यह और ऐसी घिनौनी राजनीति पर लगाम लगाई जानी चाहिए
बनारस में ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव की ईमानदारी और सख्ती के बड़े चर्चे हैं। पर उन की यादवी अकड़ ने आज उन की समझ और ईमानदारी, सख्ती आदि पर सवाल खड़ा कर दिया। १९९१ की एक घटना की बिना पर मोदी की जनसभा की अनुमति को जिस तरह रद्द कर उन्हों ने बेवजह मोदी को अपने प्रचार का एक और हथियार थमा दिया वह उन की प्रशासकीय क्षमता और ईमानदारी पर दाग लगाने के लिए काफी है। मोदी के नामांकन के दिन भी जिस तरह वह काफी देर तक कोर्ट के बरामदे में मोदी को खड़ा करवा कर निर्दलियों का नामांकन करवाते रहे थे वह भी उन की यादवी अकड़ का नमूना था। दिलचस्प यह कि जिन निर्दलियों के नामांकन के लिए उन्हों ने मोदी को बरामदे में चपरासी की तरह खड़ा कर रखा था, वही निर्दलीय बाहर आ कर मोदी के पैर छू-छू कर आशीर्वाद लेते दिखे। हालां कि प्रांजल यादव के इस फ़ैसले में कहा जा रहा है कि मुख्य मंत्री अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की सहमति थी। सूत्र यह भी बताते हैं कि प्रांजल यादव यादव परिवार के दामाद भी हैं। खैर सच क्या है यह आने वाले समय में यह सब भी सामने आ जाएगा। सारी सचाई सामने आ जाएगी। जो हो फ़िलहाल तो बनारस के इस ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव ने तो मोदी को घर बैठे प्रचार की बरसात दे दी अपनी मूर्खता में। रैली में मोदी बहुत बोलते तो एक घंटा। पर रैली रद्द होने से वह बनारस की सड़कों पर पांच घंटा रहे। भीड़ से भरी सड़कें। मोदी की तो जैसे लाटरी खोल दी इस ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव ने। खैर जो हो लेकिन अभी तो सवाल यह है कि क्या मुलायम सिंह यादव सचमुच नरेंद्र मोदी और भाजपा की प्रकारांतर से मदद कर रहे हैं?
राजनीतिक हालात बताते हैं कि हां।
मुलायम सिंह यादव का पुराना रिकार्ड रहा है भाजपा की मदद का। इस लिए भी कि उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा एक दूसरे के पर्याय हैं। दोनों की प्रगति एक दूसरे के साथ ही होती रही है। हिंदू-मुसलमान के बीच खाई खोद कर अपना वोट बैंक चमकाती रही हैं। एक समय काग्रेस नेता प्रमोद तिवारी अपने भाषणों में खुले आम आरोप लगाते थे कि रात के अंधेरे में मुलायम और कल्याण मिलते हैं और तय कर लेते है कि कितने हिंदू मारे जाएंगे और कितने मुसलमान !बनारस में ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव की ईमानदारी और सख्ती के बड़े चर्चे हैं। पर उन की यादवी अकड़ ने आज उन की समझ और ईमानदारी, सख्ती आदि पर सवाल खड़ा कर दिया। १९९१ की एक घटना की बिना पर मोदी की जनसभा की अनुमति को जिस तरह रद्द कर उन्हों ने बेवजह मोदी को अपने प्रचार का एक और हथियार थमा दिया वह उन की प्रशासकीय क्षमता और ईमानदारी पर दाग लगाने के लिए काफी है। मोदी के नामांकन के दिन भी जिस तरह वह काफी देर तक कोर्ट के बरामदे में मोदी को खड़ा करवा कर निर्दलियों का नामांकन करवाते रहे थे वह भी उन की यादवी अकड़ का नमूना था। दिलचस्प यह कि जिन निर्दलियों के नामांकन के लिए उन्हों ने मोदी को बरामदे में चपरासी की तरह खड़ा कर रखा था, वही निर्दलीय बाहर आ कर मोदी के पैर छू-छू कर आशीर्वाद लेते दिखे। हालां कि प्रांजल यादव के इस फ़ैसले में कहा जा रहा है कि मुख्य मंत्री अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की सहमति थी। सूत्र यह भी बताते हैं कि प्रांजल यादव यादव परिवार के दामाद भी हैं। खैर सच क्या है यह आने वाले समय में यह सब भी सामने आ जाएगा। सारी सचाई सामने आ जाएगी। जो हो फ़िलहाल तो बनारस के इस ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव ने तो मोदी को घर बैठे प्रचार की बरसात दे दी अपनी मूर्खता में। रैली में मोदी बहुत बोलते तो एक घंटा। पर रैली रद्द होने से वह बनारस की सड़कों पर पांच घंटा रहे। भीड़ से भरी सड़कें। मोदी की तो जैसे लाटरी खोल दी इस ज़िलाधिकारी प्रांजल यादव ने। खैर जो हो लेकिन अभी तो सवाल यह है कि क्या मुलायम सिंह यादव सचमुच नरेंद्र मोदी और भाजपा की प्रकारांतर से मदद कर रहे हैं?
