Wednesday 9 March 2016

अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं




ग़ज़ल

बात बेबात वह पागल बताने लगे हैं
अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं

रास्ते पर आए हैं धीरे-धीरे और आएंगे
वाट्सअप पर अब वह बतियाने लगे हैं

हम से मिलना उन्हें ख़ुश करता बहुत है
बिना पूछे ऐसा वह सब को बताने लगे हैं

किनारे नहीं बीच धारे मिल कर भी वह
बीच रास्ते अनायास अचकचाने लगे हैं

समय ही समय था जब मिलते थे पहले 
जाने क्यों वह अब जल्दी घर जाने लगे हैं

मिलता ही नहीं हूं मैं जब अरसे से उन से 
अब  इसी गम के मारे वह पियराने लगे हैं  

जैसे लतीफा हूं कोई मेरे क़िस्से सुना कर
 वह अब दुनिया जहान को हंसाने लगे हैं

[ 9 मार्च , 2016 ]

4 comments:

  1. समय ही समय था जब मिलते थे पहले
    जाने क्यों वह अब जल्दी घर जाने लगे


    Aha ha ...hamesha ki tarah bejod ghazal...waah

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2277 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 11/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 238 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  4. मिलता ही नहीं हूं मैं जब अरसे से उन से
    अब इसी गम के मारे वह पियराने लगे हैं

    जैसे लतीफा हूं कोई मेरे क़िस्से सुना कर
    वह अब दुनिया जहान को हंसाने लगे हैं

    सुन्दर रचना :) jsk

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