कुछ फेसबुकिया नोट्स
- कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और पी डी पी के बीच आओ सरकार बनाएं का खेल खेलते हुए भाजपा बार-बार कह रही है कि हमारे सारे विकल्प खुले हुए हैं। आज दिन भर यह सुन-सुन कर माणिक वर्मा की एक कविता याद आ गई है जो कभी उन्हों ने भारत बंद के मद्देनज़र लिखी थी, ' एक आदमी सड़क पर / सिर्फ़ कच्छा पहने घूम रहा था / लोगों ने पूछा / यह क्या है / आदमी बोला / अपना समर्थन मिला-जुला है / बंद समझो तो बंद / खुला समझो तो खुला है !' तो भाजपा भी इस कड़कड़ाती ठंड में कच्छा पहन कर कश्मीर में निकल पड़ी है । अब समर्थन नेशनल कांफ्रेंस दे दे या पी डी पी , भाजपा ने तो अपना मुख्यमंत्री पद का दावेदार पी एम ओ में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह को घोषित कर दिया है। अब जिस को समर्थन देना हो दे या अपने घर बैठे ! भाजपा तो कच्छा पहन कर निकल पड़ी है , जिस को उसे समर्थन के कपड़े पहनाना हो पहना दे !
- कश्मीर में घाटी के लोग चाहते थे कि भाजपा और नरेंद्र मोदी को वहां की सत्ता न मिले। कांग्रेस भी यही चाहती थी । पी डी पी फिफ्टी फिफ्टी में थी । लेकिन भाजपा को हर हाल में अपना मुख्यमंत्री चाहिए कश्मीर में । सो पी डी पी की दाल गलने के बजाय काली हो गई लगती है। उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन ने भी पी डी पी और कांग्रेस की इस मंशा पर पानी फेरने की सारी कसरत कर ली है। सत्ता और राजनीति ऐसे ही चलती है।
- अब लीजिए मोदी और भाजपा को वोट देने वाले समंदर में डूब जाएं का कभी श्राप देने वाले डा फारूख अब्दुल्ल्ला के सुपुत्र उमर अब्दुल्ला कश्मीर में भाजपा के मुख्यमंत्री की ताजपोशी में हाथ बंटाने के लिए अपना समर्थन देने को राजी हो गए हैं। तो क्या इस राजनीतिक सेक्यूलरिज्म की सांस भी क्या कश्मीर घाटी में ही टूटनी थी ?
- यहां तो हर दिन नया दिन , हर रात नई रात वाली बात है। हर क्षण मेरे लिए नया होता है । लेकिन व्यक्तिगत तौर पर सब कुछ सामान्य। ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बैर ! वाली बात भी होती है । दुःख हो या सुख बुद्ध की बात सर्वदा याद रखता हूं कि यह वक्त भी गुज़र जाएगा , कुछ भी स्थाई नहीं है। न बीत रहा साल स्थाई था , न आने वाला साल स्थाई होगा। सब गुज़र जाएगा , यह भाव बहुत आस्वस्ति देता है जीवन में ।
- कुछ लोगों को अटल जी को भारत-रत्न मिलना हजम नहीं हो रहा। अंग्रेजों का मुखबिर , ब्राह्मण , औरतबाज़ और पता नहीं क्या-क्या उल-जलूल बताए जा रहे हैं। एक सज्जन तो मेरी वाल पर आ कर एक कमेंट में यह भी लिख गए कि क्या भारत-रत्न ब्राह्मणों ने ख़रीद लिया है ? ब्राह्मणों की बपौती है ? उन को ऐतराज महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को भी भारत-रत्न दिए जाने पर है। एक जनाब पूछने लगे कि यह मालवीय कौन है ? क्या बेचता था ? इन मतिमंदों को अब कोई बताए भी कैसे कि यह दोनों भारत-रत्न सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं हैं। और कि ब्राह्मण होना भी एक तप है। ब्राह्मणों को गाली देना आसान है पर ब्राह्मण होना बहुत कठिन । और जो-जो काम यह दोनों भारत-रत्न देश , दुनिया और समाज के लिए कर गए हैं वह अमिट हैं। लेकिन आकाश में सुराख करने वाले भी हैं तो आकाश पर थूकने वाले भी बहुतेरे हैं ! कोई भी इन लोगों का कुछ नहीं कर सकता !
- अटल जी को भारत रत्न घोषित होने की ख़ुशी में आज रजत शर्मा ने इंडिया टी वी पर अटल बिहारी वाजपेयी का एक अठारह साल पुराना इंटरव्यू दिखाया , जो आप की अदालत के तहत था। बहुत सारी रोचक और नई-पुरानी सूचनाओं से भरे इस इंटरव्यू में अटल जी ने साफ-साफ कहा कि उन्हों ने कभी भी इंदिरा गांधी को दुर्गा नहीं कहा। यह बात अखबारों में मिसकोट हुई है बार-बार ।
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