Monday 19 May 2014

नीतीश कुमार ने इस्तीफ़ा क्या दिया तमाम मुख्य मंत्रियों की शामत आ गई

 फ़ेसबुकिया नोट्स की एक और लड़ी

  • बिहार में नीतीश कुमार ने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा क्या दिया तमाम मुख्य मंत्रियों की शामत आ गई है। अब बारी कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों की है। खबर है कि महाराष्ट्र और हरियाणा के मुख्य मंत्री भी इस्तीफ़ा देंगे। उत्तर प्रदेश में अखिलेश की नाव भी भंवर में हैं। तो झारखंड के मुख्य मंत्री भी सांस गिन रहे हैं। राजनीतिक सुनामी शायद इसी को कहते हैं। लेकिन भाजपाई नेता जब चुनाव के दिनों में सुनामी की बात करते थे लोग मजाक उड़ाते थे।

  • क्या तो वह अंबेडकर, लोहिया और जे पी के अनुयायी हैं। लेकिन पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित और महादलित होने का गुरुर जीते हुए। इस का कार्ड खेलते हुए। पूरे शहीदाना अंदाज़ में। अंबेडकर, लोहिया और जे पी को मुह चिढ़ाते हुए। हा हा ! सब शुतुर्मुर्गी सेक्यूलर हैं ! सामाजिक न्याय के पुरोधा ! मौकापरस्ती की मलाई काटते हुए। कुछ मित्र झूट्ठै परेशान हैं। यह लोग ऐसे ही, ऐसी ही बशर्मी से जीते रहेंगे सीना तान कर।

  • लगता है कांग्रेस को अभी और भी दुर्दिन देखने हैं। अभी-अभी कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी की हुई प्रेस कांफ्रेंस का सार तो यही है। यह प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में आज सोनिया गांधी और राहुल गांधी द्वारा इस्तीफ़े की पेशकश के बाबत थी। उधर कांग्रेस कार्य समिति ने सोनिेया, राहुल के इस्तीफ़े को एक सुर से रद्द किया और इधर जनार्दन द्विवेदी ने पत्रकारों के सवालों को सिरे से रद्द किया। अपने वक्तव्य में वोटों के ध्रुवीकरण का विधवा विलाप किया और भाजपा के प्रचार संसाधनों आदि का पुराना रोना रोया। पूछा गया कि क्या यह इस्तीफ़ा ड्रामा था? जनार्दन बोले, यह शिष्ट प्रश्न नहीं है। तो कभी यह व्यक्तिगत है आदि, कह कर वह सारे सवाल मुस्कुरा मुसकुरा कर पीते और लौटाते रहे। इस से अच्छे तो अपने नीतीश कुमार हैं जिन्हों ने न सिर्फ़ बिन मांगे इस्तीफ़ा दे दिया बल्कि कार्यकर्ताओं के तमाम हंगामे के बावजूद इस्तीफ़े पर अटल रहे और कि अपने एक सहयोगी जितन राम माझी को मुख्य मंत्री पद पर मनोनीत कर के अति दलित कार्ड भी खेल दिया।

