Friday, 27 January 2012

प्रेम, भक्ति और मुक्ति : हृदयनाथ मंगेशकर

दयानंद पांडेय 



हृदयनाथ मंगेशकर
मास एक-एक सीढ़ी नीचे लाने लगता है : जीवन में जो भी संघर्ष किया सिर्फ ज़िंदगी चलाने के लिए किया, संगीत के लिए नहीं : आदमी को पता चलता ही नहीं, सहज हो जाना : बड़ी कला सहज ही हो जाती है, सोच कर नहीं : इतने लोगों से सीखा है कि अगर सबका गंडा बांध लेता तो हाथ भर जाता मेरा : लता मंगेशकर की सफलता से मेरा कोई संबंध नहीं है, मैं कभी उसका हाथ पकड़ कर चला ही नहीं : राज ठाकरे का निर्माण मराठियों ने नहीं, मीडिया ने किया है : अगर मेरे पिता जीवित रहते, हमारा बचपन अनाथ न होता तो हमारे परिवार में कोई भी प्ले बैक सिंगर नहीं हुआ होता, लता मंगेशकर भी नहीं : छः साल छोटी है दीदी से आशा, फिर भी आवाज़ मोटी हो गई है, दीदी की वैसी ही है जैसी पहले थी : ढाई हज़ार से अधिक बंदिशें याद हैं, इन्हें सहेज कर रख जाना चाहता हूं :

पिछले दिनों लखनऊ आए मशहूर संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर से वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय ने विस्तार से बातचीत की. उस इंटरव्यू के कुछ अंश :

प्रेम, भक्ति और मुक्ति। हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत के यही तीन सूत्र हैं। संगीत को वह भाषा और विचार के स्तर पर लेते हैं। वह कहते हैं, ‘लोगों की होगी कोई और भाषा। मेरी तो बस एक ही भाषा है और एक ही विचार। और वह है- संगीत। संगीत ही मेरी बोली है, मेरी भाषा है।’ वह ज़रा तफ़सील में आते हैं, ‘कर्ण को कुंडल और कवच मिले थे जैसे, वैसे ही संगीत मिला हुआ है मुझे, मेरे परिवार को। और इस के लिए कुछ ख़ास प्रयास नहीं करना पड़ा। आनुवंशिक है यह।’ बोलते-बोलते आंखें उनकी अधमुंदी हो गई हैं। वह डूब से गए हैं अपनी ही बात में, ‘व्यक्तिगत बात करूंगा। संगीत का जो सब से बड़ा रस है- शांत रस है। इसी लिए मैं तमाम लोगों से, माध्यमों से दूर रहता हूं। शांत रस ही मेरे लिए सब से बड़ा है। इसी लिए मैं कहता हूं पे्रम, भक्ति और मुक्ति। पहले तो आनुवंशिक है। साधना भक्ति हो गई। शांत रस मतलब मुक्ति। हालांकि मीरा को जब सुनता हूं तो लगता है कि थोड़ा-थोड़ा छोर पकड़ा है। पर फिर कुछ भौतिक चीज़ें आ जाती है। तो अगर संगीत में मैं शांत रस ला सकूं, वह भी अपने लिए, दूसरों के लिए नहीं तो जीवन शायद सार्थक हो, शायद प्रेम मिले, भक्ति मिले और फिर मुक्ति भी। इस लिए भी कि मेरे लिए जो अनुभूति है तो दूसरे भी करें तो यह अनुभूति मिले। पर जानता हूं कि दूसरे करेंगे नहीं। सभी को होता नहीं यह चाव। जिन को होता है वही आहिस्ता-आहिस्ता आते हैं। जैसे शास्त्रीय संगीत है, उस में शास्त्र है, तंत्र है।’

  • ‘और फ़िल्म के संगीत में?’
‘फ़िल्म के संगीत में निर्माता-निर्देशक के हिसाब से, प्रसंग के हिसाब से करना पड़ता है। स्टेज पर भी लोगों के हिसाब से गाना पड़ता है। तो यह सब गंगा की धारा में बहने वाली बातें हैं। तो सब शांति से बह जाए, जिस में कोई प्रदूषण न हो। आदमी का स्व विसर्जित हो जाए तो वो निकल जाए। गंगा का स्रोत होता है जैसे, प्राचीन काल में, वैसे ही संगीत का स्रोत अगर दूर से भी दिखाई दे जाए तो अच्छा है। प्रयत्नशील हूं इसके लिए काफी सालों से। पर वह क्षण भर के लिए है। फिर सांसारिक बातें आ जाती हैं।’ कहते-कहते उन की आंखें फिर अधमुंदी हो गई हैं, ‘हमारे यहां संत ज्ञानेश्वर ने लिखा है सहज निटु धाला। मतलब आदमी को पता चलता ही नहीं, सहज हो जाना। सहज निटु धाला। अचानक। बड़ी कला सहज ही हो जाती है। सोच कर नहीं। आइंस्टीन को आसानी से मिल गया एक साक्षात्कार। डार्विन को आसानी से मिल गया। वेद किस ने लिखे, किस ने कहा, पता नहीं। हो गया।’

