दयानंद पांडेय
राजनीति में रणनीति के मामले में नीतीश कुमार कई बार नरेंद्र मोदी को भी बहुत पीछे छोड़ देते हैं। कहते थे कभी कबीर कि : जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान। / मोल करो तलवार का , पड़ा रहन दो म्यान। लेकिन चुनाव जब चौखट पर आ खड़ा हो तो जाति का मोल बढ़ जाता है ,बहुत बढ़ जाता है। कबीर पानी मांग जाते हैं। शर्मिंदा हो जाते हैं। लोहिया भी सौ में साठा का बिगुल बजाते थे पर दशकों बाद नीतीश कुमार भी 60 से 63 प्रतिशत ही पिछड़ा बता पा रहे हैं। नीतीश पढ़ाई से अपने समय के इंजीनियर हैं , मुख्य मंत्री हैं। फिर भी अपने को पिछड़ा मानते हैं। ठीक वैसे ही जैसे दो-तीन पीढ़ी से आई ए एस या आई पी एस , पी सी एस आदि चले आ रहे लोग अपने को दलित और पिछड़ा ही मानते रहते हैं। दूसरी , तीसरी पीढ़ी में भी मंत्री पद भोगते हुए भी पिछड़ा और दलित मानते रहते हैं। चाहते हैं बराबरी , सामाजिक समता की बात भी बढ़-चढ़ कर करने के अभ्यस्त हैं। पर दलित और पिछड़े बन कर ही। अपने ही लोगों का हक़ मारते हुए।
नीतीश कुमार इस बीमारी को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। अनायास नहीं , सायास खेल गए हैं , लालू यादव परिवार से। जैसे कि जातीय जनगणना में बहुत महीन ढंग से नीतीश कुमार ने बता दिया है कि बिहार की सत्ता में यादव कुल की भागीदारी आबादी के अनुपात से बहुत ज़्यादा है। मुस्लिम आबादी यादव से अधिक है और सत्ता में उस की भागीदारी यादव कुल से बहुत कम है। याद कीजिए लालू ने कुछ समय पहले ही नीतीश को सांप कहा था। तो क्या मुफ़्त में ? ख़ैर , नीतीश के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में चौदह प्रतिशत यादव हैं और सत्रह प्रतिशत मुसलमान। इसी तरह बाक़ी पिछड़ी जातियों , अति पिछड़ी जातियों की भी सत्ता में भागीदारी न्यूनतम है। जाने यदुवंशी लोग नीतीश की इस शह को समझ पाए हैं कि नहीं ? या मात के बाद ही समझेंगे ? जब चिड़िया खेत चुग जाएगी। वैसे तो तीन प्रतिशत कुर्मी वाले नीतीश कुमार भी ढाई दशक से मुख्य मंत्री बने बैठे हैं। ख़ैर , वह तो बीते चुनाव में कह ही चुके हैं कि उन का यह आख़िरी चुनाव है। पुलिसिया तफ़तीश की भाषा के हवाले से जो कहें तो बिहार के जातीय जनगणना में अनुसंधान अभी जारी है। किसिम-किसिम के अनुसंधान अभी शेष हैं।
तो भी पिछड़ी जाति के राजनीतिक पंडित लोग बता रहे हैं कि पिछड़ी जातियों के निमित्त नरेंद्र मोदी भी कुछ और विस्फोट करने ही वाले हैं। ग़ौरतलब है कि नरेंद्र मोदी भी राजनीतिक रूप से भले अगड़े हों पर जाति से तो वह भी पिछड़े ही हैं। तीन टर्म मुख्य मंत्री और दो टर्म प्रधान मंत्री रह कर भी चाय वाले ही हैं। पिछड़े बने हुए हैं। कहते हुए शर्म भी नहीं आती मोदी को कि हम पिछड़े हैं। लज्जा भी नहीं आती। पिछड़ों ही के पैरोकार हैं वह। पिछड़ों के नाम पर आग लेकिन कम मूतते हैं। पर काम वही करते हैं जो कभी चौधरी चरण सिंह , वी पी सिंह , मुलायम यादव , लालू यादव , शरद यादव जैसे अन्य अनेक करते रहे हैं। सब का साथ , सब का विश्वास की बात करने वाले मोदी सवर्णों के हित की बात कभी भी नहीं करते। ठीक वैसे ही जैसे ओवैसी , आज़म खान आदि मुस्लिम से इतर कोई राजनीति नहीं करते। बस यह लोग खुल्ल्मखुल्ला करते हैं , नरेंद्र मोदी परदे की ओट से करते रहते हैं। ओवैसी आदि की तरफ जल्दी-जल्दी है , मोदी की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता है।