  • फेसबुक पर कुछ दोस्तों की दुविधा यह है कि वह अपनी प्रतिक्रिया में विमर्श नहीं फैसले की भाषा बोलते हैं। अगर भाजपा या मोदी के पक्ष में माहौल चला गया है तो क्या मैं चिल्लाता फिरूं कि मेरे साथ बलात्कार हो गया है ! जैसा कि कुछ लोग कर और कह रहे हैं? मेरे लिए यह मुश्किल काम है। इस लिए भी कि मैं लोकतंत्र में यकीन करता हूँ और कि जनादेश का सम्मान भी करता हूँ । बहुत सारी बातें मेरे मन की होती नहीं दिखतीं तो क्या मैं दिन को रात या रात को दिन कहता फिरूं? तो सारी बातें मेरे मन की हो जाएंगी? अगर मेरी देह में जो कोई कोढ़ हो गया है तो कब तक मैं उसे कोई कपड़ा रख कर छुपाता फिरुंगा? कुछ दोस्तों के साथ यही हो गया है। एक बात और बताना चाहता हूँ की मुझे कुछ दोस्तों की तरह मोतियाबिंद नहीं है। सो तार्किक बात करता हूँ । दूसरे यह बात भी नोट कर लीजिए मित्रों कि विचारधारा और पसंद एक बात है, सत्य और तथ्य बिलकुल दूसरी बात। ज़रूरी नहीं है की दोनों संयोग एक साथ मिल जाएं। कभी मिल भी सकते हैं आर कभी नहीं भी । यह बात जिस दिन आप मित्र लोग समझ लेंगे आप की सारी दुविधा दूर हो जाएगी । लेकिन दोस्तों जब मेरे साथ विमर्श कीजिए कभी तो तार्किक ढंग से कीजिए, खुशी होगी । मईया मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं ! में बात हरदम नहीं बनती । एक बार फिर से अपनी दुविधा दूर कर लीजिए मित्रों और जान लीजिए की मैं किसी राजनीतिक दल या किसी संगठन से संबद्ध नहीं हूँ, न ही किसी खूंटे से बंधा हूँ । स्वतंत्र रचनाकार और टिप्पणीकार हूँ । दिन को दिन और रात को रात कहने में यकीन करने वाला। एक और बात बड़े-बड़े अक्षरों में लिख लीजिए मित्रों कि मैं भाजपाई नहीं हूं। न ही कांग्रेसी वगैरह। मैं एक स्वतंत्र रचनाकार और टिप्पणीकार हूं। समय की दीवार पर लिखा निष्पक्षता से बांच देता हूं। बिना किसी आग्रह या पूर्वाग्रह के। सो आप अपनी मोतियाबिंद का इलाज कीजिए और कि यह फतवा अपने पास ही रखिए। यह भी कि जो आप को न भाए उसे भाजपाई घोषित करने की बीमारी से अवकाश लीजिए।क्यों कि यह बहुत खतरनाक बीमारी है। ।

  • बताइए की अब की के चुनाव में मायावती का साथ ब्राह्मणों, मुसलमानों यहां तक की दलितों ने भी छोड़ा| पर जाने क्यों वह सिर्फ मुसलमानों को ही कोस रही हैं| हालां की उन्हें अगर किसी को कोसना ही है तो कायदे से अपनी तानाशाही और अपने सलाहकारों को ही कोसना चाहिए| किसी और को नहीं| लेकिन क्या कीजिएगा तानाशाही में बड़े-बड़े लोगों की मति मारी जाती है| तो यह मायावती क्या चीज़ हैं ?

  • सामाजिक न्याय का मुखौटा ओढ़े जातीय और सांप्रदायिक राजनीति करने वाले लोग आज कल बेवजह अपना सर धुन रहे हैं। लेकिन अपनी गलती का एहसास उन्हें फिर भी नहीं है।

  • नरेंद्र मोदी ने कल गंगा आरती के समय गंगा और काशी की सफाई की बात की थी। पाकिस्तान और वहां के चैनलों पर बैठे विशेषज्ञों ने इस का मतलब यह निकाल लिया है कि काशी से मुसलमानों की सफाई ! अजब है यह इंटरप्रेटेशन भी।

  • आखिर लोग समझते क्यों नहीं कि लफ़्फ़ाजी आदमी को राहुल गांधी बना देती है।

  • अरविंद केजरीवाल का नशा लगता है उतर गया है। कांग्रेस की मदद से वह दिल्ली में फिर से सरकार बनाने की कवायद में लग गए हैं। चुनाव में जाने की हिम्मत छूट गई है। सा्री हेकड़ी बाहर आ गई है एक चुनाव में ही। और बताइए कि राजनीति भी करेंगे !

  • बिहार में यह फ़र्जी सेक्यूलरिज्म के नाम पर अगर नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लेते हैं तो अपने सारे सुशासन को वह पानी में डाल देंगे। जीत-हार लगी रहती है लेकिन जिस ईमानदारी और स्व्च्छ प्रशासन के लिए हम नीतीश कुमार को जानते हैं वह उन्हें सैल्यूटिंग बनाता है। लेकिन अगर वह महाभ्रष्ट और अहंकारी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लेते हैं तो नीतीश पूरी तरह नष्ट हो जाएंगे, यह तय है। इस लिए भी कि बिहार में लालू प्रसाद यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव दोनों ही बिजली का वह नंगा तार हैं जिन्हें आप चाहे दोस्ती में पकड़ें या दुश्मनी में आप को नष्ट-भष्म होना ही है। यकीन न हो तो कांग्रेस का हश्र देख लें दोनों जगह।



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