Sunday, 4 May 2014

दंगे जैसे संवेदनशील मसले पर बेशर्मी की यह राजनीति हम कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे?

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर !

  • कुछ मित्रों को मेरी टिप्पणियां पढ़ कर कभी लगता है कि मैं अमुक का समर्थक हूं, अमुक का विरोधी। ऐसा कुछ भी नहीं है मित्रों। यह गलतफ़हमी भी तोड़ लीजिए कि मैं मोदी समर्थक हूं। या किसी ब्राह्मण, किसी दलित, किसी हिंदू, किसी मुस्लिम या किसी और वर्ग या समूह का समर्थक हूं। सच यह है कि मैं किसी भी पार्टी या किसी भी वर्ग या समूह का समर्थक नहीं हूं, न किसी पार्टी, वर्ग या समूह का विरोधी। मेरा काम किसी का समर्थन या विरोध करना है भी नहीं। मैं स्वतंत्र रचनाकार और टिप्पणीकार हूं। समय की दीवार पर जो इबारत लिखी होती है वही बांच देता हूं निष्पक्ष भाव से। यहां तो बस एक ही भाव सर्वदा रहता है : ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ! सो मित्रों कृपया मुझे किसी खाने में डालने के लिए कसरत नहीं करें तो खुशी होगी। बाकी आप की अपनी सुविधा है, अपनी मर्जी है, अपना विवेक है।

  • माकपा महासचिव प्रकाश करात का यह कहना कहीं सही लगता है कि देश में काफी मज़बूत कांग्रेस लहर है, जिसे मोदी लहर के रुप में पेश किया जा रहा है। करात की इस बात में दम है। पर करात साथ ही यह भी कहते हैं कि चुनाव बाद भाजपा, सहयोगी दलों और क्षेत्रीय दलों के समूह के बीच मुकाबला होगा। करात यहीं फिसल जाते हैं। क्यों कि यह दावा उन का ज़मीन पर दिखता नहीं है। दक्षिण और उत्तर पूर्व को छोड़ दें, चलिए उन के पश्चिम बंगाल को भी छोड़ कर चलते हैं तो कांग्रेस विरोधी लहर के मुकाबिले मोदी के अलावा दिख कौन रहा है जिस में चुनाव बाद कोई मुकाबला होगा? और फिर करात जी, चुनाव बाद मुकाबला नहीं हार्स ट्रेडिंग होती है। तो क्या लगता है आप को कि मोदी और मुलायम मुकाबले में होंगे? हार्स ट्रेडिंग के मामले में? वाम पंथी दल शायद इसी तरह चुकते-चुकते चूक गए हैं।

  • खबर है कि राहुल गांधी का तंबू-कनात उखाड़ने नरेंद्र मोदी अमेठी आने वाले हैं। यह खबर सुन कर संजय गांधी और नारायण दत्त तिवारी की याद आ गई। वह इमर्जेंसी के तुरंत बाद के दिन थे। हुआ यह कि संजय गांधी को जब चुनाव लड़ने का मन हुआ तो वह भी तब राजकुमार थे। मम्मी इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री थीं। सो तमाम कांग्रेसी मुख्य मंत्री इंदिरा गांधी और संजय गांधी को खुश करने के लिए उन्हें अपने-अपने राज्य में बुलाने लगे, पलक-पांवड़े बिछाने लगे। चुनाव लड़ने के लिए। तो अपने नारायण दत्त तिवारी भी तब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे। तिवारी जी ने भी संजय गांधी को उत्तर प्रदेश में न्यौता दिया। आए संजय गांधी। तिवारी जी ने इंदिरा गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से लगी अमेठी संसदीय सीट सुझाई और हेलीकाप्टर से दिखाई । हेलीकाप्टर से अमेठी के ऊपर से यह लोग बार-बार उड़े। तब जाड़े के दिन थे। हेलीकाप्टर से नीचे देखने पर जगह-जगह खूब हरियाली दिखी। नीचे अमेठी के ऊसर में कास जिसे मूज भी कहते हैं हरियाली लिए सीना ताने खड़ी थी। संजय गांधी ने तिवारी जी से पूछा यह कौन सी फ़सल है? तिवारी जी जानते तो थे नहीं पर उन्हों ने छूटते ही तड़ से जवाब दिया कि यहां की सारी फ़सलें हरी-भरी हैं। यह सुन कर संजय गांधी बहुत खुश हुए। और अमेठी सीट फ़ाइनल कर दिया। चुनाव लड़े। और विजयी हुए। लेकिन बाद में जब वह यहां आने लगे तो पता चला कि यह तो ऊसर बहुल इलाका है। कोई फ़सल-वसल नहीं। सो उन्हों ने अमेठी को औद्योगिक क्षेत्र बनाने की कवायद शुरु की। बनाया भी। पर असमय ही उन का निधन हो गया। अमेठी का औद्योगिक क्षेत्र उजड़ गया। बाद में छोटे भाई संजय गांधी की विरासत संभालने राजीव गांधी आए ज़रुर पर अमेठी की सूरत वह भी नहीं बदल सके। सोनिया गांधी और फिर राहुल भी नहीं। अब स्मृति इरानी मोदी के कंधे पर बैठ कर अमेठी का भाग्य बदलने का दम भर रही हैं। अमेठी से जीतना तो उन का निजी सपना है। पर इतना तो वह कर ही सकती हैं कि चुनाव हारें चाहे जीतें पर अमेठी के लिए अपने मोदी राजा से कह कर उस में विकास और रोजगार के पहिए तो लगवा ही सकती हैं। है न ! क्या पता अमेठी के भी अच्छे दिन आ जाएं ! क्यों कि इस ऊसर में हरी-भरी फ़सलें तो आने से रहीं।