यह नरेंद्र मोदी की ही ओ बी सी राजनीति है जो ख़ुद को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण बताने का पाखंड करने वाला पारसी राहुल गांधी जैसा धूर्त और बेलगाम आदमी भी बड़ी तेज़-तेज़ आवाज़ में ओ बी सी-ओ बी सी का जयकारा लगा रहा है। ललकार लगा रहा है। कहें कि भौंक रहा है। मोहब्बत की दुकान में जहर बेच रहा है। सोचिए कि टाटा भी एक पारसी हैं , और यह लफ़्फ़ाज़ भी पारसी। एक देश को क्या दे रहा है , दूसरा क्या दे रहा है। फ़िरोज़ गांधी की सकारात्मक राजनीति को याद कीजिए और इस दत्तात्रेय गोत्र वाले उठल्लू की राजनीति देख लीजिए। बेपेंदी का लोटा। कब किधर लुढ़क जाए , ख़ुद नहीं जानता। भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला के हुजूम में शामिल होने से लगायत विधेयक फाड़ देने जैसे तमाम अहमकाने फ़ैसले पहाड़ की तरह सामने खड़े हैं। पंचर , कारपेंटर , कुली , किसान , मिट्टी ढोने , भारत जोड़ो आदि के फ़ोटो सेशन , कलावती के क़िस्से क्या कम थे जो अब ओ बी सी का पहाड़ा भी सरकारी प्राइमरी स्कूल के बच्चों की तरह ज़ोर-ज़ोर से पढ़ना पड़ रहा है। ख़ैर यह भी गुड है !
अच्छा जातीय राजनीति से लेकिन क्या देश की राजनीति और सत्ता चलती है ?
चलती तो है। और शुरू ही से चलती है। दौड़ती रहती है। सुपर फ़ास्ट की स्पीड से। नेहरू के समय से ही। बस नेहरू उस में मुस्लिम धर्म का तड़का डाल कर सेक्यूलर राजनीति करने का पाखंड करते थे। ब्राह्मणों को फिर भी शीर्ष पर रखते थे। कम्युनिस्टों ने भी यही किया। करते आ रहे हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेता तो अमूमन ब्राह्मण रहे हैं पर कम्युनिस्टों के सारे शीर्ष नेता भी सर्वदा से ब्राह्मण ही क्यों रहते रहे हैं , एकाध अपवाद को छोड़ कर। नंबूदरीपाद से लगायत सोमनाथ चटर्जी , चतुरानन मिश्र आदि-इत्यादि सारे नाम याद कर लीजिए। और बात क्या करते हैं , करते ही रहते हैं। कम्युनिस्टों सा हिप्पोक्रेट दुनिया में इसी लिए कोई और नहीं है। बहरहाल , इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी बहुत आहिस्ता से नेहरू के इस जातीय गणित और मुस्लिम तड़के को तड़काए रखे। पर इतनी शालीनता से कि किसी की नसें न तड़के। शान से शासन करते रहे। लेकिन वी पी सिंह ने बोफोर्स के प्रेशर कुकर में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सीटी ही नहीं बजाई , प्रधान मंत्री बनने के बाद शरद यादव की सलाह पर मंडल का तड़का भी लगा दिया। मौलाना टोपी तो उन के सिर पर थी ही। शरद यादव ने वी पी को समझा दिया था कि मंडल