दयानंद पांडेय
अरविंद केजरीवाल को भस्मासुर बनाने वाली भाजपा ही थी। यह बात कम लोग जानते हैं। अलग बात है कि इस भस्मासुर को भस्म करने में भाजपा को बहुत समय लग गया। लेकिन ज़रा रुकिए। यह एक फ़ोटो पहले देखिए फिर आगे बात करते हैं। भाजपा को जितना लोग समझते हैं , उतनी है नहीं। एक पुरानी कहावत है कि यह आदमी जितना दीखता है , उस से ज़्यादा धरती के भीतर है। भाजपा वही है। धरती के भीतर कुछ ज़्यादा ही है। भाजपा को कांटे से कांटा निकालने का पुराना अभ्यास है। धैर्य और टाइमिंग का भी। याद कीजिए कि कांग्रेस को अकेले दम पराजित करना जनसंघ के लिए भी आसान नहीं था। भाजपा के लिए भी नहीं थी। बहुत कंप्रोमाइज और अपमान सही हैं भाजपा ने। छुआछूत का सामना किया है। तब यहां तक पहुंची है। इमरजेंसी के पहले ही जनसंघ ने बहुत आहिस्ता से जय प्रकाश नारायण को अपने पक्ष में मोहित कर लिया। जय प्रकाश नारायण की लंबी सेवा की। संघ परदे के पीछे से उपस्थित था। इस के पहले जनसंघ ने लोहिया को भी साध लिया था। उत्तर प्रदेश में लोहिया पुल से होते हुए ही संविद सरकार बनी। दो बार बनी और जनसंघ उस में शामिल था। चरण सिंह मुख्य मंत्री और जनसंघ के राम प्रकाश गुप्त उप मुख्य मंत्री। पर यह लंबी कहानी नहीं बनी।
इंदिरा गांधी की तानाशाही से आजिज जय प्रकाश नारायण के साथ जनसंघ पूरी ताक़त से खड़ी हो गई थी। संघ का कवच कुण्डल लिए हुए। एक फ़ोटो इंडियन एक्सप्रेस में छपी थी। पुलिस जय प्रकाश नारायण पर लाठियां बरसा रही है। और जय प्रकाश नारायण पर नानाजी देशमुख बिलकुल छाता बन कर लेटे हुए हैं। पुलिस की लाठियां अपने सीने पर खाते हुए। भूल से भी जो कोई एक लाठी जय प्रकाश नारायण पर पड़ गई होती तो जय प्रकाश नारायण वहीं प्राण छोड़ देते। उन की देह में तब कुछ था ही नहीं। खड़े हो कर भाषण देने लायक़ नहीं थे। कृशकाय देह किसी तरह चल लेती थी। बहुत ज़ोर से बोल नहीं पाते थे। पर इंदिरा गांधी की नाक में दम कर रखा था। इंदिरा ने जब कोई रास्ता नहीं देखा तो जय प्रकाश नारायण को सी आई ए एजेंट कहना शुरू कर दिया। पर राजनारायण की याचिका पर जस्टिस जगमोहन सिनहा ने जनसंघ की लंबी लड़ाई को बहुत छोटा कर दिया। इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित किया।
इंदिरा ने फिर से चुनाव लड़ने के बजाय तानाशाही की आदत के चलते रातोरात इमरजेंसी लगा दी। यह काला इतिहास है और सभी इस से परिचित हैं। जय प्रकाश नारायण ही नहीं बहुत से लोग जेलों में भर दिए गए। ख़ूब कूटे गए। हज़ारों लोगों के पृष्ठ भाग में लाल मिर्च , लाठी सब हुए। भारी अत्याचार हुए। इस में जनसंघ और संघ के लोग सर्वाधिक थे। भयभीत हो कर सर्वदा नकली संघर्ष के योद्धा वामपंथी तो इमरजेंसी के पक्ष में खड़े हो गए। विभिन्न जेलों में जनसंघियों की दोस्ती समाजवादियों से प्रगाढ़ हुई। इमरजेंसी ख़त्म होने और जेल से बाहर आने के बाद जनता पार्टी बनी। जनसंघ इस में महत्वपूर्ण रूप से उपस्थित हुई। 