Thursday, 4 December 2014

इस कोहरे में किलोल


पेंटिंग : अवधेश मिश्र

नदी किनारे कोहरे में
खोजता हूं मैं तुम्हें
तुम कहां हो

यह दोपहर का कोहरा
कोलतार की सड़क और नदी का किनारा 
तुम्हारी तलब में आवारा फिरता 
अकेला मैं
एक चिड़िया फुर्र से उड़ गई है अभी मेरे पास से 
क्या वह भी कोई साथी खोज रही है 
जैसे मैं तुम्हें 
वह उड़ सकती है और मैं इंतज़ार 

नदी में अभी एक मछली कूदी है छपाक से 
और कुछ मछलियां ऊपर-ऊपर तैर गई हैं 
कोहरे में यह मछलियां भी खेल रही हैं

आओ चली आओ 
मैं ही नहीं कोहरा भी तुम्हें गुहरा रहा है
दूर-दूर तक कोई नहीं 

जेब में मेरे एक अमरूद है
तुम नमक ले कर आना 
हम दोनों काट-काट  कर खाएंगे
फिर इन मछलियों की तरह हम भी खेलेंगे 

इस कोहरे में किलोल करते हुए 
छपाक से तुम भी कूदना 
जैसे अभी-अभी यह मछली कूदी है
मेरी गोद में आ कर गिरना 
जैसे यह मछली गिरी है जल में

हम फिर ओस में भींगेंगे
तुम्हारे प्यार की नर्म ओस में

[ 5 दिसंबर , 2014 ]


इस कविता का मराठी अनुवाद 



🌹हया धुक्यात हर्षोल्लास🌹


नदी किनारी धुक्यामधे

शोधतो मी तुला

तू कुठे आहेस


हे दुपारचे धुके

डांबरी रस्ता आणि नदीचा किनारा

तुझ्या आकांक्षेत उगाच उनाड फिरणारा

मी एकटा

एक चिमणी फुर्र उडाली आता माझ्या बाजूने

ती पण माझ्याच सारखी जोडीदार शोधते आहे की काय 

जसा मी तुला शोधतोय

ती उडू शकते आणि मी प्रतिक्षेत आहे


नदीत एका मासोळीने डुबुक करुन ऊडी मारली

आणखी काही मासोळ्या वर वर पोहत आहेत

धुक्यामधे हया मासोळ्या पण खेळत आहेत

ये ना , तू ये

मीच नाही तर हे धुके सुद्धा तुला साद देतेय

दूर दूर वर कोणीच नाही


माझ्या खिश्यात एक पेरु आहे

तू मीठ घेऊन ये

आपण दोघे ही चाऊन पेरू खाऊ

मग मासोळयां सारखे आपण दोघे खेळत जाऊ


हया धुक्यात हर्षोल्हासात बागडू

डुबुक करत तू पण उडी घे

जशी आता आताच हया मासोळीने उडी घेतली

माझ्या मांडीवर तू ये

जशी ही मासोळी पडली आहे पाण्यात


आपण परत दहिवरात भिजू 

तुझ्या प्रेमाच्या मुलायम दवात


अनुवाद : प्रिया जलतारे 

1 comment: