दयानंद पांडेय
हृदयनाथ मंगेशकर |
पिछले दिनों लखनऊ आए मशहूर संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर से वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय ने विस्तार से बातचीत की. उस इंटरव्यू के कुछ अंश :
प्रेम, भक्ति और मुक्ति। हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत के यही तीन सूत्र हैं। संगीत को वह भाषा और विचार के स्तर पर लेते हैं। वह कहते हैं, ‘लोगों की होगी कोई और भाषा। मेरी तो बस एक ही भाषा है और एक ही विचार। और वह है- संगीत। संगीत ही मेरी बोली है, मेरी भाषा है।’ वह ज़रा तफ़सील में आते हैं, ‘कर्ण को कुंडल और कवच मिले थे जैसे, वैसे ही संगीत मिला हुआ है मुझे, मेरे परिवार को। और इस के लिए कुछ ख़ास प्रयास नहीं करना पड़ा। आनुवंशिक है यह।’ बोलते-बोलते आंखें उनकी अधमुंदी हो गई हैं। वह डूब से गए हैं अपनी ही बात में, ‘व्यक्तिगत बात करूंगा। संगीत का जो सब से बड़ा रस है- शांत रस है। इसी लिए मैं तमाम लोगों से, माध्यमों से दूर रहता हूं। शांत रस ही मेरे लिए सब से बड़ा है। इसी लिए मैं कहता हूं पे्रम, भक्ति और मुक्ति। पहले तो आनुवंशिक है। साधना भक्ति हो गई। शांत रस मतलब मुक्ति। हालांकि मीरा को जब सुनता हूं तो लगता है कि थोड़ा-थोड़ा छोर पकड़ा है। पर फिर कुछ भौतिक चीज़ें आ जाती है। तो अगर संगीत में मैं शांत रस ला सकूं, वह भी अपने लिए, दूसरों के लिए नहीं तो जीवन शायद सार्थक हो, शायद प्रेम मिले, भक्ति मिले और फिर मुक्ति भी। इस लिए भी कि मेरे लिए जो अनुभूति है तो दूसरे भी करें तो यह अनुभूति मिले। पर जानता हूं कि दूसरे करेंगे नहीं। सभी को होता नहीं यह चाव। जिन को होता है वही आहिस्ता-आहिस्ता आते हैं। जैसे शास्त्रीय संगीत है, उस में शास्त्र है, तंत्र है।’
- ‘और फ़िल्म के संगीत में?’
- ‘आप संत ज्ञानेश्वर से बहुत प्रभावित हैं। कल कार्यक्रम में भी आप बार-बार उन का ज़िक्र कर रहे थे।’
‘मैं तो सभी संतों से प्रभावित हूं। मराठी मेरी मातृभाषा है, इसलिए मराठी में उनको पढ़ा ज़्यादा है।’
- ‘लेकिन मैं तो सुनता था कि कोंकणी आपकी मातृभाषा है।’
‘हां, कोकणी मेरी मूल मातृभाषा है। पर वह मराठी की अपभ्रंश है। फिर मैं गोवा में रहा नहीं। तो मुझे ज़्यादा आती भी नहीं।’
- ‘दुनिया लता मंगेशकर को मानती है। बड़ी गायिका। पर लता मंगेशकर आपको मानती हैं। फिर भी आप मास में नहीं हैं, उतने लोकप्रिय नहीं हैं, जितनी कि लता मंगेशकर या आशा भोंसले।’
‘मेरे को मास नहीं मानता, मेरे लिए यह अच्छा है। मास एक-एक सीढ़ी नीचे लाता है। किसी को पॉप बहुत पसंद है। मैं पॉप करूं तो मुझे नाम भी मिलेगा, पैसा भी। पर मैं कहां आ जाऊंगा? और यह मैं कोई आज से नहीं बचपन से ही सोचता हूं। क्योंकि मुझे जो संगत मिली, बड़े लोगों की मिली। उनसे सीखना हुआ यह। परपजली मैं इस सबसे दूर रहा, मास से दूर रहा। प्रेम, भक्ति और मुक्ति। शुरू ही से ऐसा ही सोचा। शुरू से ही साधना की। मतलब भक्ति की संगीत की। तो इसमें क्यों फंसता मैं?’
- ‘आपको लगता है कि आप इसमें सफल हो गए हैं?’
- ‘पर अब तो सुंदर लगती हैं।’
- ‘पता है आप को कि क्यों?’
‘क्यों?’
- ‘सफलता आदमी को सुंदर बना देती है। और अब तो उनमें जैसे देवत्व भी आ गया है।’
- ‘बिलकुल!’
