कांग्रेस
विरोधी लहर को मोदी लहर बताने वाले नरेंद्र मोदी भी अब इस लहर से उतर कर
उत्तर प्रदेश में जातियों का वोट बुनने लगे।
प्रियंका गांधी के नादान बयान
ने मोदी को एक नया अस्त्र दे दिया। और मोदी के इस अस्त्र से कांग्रेस तो
औपचारिक रुप से प्रियंका के बचाव में खड़ी हो कर किनारे से निकल गई। पर
मायावती मोदी की इस नए पैतरे से घायल हो गईं। और कि घायल शेरनी की तरह न
सिर्फ़ टूट पड़ीं बल्कि मोदी से उन की जाति पूछने लगीं। कबीर भी यहां पानी मांगने लगे हैं ।कह गए थे कबीर कभी कि :
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान।
पर
हमारी राजनीति और समाज का काम शायद अब कबीर से नहीं चल रहा। शायद इसी लिए
नरेंद्र मोदी के आज के भाषण में नीच जाति का होने की आह और हुंकार ठीक वैसी
ही देखी और सुनी गई जैसे किसी खांटी दलित नेता की होती है। न सिर्फ़ उन के
भाषण बल्कि उन की बाडी लैंगवेज में भी वह आह और आग दिखी। अभी तक के चुनाव
में मोदी पहले विकास की बात पर आए। फिर प्रकारांतर से हिंदू-मुसलमान पर आए।
बांगलादेशी मुसलमानों को देश से भगाने और कश्मीर में ३७० खत्म करने के
बहाने वह खुल कर हिंदू कार्ड खेलने लगे। उन के लेफ़्टिनेंट अमित शाह आज़मगढ़ को
आतंकवाद का अड्डा बताने लगे। तो मुस्लिम वोट के सारे ठेकेदार ममता बनर्जी से लगायत, मायावती, मुलायम, लालू और कांग्रेस आदि सभी मोदी पर एक
साथ पिल पड़े। मोदी को और क्या चाहिए था। बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया। देश की राजनीतिक पार्टियां इतनी
दिवालिया क्यों हो गई हैं कि मोदी का यह खुला खेल भी वह समझ पाने में
नाकाम हो गईं।
अब हिंदू-मुसलमान जैसे कम था प्रियंका गांधी वाड्रा का एक
हताशा भरा मोदी की नीच राजनीति के बयान ने मोदी को जातीय कार्ड खेलने के लिए
मैदान दे दिया। जिस पार्टी और आदमी के लिए फ़िल्मी गीतकार और ऐड की दुनिया
के प्रसून जोशी जैसे लोग देश नहीं झुकने दूंगा जैसा नारा भरा गीत लिख रहे
हों, शोले जैसी फ़िल्म लिखने वाले सलीम जैसे लोग जिस का डायलाग और भाषण
लिखने में लगे हों, जिस ने देश की समूची मीडिया को पालतू कुत्ता बना
लिया हो, जिस ने बीते नौ महीने से लगातार अकेले अपनी रैलियों की बरसात में
पूरे देश को भिगो रखा हो उस आदमी से लड़ने के लिए हमारी बाकी राजनीतिक
पार्टियां किस तैयारी और किस रणनीति के साथ चुनाव लड़ रही हैं भला? चुनाव
लड़ना क्या ड्राइंग रुम में बैठ कर बात करना है? स्पष्ट है कि कांग्रेस अपने
कुशासन और भ्रष्टाचार के बोझ तले दबी हुई है। समाजवादी पार्टी और बहुजन
समाज पार्टी की जातीय और मुस्लिम राजनीति के भार से दबी हुई हैं, इस के
अलावा उन के पास अगर कोई रणनीति है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ नरेंद्र मोदी का
विरोध और मुसलमानों को नरेंद्र मोदी से डराना बस ! नतीज़ा सामने है। कि
नरेंद्र मोदी इन के सारे वाण इन की ही तरफ घुमा दे रहे हैं। अब यह भटकी हुई
कच्ची राजनीति देश को किस दिशा में ले जाएगी यह देखना बाकी है। लेकिन मोदी फ़ोबिया में भयभीत इन पार्टियों की दशा देख कर एक शेर याद आता है :
कितने कमज़र्फ़ हैं ये गुब्बारे
चंद सांसों में फूल जाते हैं।
No comments:
Post a Comment