  • ‘आप संत ज्ञानेश्वर से बहुत प्रभावित हैं। कल कार्यक्रम में भी आप बार-बार उन का ज़िक्र कर रहे थे।’
‘मैं तो सभी संतों से प्रभावित हूं। मराठी मेरी मातृभाषा है, इसलिए मराठी में उनको पढ़ा ज़्यादा है।’
  • ‘लेकिन मैं तो सुनता था कि कोंकणी आपकी मातृभाषा है।’ 
‘हां, कोकणी मेरी मूल मातृभाषा है। पर वह मराठी की अपभ्रंश है। फिर मैं गोवा में रहा नहीं। तो मुझे ज़्यादा आती भी नहीं।’
  • ‘दुनिया लता मंगेशकर को मानती है। बड़ी गायिका। पर लता मंगेशकर आपको मानती हैं। फिर भी आप मास में नहीं हैं, उतने लोकप्रिय नहीं हैं, जितनी कि लता मंगेशकर या आशा भोंसले।’
‘मेरे को मास नहीं मानता, मेरे लिए यह अच्छा है। मास एक-एक सीढ़ी नीचे लाता है। किसी को पॉप बहुत पसंद है। मैं पॉप करूं तो मुझे नाम भी मिलेगा, पैसा भी। पर मैं कहां आ जाऊंगा? और यह मैं कोई आज से नहीं बचपन से ही सोचता हूं। क्योंकि मुझे जो संगत मिली, बड़े लोगों की मिली। उनसे सीखना हुआ यह। परपजली मैं इस सबसे दूर रहा, मास से दूर रहा। प्रेम, भक्ति और मुक्ति। शुरू ही से ऐसा ही सोचा। शुरू से ही साधना की। मतलब भक्ति की संगीत की। तो इसमें क्यों फंसता मैं?’
  • ‘आपको लगता है कि आप इसमें सफल हो गए हैं?’ 
‘कितना सफल हूं, कितना असफल यह तो बाद में पता चलेगा।’ उन के चेहरे पर जैसे तकलीफ की एक रेखा उभर आती है। कहने लगे, ‘संगीतकार हूं। पर आप को बताऊं कि जीवन में जो भी संघर्ष किया सब जीवन जीने के लिए किया, संगीत के लिए नहीं। सारा संघर्ष, सारी लड़ाई ज़िंदगी चलाने के लिए किया। संगीत तो बस हो गया। पिता जी जब मरे तो मैं चार वर्ष का था। एक पैर ख़राब था। दीदी तब बारह बरस की थी। आशा और ऊषा थीं, मां थीं, मैं था। दीदी ने अकेले हम सबको पाला और इस ऊंचाई तक पहुंची भी। बहुत मेहनत की उसने। ज़िंदगी की जद्दोजहद बहुत देखी उसने। मैंने भी देखी। अभी भी ज़िंदगी जीने की जद्दोजहद ख़त्म नहीं हुई। जारी है।’ अचानक वह छत की तरफ देखने लगे फिर कहने लगे, ‘पता है दीदी जवानी में सुंदर नहीं थी। काली सी। चेहरे पर चेचक के दाग!’
  • ‘पर अब तो सुंदर लगती हैं।’ 
‘हां, लगती है।’
  • ‘पता है आप को कि क्यों?’ 
‘क्यों?’
  • ‘सफलता आदमी को सुंदर बना देती है। और अब तो उनमें जैसे देवत्व भी आ गया है।’
‘अच्छा!’

