एक फेसबुकिया विमर्श
लेखकीय
दुनिया में संपादकों , आलोचकों और प्रकाशकों को इंटरनेट ने एक गंभीर
चुनौती दे दी है । इन सब की तानाशाही, हेकड़ी, दुकानदारी और मोनोपोली को
छिन्न-भिन्न कर दिया है इंटरनेट ने । खास कर ब्लॉग और फेसबुक ने इन सब की
कमर तोड़ दी है । कमाने वाला खाएगा की तर्ज़ पर जो कहूं कि अच्छा लिखने वाला
ही अब पढ़ा जाएगा ! क्यों कि पाठक तो बहुत हैं । यह तिकड़ी व्यर्थ ही पाठक न
होने का घड़ियाली आंसू बहा कर आंख में धूल झोंकती रही है। इंटरनेट ने इन का
यह ड्रामा भी बिगाड़ दिया है कि हिंदी में पाठक नहीं हैं ।
Who are you with?...
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