राजनीतिक हालात बताते हैं कि हां।
बहरहाल बनारस में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण पूरी तरह हो गया है। जो कुछ थोड़ी बहुत कसर बाकी रह गई थी उसे प्रांजल यादव के आज के तुगलकी फ़ैसले ने पूरी कर दी है। अगर बेनियाबाग में मोदी की रैली से इतना ही खतरा था बनारस के जन जीवन और कानून व्यवस्था को तो पहले इस रैली की इज़ाज़त कैसे दी गई थी? और कि बाकी पार्टियों की रैली को बेनियाबाग में कैसे इजाजत दी गई अभी तक? या कि राहुल गांधी को भी कैसे दे दी गई है? नरेंद्र मोदी तो सीधे पूछ रहे हैं कि कश्मीर या नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जब वह सुरक्षित रहे तो यहां कैसे असुरक्षित हैं? और कि बेनियाबाग में रैली से ज़्यादा भीड़ तो मोदी के अघोषित रोड शो में आ गई। उन के नामांकन के दिन से भी ज़्यादा। लेकिन यादव परिवार की राजनीति के इस फ़ैसले से चुनाव आयोग भी संदेह के घेरे में आ गया। इतना ही नहीं दो दिन पहले अरविंद केजरीवाल को बनारस प्रशासन ने 'हिदू बहुल' इलाके में जाने से मना किया। अरविंद केजरीवाल ने प्रशासन को लिख कर इस बाबत प्रतिवाद किया है। आप यहां अरविंद केजरीवाल की चिट्ठी यहां पढ़ सकते हैं :
सेवा में,
जिला अधिकारी,
वाराणसी, उ0प्र0
महोदय,
आपका 2 मई 2014 का लिखा पत्र मिला। (पत्र संख्या 4542/एस.जी.-नगर-2014) इस पत्र के साथ आपने पुलिस उपाधीक्षक (प्रज्ञान), काशी, की 28 अप्रैल 2014 की रिर्पोर्ट संलग्न की है। उनकी इस रिर्पार्ट पर मुझे घोर आपत्ति है।
उन्होंने अपनी रिर्पार्ट में लिखा है कि मैं ‘‘हिन्दु बाहुल्य तथा भाजपा समर्थित स्थानों’’ पर श्री नरेन्द्र मोदी जी के खिलाफ बोल रहा हूं, जिससे पुलिस को परेशानी हो रही है। तो क्या आपके पुलिस उपाधीक्षक चाहते हैं कि मैं श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बोलना बंद कर दूं? काशी का तो अधिकतर इलाका हिन्दू बाहुल्य है। तो क्या पूरे काशी में श्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ बोलना बंद कर
देना चाहिए?
