फ़ोटो : अनन्या पांडेय |
ग़ज़ल
पहले नदी नज़दीक से बहती थी इस बरस धारा बदल गई
तुम्हारे साथ हम नाव में क्या चढ़े यह अंजोरिया मचल गई
याद है शुरु शुरु में ले जाते थे चूड़ी पहनवाने बाज़ार तुम को
चूड़ी वाली हंस कर कहती थी आप की तो कलाई बदल गई
गौरैया आ गई घर में छत पर खाने लगी दाने पीने लगी पानी
बदल गए हम तुम्हारे साथ और पड़ोसन की हंसी बदल गई
वह लोग आए तो थे किसी सूरत डुबोने ही के लिए हमारे बीच
मुहब्बत की नाव डूबती भी है लेकिन डूबते डूबते संभल गई
मुहब्बत की उंगली पकड़ निकला सूरज उग आया धीरे से चांद
वह दिन और आज का दिन हमारे लिए काशी की गंगा बदल गई
प्रकृति भी प्यार करती है प्यार का साथ देती है मचल मचल कर
गौरैया चहकती फुदकती लौट आई तो नदी करवट बदल गई
[ 21 मार्च , 2016 ]
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