  • ‘बिलकुल!’ 
‘मैंने खयाल नहीं किया। अब देखूंगा।’ कहकर वह अचानक चुप हो जाते हैं।

रातें उनकी जगी और दिन सोए हुए गुज़रते हैं। खुद्दारी जैसे उन्हें खुदाई में मिली हुई है। वह लता मंगेशकर के छोटे और इकलौते भाई हैं। पर चाहते हैं कि संगीत में उन्हें हृदयनाथ मंगेशकर नाम से ही जाना जाए। किसी के भाई भतीजे के रूप में नहीं। असल में बात ही बात में उन से पूछ लिया कि, ‘लता मंगेशकर की सफलता का आप के जीवन में क्या प्रभाव है?’ हृदयनाथ मंगेशकर जैसे भड़क गए। बोले, ‘लता की सफलता से मेरा कोई संबंध नहीं है। मैं कभी उसका हाथ पकड़ कर चला ही नहीं। कभी नहीं कहा कि इस प्रोड्यूसर से या फला से कह कर मुझे काम दिलाओ।’ वह कहने लगे कि, ‘आप सोचिए कि जब वह मर्सडीज़ कार से स्टूडियो जाती थी, मैं बस से, ट्रेन से जाता था। घर में तीन और गाड़ियां थीं। पर मैं चलता बस और ट्रेन से ही था। 1960 में जब अपनी फिएट ख़रीदी तब मैं गाड़ी में बैठा। तो समझिए कि लता का कभी सहारा नहीं लिया। न उस का, न उस की सफलता का।’
  • ‘तो भी लता मंगेशकर फिर भी मानती हैं कि आपके परिवार में इस समय अगर कोई संगीत जानता है तो वह हृदयनाथ मंगेशकर ही हैं।’ 
‘वो इसलिए कि मुझे वक्त मिला संगीत सीखने का। लता दीदी का ही आदेश माना और संगीत सीखा। हालांकि उम्र के आठवें साल में ही मैं ने भी काम करना शुरू किया। पर संगीत सीखते हुए। हालांकि दीदी, आशा सभी अच्छा गाती हैं। लेकिन यह लोग बचपन में ही काम में लग गए। तो बचपन में जिस को सीखना कहते हैं, ये लोग उस तरह सीख नहीं पाए। पर मुझे दीदी ने बचपन से सीखने का मौक़ा दिया। मैं गंडाबंद शिष्य हूं आमिर खां साहब का। पर सच यह है कि उनसे बहुत कम सीखा है। जब मैं उनसे सीखने के लिए गया तो उनका गाना इतने ऊंचे दर्जे का था कि उस संगीत का अवलोकन नहीं कर पाया। समझ नहीं पाया ठीक से। उस संगीत का रस उठाने की क्षमता मुझ में नहीं थी तब। तो सीख नहीं पाया। पर गुनी जनों की संगत मुझे बहुत मिली बाद में। और अब लगता है कि संगत से भी काफी सीखा जा सकता है।’
वह ज़रा रुके और फिर कहने लगे, ‘एक बात ध्यान में रखी हमेशा मैंने। खां साहब से लेकर दिनेश के महावीर तक कि जो मुझे अच्छा लगता है सीख लेता हूं। छोटा हूं। छोटा ही समझता हूं सबका अपने आप को।’
वह फिर ज़रा रुकते हैं और अपने दोनों हाथ कंधे तक दिखाते हुए कहते हैं, ‘इतने लोगों से सीखा है कि अगर सबका गंडा बांध लेता तो हाथ भर जाता मेरा। तो जब सीखता हूं उस समय अपनी क्षमता के हिसाब से सीखने की कोशिश करता हूं। संगीत का हर पहलू सीखने के लिए। हालांकि जिस का गंडा बांधा, उसको ही गुरु कहता हूं। पर सीखा बहुतों से।’