1977 के चुनाव में कांग्रेस का सफाया हुआ। जनता सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी विदेश और सूचना प्रसारण मंत्री हुए। चरण सिंह की महत्वाकांक्षा और अराजकता ने मोरारजी देसाई सरकार का ढाई बरस में ही पतन करवा दिया। चरण सिंह खुद प्रधान मंत्री बने। बाद में इंदिरा कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। इंदिरा की हत्या हुई। राजीव प्रधानमंत्री बने। बोफोर्स की हवा में राजीव गांधी उड़ गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री बने। दिलचस्प यह कि भाजपा और वामपंथियों के संयुक्त समर्थन से बने। उत्तर प्रदेश में तभी भाजपा के समर्थन से मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बने। गोया भाजपा न विश्वनाथ प्रताप सिंह के लिए सांप्रदायिक थी , न मुलायम के लिए। फिर जैसे इन दिनों भाजपा को रोकने का फ़ैशन और बीमारी है , उन दिनों कांग्रेस को रोकने का फ़ैशन और बीमारी थी। पर भाजपा अपना लक्ष्य साधने में लगी रही।
आडवाणी की रथ यात्रा निकली और बिहार में रोक कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। विरोध में भाजपा ने केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से और उत्तर प्रदेश में मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। केंद्र में राजीव गांधी सक्रिय हुए। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बने। उत्तर प्रदेश में भाजपा की जगह कांग्रेस का समर्थन प्राप्त कर मुलायम मुख्यमंत्री बने रहे। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी बरबादी का पहला तीर तभी लिया। फिर निरंतर लेती ही गई। इतना कि अब कोई और तीर लेने लायक़ नहीं रही। ख़ैर राजीव गांधी की हत्या , नरसिंहा राव का प्रधान मंत्री बनना। फिर अटल बिहारी वाजपेयी का एन डी ए का प्रधान मंत्री बनना। देवगौड़ा , गुजराल आदि भी आए गए। अटल के शाइनिंग इण्डिया के गर्भपात के बाद मनमोहन सिंह का प्रधान मंत्री बनना सब कुछ एक सिलसिला सा है। इस के पहले की बात आगे की कहूं एक ब्रेकर है बीच में। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधान मंत्री थे तब बड़े यत्न से उन्हों ने एक ममता बनर्जी को कांग्रेस से निकाल कर उपस्थित किया। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का कांटा निकालने के लिए। ममता बनर्जी की मां अटल बिहारी वाजपेयी से बहुत बड़ी नहीं थीं , छोटी ही रही होंगी पर ममता का ईगो मसाज करने के लिए ममता बनर्जी के घर जा कर सार्वजनिक रूप से उन की मां का चरण स्पर्श कर रहे थे। क्या तो पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को दुरुस्त करने के लिए। भाजपा सीधे वामपंथियों से लोहा लेने में अक्षम पा रही थी। संयोग से नंदीग्राम और सिंगूर हो गया। भाजपा ने ममता को अपने कंधे पर बैठा लिया। गोया भाजपा हाथी हो और ममता शिकारी। वामपंथियों का शिकार करने में ममता बनर्जी सफल हो गईं। भाजपा ने कांटे से कांटा निकाल दिया था। पर ममता बनर्जी सफल हो कर भस्मासुर बन गईं। भाजपा को ही आंख दिखाने लगीं। भाजपा को ही भस्म करने लगी हैं। पर भूल गई हैं भाजपा अपना लक्ष्य पाने के लिए लंबी रेस की क़ायल है। हड़बड़ी नहीं करती।
