फ़ेसबुकिया नोट्स की एक और लड़ी
- अरविंद केजरीवाल ने मुचलका न भरने पर जेल जाने के पहले दिल्ली सरकार छोड़ने के लिए अपनी गलती स्वीकार कर माफ़ी मांगी है। अब क्या कोई उन्हें यह भी बताने वाला नहीं है कि दिल्ली प्रदेश सरकार छोड़ कर ही नहीं बल्कि सरकार बना कर ही उन्हों ने गलती की थी। सच अगर केजरीवाल कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने के बजाए सीधे लोक सभा चुनाव में उतर गए होते तो जैसा कि वह दावा कर रहे थे कि वह देश की राजनीति बदलने आए हैं, तो देश की राजनीति तब वास्तव में बदलती हुई दिखी भी होती और कि जो इतना अजर-अमर हो कर आए दिखते हैं नरेंद्र मोदी, यह सूरत तो उन की हरगिज न होती। पर क्या कीजिएगा कांग्रेस की डिप्लोमेसी में फंस कर एक से एक गलती पर गलती करते ही गए वह। और यह सिलसिला अभी भी उन का जारी है। मुचलका न भर कर जेल जाना भी सिरे की मूर्खता ही नहीं अपने पांव पर कुल्हाड़ी भी मारा है उन्हों ने। यह राजनीति नहीं, गिमिक है, नौटंकी है। अब केजरीवाल जनता से नहीं, उस की भावना से नहीं, खुद से खेल रहे हैं। खुदा बचाए उन्हें उन की मूर्खताओं से।
- यह तो अजब है कि पाकिस्तान के सुर बदल गए। नरेंद्र मोदी की एक बाल पर ही कश्मीर के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला से लगायत पाकिस्तान तक क्लीन बोल्ड हो कर सब के सब मोदी-मोदी करते हुए मोदी के प्रशस्ति वाचन में लग गए। यह वही उमर अब्दुल्ला हैं जिन के वालिद फ़ारुख अब्दुल्ला कहते नहीं अघा रहे थे कि मोदी को वोट देने वाले समंदर में डूब जाएं। और चुनाव हार गए। मोदी ने तो अभी प्रधान मंत्री पद की शपथ भी नहीं ली। बस अपने शपथ ग्रहण समारोह मे बुलावे की ए्क बाल फेंक दी बस ! तो आगे क्या होगा? सेक्यूलर फ़ोर्सेज की दुकानों का क्या होगा? इन की मनबढ़ई और इन के कुतर्क का क्या होगा? शाहरुख खान तक ने कह दिया है कि उन्हों ने कभी भी देश छोड़ने की बात नहीं कही थी।
- देश और देश के लोग 2014 में आ गए हैं। पर कुछ बहुत पढ़े-लिखे लोग 1992 और 2002 के दलदल और दु:स्वप्न में ही घूम रहे हैं। निकलना ही नहीं चाहते। एक छ्द्म खूंटा है सेक्यूलर नाम का अपनी मन मर्जी से जहां-तहां गाड़ लेते हैं और उसी में बंध कर सुभाषित झाड़ते फिरते हैं। तो कोई भी इन का क्या कर लेगा?
- अरविंद केजरीवाल बहुत बार यह कह चुके हैं कि मैं मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री बनने नहीं आया हूं। मैं तो देश की राजनीति को बदलने आया हूं। उन का यह कहा अब उन्हीं को मुंह चिढ़ा रहा है। अब वह फिर मुख्य मंत्री बनने की कवायद में लग गए हैं। तब जब कि वह भी जानते हैं कि काठ की हाड़ी बार-बार नहीं चढ़ती। अब दिल्ली प्रदेश में बिना चुनाव के कुछ भी संभव नहीं है। क्या यह बात भी वह नहीं जानते?
- संसद को लोकतंत्र का सब से बड़ा मंदिर कहते तो सभी हैं पर नरेंद्र मोदी ने आज इसे साबित किया। नहीं हमने इसी संसद में वंदेमातरम के समय पूरी बदतमीजी से एक सांसद को बाहर जाते भी देखा है और यह हमारी महान संसद उन का कुछ बिगाड़ नहीं पाई । उन्हों ने बहुत कहने पर भी क्षमा तक नहीं मांगी । वह धर्मनिरपेक्षता और इस्लाम की दुहाई देते रहे पूरी बेशर्मी से। और बात-बेबात धर्मनिरपेक्षता का दम भरने वाले हमारे सो काल्ड सेक्यूलर साथी खामोश रहे थे। जैसे कश्मीरी पंडितों के मसले पर रहते हैं। जैसे आतंकवादी घटनाओं पर खामोश होते हैं।
- एक हैं अब्दुल एच खान। अपनी जहरीली टिप्पणियों के साथ फेसबुक पर उपस्थित हैं। अपने को अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का पढ़ा हुआ बताते हैं । इन की वाल पर विष बुझी टिप्पणियॉ का अम्बार लगा है। एक सूत्रीय कार्यक्रम है कि देश के लोगों को मूर्ख समझना और कुतर्क से भरी तथ्यहींन सूचनाए परोसना। मोदी सन्निपात के मारे हुए हैं । आप ही बताइए कि क्या इस देश में कभी सपने में भी संभव है कि भारतीय नोटों पर गांधी की जगह गोडसे की फ़ोटो आ जाए? क्या इतना कमजोर है हमारा देश, हमारा क़ानून और संविधान? लेकिन अब्दुल एच खान ऐसी आशंका जता रहे हैं । वह अपनी पोस्ट में इ वी एम मशीनों को भी दिखा रहे हैं और बता रहे हैं की यह आदमी बनारस का है और घर में इ वी एम मशीन रखे हुए है। हद है। अब्दुल एच खान यह माजरा क्या है? आप को यह सब मजाक लगता है? अगर यह फोटो वास्तविक है और कि आप देश के ज़िम्मेदार नागरिक हैं तो फ़ौरन इस की सूचना चुनाव आयोग को दें या फिर न्यायालय में भी वाद दायर करें। यह एक गंभीर मामला है और आप इस को ले कर फेसबुक पर लंतरानी कर रहे हैं? लोगों को बरगलाना बंद कीजिए। और कुछ तो शर्म कीजिए। दिलचस्प यह कि अब्दुल एच खानअपनी वाल पर कुछ महत्वपूर्ण कवियों की कविताएं भी पोस्ट किए हुए हैं। सो इन कविताओ के मद्देनजर मोदी और भाजपा विरोध का मारा हमारा बौद्धिक जगत भी दिवालिया हो गया है जो ऐसे सरफिरे लोगों को सर चढ़ाता घूम रहा है। ऐसे लोगों की जम कर खबर ली जानी चाहिए। न कि इन्हें उत्साहित किया जाना चाहिए। https://www.facebook.com/abdulhk1?fref=nf
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