  • ‘जैसे?’ 
‘जैसे कि जसराज जी हैं, किशोरी अमोनकर हैं, विलायत खां हैं। ऐसे बहुत हैं। किस-किस का नाम गिनाऊं।’
  • ‘और संगीत निर्देशकों में?’ 
‘संगीत निर्देशक में सलिल चैधरी हैं, सज्जाद हुसेन हैं। इन दो को फालो करता हूं। किसी तीसरे को फालो नहीं किया। यह करते-करते मेरी एक ख़ास शैली बनी। हां, भजन की शैली मेरी अपनी है। यह स्रोत मेरे पिता जी की तरफ से है। पर मैं ने उन से कुछ सीखा नहीं है। हां, 22 रिकार्ड हैं मेरे पिता जी दीनानाथ मंगेशकर के। उन को सुन-सुन कर गुना ज़रूर है। तो पिता का असर काफी पड़ा बचपन से ही।’
पिता के बारे में बोलते-बोलते जैसे उन की आंखों में चमक सी आ जाती है। कहने लगे, ‘मराठी में दीनानाथ मंगेशकर आज भी टाप के संगीतकार हैं। हमें या लता दीदी को मराठी संगीत में दीनानाथ मंगेशकर का बेटा या बेटी के रूप में ही आज भी जाना जाता है।’
वह जैसे जोड़ते हैं, ‘दीदी को पूरी देन उनकी ही है, पिता की ही है।’ उन की आंखें फिर बंद हो गई हैं। वह डूब गए हैं पिता की याद में। अचानक उन की आंखें खुलती हैं। वह कहते हैं, ‘आप को पता है कि अगर मेरे पिता जीवित रहते, हमारा बचपन अनाथ न होता तो हमारे परिवार में कोई भी प्ले बैक सिंगर नहीं हुआ होता। लता मंगेशकर भी नहीं। पिता किसी को प्ले बैक गाने ही नहीं देते। सभी संगीत, शुद्ध संगीत में रमे रहते। जैसे मैं रमा हूं।’
  • ‘गुलज़ार ने अभी कहीं कहा है कि आप दुनिया में अकेले ऐसे संगीतकार हैं जिसे एक हज़ार से अधिक बंदिशें कंठस्थ हैं।’ 
‘नहीं-नहीं। एक हज़ार नहीं।’ वह संकोचवश मुसकुराते हैं, ‘ढाई हज़ार से कुछ अधिक बंदिशें मुझे याद हैं। अब इन्हें सहेज कर रख जाना चाहता हूं। मतलब रिकार्ड करवा कर। लिख कर भी। पर कोई म्यूज़िक कंपनी इसके लिए तैयार नहीं हो रही अभी।’
  • ‘कहां तो बंदिश गाना ही मुश्किल होता है और आप ढाई हज़ार बंदिश याद किए बैठे हैं। बड़ी बात है।’ 
‘सब ऊपर वाले की कृपा है।’ वह हाथ ऊपर उठाते हुए कहते हैं। फिर कुछ चीज़ें गा-गा कर सुनाने लगते हैं।
  • ‘पर म्यूज़िक कंपनियां क्यों नहीं तैयार हो रहीं?’ 
 ‘सब पैसे-वैसे का खेल है।’
  • जैसे आप से आज बात कर रहा हूं, वैसे ही जब लखनऊ लता मंगेशकर और फिर आशा भोंसले आई थीं तो उनसे भी बात की थी।’ 
‘अच्छा-अच्छा। कैसा लगा?’ पूछते हुए मुसकुराते हैं।

