ही शर्म आती है।’
‘ये बात तो है देवेंद्र जी!’
‘तुम्हें पता है मैं ने साइकिल चला कर भी रिपोर्टरी की है। कई कवरेज किए हैं। लेकिन तब जो जोश, जो सम्मान खुद की नज़र में था, जिस तरह सिर उठा कर चलता था, अब जहाज से चलने में भी वह बात कहां है।’ देवेंद्र बोला, ‘अब वो फख्र की जगह एक गहरे शर्म ने ले ली है। जानते हो क्यों?’
‘क्यों?’
‘बशीर बद्र का एक मिसरा है, ये ज़बां किसी ने ख़रीद ली, ये कलम किसी का गुलाम है!’
‘सो तो हो गया है यह सौ फीसदी सच!’ संजय तड़प कर बोला।
इस तरह बोलते बतियाते पृथ्वीगंज हवाई पट्टी आ गई। पी.ए.सी. की ट्रकें खड़ी थीं। हवाई पट्टी को चारों तरफ से पी.ए.सी. ने घेर रखा था। भीड़ भी थी पर बहुत थोड़ी सी। सूरज अपनी नरमी पर था। शाम के कोई चार बजने वाले थे। दोनों पायलट हवाई पट्टी पर प्लेन के पास कुर्सी लगाए पांव फैलाए सिगरेट फूंक रहे थे।
प्लेन के पास पहुंच कर देवेंद्र ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई। हवा जैसे ठहर गई थी। चारों तरफ पी.ए.सी. के जवानों को खड़ा देख कर लगा गोया खेतों में भी कर्यू लग गया हो! फिर बोला, ‘अब तो सिक्योरिटी पूरी है।’
‘पूरी नहीं सर! हाई सिक्योरिटी है। परिंदा भी पर नहीं मार सकता।’
‘वो तो ठीक है। पर बड़े पोलिटिकल हो रहे हो।’ संजय ने पूछा, ‘और वह सुबह के हवा सिंह टाइप लड़के नहीं दिख रहे?’
‘भाड़ में जाएं साले सब हवा सिंह।’ पायलट धुआं छोड़ता हुआ हिकारत से बोला, ‘सालों ने नाक में दम कर रखा था।’
‘हूं।’ संजय धीरे से बोला, ‘मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं।’ और मुसकुराया।
‘वो तो ठीक है सर, पर बाक़ी लोग कहां हैं?’
‘आ रहे हैं, वह लोग भी आ रहे हैं। उन की गाड़ी थोड़ी पीछे थी।’ संजय बोला, ‘आप लोगों ने खाना-वाना खाया।’
‘जी सर!’
‘कैसे?’
‘लंच पैकेट और पानी की बोतलें ले कर चले थे लखनऊ से।’
‘अच्छा-अच्छा।’
‘तब तक दूसरा ग्रुप भी आ गया। वह लोग कार से उतर ही रहे थे कि सुबह वाले लड़के भी उन के पीछे-पीछे लग लिए। यह नज़ारा देखते ही एक पायलट पास खड़े पी.ए.सी. के दो जवानों पर किचकिचाया, ‘अरे, वह लड़के साले फिर आ रहे हैं। उन लड़कों सालों को जा कर वहीं रोको! नहीं साले सब लंबा बवाल काट देंगें। फिर हवा सिंह बन कर हम पर रौब गांठने लगेंगे। कहेंगे जहाज में बैठा कर उड़ाओ। जैसे जहाज नहीं बैलगाड़ी हो।’
पी.ए.सी. के दोनों जवान बड़ी फुर्ती से दौड़े और लपक कर उन लड़कों को रोक दिया। एक लड़के ने पी.ए.सी. के जवान से ज़बरदस्ती करनी चाही तो उस ने उसे वहीं पीट कर ढकेल दिया। बाक़ी लड़के वहीं से पायलट को इंगित कर चिल्लाए भी, ‘सर! सर! सुनिए तो सर!’
लेकिन पायलट ने उन लड़कों की तरफ देखा तक नहीं।
‘पायलट सर! आप ने वादा किया था कि हम लोगों को दो तीन राउंड जहाज पर घुमाएंगे!’ एक लड़का ज़ोर-ज़ोर से चीख़ रहा था। पर पायलट ने यह सब सुन कर भी अनुसना कर दिया।
‘सर मेरी बात तो सुनिए!’ यह तीसरा लड़का चीख़ा।
अब हम लोग प्लेन में चढ़ रहे थे। उधर लड़के समवेत स्वर में मां बहन की गालियों में चीख़ने लगे थे! और पी.ए.सी. के जवान उन्हें धकियाते जा रहे थे। पर गालियां बदस्तूर जारी थीं। इन समवेत गालियों के बीच प्लेन का इंजन गड़गड़ाया, रनवे पर दौड़ा।
इस बार रेस में कोई पैरलेल जीप नहीं थी। चारों तरफ वर्दीधारी रायफलधारी जवान ही जवान थे। हेलमेट लगाए।
प्लेन टेक आफ़ कर गया।
हमारे कानों में प्लेन की गड़गड़ाहट के साथ ही उन लड़कों की समवेत गालियां भी गड़गड़ा रही थीं। उन हवा सिंहों की गालियां जो हवा हो गए थे।
NICE SIR
ReplyDeleteMANOJ KATARIA
Interesting
ReplyDeleteजैसे फ़िल्म देख रहे हों।सजीव वर्णन।
ReplyDeleteजैसे फ़िल्म देख रहे हों।सजीव वर्णन।
ReplyDeleteजैसे फ़िल्म देख रहे हों।सजीव वर्णन।
ReplyDeleteसजीव चित्रण।डॉ कविता रत्नम
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