Friday 15 January 2016

यह पुस्तक मेला यह पुस्तक विमोचन दम तोड़ते हुए जलसे हैं


ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

मिलना-जुलना ही होता है सब पूछते रहते हैं और आप कैसे हैं
यह पुस्तक मेला यह पुस्तक विमोचन दम तोड़ते हुए जलसे हैं

किताबों की दुनिया बहुत सुंदर प्रकाशकों की दुनिया भयावह बहुत
रिश्वत ही से किताब बिकती है पाठक लेखक संबंध मर रहे जैसे हैं 

सरकारें हरामखोर अफसर रिश्वतखोर लेखक कायर प्रकाशक चोर
सरकारी ख़रीद में लाईब्रेरियों में करते कैद किताब कैसे-कैसे हैं 

नया लेखक बिचारा उत्सव रचाता है बुलाता है टायर्ड लोगों को 
प्रकाशक कुछ नहीं करता जानता है यह सब फालतू के खर्चे हैं

देखना दिलचस्प होता है नए लेखक किताब देते हैं  चरण छू कर 
नामी लेखक भेंट पाई यह किताबें बड़ी हिकारत से फेकते कैसे हैं

छपास के मारे यह अफसर यह मास्टर यह  पैसे वालों की औरतें  
किताब छपवाने ख़ातिर प्रकाशक को पैसे दे-दे कर बिगाड़ देते जैसे हैं 

जगह-जगह से पहुंचते  हैं बिचारे यश:प्रार्थी दल्लों के शहर दिल्ली में
मेले विमोचन की फ़ोटो हों या चर्चे सब ग्वाले के पानी मिले दूध जैसे हैं  

किताब बिकती नहीं प्रकाशक चीख़-चीख़ कर सब से कहता रहता है
लेकिन बेशर्म लेखक फ़ेसबुक पर कहता है मेरी किताब के बहुत चर्चे हैं

कुछ ज़िद में कुछ सनक में कुछ ऐंठे हुए कुछ पूर्वाग्रही कुछ क्रांतिकारी
आदमी कोई नहीं है सभी लेखक हैं लोग कहते हैं यह पागल कैसे-कैसे हैं 

फालतू की गंभीरता ओढ़ महाकवि बनने का स्वांग अब बहुत हो गया
मठ ढहेंगे नेट का ज़माना है  प्रिंट की धांधली और छल चला गया जैसे है

थोड़े से लोग किताब ख़रीद कर पढ़ते हैं कुछ  दुम हिलाते रहते हैं
ठकुरसुहाती का ज़माना है  मालिश पुराण के अब यह नए नुस्खे हैं

बटोरता फिरता है मेले में इन के उन के अपमान के कचरे भरे क़िस्से 
गोया गांधी है दलित बस्ती में सफाई करता इधर-उधर फिर रहा जैसे है
 
हर कोई सच कह नहीं पाता , कह सकता भी नहीं छुपाता हर कोई है 
वह तो हम हैं जो हर छोटी बड़ी बात को ग़ज़ल में भी कह देते जैसे हैं

 [ 16 जनवरी , 2016 ]

4 comments:

  1. अापके इन शब्दों ने कितनों की पोल खोल कर रख दिया। शायद एक कडवी सच्चाई एक कडवी नीम की गोली हॅ आप की ये रचना।

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  3. ग्वाले के पानी मिले दूध जैसे। एकदम सही कहा। पुस्तक मेलों प्रकाशकों लेखकों और पाठकों का जानाबूझा संसार। कटु सत्य।

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  4. This comment has been removed by the author.

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