Monday 15 December 2014

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी : एक बहती नदी




विश्वनाथ प्रसाद तिवारी सही अर्थों में आचार्य हैं। उन से मेरा मिलना अपने घर से ही मिलना होता है। किसी पुरखे से मिलना होता है। जब मैं विद्यार्थी था और वह आचार्य तब से हमारी मुलाकात है । कोई सैतीस साल से अधिक हो गए । लेकिन शुरू से ही वह जब भी मिलते हैं धधा कर मिलते हैं। वह हैं तो हमारे पिता की उम्र के लेकिन मिलते सर्वदा मित्रवत ही हैं। दयानंद जी , संबोधित करते हुए। स्नेह की डोर में बांध कर जैसे मुझे पखार देते हैं । वह एक बहती नदी हैं। किसी नदी की ही तरह जैसे हरदम यात्रा पर ही रहते हैं। लेकिन कभी उन को थके हुए मैं ने नहीं देखा। देश दुनिया वह ऐसे फांदते घूमते रहते हैं गोया वह कोई शिशु हों , और अपने ही घर में घूम रहे हों । धमाचौकड़ी करते हुए। हरदम मुसकुराते हुए , किसी नदी की तरह कल-कल , छल-छल करते हुए। मंथर गति से मंद-मंद मुसकुराते। उन की विनम्रता , उन की विद्वता और उन की शालीनता जैसे मोह लेती है बरबस हर किसी को। हालां कि इन दिनों उन की आत्मकथा अस्ति और भवति पढ़ रहा हूं तो उन से और उन के जीवन से रोज ही मुलाक़ात हो रही है। पर अभी जब वह दिल्ली जाते हुए गोरखपुर से लखनऊ आए एक पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में तो उन से फिर भेंट हुई। चिल्लूपार के विधायक राजेश त्रिपाठी की किताब जहां चरन पड़े रघुवर के का जब उन्हों ने विमोचन किया तो उन को सुनना भी सुखद था। हिंदी में बहुत कम लोग हैं जो विषय पर ही बोलें और सारगर्भित बोलें। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी उन्हीं कुछ थोड़े से लोगों में से हैं। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को वैसे तो बहुत सारे सम्मान मिले हैं पर हिंदी को जो सम्मान उन्हों ने दिया है वह विरल है। यह पहली बार है कि साहित्य अकादमी का अध्यक्ष हिंदी का कोई लेखक बना है । इस के पहले वह साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष भी हुए थे। यह भी पहली बार ही हुआ था कि हिंदी का कोई लेखक इस पद पर आया। लेकिन हिंदी को यह सम्मान दिलाने वाले विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के मन को यह अभिमान लेश मात्र भी नहीं छूता। वह तो अपनी सरलता में ही मगन मिलते हैं। जैसे कोई नदी अपने साथ सब को लिए चलती है , विश्वनाथ प्रसाद तिवारी भी सब को अपने साथ लिए चलते हैं । सब को मिला कर चलते हैं । न किसी से कोई विरोध , न कोई प्रतिरोध । न इन्न , न भिन्न , न मिनमिन । किसी किसान की तरह। जैसे हर मौसम किसान का मौसम होता है , वैसे ही हर व्यक्ति विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का होता है। वह प्रकृति से कवि हैं , अध्यापन उन का पेशा रहा है , प्रोफेसर रहे हैं , संपादक भी हैं ही दस्तावेज के पर मिजाज से वह किसान ही हैं । यायावरी जैसे उन का नसीब है । और उन का मुझ पर स्नेह जैसे मेरा सौभाग्य ! उन का यह स्नेह ही है कि उन की आत्मकथा में मैं भी उपस्थित हूं । कुछ चित्र ।












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