लागू करने के बाद वह अंबेडकर से ज़्यादा लोकप्रिय हो जाएंगे। गांव-गांव में उन की मूर्ति लग जाएगी। वी पी सिंह , शरद की इस लफ्फाजी में फंस गए। जिस वी पी ने बतौर मुख्य मंत्री , उत्तर प्रदेश फ़ाइल पर लिखा था कि अगर मंडल लागू किया गया तो उत्तर प्रदेश में आग लग जाएगी। उसी वी पी सिंह ने बतौर प्रधान मंत्री लालक़िला से मंडल की आग पूरे देश में लगा दी। जे पी की संपूर्ण क्रांति में आग लगा दी। मंडल का चारा खा कर लालू , मुलायम , मायावती जैसे अनेक भ्रष्टाचारी और जातिवादी देश के सामने उपस्थित हुए। भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी ने इस मंडल की काट कमंडल में खोजी और वह सफल रहे। देश हिंदू-मुस्लिम में बंटा ही था , अगड़े-पिछड़े में भी बंट गया। नफ़रत और घृणा की ऐसी नागफनी उगी कि पूछिए मत। पहले उत्तर प्रदेश में फिर केंद्र में भाजपा की सरकार बन गई। वी पी सिंह न घर के रहे , न घाट के। धोबी का कुत्ता बन गए। पिछड़ों ने तो उन्हें राजपूत बता कर उन के पृष्ठ भाग पर लात मारी ही है , राजपूतों ने और ज़ोर से उन के पृष्ठ भाग को घायल किया है। करते ही रहते हैं।
ख़ैर , तब मंदिर-मस्जिद का तड़का खुले आम सामने आ गया। जो काम कांग्रेस छुपा रुस्तम बन कर करती थी बौखलाहट में खुले आम करने लगी। हिंदू-मुसलमान करने लगी। तोहमत भाजपा पर लगाने लगी। लेकिन खुला खेल फर्रुखाबादी होने के बाद बहुसंख्यक के आगे अल्पसंख्यक का वोट बैंक पिटने लगा। बर्फ़ की मानिंद पिघलने लगा। कांग्रेस , कम्युनिस्ट और जातीय क्षत्रपों की सरपरस्ती के बावजूद पिटते-पिटते अल्पसंख्यक का वोट बैंक अब पस्त हो गया है। पस्त क्या अस्त हो गया है। कांग्रेस का एक बहुत पुराना नारा है : जाति पर न पाति पर , मुहर लगेगी हाथ पर। कमलेश्वर जैसे लेखक , पत्रकार ने यह नारा लिखा था। ख़ूब चला भी। कांग्रेस को सफलता भी ख़ूब मिली। वह कहते हैं न कि अगर नेता बड़ा होता है तो नारा भी बड़ा बनता है। तब इंदिरा गांधी थीं , अब राहुल गांधी हैं। इस लिए आज वही कांग्रेस ढिबरी की तरह भभकती हुई सब से ज़्यादा जाति-जाति कर रही है। जातीय क्षत्रपों से खुल कर हाथ मिला कर खड़ी है। भूल जा रही है कि उस के सामने उस से बड़ी जातीय और धार्मिक सेना खड़ी है। अक्षौहिणी सेना। सभी शस्त्र और शास्त्र से भली-भांति लैस। सारे छल-कपट और पाखंड से लैस यह भाजपा की अपराजेय सेना है। अमित शाह जैसे रणनीतिकार ने मंडल और कमंडल के गैप को भर कर नया हिंदू खड़ा किया है। सनातन का वर्क लगा कर। लोकसभा चुनाव में तमाम जतन के बावजूद कांग्रेस और उस के जातीय क्षत्रप भाजपा की इस धार्मिक और जातीय सेना के आगे सेकेंड में स्वाहा हो जाएंगे। क्यों कि लोहा , लोहे को काटता है। देखिए न कांग्रेस और उस के जातीय क्षत्रप कैसे तो वन नेशन , वन इलेक्शन की आग में महीने भर झुलसते रहे। इतना झुलसे कि नारी वंदन शक्ति की निंदा करते हुए भाजपा शरणम गच्छामि हो गए। कांग्रेस , कम्युनिस्ट समेत सभी ने समर्थन दे दिया।
तो क्या मुफ़्त में ?
नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम वोट बैंक का मुग़ालता तोड़ कर महिला वोट बैंक का नया क़िला बना दिया है। अगड़ा-पिछड़ा को मिला कर वोट बैंक खड़ा किया है। इस क़िले को तोड़ने की कूवत किसी लालू-आलू , राहुल टाइप में नहीं रही। बड़े-बड़े धूर्त निंदा भी करते रहे , हमारा बिल भी कहते रहे और भाजपा के बिल में समा गए। 370 में भी ध्वस्त इसी तरह हुए यह रंगबाज लोग। जातीय राजनीति के खेल में धर्म के तड़के के साथ कोसों आगे है भाजपा। 2024 के रण में भाजपा के आगे-पीछे कोई दूर-दूर तक नहीं है। कोरोना काल में वैक्सीन , आक्सीजन आदि को ले कर कांग्रेस समेत तमाम जातीय क्षत्रप , तब्लीगी जमात आदि ने जो बदफैली की थी , लोग भूले नहीं हैं। जो भूल भी गए हैं , उन्हें याद दिलाने के लिए कश्मीर फाइल्स वाले विवेक अग्निहोत्री नाना पाटेकर के साथ एक फ़िल्म ले कर आ गए हैं। जी-20 , चंद्रयान की अविस्मरणीय सफलता भी सिर पर चढ़ कर सवार है। लेकिन जी-20 , चंद्रयान , वंदे भारत , बढ़ती रेल सुविधा , ट्रेन , चारगुना एयरपोर्ट , सड़कों का जाल , मुफ़्त राशन , शौचालय , गैस आदि काम पर उतने वोट भाजपा को नहीं मिलेंगे , लोग जानते हैं। भाजपा भी। अगर मिलते तो कर्नाटक , हिमाचल में भाजपा चारो खाने चित्त न होती।
देश चाहे जितनी और जैसी प्रगति कर जाए देश का वोटर , वोट तो जाति और धर्म के नाम पर ही देता है , यह सर्वविदित है। कोई रहस्य नहीं है। धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना क़ानूनन अपराध है। कृपया मुझे थोड़ी अभद्रता के साथ यह कहने की अनुमति दीजिए कि यह कमीनगी भी है। पर कौन नहीं जानता कि नरेंद्र मोदी और उन की यह भाजपा अन्य कमीनों की अपेक्षा , इस कमीनगी में कोसों-कोसों आगे है। दूर-दूर तक कोई उसे छू भी नहीं सकता। नीतीश कुमार जैसे लोग भी नहीं। नीतीश कुमार बिहार से आगे की धरती नहीं जानते। और अब बिहार में भी कितना जानते हैं ? जानते होते तो सुशासन बाबू जातीय जनगणना के दलदल में हाथी की तरह फंसते भी क्यों भला ! जो भी हो फ़िलहाल तो जातीय जनगणना के तीर उन्हों ने अपने सहयोगी लालू पर बहुत शातिरपने से चला दिए हैं। बिहार में अभी नीतीश निश्चय ही इस खेल में नरेंद्र मोदी से आगे हैं। शुरू से ही आगे रहे हैं। लेकिन लोकसभा सिर्फ़ बिहार के सांसदों से सांस नहीं लेती। फिर ओ बी सी नरेंद्र मोदी और उन की भाजपा के जातीय और धार्मिक दांव-पेंच का तोड़ तोड़ने के लिए विपक्ष के पास कोई इस लिए नहीं है क्यों कि नरेंद्र भाजपा के कृष्ण और अर्जुन दोनों है। अभिमन्यु नहीं है , नरेंद्र मोदी। न ही यह भाजपा अटल बिहारी वाजपेयी वाली है। जो अनैतिक समर्थन चिमटे से भी छूने को तैयार नहीं रहती थी और एक वोट से भी उस की सरकार गिर जाती थी। अब तो सठे -शाठ्यम समाचरेत की तर्ज़ पर भाजपा के पास लोहे से लोहे को काटने वाला है। अरुण कमल की कविता धार की याद आती है :
