फ़ोटो : अनन्या पांडेय |
ग़ज़ल
धुंध में घिरा ख़ामोश खड़ा हूं ख़ुद से ख़ुद को तोलता हुआ
मैं सड़क पर हूं घने कोहरे में खोया ख़ुद को खोजता हुआ
सड़क सूनी है स्ट्रीट लाईट बुझी हुई दूर तक गहरा सन्नाटा
रात के अंधेरे में ओस में भींगता सिर्फ़ तुम को सोचता हुआ
आंखों में कोई सुरीला सपना है चुप-चुप धुंध में चलता हुआ
ऐसे कि जैसे कोई आईना हूं मैं ख़ुद में तुम को खोजता हुआ
यह चुप रात है सन्नाटा है या कोई ब्लैक एंड ह्वाईट फ़िल्म है
कैमरा है एक-एक शाट में किसी कहानी को खोलता हुआ
यह ओस में भीगी सड़क है मैं हूं सुलगता हुआ सन्नाटा है
इस सन्नाटे में भी एक सुर है संतूर की मिठास घोलता हुआ
कोहरे में डूबी इस सड़क के सन्नाटे में तुम्हें सोचना वैसा ही है
जैसे ग़रीब सोचता है कोई सुख एक-एक पैसा जोड़ता हुआ
जैसे कोई बूढ़ी औरत भूसे में सूई खोजे ठीक वैसे ही कई बार
खोजता रहता हूं भरी भीड़ में भी निरंतर तुम्हें कोसता हुआ
[ 6 जनवरी , 2016 ]
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और कमलेश्वर में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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