ग़ज़ल
बात बेबात वह पागल बताने लगे हैं
अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं
रास्ते पर आए हैं धीरे-धीरे और आएंगे
वाट्सअप पर अब वह बतियाने लगे हैं
हम से मिलना उन्हें ख़ुश करता बहुत है
बिना पूछे ऐसा वह सब को बताने लगे हैं
किनारे नहीं बीच धारे मिल कर भी वह
बीच रास्ते अनायास अचकचाने लगे हैं
समय ही समय था जब मिलते थे पहले
जाने क्यों वह अब जल्दी घर जाने लगे हैं
मिलता ही नहीं हूं मैं जब अरसे से उन से
अब इसी गम के मारे वह पियराने लगे हैं
जैसे लतीफा हूं कोई मेरे क़िस्से सुना कर
वह अब दुनिया जहान को हंसाने लगे हैं
[ 9 मार्च , 2016 ]
समय ही समय था जब मिलते थे पहले
ReplyDeleteजाने क्यों वह अब जल्दी घर जाने लगे
Aha ha ...hamesha ki tarah bejod ghazal...waah
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2277 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 11/03/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 238 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
मिलता ही नहीं हूं मैं जब अरसे से उन से
ReplyDeleteअब इसी गम के मारे वह पियराने लगे हैं
जैसे लतीफा हूं कोई मेरे क़िस्से सुना कर
वह अब दुनिया जहान को हंसाने लगे हैं
सुन्दर रचना :) jsk