Tuesday, 2 December 2014

चंदन गीतों की खशबू में डूबी एक शाम




मौन में जब अर्थ से लगने लगे
स्वर सभी असमर्थ से लगने लगे
एक नई भाषा गढ़ी जब दृष्टि ने
शब्द सारे व्यर्थ से लगने लगे।

मेरी प्रिय
कवयित्री सरिता शर्मा से आज की शाम की मुलाकात में यही हुआ । हमारी मुलाकात में मुलाकात के नए अर्थ , नए संदर्भ और नई-नई बातें हुईं। होती गईं । ज़िंदगी के अनछुए-अपरिभाषित पन्ने, दुःख-सुख के रंग, ऐसे-वैसे लोगों का ज़िक्र , मंच से इतर उन की नई कविताओं का पाठ उन की यात्राओं के वर्णन ! सब के सब जैसे क्षण भर में ही सिमट कर बटुर गए। इस बतकही में कब आधी रात हो गई पता नहीं चला । उन के ही एक गीत में जो कहूं :

मौन की हर अर्गला को तोड़कर
हो गया मन
वंदना के छंद सा।

खुल गयीं सब खिड़कियाँ
निकली घुटन
धूप ने चूमे
निमीलित से नयन
हो गया मन
हर-सिंगारी गंध सा।

कब ह्रदय जाने बिना ही
बिक गया
नाम कोई आत्मा
पर लिख गया
हो गया मन
अनलिखे अनुबंध सा।




सरिता जी के गीतों की चांदनी में जो तरलता है , जो कसाव और उजास है , वह बरबस बांध-बांध लेता है । छोड़ता ही नहीं । 

गुनगुनाती हुई भोर में
बिंध गया मन किसी डोर में
अंकुरित एक सपना हुआ
अधमुंदे नैन की कोर में !


देहरी -देहरी अल्पना
धर गयी बावली कल्पना
आ बंधे रंग सातों मेरी -
ओधनी के धवल छोर में !!

दोपहर चम्पई सी लगी
सांझ कैसी नई सी लगी
मन्त्र सा नाम गुंजित हुआ
धडकनों के मधुर शोर में !!

वर्जना जब हवन हो गयी
सांस गंधिल पवन हो गयी
रम गयी बिन छुए इक छुवन
ज्ञात-अज्ञात हर पोर में !!



सरिता जी के गीतों की खुशबू उन की बातचीत में भी उतरती जाती है। उन के मोहक गीत, उन के पढ़ने का दिलकश अंदाज़ बहुतों को अपने सरोवर में डुबो लेता है। मैं भी उन के चंदन गीतों की इसी खुशबू में डूबा तर-बतर हूं । मुलाकात पहले भी होती रही है सरिता जी से पर आज की सरिता उन के ही शेर में जो कहूं :

बोल तुम्हारे, शब्द तुम्हारे और तुम्हारा स्वर
रेशम से अहसास मुझे उलझाये रखते हैं ।


उन से जब विदा ली तो चांदनी अपने शबाब पर थी । बच्चन जी का गीत याद आ गया , इस चांदनी में सब क्षमा है। राह में सरिता शर्मा के गीतों की सरिता में फिर डूब गया ।

राजा लिखना रानी लिखना
भूली एक कहानी लिखना

मेरा नाम अगर लिखना हो
मीरा सी दीवानी लिखना

जिसने प्रेम किया हो उसकी
आँखों में बस पानी लिखना

दुनिया साथ कहाँ देती है
दुनिया को बेगानी लिखना !!!


लखनऊ महोत्सव के कवि सम्मेलन में वह कल अपने गीतों की सरिता में लखनऊ को भी बहाएंगी ! कल भी चांदनी रात  होगी। बाबूलाल शर्मा का एक गीत है कि ,

चांदनी को छू लिया है 
हाय मैं ने क्या किया है !

सरिता शर्मा और उन के गीत ऐसे ही मन को छूते हैं । उन के गीतों का संस्पर्श उस की मादकता ऐसे ही दीवाना बना लेती है ।




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