ख़ैर अब आगे के दिनों में कांग्रेस को दिल्ली से भी उखाड़ना मुश्किल लगने लगा भाजपा को। जैसे पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम , सिंगूर हुआ था , दिल्ली में टू जी , कोयला , आदि शुरू हो गया। भाजपा फिर सक्रिय हुई। जैसे कभी जनसंघ के समय जे पी मिले थे जनसंघ को , भाजपा ने महाराष्ट्र से अन्ना हजारे खोजा। दिल्ली में रामलीला मैदान सज गया। माहौल कांग्रेस के ख़िलाफ़ बन गया। मिट्टी तैयार थी। भाजपा को अपने ही बीच से एक कुम्हार मिल गया नरेंद्र मोदी। सूपड़ा साफ़ हो गया कांग्रेस का। मोदी प्रधान मंत्री। अब अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकले लोगों में एक महत्वाकांक्षी अरविंद केजरीवाल निकला। महत्वाकांक्षी कई थे। किरन बेदी , प्रशांत भूषण , योगेंद्र यादव , आशुतोष , कुमार विश्वास आदि इत्यादि। अन्ना रोकते रहे सब को कि राजनीति कीचड़ है। पर कोई नहीं माना। अन्ना को लात मार कर सब सत्ता पिपासा में लग गए। अरविंद केजरीवाल सब से आगे निकल गया। कांग्रेस की शीला दीक्षित का कांटा निकालने के लिए भाजपा ने अरविंद केजरीवाल की पतंग उड़ा दी। अब जीत के बाद केजरीवाल भी भस्मासुर बन कर उपस्थित था। कमीनगी में भाजपा - कांग्रेस सहित अन्य अनेक राजनीतिक दलों को पानी पिलाते हुए सत्ता का घोड़ा दौड़ाने में अव्वल निकल गया। भस्मासुर बन गया। पर सत्ता और दौलत बहुत जल्दी आदमी को पतन के द्वार पर उपस्थित कर देती है। तानाशाह , झूठा , भ्रष्टाचारी और मक्कार बना देती है। फिर अरविंद केजरीवाल तो भस्मासुर बन गया। पर भ्रष्टाचार की बेल लताएं इस क़दर इस भस्मासुर पर चढ़ गईं , दिल्ली हमारी है कहने की ज़िद इस क़दर चढ़ गई कि मुगलेआज़म का सलीम जैसे कहता है , अनारकली हमारी है की धुन में बदल गई। और दिल्ली वालों का क्या है। उन को जब पता चला कि मुफ्त की सारी रेवड़ियां भाजपा का मोदी भी देगा , पलट गए। मोदी ने कांटे से कांटा निकाल कर अरविंद केजरीवाल को कहीं का नहीं छोड़ा। कंगाल बना दिया। अरविंद केजरीवाल नाम का भस्मासुर निपट गया है। राजनीति शंकर जी का नृत्य नहीं है। सो भस्मासुर को निपटाने में थोड़ा वक़्त तो लगता है। बतर्ज़ हस्तीमल हस्ती प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है। तो क्या अब अगला नंबर पश्चिम बंगाल का है। कभी जो लोग वामपंथियों की दादागिरी से भयाक्रांत थे , अब ममता बनर्जी की दीदीगिरी से वही लोग त्राहिमाम करने लगे हैं। भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की तरह पश्चिम बंगाल में भी धूल चाट गई है। पर अयोध्या के मिल्कीपुर में आज सपा को चारो खाने चित्त कर आगे की राह खोल ली है। बाक़ी उपचुनाव में भी ठीक कर लिया था। आप ने गौर किया कि बात - बेबात भड़कने वाली ममता अप्रत्याशित रूप से इन दिनों ख़ामोशी का अभ्यास करने लगी हैं। तो क्या मुफ़्त में ?
