फ़ेसबुकिया नोट्स की एक और लड़ी
- कारपोरेट सेक्टर के मैनेजमेंट में एक शब्द बहुत मासूमियत से चलता है बिन बोले, ह्यूमन मैनेजमेंट का। तो क्या नरेंद्र मोदी ह्यूमन मैनेजमेंट भी जानते हैं? चुनावी बिसात पर बंपर जीत के बाद जिस तरह सार्क कार्ड खेल कर उन्हों ने पाकिस्तान में भी मोदी-मोेदी का जो समा बनाया है वह तो नायाब है। जिन पाकिस्तानी चैनलों पर चुनाव के दौरान मोदी की दहशत तारी थी, वहीं उन्हीं चैनलों पर नवाज शरीफ़ के कुबूल के बाद मोदी की जय- जयकार होने लगी है। मोदी पर यकीन की बरसात जारी है। तो क्या हिंदुस्तानी मीडिया के बाद पाकिस्तानी मीडिया को भी मोदी ने खरीद लिया है? या सिर्फ़ ह्यूमन मैनेजमेंट का जादू ही है? लेकिन यह तो एक दुश्मन देश को भी मैनेज कर लेने का सबब भी नहीं है?
- मीडिया बना तो है सत्ता के प्रतिरोध के लिए। लेकिन हमारे देश में यह अब हमेशा सत्ता के साथ ही क्यों होता है? राजा का बाजा बजाता हुआ, कुत्तों की तरह दुम हिलाता हुआ ? तलवे चाटता और कोर्निस बजाता हआ?
- रजत शर्मा को अब इंडिया टी वी का नाम बदल कर मोदी टी वी कर लेना चाहिए। राज्य सभा और पद्म पुरस्कार तो उन के तय हैं ही, कुछ और भी मिल जाए शायद।
- नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल का इस तरह असमय पतन और भटकाव देख कर बहुत तकलीफ होती है।
- समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक और मुलायम के भाई रामगोपाल यादव ने एक बार अरविंद केजरीवाल को भटकी हुई मिसाइल कहा था तो मुझे बहुत बुरा लगा था तब। लेकिन अब लगता है कि राम गोपाल यादव का आकलन बहुत सही था। बल्कि अरविंद केजरीवाल इस से भी आगे की चीज़ हैं।
- बताइए कि दिल्ली में सरकारी घर बचाने के लिए लालू प्रसाद यादव और शरद यादव एक हुए हैं। सो इस के लिए अब राबड़ी यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार को राज्य सभा जाना पड़ेगा। सो धर्मनिर्पेक्षता का कार्ड खेलने का स्वांग करना पड़ा है। केर बेर का यह संग काश कि चुनाव के पहले हुआ होता तो क्या धर्मनिर्पेक्षता का रंग कुछ और चोखा नहीं हुआ होता? लेकिन अब तो चिड़िया चुग गई खेत कहिए या का वर्षा जब कृषि सुखाने कहिए, बात एक ही है।
- बिहार में आखिर नीतीश कुमार ने बिजली का नंगा तार छू लिया। अल्ला जाने क्या होगा आगे !
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