Saturday, 17 May 2014

तो क्या मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बनने जा रहे हैं ?

 कुछ और फ़ेसबुकिया नोट्स

  • अटकल ही सही लेकिन उत्तर प्रदेश के सत्ता गलियारों में कहा जा रहा है कि प्रधान मंत्री का सपना टूट जाने के बाद अपने नेता जी मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बनने जा रहे हैं। उन को लगता है कि अखिलेश सरकार ठीक से संभाल नहीं पा रहे। पारिवारिक दबाव भी बहुत है। पहले योजना थी कि बाप बेटे केंद्र में चले जाएंगे। उत्तर प्रदेश शिव पाल सिंह के हवाले करते हुए उन्हें मुख्य मंत्री बना देंगे। लेकिन सब उलट-पुलट हो गया है। अब शिवपाल का दबाव तो है ही, दूसरे पुत्र प्रतीक यादव भी हिस्सेदारी मांग रहे हैं। आजम खां अलग मुट्ठियां भींच रहे हैं। गरज यह कि हस्तिनापुर संकट में है। तो रास्ता यही है कि धृतराष्ट्र खुद गद्दी संभाल लें। विदुर चाहे जो कहें। अब आप यह मत पूछ लीजिएगा कि यह विदुर कौन है?

  • नीती्श कुमार के इस्तीफ़े का स्वागत किया जाना चाहिए। राजनीति में नैतिकता का तकाजा यही है। यह अच्छी बात है कि नीतीश ने इस मर्म को समझा। कायदे से इस की शुरुआत सोनिया और राहुल को कांग्रेस से अपने पदों से इस्तीफ़ा दे कर करना चाहिए था। आखिर यह कैसे हो गया कि लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए भी गठबंधन की नौबत आ गई। ज़रुरत तो यह थी कि चुनाव में ही सभी धर्मनिर्पेक्ष दलों को एक साथ मिल जाना चाहिए था। और कि मिल कर चुनाव लड़ना चाहिए था। तो शायद नतीजा कुछ और भी हो सकता था। खैर देर आयद दुरुस्त आयद। नहीं कौन नहीं जानता कि बिहार में नीतीश ने अदभुत काम किया है। लेकिन उन की राजनीतिक गलतियों और उन की ज़िद ने सब पर पानी फेर दिया। राजनीति ज़िद से नहीं चलती। न हेकड़ी और अहंकार से। यह बात तमाम धर्मनिर्पेक्ष दलों को जान लेना चाहिए। आप ही बताइए कि अगर सभी से्क्यूलर लोग मिल कर एक साथ लड़े होते तो क्या यह नौबत आती? लेकिन सब के सब अपनी-अपनी हेकड़ी और अहंकार में अलग-अलग लड़ते हुए लफ़्फ़ाज़ी हांकते रहे। नतीज़ा सामने है। अब हारने के बाद नीतीश लालू एक होने की बात कर रहे हैं। पहले नहीं हो सकते थे? कम से कम बनारस में सब लोग मिल कर साझा उम्मीदवार भी नहीं खड़ा कर सकते थे?

  • नरेंद्र मोदी एक बड़ी गलती कर रहे हैं। इतनी बड़ी जीत दिलवाने के लिए वह बड़ौदा से लगायत काशी तक जा रहे हैं धन्यवाद देने के लिए। पर उन को यह बड़ी जीत दिलवाने में बिहार के मुख्य मंत्री नीेतीश कुमार की भूमिका भी बहुत बड़ी है। उन को धन्यवाद देना वह क्यों भूले जा रहे हैं भला? नीतीश न होते तो मोदी को इतनी गालियां न पड़तीं, न उन की देखा-देखी मुस्लिम वोट की हिफ़ाजत में लोग इतना न पड़ते कि लोग अपनी हिफ़ाजत भूल जाते। दिग्विजय सिंह, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, बेेनी वर्मा, ममता, मायावती आदि को भी धन्यवाद ज्ञापन देना तो बनता है।