जो लोग हिंसा कर रहे हैं, वो लोग हिन्दू नहीं बल्कि भाजपा के गुण्डे हैं। आपके उपाधीक्षक का यह मान लेना कि सभी हिन्दू नरेन्द्र मोदी जी समर्थक हैं- यह सरासर गलत है। आपके उपाधीक्षक का यह मान लेना कि सभी हिन्दू श्री नरेन्द्र मोदी जी के खिलाफ कोई भी बात सुनने पर हिंसा करने लगेंगे- यह बहुत ही खतरनाक है।
हिन्दू धर्म के लोग दुनिया के सबसे शांतिप्रिय लोग हैं। कोई भी हिन्दू हिंसा नहीं चाहता। बल्कि हिन्दू धर्म ‘वसुदैव कुटुम्बकम’ सिखाता है।
28 अप्रैल 2014 की आपके पुलिस उपाधीक्षक की रिपोर्ट साफ-साफ दर्शाती है कि आपके पुलिस उपाधीक्षक घोर नरेन्द्र मोदी समर्थक हैं, भाजपा समर्थक हैं और हिन्दू धर्म के बारे में बहुत ही गलत विचार रखते हैं।
इसी रिपोर्ट में आपके उपाधीक्षक ने लिखा है- ‘‘श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा अपने प्रचार-प्रसार के दौरान ऐसे हथकन्डे अपनाए जा रहे हैं, जिससे मीडिया का ध्यान आकर्षण किया जा सके व मीडिया फोकस इन पर बना रहे।’’ आपके पुलिस उपाधीक्षक की टिप्पणी पर मुझे घोर आपत्ति है। क्या अब आपके पुलिस उपाधीक्षक मुझे सिखायेगें कि मुझे चुनाव प्रसार कैसे करना है?
मैं बिना सुरक्षा के जनता के बीच घुस जाता हूं, जनता से हाथ मिलाता हूं, जनता को गले लगाता हूं, जनता के प्रश्नों के जवाब देता हूं। जनता में से कोई भी मुझे घर बुलाता है और यदि मेरे पास समय हो तो मैं उसके घर भी चला जाता हूं। मेरे इसी व्यवहार को आपके पुलिस उपाधीक्षक ‘‘हथकंडा’’ कह रहे हैं। आपको शायद अपने पुलिस उपाधीक्षक को ‘जनतंत्र’ की परिभाषा बतानी होगी कि जनतंत्र हेलिकौपटर और एअर कंडिशन्ड कमरों से नहीं चलता। जनतंत्र गली-मोहल्लों, सड़कों और गांव-गांव में घूमने से चलता है।
मेरा संवाद सीधे काशी की जनता से है। आपकी पुलिस यदि मेरे और काशी की जनता के बीच में आने की कोशिश करेगी तो मैं ऐसी सारी कोशिशों को नाकाम कर दूंगा। आपकी नज़र में यह ‘हथकंडा’ हो सकता है, मेरी नज़र में यही ‘जनतंत्र’ है।
मैंने कभी आपसे अपने लिए सुरक्षा नहीं मांगी। इस पत्र के ज़रिए मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आपने अपनी मर्जी से मेरी सुरक्षा में जो पुलिस कर्मी लगाए हैं, उन्हें तुरन्त वापिस ले लिया जाए। इन सभी पुलिस कर्मियों को काशी की जनता की सुरक्षा के लिए लगाया जाए। मुझे सुरक्षा नहीं चाहिए। काशी की जनता मेरी सबसे बड़ी सुरक्षा है। काशी के लोग मुझे बहुत प्यार करने लगे हैं। काशी में मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बाबा विश्वनाथ जी का मुझ पर आशीर्वाद है, फिर किस बात का डर।
आप काशी की जनता की भाजपा के गुण्डों से सुरक्षा कीजिए, मेरी सुरक्षा की चिन्ता छोड़ दीजिए।
धन्यवाद
अरविंद केजरीवाल
राष्ट्रीय संयोजक, आम आदमी पार्टी
तो यह क्या है?
एक तरफ अरविंद केजरीवाल को हिंदू बहुल इलाकों का डर दिखाना दूसरी तरफ मुसलमानों को नरेंद्र मोदी का डर दिखाना यह कौन सी राजनीति है? क्या मुजफ़्फ़र नगर के दंगों से अभी तक पेट नहीं भरा? कि यह आज़मगढ़ का चुनाव जीतने की कसरत भी नहीं है? यह और ऐसी घिनौनी राजनीति पर लगाम लगाई जानी चाहिए।
देना चाहिए?