  • कांग्रेस के पास मोदी के खिलाफ़ ले-दे कर एक लड़की की जासूसी का मामला बचा रह गया है जिस की जांच वह करवाने पर अभी भी दृढ़ प्रतिज्ञ है। यह कौन सी लड़ाई लड़ रही है कांग्रेस? क्या यह वही कांग्रेस है जिस ने देश को आज़ाद कराने की लड़ाई अंगरेजों से लड़ी थी?

  • असम में दंगे की खबर सुन कर आज अनायास लालू प्रसाद यादव की याद आ गई। आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में रोक कर जब आडवाणी को लालू प्रसाद यादव ने गिरफ़्तार किया था तो देश भर में दंगे हुए थे। लेकिन एक बिहार ही था जहां तब के दिनों एक भी दंगा नहीं हुआ। तब जब कि आडवाणी बिहार में ही गिरफ़्तार हुए थे। उन दिनों दूरदर्शन का ज़माना था। तब और चैनल नहीं थे। तो दूरदर्शन ने लालू प्रसाद यादव का एक इंटरव्यू किया था और बिहार में दंगे न होने का कारण पूछा था। लालू बेधड़क बोले थे, कि दंगे इस लिए नहीं हुए बिहार में क्यों कि लालू नहीं चाहता था। और जिस दिन दंगे हों बिहार में, समझ लेना लालू दंगे करवा रहा है। लालू तब नए-नए मुख्य मंत्री बने थे और कि जे पी के जर्म्स उन में तब तक बाकी थे। भ्रष्टाचार की नदी में तब तक वह नहीं उतरे थे। तो ऐसा बोलना उन का लाजमी था। और बताइए कि आसाम में और कि केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार है तो भी कपिल सिब्बल और उमर अब्दुल्ला एक सुर में कह रहे हैं कि आसाम में दंगे नरेंद्र मोदी ने करवाए हैं। तो नरेंद्र मोदी आसाम के मुख्य मंत्री हो गए हैं क्या? अजब है यह भी। इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुजफ़्फ़र नगर में जब दंगे हुए बीते दिनों तब मुलायम और अखिलेश ने भी कहा था कि भाजपा ने दंगे करवाए हैं। तब भी लालू की याद आई थी। इस लिए भी कि सचमुच अगर सरकारें न चाहें तो दंगे नहीं होंगे। सरकारें चाहती हैं तभी दंगे होते हैं। गुजरात में जब २००२ के दंगे हुए तो नरेंद्र मोदी ही मुख्य मंत्री थे गुजरात के। उस दंगे के दाग मोदी के दामन से कभी छूट पाएंगे, मुझे नहीं लगता। लेकिन मैं ने कभी मोदी को यह कहते भी नहीं सुना कि वो दंगे कांग्रेस ने करवाए हैं। हां यह ज़रुर कहते सुना कि तब दंगे रोकने के लिए कांग्रेस की केंद्र और तमाम राज्य सरकारों से मदद मांगी थी, मध्य प्रदेश से भी, महाराष्ट्र और राजस्थान से भी पुलिस मांगी थी जो कि नहीं मिली। और यह बात जब उन्हों ने कुछ दिन पहले कही एक कार्यक्रम में तब दिग्विजय सिंह जो तब २००२ में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री थे वह भी उपस्थित थे और मोदी ने उन्हें इंगित करते हुए कहा कि यह परंपरा है और संवैधानिक अधिकार भी कि राज्य सरकारें विपत्ति में दूसरी सरकारों से
मदद मांगती हैं। पर इन्हों ने भी नहीं भेजा, न ही किसी और कांग्रेस शासित प्रदेश के मुख्य मंत्री या केंद्र ने। मोदी की इस बात पर दिग्विजय सिंह का चेहरा धुंआ हो गया था और कि उन की बोलती बंद हो गई थी। गरज यह कि दंगे जैसे संवेदनशील मसले पर बेशर्मी की यह राजनीति हम कब तक बर्दाश्त करते रहेंगे?

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