दयानंद पांडेय
वर्ष 1981 में दिल्ली रहने लगा था l नौकरी मिल गई थी l संयोग से शुरू -शुरू में यमुना पार यमुना नदी के किनारे ही बसे कैलाश नगर के श्याम ब्लॉक में रहता था l घर की छत से यमुना नदी साफ़ दिखती थी l पुराना लोहे का पुल भी l बांध से सटा हुआ घर था l सुबह मेरी तब भी थोड़ी देर से होती थी l तब भी गोरखपुर में रोज़ नदी नहाने और तैरने की आदत थी l एक सुबह रोक नहीं पाया पहुंच गया यमुना के तट पर l कुछ लोग नहा रहे थे l कुछ लोग पास ही अखाड़े में कुश्ती आज़मा रहे थे l कुश्ती भी जानता था तब l लेकिन मेरी दिलचस्पी नदी में तब तैरने में थी l सो आव देखा न ताव l कपड़े उतार कर सीधे नदी में कूद गया l नदी में कूदते ही अफ़नाया l पानी की बदबू ने जैसे प्राण ले लिए l पानी में तैरती गंदगी ने बेचैन कर दिया l तुरंत यमुना से बाहर निकल आया l
घर आ कर साबुन लगा कर रगड़-रगड़ कर बड़ी देर तक नहाता रहा l उस दिन दफ़्तर नहीं गया l बार-बार नहाता रहा l लेकिन दिल्ली के यमुना की दुर्गंध और गंदगी मन से नहीं गई l हफ़्ते भर तक बार-बार नहाता रहा l सब कुछ छोड़ नहाना ही सोचता रहा l भोजन करते नहीं बनता था l अभी भी जब यह पोस्ट लिख रहा हूं , वह दुर्गंध और गंदगी जैसे तैर कर मन में समा गई है l जब भी उस दिन को याद करता हूं , बेचैन हो जाता हूं l जैसे कोई दुःस्वप्न हो l फिर जा कर नहा लेता हूं।
एक बार एक मित्र के साथ तब की दिल्ली की यमुना में नौका विहार भी किया l मज़ा नहीं आया l कारण यमुना की गंदगी ही थी l नाव में बैठ कर न कुछ खाते बना , न कुछ करते बना l तय समय से पहले ही नाव छोड़ दिया l
कुछ अंतिम यात्रा में जब भी कभी दिल्ली के निगम बोध घाट गया , वहां भी गंदगी का साम्राज्य मिला l सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का शवदाह बिजली वाले शवदाह में हुआ l तो दिक़्क़त नहीं हुई l लेकिन तब के दिनों लोगों को इस का अभ्यास नहीं था l अपवाद ही थे विद्युत शवदाह गृह में जाने वाले l अब भी यह संख्या बहुत कम है l
तो दिल्ली में यमुना की गंदगी के जो किस्से और तराने चल रहे हैं , यह सिर्फ़ केजरीवाल की देन नहीं है l अब तक के सारे शासकों की कृपा है l केजरीवाल की चूक सिर्फ़ इतनी है कि वह सिर्फ़ माऊथ कमिश्नरी ठोंके रहा l किया कुछ भी नहीं l
रेखा गुप्ता भी मैली यमुना में सफ़ाई की कोई रेखा , कितनी खींच पाएंगी , यह देखना भी दिलचस्प होगा l इस लिए भी कि नाम भले रेखा का हो , असल काम तो यमुना की सफाई का , मोदी को ही करना है l क्यों कि साबरमती की सफाई अभी भी चुनौती बन कर उपस्थित है l यमुना तो बस बदनाम है l देश की सारी की सारी नदियां बहुत मैली हैं l लेकिन मां हैं l बस बहता पानी नहीं है l
करें भी तो क्या करें ? उद्योगपतियों के लिए कोई सख़्त क़ानून जो नहीं है l उद्योगपतियों ? अरे, नगर निगम और अस्पतालों के लिए भी नहीं है कोई सख़्त क़ानून l
आदमी तो ख़ामख़ा बदनाम है l असल पाप तो यही सब उद्योगपती धोते हैं नदियों में l और कभी पवित्र भी नहीं होते l न होंगे कभी l
behtareen post
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