भारतीय राजनीति की नदी में शरद यादव जैसे कछुआ लोगों की बहुत ज़रुरत है !
तो क्या शरद यादव बिहार के मधेपुरा में हार रहे हैं?
तो क्या शरद यादव बिहार के मधेपुरा में हार रहे हैं?
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सच
यही है कि सामाजिक न्याय के नाम पर जातिवादी राजनीति की जो जहरीली फ़सल
हमारे सामने है वह सांप्रदायिक राजनीति से भी ज़्यादा खतरनाक है। यह सच है
कि कांग्रेस भी जातिवादी राजनीति करती रही है लेकिन दबे ढंके। खुल्लमखुल्ला
डंके की चोट पर नहीं। लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों ने जिस दबंगई से जातिवादी
राजनीति को अपना हथियार बनाया वह उन्हें तो ले ही डूबा, देश को भी गहरे
गर्त में ले गया है। आखिर लालू चारा घोटाले के आरोप में सज़ायाफ़्ता
हो कर भी जेल यात्रा के बाद भी किस मुंह से राजनीति कर रहे हैं? और कि पूरी
बेशर्मी से। और कि अभी-अभी बिहार में राबड़ी की कार की जांच करने वाले एस
डी एम के साथ उन्हों ने खुले आम अपनी गुंडई का चेहरा देश के सामने उपस्थित
किया है वह हैरतनाक है। और शर्मनाक भी। जातिवादी उत्थान की हनक में उन का
यह सामंती चेहरा पहले भी कई बार देखा गया है। पर यह और ऐसी गुंडई, कैमरे पर
पहली बार देखा है हमने। वह एस डी एम को सीधे चप्पल मार कर ठंडा कर
देने की चीखती-चिल्लाती आक्रामक पूरी गुंडई में धुत्त भाषा में धमकी दे रहे
हैं। उसे पकड़ कर झिंझोड़ रहे हैं। बिलकुल आपा खोए हुए। खुद गुंडई कर रहे
हैं और एस डी ओ तथा पुलिस अधिकारी को धमकी दिए जा रहे हैं। अधिकारी चुनाव
आयोग के आदेश-निर्देश का हवाला दे रहे हैं। पर वह तो जैसे होश में नहीं
हैं। उन का यह चेहरा और यह हरकत चुनाव आयोग कैसे बर्दाश्त कर रहा है, क्या कार्र्वाई कर रहा है?
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नीतीश कुमार का अहंकार
भी किसी से छुपा नहीं है। उन की जातिवादी राजनीति भी किसी से छुपी नहीं है।
उन का तानाशाही रवैया भी किसी से छुपा नहीं है। नीतीश द्वारा बिहार मीडिया
को खरीद लेना भी किसी से छुपा नहीं है। हां नीतीश के खाते में बिहार में
कानून का रज वापस लाने और विकास को पटरी पर ले आने का काम ज़रुर
स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जाएगा। इस के लिए उन को जितना सैल्यूट किया
जाए कम है। लेकिन तब भी आखिर उन की ही पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव
द्वारा उन पर जातिवादी होने का आरोप लगाना उन्हें कटघरे में ज़रुर खड़ा करता
है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में जातिवादी राजनीति में आकंठ डूबे
मायावती और मुलायम के पांव भी भ्रष्टाचार में भारी हैं। सी बी आई, सुप्रीम
कोर्ट तक बात पहुंची है और यह लोग अदालती जोड़-तोड़ के बहाने, कांग्रेस के
तलुए चाटते हुए बचे हुए हैं जेल जाने से।
इन दोनों का सामंती चेहरा भी सब
के सामने है। मुलायम भी कई बार अपनी हदें पार कर जाते हैं। अभी इसी चुनाव
में शिक्षा मित्रों को वह धमकी दे ही चुके हैं कि वोट नहीं दिया सपा को
तो रेगुलर नहीं करेंगे। मायावती को वह संकेतों में सही कांशीराम की
श्रीमती बता चुके हैं। तो मायावती भी उन के पहली पत्नी के साथ बिखरे
दांपत्य का बखान करते हुए उन्हें आगरा के पागलखाने में इलाज की ज़रुरत बता
चुकी हैं।
जातिवादी राजनीति में लथपथ जय ललिता का भ्रष्टाचार भी जग जाहिर है और करुणानिधि का भी। उन की बेटी
कनिमोझी जेल हो आई हैं और एक पत्नी जेल जाने से बचने की जुगत में हैं।
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ऐसे में शरद यादव जैसे राजनीतिज्ञ की यातना को समझने की ज़रुरत है। न सिर्फ़ उन की यातना समझने की ज़रुरत है बल्कि ऐसे राजनीतिज्ञों को सहेज कर रखने की ज़रुरत है। इस लिए भी कि शरद यादव जैसे ईमानदार, योग्य और बेधड़क नेता भारतीय राजनीति में बहुत थोड़े से रह गए हैं। शरद यादव संसदीय राजनीति के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। हालां कि कुछ छिट्पुट दाग हैं उन पर भी जैसे संसद में महिला आरक्षण बिल को पास न होने देने में जिस तरह लालू और मुलायम के साथ तिकड़ी बना कर वह पूरी ताकत से खड़े हो गए थे एक समय। जैन हवाला कांड में भी उन का नाम घसीटा गया था। और भी कुछ ऐसे मामले हैं। पर बावजूद इस सब के शरद यादव जैसे लोगों का भारतीय राजनीति के लिए बचे रहना बहुत ज़रुरी है। क्यों कि भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता और जाति-पाति से लड़ने में इन का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। शरद यादव मध्य प्रदेश के जबलपुर से आते हैं यह बात बहुत कम लोग जानते हैं। इस लिए कि शरद यादव क्षेत्रीयता में भी यकीन नहीं करते। वह उत्तर प्रदेश से भी सांसद रह चुके हैं और बिहार से भी। वह देश में कहीं से भी चुनाव लड़ सकने का माद्दा रखते हैं। मुझे भूलता नहीं कि जब शरद यादव का भी नाम जैन हवाला कांड में आया तो शरद यादव इकलौते नेता थे जिन्हों ने आन कैमरा स्वीकार किया था कि हां, जैन से पांच लाख रुपए का चंदा हम ने लिया था, यह हमारी डायरी में दर्ज है। बाकी नेता तो बगलें झांक रहे थे। मोती लाल बोरा जैसे नेता को इसी फेर में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। अब अलग बात है कि इस स्वीकारोक्ति के बावजूद शरद यादव समेत सभी नेता जैन हवाला कांड से बाइज्जत बरी हो गए थे। यह हमारी न्याय पालिका की महिमा है कुछ और नहीं। लेकिन बावजूद इस तमाम अगर-मगर के शरद यादव जैसे लोग भारतीय राजनीति के लिए ज़रुरी हैं। बहुत ज़रुरी। जैसे नदी साफ रखने के लिए नदी में कछुआ आदि का होना ज़रुरी है वैसे ही शरद यादव जैसे खांटी समाजवादी, पढ़े-लिखे समझदार और सुलझे लोगों की बहुत ज़रुरत है। यह हमारी राजनीति रुपी नदी के कछुआ हैं। ठीक वैसे ही जैसे मार्क्सवादी सोमनाथ चटर्जी। जैसे भाजपाई अटल बिहारी वाजपेयी। जो दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर भी सोचते हैं।
Aam aadmi ko kisi sampraday se na joda jai.Use mohara bana kar rajneeti na kiya jai.Desh ko is baat ki zaroorat hai.Aap ko itne achche lekh ki badhai.
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