फ़ेसबुकिया नोट्स की एक और लड़ी
- मनमोहन सिंह ने मंहगाई कैसे रोकी जाए जानने के लिए एक कमेटी बनाई थी। नरेंद्र मोदी को इस कमेटी का चेयरमैन बनाया था। मोदी ने कई सारी संस्तुतियां दी थीं। उस में एक मुख्य संस्तुति यह थी कि वायदा कारोबार पर तुरंत रोक लगाई जाए। ताकि बिचौलियों पर लगाम लगाई जा सके। इस का खुलासा तब नरेंद्र मोदी ने खुद किया था। लेकिन मनमोहन सिंह ने जाने क्यों उस कमेटी की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई करने के बजाय उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। दिलचस्प यह कि पूरे चुनावी प्रचार में नरेंद्र मोदी ने भी इस का ज़िक्र नहीं किया। अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मोदी आखिर मंहगाई काबू करने के लिए क्या उपाय करते हैं? क्यों कि मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ही उन की परीक्षा के मुख्य प्रश्न हैं। इन में अगर वह फेल हो गए तो उन की सारी कामयाबी बंगाल की खाड़ी में डूब जाएगी। सड़क, बिजली, पानी और कानून व्यवस्था के साथ भी कदमताल न कर पाए तो भी उन के लिए कम आफत नहीं होगी।
- सेना, आई एस आई और अपने तमाम आतंकवादी दस्तों के विरोध के बावजूद पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ़ तो नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आ रहे हैं लेकिन भारत में तो वोट बैंक की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उस की खुमारी अभी तक तारी है। ममता, जयललिता और नवीन पटनायक अभी भी मुस्लिम और तमिल वोटरों को 'प्रसन्न' करने में त्रस्त हैं।
- सोच रहा हूं कि कहीं नरेंद्र मोदी और नवाज़ शरीफ़ की मुलाकात में भारत-पाकिस्तान संबंधों में सहजता आ गई, दोस्ती हो गई तो हमारी हिंदी के वीर रस के कवियों का क्या होगा? जो सीधे लाहौर तक भारत में मिला लेने की लफ़्फ़ाजी हांकते हैं। पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की ललकार लगा देते हैं अपनी कविताओं में।
- इंडिया टी वी पर कुछ मुसलमान कह रहे हैं कि सेक्यूलरिज्म के लबादे ने हमारा बड़ा नुकसान किया है।
- बहुजन समाज पार्टी से जुड़े दलितों और तमाम अन्य दलितों को कई बार लगता है कि ब्राह्मण वोटरों ने अब की बार दलितों को धोखा दे कर भाजपा को वोट दे कर धोखा दिया है दलित समाज को। मैं कहना चाहता हूं कि ज़रुर ऐसा किया होगा ब्राह्मण वोटरों ने। लेकिन दुर्भाग्य से यह पहला नहीं दूसरा सच है। पहला सच यह है कि दलितों की मसीहा मायावती ने दलितों को धोखा दिया है। न सिर्फ़ दलितों को बल्कि ब्राह्मणों को भी धोखा दिया है और उन का इस्तेमाल किया है अपने को महारानी बनाने के लिए। सत्ता पाने के लिए, खरबों रुपए कमाने के लिए मायावती ने दलितों का तो दोहन किया ही ब्राह्मणों का भी दोहन किया और अपनी तिजोरी भरी। दलितों को यह तथ्य भी ज़रुर देखना चाहिए और जानना चाहिए कि उन की तरक्की का रास्ता शिक्षा और रोजगार की राह से गुज़रता है। किसी का वोट बैंक और गुलाम बन कर नहीं। मुसलमानों के दिमाग का जाला साफ हुआ है इस बाबत कुछ हद तक। दलितों को भी इस दलित मोह से मुक्त हो कर देश की मुख्य धारा से जुड़ना चाहिए। किसी का वोट बैंक बन कर अपना और नुकसान करने से बचना चाहिए।
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