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार ।
तो जातीय और धार्मिक कसौटी पर नरेंद्र मोदी की धार ही देखेगा 2024 का लोकसभा चुनाव। चंद्रयान , जी-20 , एयरपोर्ट , रेलवे स्टेशन , सड़कों का जाल आदि तो खिलौने हैं , सरकार के बोलने-बतियाने के लिए। ई वी एम , ई डी आदि विपक्ष के खिलौने हैं , बतियाने ख़ातिर। चुनावी गणित में जाति-धर्म आदि का लोहा ही काम आता है। नेहरू काल से ही। नरेंद्र मोदी और मोदी की भाजपा ने यह सारा लोहा बटोर कर उस पर अपनी धार देना बड़ी कुशलता से सीख लिया है। क्यों कि देश और चुनाव न संविधान से चलता है , न क़ानून से। देश और चुनाव चलता है , धर्म से , जाति से , माफ़िया से। यही तीन खंभे हैं हमारे चुनाव के। हमारे समाज और देश के। आप मानिए , न मानिए , आप की मर्जी। पर विधायिका , न्यायपालिका और कार्यपालिका भी इन्हीं से संचालित होती हैं। और फिर बात वही कि : अपना क्या है इस जीवन में / सब तो लिया उधार / सारा लोहा उन लोगों का / अपनी केवल धार। यक़ीन न हो तो देखिए न दुनिया की सब से बड़ी स्टैच्यू , सरदार पटेल की लोहे की स्टैच्यू ! गांधी भी गुजरात के थे , पटेल भी। अगर गांधी भी पिछड़े होते तो सरदार पटेल की तरह शानदार स्टैच्यू उन की भी बन गई होती। सच यह है कि नेहरु काल की तरह गांधी , आज भी मज़बूरी का नाम गांधी बन कर उपस्थित हैं। रहेंगे। अंबेडकर भी वही मज़बूरी हैं। सभी के लिए। ख़ैर , कहते हैं कि पिछड़ी जाति के सरदार पटेल की स्टैच्यू का वज़न 1700 टन है। इस के पैर की ऊंचाई 80 फीट, हाथ की ऊंचाई 70 फीट, कंधे की ऊंचाई 140 फीट और चेहरे की ऊंचाई 70 फीट है। इस स्टैच्यू में लोहा तो बहुतों ने दिया पर धार और दृष्टि किस ने दिया ? सुनते हैं नरेंद्र मोदी ने। और धार इतनी दे दी कि अभी तक कोई कांग्रेसी , कोई कम्युनिस्ट , कोई आलू-लालू , कोई नीतीश , राहुल , फाऊल आदि झांकने भी नहीं गया वहां। तो क्या इस लिए कि सरदार पटेल भाजपाई थे ? जी नहीं। भाजपा की नज़र में सरदार पटेल मरने के बाद भी पिछड़े हैं।
जी नहीं , भाजपाई नरेंद्र मोदी की धार थी , नहीं गए। नहीं जाएंगे। कभी नहीं जाएंगे। धार बड़ी तेज़ है। भयभीत हैं कि कट जाएंगे।
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