इस लिए कि शिकारी अपने शिकार पर है। दबे पांव। भस्मासुर को नृत्य के लिए न्यौता देने की तैयारी में है। दिल्ली विजय की ख़ुशी में पार्टी कार्यालय के भाषण में मोदी ने एक मूर्ख और एक धूर्त का ज़िक्र किया है। धूर्त अरविंद केजरीवाल है और मूर्ख राहुल गांधी। धूर्त निपट चुका है। कांग्रेस को चाहिए कि जल्दी से जल्दी अपने मूर्ख से छुट्टी ले। तभी उस का कल्याण है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करेगी , मुझे बिलकुल यक़ीन नहीं है।
बहरहाल यह जो फ़ोटो प्रस्तुत है यह मेरी खोज से नहीं आई है। कांग्रेस के पेड कलमकार सौरभ वाजपेयी खोज कर लाए हैं। कांग्रेस का शोकगीत गाने के लिए , अरविंद केजरीवाल की लानत-मलामत करने के लिए। यह फ़ोटो वह पहले भी क्यों नहीं ले कर उपस्थित हुए। फ़ोटो में तब भाजपा के तब के आचार्य और वोटिंग प्राइम मिनिस्टर लालकृष्ण आडवाणी हैं। उन के आजू - बाजू सुषमा स्वराज , अरुण जेटली। एक तरफ मुरली मनोहर जोशी , वेंकैया , जसवंत सिंह , राजनाथ सिंह भी हैं। दूसरी तरफ अन्ना हजारे , अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी हैं। फ़ोटो में अरविंद केजरीवाल , किरन बेदी से किसी रामायण , महाभारत की कथा पर तो नहीं बात कर रहे। जाहिर है कांग्रेस को ध्वस्त करने की रणनीति पर ही बात केंद्रित हैं। इस फ़ोटो में नरेंद्र मोदी का दूर - दूर तक कोई अता - पता नहीं है। क्यों कि उन का पता तब गुजरात के मुख्य मंत्री का था। प्रधान मंत्री पद के लिए तब उन की कोई चर्चा भी नहीं थी। बाक़ी कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। क्यों कि भाजपा वन मैन आर्मी या डायनेस्टी की गुफा में जाने से अभी तक वंचित है। लेकिन ढील दे कर पतंग काटने में चैंपियन है। इस ढील का सर्वाधिक ख़ामियाजा कांग्रेस के हिस्से आता है। पर कांग्रेस को इस में आनंद बहुत आता है। कोई करे भी तो क्या करे !
वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को बड़े रोचक और सधे ढंग से समझाया है आपने माननीय 🙏🏽 साधुवाद आपको🙏🏽
ReplyDeleteआपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो🙏🏽 राम राम🙏🏽
Excellent
ReplyDeleteExcellent analysis
ReplyDeleteआपने जो फ़ोटो दी है , वह क्या तब की हैजब अटल जी प्रधान मंत्री थे ? पर मैं इस बात पर सहमत नहीं हो पा रहा हूँ कि अन्ना हज़ारे भाजपा की खोज थे और अरविंद जैसे भस्मासुर को भी भाजपा ने पैदा किया । अरविंद तो अंतरराष्ट्रीय भारत विरोधी संगठनों का एजेंट रहा है । मैग्सेसे पुरस्कार भारत विरोधियों को ही मिलता है । अरविंद को मिला था । हाँ , भाजपा ने कांग्रेस को निपटाने में अपने धुर विरोधियों का साथ दिया 1989 में पर शीघ्र ही उसे बाहर आना पड़ा और अकेले रास्ता तय करना पड़ा ।
ReplyDeleteयह फ़ोटो तब की है जब मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे। लोकपाल आंदोलन के समय की बात है। भाजपा ने कांग्रेस का कांटा निकालने के लिए अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया। बाद में शीला दीक्षित का क़िला ढाहने के लिए अरविंद केजरीवाल का। ठीक वैसे ही जैसे लालू का कांटा निकालने के लिए नीतीश का और ठाकरे का कांटा निकालने के लिए शिंदे का। राजनीति में अनकहा का भी एक पाठ होता है
DeletePuri story sahi hai sirf photo ka varnan sahi nahi hai, ye photo Anna Andolan ke time ka hi hai Lokpal bill banane ko lekar. RSS aur BJP ki milibhagat ka product tha Anna aur Kejri.
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