Friday, 4 March 2016

मन में फूल खिला कर हम को फिर तड़पाने आए हैं

फ़ोटो : सुशीला पुरी


ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

फागुन की मस्त हवा में हम को वह बहकाने आए हैं
मन में फूल खिला कर हम को फिर तड़पाने आए हैं

सुर छूटा महफ़िल छूटी संगत भी छूटी सब कुछ टूट गया
दिल की काशी में वह फिर से राग मल्हार सुनाने आए हैं

कल कुछ और था आज और दिल की रंगत बदल गई
सरसो के फूल विदा हुए अब फलियों में दाने आए हैं

जिन के पत्ते टूट गए थे उन के पत्ते नए हुए और वह भी
नए लिबास पहन कर वह तो पहले सा भरमाने आए हैं 

मौसम मचल रहा है उन के भी मन और घर आंगन में
बौर भी विदा होंगे सुना है उन के पेड़ में टिकोरे आने हैं

कल तक फूल थे जो आज फल बन गदराए घूम रहे हैं
देखिए मौसम बदल गया रुप की धूप में जलाने आए हैं

[  4 मार्च , 2016 ]

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-03-2016) को "ख़्वाब और ख़याल-फागुन आया रे" (चर्चा अंक-2273) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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