Thursday, 10 March 2016

चकमा देने वाले ही अब तो हर रोज चमक रहे हैं

फ़ोटो : गौतम चटर्जी


 ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

सूरज पराजित है इस कदर यह लोग चमक रहे हैं
चकमा देने वाले ही अब तो हर रोज चमक रहे हैं

किसानों के लिए आत्महत्या हरामखोरों को रास्ता
क़ानून के दलाल अब समाज में बहुत खटक रहे हैं 
किसान मज़दूर कितने बेबस लाचार हैं इस देश में
चोर कमीने बेईमान शासक बन कर बमक रहे हैं

जिन को जाना था जेल ठाट बाट से लंदन चले गए 
अब लफ़्फ़ाज़ सारे चैनलों पर बेबात बहस रहे हैं 
उन के जुगाड़ सब पर भारी सारा सिस्टम बिकाऊ 
संसद अदालत सब को ही जेब में लिए टहल रहे हैं 

कोई गंगा को रौंदता है कोई जमुना तो कोई पर्वत को 
पर्यावरण उन का बंधुआ है पैसे के बूट से मसल रहे हैं 

[ 10 मार्च , 2016 ]

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