  • ‘अच्छा लगा। पर आशा भोंसले ने अपनी बातचीत में कहा था कि उनके साथ बहुत अन्याय हुआ है। सबने उनके साथ अन्याय किया है। परिवार ने भी।’
‘पूरे परिवार पर, सबसे और सबसे ज़्यादा अन्याय जो किया है आशा भोंसले ने किया है।’ शांत रस की बात करने वाले, प्रेम, भक्ति और मुक्ति की बात करने वाले, संजीदगी से बात करने वाले हृदयनाथ मंगेशकर जैसे फट पड़ते हैं। किसी बादल की तरह फट पड़ते हैं। उन का रोम-रोम जैसे रौद्र रूप में आ जाता है।
  • ‘कैसे?’ फिर भी मैं पूछता हूं। धीरे से।
‘उमर के चैदहवें साल में घर से चली गई। मां पर क्या बीती होगी?’ वह जैसे कांपने लगते हैं, ‘तिस पर बड़े सामान्य आदमी से शादी की। दो बच्चों के बाद पति ने घर से निकाल दिया। आशा जी का पैसा लेकर एक और शादी बना ली। फिर दो बच्चे किए और एक का नाम आशा ही रखा। फिर ये अपने बच्चे ले कर घर वापस आई बहुत सीधी बात-रहने के लिए। घर दिया। तो ऐसी बात करना, अन्याय कहना पाप है। उसके बच्चों को किसने संभाला?’
  • ‘आशा भोंसले कहती हैं कि दीदी ने गाने में भी मुझे काटा। सारे अच्छे गाने खुद गाए। रद्दी गाने मेरे हिस्से डाल दिए।’ 
‘जिस गाने के लायक़ जो होता है, उसे ही वह गाना मिलता है।’
  • ‘वह कहती हैं कैबरे वाले और घटिया गाने ही शुरू में उन्हें मिले।’ 
‘तो क्यों किया वह काम? मना कर देती। मैंने तो नहीं किया वो काम। ऐसा काम।’ वह ज़रा रुके। बैठने की दिशा बदली। बोले, ‘पर इनको तो नाम की बड़ी ज़रूरत थी, काम का बड़ा चाव था।’
  • ‘वो तो कहती हैं कि पंचम तक ने जो कि उनके दूसरे पति भी थे, सारे अच्छे गाने दीदी से गवाए, मेरे साथ अन्याय किया पंचम ने भी। मतलब आर. डी. वर्मन ने भी।’ 
‘संगीतकार को अकल होती है। वह जानता है कि किससे क्या गवाना है। पंचम के बनाए दीदी के गाए गाने सुन लीजिए, पता चल जाएगा। आशा ने जैसे गंदे गाने गाए हैं, दीदी तो मना कर देती थी ऐसे गाने गाने के लिए।’ हृदयनाथ मंगेशकर जैसे मुझसे ही पूछने लगे, ‘आज क्या हालत है? छः साल छोटी है दीदी से आशा। फिर भी आवाज़ मोटी हो गई है। पर दीदी की आवाज़ वैसी ही है, जैसी पहले थी। तो जैसे मां बच्चे को संभालती है वैसे ही गायक को अपना गला संभालना पड़ता है। अब देखिए के. महावीर का गला कितना अच्छा था, पर अपना गला वह भी नहीं संभाल पाए।
  • ‘सी. रामचंद्रन की आत्मकथा पढ़ी है आपने?’ 
‘नहीं। क्यों?’
  • ‘सी. रामचंद्रन ने अपनी आत्मकथा में लता मंगेशकर पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।’
 ‘हां सुना है कि बहुत निम्न स्तर के आरोप लगाए हैं।’
  • ‘आप लोग मुकदमा कर सकते थे, मानहानि का उन पर।’ 
‘ओछी बातों पर ध्यान देना कोई काम नहीं होता।’
  • ‘उन्होंने लिखा है कि लता जी एक-एक गाना पाने के लिए रात-रात भर उनके पैर दबाती रहती थीं। और कि उनसे उनके रिश्ते थे वगैरह-वगैरह। यहां तक कि उन्होंने लिखा है कि लता मंगेशकर को उन्होंने ही लता मंगेशकर बनाया। उन्होंने ही लताजी को इस ऊंचाई तक पहुंचाया। और कि लताजी ने बाद में उनको ही नुकसान पहुंचाया। जीवन के आखिरी बीस साल उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री के बाहर रह कर बिताया जब कि वह चोटी के संगीत निर्देशक थे।’
‘बड़े संगीतकार थे सी. रामचंद्रन। इससे कब इंकार है?’ वह बोले, ‘पर जो वह लता मंगेशकर को लता मंगेशकर बना सकते थे, इस ऊंचाई तक पहुंचा सकते थे तो फिर कोई दूसरी लता मंगेशकर क्यों नहीं बना पाए? बना दिए होते! लता मंगेशकर बनने के लिए बड़ी तपस्या करनी पड़ती है। लता मंगेशकर दुनिया में एक ही हुईं। उस जैसी कोई दूसरी नहीं। मैं भी बड़ा संगीतकार हूं। पर लता मंगेशकर बना सकता हूं क्या? बना सकता तो अपनी बेटी राधा को क्या नहीं बना देता!’
बातचीत जारी है और उनकी लखनऊ से वापसी की तैयारी भी। फ्लाइट का समय हो चला है। बात राज ठाकरे की गुंडई की तरफ मुड़ गई है। पूछता हूं कि, 
  • ‘आप लोग भी विरोध करते नहीं दीखते राज ठाकरे की गुंडई का?’
‘क्या विरोध करें?’ वह पलट कर पूछते हैं कि, ‘आप क्या समझते हैं राज ठाकरे का निर्माण मराठियों ने किया?’ फिर खुद ही जवाब भी देने लगते हैं, ‘हरगिज नहीं। राज ठाकरे का निर्माण तो मीडिया ने किया है। वह उठ रहा है, बैठ रहा है, आ रहा है, जा रहा है। ज़हर उगल रहा है। मीडिया सब दिखा रहा है। जैसे समाज का वह बहुत बड़ा हीरो है। मीडिया उसको आज दिखाना बंद कर दे, आज उसकी दुकान बंद हो जाएगी।’
  • ‘अच्छा सुनता हूं कि आप सभी लोग एक साथ एक अपार्टमेंट में, एक ही फ्लोर पर रहते हैं। तीनों बहनें और आप का परिवार भी। कभी आपस में मनमुटाव या और कुछ दिक्कत नहीं होती?’
 ‘बिलकुल नहीं होती।’

