Monday, 10 February 2025

अच्छा भाजपा की जगह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को हराया होता तो भी यही सहानुभूति होती आप की आप के लिए ?

दयानंद पांडेय


तमाम पूर्वाग्रह के बावजूद आप ठीकठाक टिप्पणीकार हैं। तमाम आग्रह , कमिटमेंट और रिजर्वेशन के बावजूद अध्ययन और तर्क के साथ भी बात करते हैं। पर एक कुटिल , धूर्त और लफ्फाज भ्रष्टाचारी के लिए इतनी सहानुभूति ठीक नहीं। अफ़सोस कि सौरभ भारद्वाज और राखी बिड़लान में भी आप को कभी मासूमियत दिखी। कितने तो कुटिल और अभद्र हैं दोनों। बोलने का सलीक़ा तक नहीं। सिर्फ़ फरेब जानते हैं और केजरीवाल की हां में हां। संसदीय राजनीति का स नहीं पता इन्हें। समस्या के समाधान ख़ातिर विपक्ष के विधायक के पैरों में एक मंत्री के लेट कर , नाटक करने से राजनीति होती है ?

केजरीवाल की गिरफ़्तारी पर दिल्ली विधानसभा का अध्यक्ष किस बेशर्मी से केजरीवाल के घर विरोध में कार्यकर्ता बन कर उपस्थित था। यह संसदीय गरिमा थी ? किसी ने निंदा की ? किसी मीडिया ने सवाल खड़े किए ? शराब घोटाला , शीशमहल क्या अपराध की श्रेणी में नहीं आएंगे ? फंसाने के लिए बनाए गए हैं यह आरोप ? कोई सत्यता नहीं है इन आरोपों में ? कोरोना में केजरीवाल के करतब मीडिया के लोग भूल गए हैं , लोग नहीं। कैसे आक्सीजन के अभाव में लोग मरे। दिल्ली से पैदल ही लोग अपने गांव जाने के लिए मज़बूर किए गए। यमुना किनारे भिखारियों की तरह रहने वाले लोग कौन थे ? सिर्फ़ केंद्र की ज़िम्मेदारी थी ? राज्य सरकार की नहीं ? मोहल्ला क्लिनिक की उपयोगिता कोरोना में कुछ थी ?

झाग भरी यमुना क्या है ? है किसी और शहर में ऐसी झाग भरी यमुना या कोई और नदी है क्या। देश की सभी नदियां दूषित हैं। प्रदूषित हैं। पर पर दिल्ली की यमुना जैसी कोई नहीं। छठ के अलावा दिल्ली की बिकाऊ मीडिया ने कभी यमुना पर गंभीरता से रिपोर्टिंग की ? हवा हर शहर की ख़राब है। पर दिल्ली जितनी ? चौतरफा सीवर चोक। बरसात में समूची दिल्ली झील। मंत्रियों के बंगलों तक में पानी। गंदगी , कूड़े का पहाड़। पीने का साफ़ पानी नहीं देश की राजधानी में।

शीला दीक्षित के समय में तो ऐसी विपन्न नहीं थी हमारी दिल्ली। फिर भ्रष्टाचार का पहाड़। मुख्य सचिव , मुख्य मंत्री आवास में पिट जाता है। फिर पैसा ले कर अपनी ही जाति के लोगों को राज्य सभा में भेजना क्या था ? किस मीडिया हाऊस ने सवाल उठाया ? स्टिंग किया ?

अच्छा भाजपा की जगह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को हराया होता तो भी यही सहानुभूति होती आप की आप के लिए ?

पढ़े - लिखे लोगों को राजनीति में आना चाहिए की बात पर अरविंद केजरीवाल ने कालिख पोत दी है। वह एक ही सांस में नास्तिक और आस्तिक दोनों बन जाता है। खालिस्तानियों और लीगियों दोनों को साध लेता है। आंख में धूल झोंकने के लिए हनुमान मंदिर भी। विज्ञापन दे कर मीडिया का मुंह बंद किया जा सकता है , करोड़ो रुपए की फंडिंग से यूट्यूबरों से माहौल अपने पक्ष में बनवाया जा सकता है। जनता को मुफ़्तख़ोरी का अभ्यास कराया जा सकता है पर लंबी राजनीति नहीं। गाना पुराना है आनंद बख्शी का लिखा हुआ : ये पब्लिक है सब जानती है ! वह पब्लिक जो कभी राम को नहीं बख्शती , इंदिरा गांधी को भी कूड़े में फेंक देती है। वह अरविंद केजरीवाल को छोड़ देती ? यह कैसे सोच लेते हैं आप और आप जैसे टिप्पणीकार।

इतनी आह !

उस के लिए जिस ने दिल्ली की यमुना ही नहीं , देश की राजनीति को प्रदूषित कर दिया वह भी साफ़ - सुथरी राजनीति के नाम पर। जिस ने साफ़ सुथरी राजनीति के सपने तोड़ दिए। पढ़े - लिखे लोग अब किस मुंह से राजनीति में आने को सोचेंगे ?

सचमुच कितना तो क्षरण हो गया है।

[ एक मित्र की पोस्ट पर मेरा यह कमेंट। ]

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