  • फ़ेसबुक पर फर्जी आई डी वाले एक मित्र संदीप वर्मा ने आज अपना फ़ेसबुक अकाऊंट लगता है डिएक्टिवेट कर दिया है। यह सूचना आज एक मित्र ने दी तो मैं ने भी चेक किया। मित्र की सूचना सही निकली। संदीप वर्मा विश्वनाथ प्रताप सिंह की फ़ोटो अपनी प्रोफ़ाइल में लगाते रहे हैं। कुतर्क करने और जातीय जहर उगलने में उन का कोई शानी नहीं है। चंचल बी एच यू से उन की बहुत पटती थी। और दोनों मिल कर कुतर्क और सेक्यूलरिज्म की लंतरानी अच्छी हांकते थे। अकसर दलित चेतना की हुंकार भरते हुए जातीय जहर उगलने में वह काफी पारंगत हैं। उन से एक बार मैं ने उन की वाल पर जा कर साफ पूछ लिया था उन के फर्जीपने के बाबात। तो उन्हों ने इसे स्वीकार कर लिया था। संदीप वर्मा अभी परसों तक कांग्रेस की सरकार बनवाने में लगे थे। पर उन का यह अचानक फ़ुर्र हो जाना? खैर उन के बहाने कुछ और फर्जी आई डी वाले लोगों की भी खबर ली थी बीते महीने।

  • दलित चेतना, यादव चेतना और मुस्लिम चेतना का उत्तर प्रदेश के प्रशासन में बहुत बड़ा असर रहता है। आग मूतने की हद तक। जातीय चेतना और गणित का आलम यह है कि मंत्री तो मंत्री अफ़सरों और कर्मचारियों की नियुक्ति भी जातीय आलोक में ही की जाती है। यहां तक कि मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक जैसे पदों की नियुक्तियां भी जातीय चेतना में डूब कर होती हैं। दलित चेतना, मुस्लिम चेतना और यादव चेतना सब पर भारी रहता आया है बीते ढाई दशक से। अगर बहुजन समाज पार्टी की सरकार होती है तो हर प्राइज और महत्वपूर्ण पोस्ट पर दलित ही दिखेगा। भ्रष्टाचार के सागर में गोता मारता हुआ। अगर समाजवादी पार्टी की सरकार है तो हर प्राइज और महत्वपूर्ण पोस्ट पर यादव जी लोग लुक होंगे। भ्रष्टाचार के भवसागर में आकंठ डूबे हुए। यहां तक कि पुलिस विभाग में तो सारे यादव थानेदार हो ही जाते हैं। गाज़ियाबाद से बलिया तक यही आलम होता है। दलित हों कि यादव, अफ़सर तो अफ़सर, एक क्लर्क तक आग मूते रहता है। कि किसी और वर्ग के व्यक्ति का काम करना क्या सांस तक लेना दूभर रहता है। और इन की आंच में आम जनता को नित अपमानित होना जैसे नियम सा बन गया है। इस जातीय चेतना पर लगाम लगना भी ज़रुरी नहीं है? जाति कोई भी हो उस की अति सर्वदा बुरी होती है। कबीर कह ही गए हैं कि:
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ।


  • जाने कोई समाजशास्त्री या कई सर्वे एजेंसी इस तथ्य पर भी नज़र डालेगी कि नहीं कि फ़ेसबुक पर नियमित जातीय जहर उगलने वालों और सेक्यूलरिज्म के नाम पर लफ़्फ़ाजी हांकने वालों का भी क्या मोदी को यह प्रचंड जीत दिलवाने में कुछ योगदान है कि नहीं? आखिर शोध का यह विषय है कि नहीं? कई जांबाज़ तो इस पुनीत कार्य के लिए फ़ुल बेशर्मी से फ़र्जी आई डी भी बना कर आदर्श और क्रांति बघारते फिर रहे थे।

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