  • ‘कैसे मैनेज करते हैं?’ 
‘कोई किसी के बीच दखलंदाज़ी नहीं करता।’ वह साथ आई अपनी पत्नी, बेटी और ऊषा मंगेशकर को दिखाते हुए कहते हैं, ‘यह लोग लखनऊ घूम कर आई हैं। तीन चार दिन से घूम रही हैं। क्या ख़रीदा, क्या खाया मुझे नहीं पता। क्या किया मुझे नहीं पता। मैंने क्या किया इनको नहीं पता। तो दखलंदाज़ी करते नहीं। इसी से मैनेज हो जाता है।’ वह मुसकुराते हैं। उठते हुए कहते हैं, ‘अब आज्ञा दीजिए!’ और हाथ जोड़ लेते हैं।

कमरे से बाहर उन का सामान रखा जा रहा है। वह पूछते हैं, ‘किस कार में बैठना है?’ इंगित कार में वह जा कर बैठ जाते हैं। बिलकुल शांत रस में डूबे हुए। ऐसे जैसे प्रेम, भाक्ति और मुक्ति का सूत्र तलाश रहे हों। मैं हाथ जोड़ कर कहता हूं कि, ‘मेरी कोई बात अप्रिय लगी हो तो क्षमा करिएगा।’

‘अरे नहीं, बिलकुल नहीं।’ कह कर वह मेरे हाथ थाम लेते हैं। और फिर शांत रस में डूब जाते हैं।

पर उनकी बेटी राधा मंगेशकर?

वह जैसे खौल रही हैं। ऊषा मंगेशकर भी निर्विकार खड़ी हैं, राधा मंगेशकर की बातें सुनती हुई, उसकी सहमति में सर हिलाती हुई। कुछ ही देर पहले हुई बातचीत में ऊषा मंगेशकर से भी सी. रामचंद्रन-लता मंगेशकर और आशा भोंसले प्रसंग पर मैं बात कर चुका हूं। वह कतरा गई थीं इन सवालों से। पर हृदयनाथ मंगेशकर नहीं कतराए। फट पड़े किसी बादल की तरह। फिर जैसे बरस कर शांत हो गए। लेकिन राधा मंगेशकर शांत नहीं हैं। वह मुझे कुपित नज़रों से देखती हैं। लेकिन मुझसे कुछ कहती नहीं। साथ आए साजिंदों और आयोजक से मराठी और अंगरेज़ी मिला कर वह अपने गुस्से का इजहार कर रही हैं। बता रही हैं कि, ‘इसीलिए मुंबई में तो हम लोग मीडिया से कभी बात ही नहीं करते!’ राधा मंगेशकर लगातार-प्रतिवाद दर्ज कराती जा रही हैं। पर धीरे-धीरे।
यह भुनभुन है कि भौंरे की गुनगुन। समझना मेरे लिए कठिन है। इसी बीच हृदयनाथ मंगेशकर का काफिला एयरपोर्ट की ओर निकल गया है।

[ नया ज्ञानोदय से साभार ]

[ 2011 में लिया गया इंटरव्यू ]

6 comments:

  1. Shuru kiya padhna to ant tak khud ko thamana mushkil ho gaya. jitni achchhi shaili utna hi achchha MASALA. Dhanyawaad is nidhi ko parosane hetu.

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  2. bahut hi accha vivranatmak aur saath hi kayi tathyo ko ujjagar karta hua...........

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  3. पता नहीं था कि लता मंगेशकर के एक भाई भी थे l बहुत दिलचस्प वार्तालाप l

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  4. Good Interwew Pande je.
    kalanidhi mishra

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  5. इस संसार के खेल निराले हैं. खुद को बेचने के लिए, खुद के अहम को संतुष्ट करने के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं. सी रामचंद्रन बडे संगीतकार होंगें लेकिन लता मंगेशकर के बारे में अगर ओछी बातें वे न करते तो कौन आज उनकी बात करता और कौन उनकी आत्मकथा की. कुंठाएं जो न करवाएं????

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  6. बहुत कुछ पढ़ने को मिला।

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