जो लोग हिंसा कर रहे हैं, वो लोग हिन्दू नहीं बल्कि भाजपा के गुण्डे हैं। आपके उपाधीक्षक का यह मान लेना कि सभी हिन्दू नरेन्द्र मोदी जी समर्थक हैं- यह सरासर गलत है। आपके उपाधीक्षक का यह मान लेना कि सभी हिन्दू श्री नरेन्द्र मोदी जी के खिलाफ कोई भी बात सुनने पर हिंसा करने लगेंगे- यह बहुत ही खतरनाक है।
हिन्दू धर्म के लोग दुनिया के सबसे शांतिप्रिय लोग हैं। कोई भी हिन्दू हिंसा नहीं चाहता। बल्कि हिन्दू धर्म ‘वसुदैव कुटुम्बकम’ सिखाता है।
28 अप्रैल 2014 की आपके पुलिस उपाधीक्षक की रिपोर्ट साफ-साफ दर्शाती है कि आपके पुलिस उपाधीक्षक घोर नरेन्द्र मोदी समर्थक हैं, भाजपा समर्थक हैं और हिन्दू धर्म के बारे में बहुत ही गलत विचार रखते हैं।
इसी रिपोर्ट में आपके उपाधीक्षक ने लिखा है- ‘‘श्री अरविंद केजरीवाल द्वारा अपने प्रचार-प्रसार के दौरान ऐसे हथकन्डे अपनाए जा रहे हैं, जिससे मीडिया का ध्यान आकर्षण किया जा सके व मीडिया फोकस इन पर बना रहे।’’ आपके पुलिस उपाधीक्षक की टिप्पणी पर मुझे घोर आपत्ति है। क्या अब आपके पुलिस उपाधीक्षक मुझे सिखायेगें कि मुझे चुनाव प्रसार कैसे करना है?
मैं बिना सुरक्षा के जनता के बीच घुस जाता हूं, जनता से हाथ मिलाता हूं, जनता को गले लगाता हूं, जनता के प्रश्नों के जवाब देता हूं। जनता में से कोई भी मुझे घर बुलाता है और यदि मेरे पास समय हो तो मैं उसके घर भी चला जाता हूं। मेरे इसी व्यवहार को आपके पुलिस उपाधीक्षक ‘‘हथकंडा’’ कह रहे हैं। आपको शायद अपने पुलिस उपाधीक्षक को ‘जनतंत्र’ की परिभाषा बतानी होगी कि जनतंत्र हेलिकौपटर और एअर कंडिशन्ड कमरों से नहीं चलता। जनतंत्र गली-मोहल्लों, सड़कों और गांव-गांव में घूमने से चलता है।
मेरा संवाद सीधे काशी की जनता से है। आपकी पुलिस यदि मेरे और काशी की जनता के बीच में आने की कोशिश करेगी तो मैं ऐसी सारी कोशिशों को नाकाम कर दूंगा। आपकी नज़र में यह ‘हथकंडा’ हो सकता है, मेरी नज़र में यही ‘जनतंत्र’ है।
मैंने कभी आपसे अपने लिए सुरक्षा नहीं मांगी। इस पत्र के ज़रिए मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आपने अपनी मर्जी से मेरी सुरक्षा में जो पुलिस कर्मी लगाए हैं, उन्हें तुरन्त वापिस ले लिया जाए। इन सभी पुलिस कर्मियों को काशी की जनता की सुरक्षा के लिए लगाया जाए। मुझे सुरक्षा नहीं चाहिए। काशी की जनता मेरी सबसे बड़ी सुरक्षा है। काशी के लोग मुझे बहुत प्यार करने लगे हैं। काशी में मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बाबा विश्वनाथ जी का मुझ पर आशीर्वाद है, फिर किस बात का डर।
आप काशी की जनता की भाजपा के गुण्डों से सुरक्षा कीजिए, मेरी सुरक्षा की चिन्ता छोड़ दीजिए।
धन्यवाद
अरविंद केजरीवाल
राष्ट्रीय संयोजक, आम आदमी पार्टी
तो यह क्या है?
एक तरफ अरविंद केजरीवाल को हिंदू बहुल इलाकों का डर दिखाना दूसरी तरफ मुसलमानों को नरेंद्र मोदी का डर दिखाना यह कौन सी राजनीति है? क्या मुजफ़्फ़र नगर के दंगों से अभी तक पेट नहीं भरा? कि यह आज़मगढ़ का चुनाव जीतने की कसरत भी नहीं है? यह और ऐसी घिनौनी राजनीति पर लगाम लगाई जानी चाहिए।
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