रातें उनकी जगी और दिन सोए हुए गुज़रते हैं। खुद्दारी जैसे उन्हें खुदाई में मिली हुई है। वह लता मंगेशकर के छोटे और इकलौते भाई हैं। पर चाहते हैं कि संगीत में उन्हें हृदयनाथ मंगेशकर नाम से ही जाना जाए। किसी के भाई भतीजे के रूप में नहीं। असल में बात ही बात में उन से पूछ लिया कि, ‘लता मंगेशकर की सफलता का आप के जीवन में क्या प्रभाव है?’ हृदयनाथ मंगेशकर जैसे भड़क गए। बोले, ‘लता की सफलता से मेरा कोई संबंध नहीं है। मैं कभी उसका हाथ पकड़ कर चला ही नहीं। कभी नहीं कहा कि इस प्रोड्यूसर से या फला से कह कर मुझे काम दिलाओ।’ वह कहने लगे कि, ‘आप सोचिए कि जब वह मर्सडीज़ कार से स्टूडियो जाती थी, मैं बस से, ट्रेन से जाता था। घर में तीन और गाड़ियां थीं। पर मैं चलता बस और ट्रेन से ही था। 1960 में जब अपनी फिएट ख़रीदी तब मैं गाड़ी में बैठा। तो समझिए कि लता का कभी सहारा नहीं लिया। न उस का, न उस की सफलता का।’
- ‘तो भी लता मंगेशकर फिर भी मानती हैं कि आपके परिवार में इस समय अगर कोई संगीत जानता है तो वह हृदयनाथ मंगेशकर ही हैं।’
वह ज़रा रुके और फिर कहने लगे, ‘एक बात ध्यान में रखी हमेशा मैंने। खां साहब से लेकर दिनेश के महावीर तक कि जो मुझे अच्छा लगता है सीख लेता हूं। छोटा हूं। छोटा ही समझता हूं सबका अपने आप को।’
वह फिर ज़रा रुकते हैं और अपने दोनों हाथ कंधे तक दिखाते हुए कहते हैं, ‘इतने लोगों से सीखा है कि अगर सबका गंडा बांध लेता तो हाथ भर जाता मेरा। तो जब सीखता हूं उस समय अपनी क्षमता के हिसाब से सीखने की कोशिश करता हूं। संगीत का हर पहलू सीखने के लिए। हालांकि जिस का गंडा बांधा, उसको ही गुरु कहता हूं। पर सीखा बहुतों से।’
पिता के बारे में बोलते-बोलते जैसे उन की आंखों में चमक सी आ जाती है। कहने लगे, ‘मराठी में दीनानाथ मंगेशकर आज भी टाप के संगीतकार हैं। हमें या लता दीदी को मराठी संगीत में दीनानाथ मंगेशकर का बेटा या बेटी के रूप में ही आज भी जाना जाता है।’
वह जैसे जोड़ते हैं, ‘दीदी को पूरी देन उनकी ही है, पिता की ही है।’ उन की आंखें फिर बंद हो गई हैं। वह डूब गए हैं पिता की याद में। अचानक उन की आंखें खुलती हैं। वह कहते हैं, ‘आप को पता है कि अगर मेरे पिता जीवित रहते, हमारा बचपन अनाथ न होता तो हमारे परिवार में कोई भी प्ले बैक सिंगर नहीं हुआ होता। लता मंगेशकर भी नहीं। पिता किसी को प्ले बैक गाने ही नहीं देते। सभी संगीत, शुद्ध संगीत में रमे रहते। जैसे मैं रमा हूं।’
- ‘जैसे?’
- ‘और संगीत निर्देशकों में?’
पिता के बारे में बोलते-बोलते जैसे उन की आंखों में चमक सी आ जाती है। कहने लगे, ‘मराठी में दीनानाथ मंगेशकर आज भी टाप के संगीतकार हैं। हमें या लता दीदी को मराठी संगीत में दीनानाथ मंगेशकर का बेटा या बेटी के रूप में ही आज भी जाना जाता है।’
वह जैसे जोड़ते हैं, ‘दीदी को पूरी देन उनकी ही है, पिता की ही है।’ उन की आंखें फिर बंद हो गई हैं। वह डूब गए हैं पिता की याद में। अचानक उन की आंखें खुलती हैं। वह कहते हैं, ‘आप को पता है कि अगर मेरे पिता जीवित रहते, हमारा बचपन अनाथ न होता तो हमारे परिवार में कोई भी प्ले बैक सिंगर नहीं हुआ होता। लता मंगेशकर भी नहीं। पिता किसी को प्ले बैक गाने ही नहीं देते। सभी संगीत, शुद्ध संगीत में रमे रहते। जैसे मैं रमा हूं।’
- ‘गुलज़ार ने अभी कहीं कहा है कि आप दुनिया में अकेले ऐसे संगीतकार हैं जिसे एक हज़ार से अधिक बंदिशें कंठस्थ हैं।’
- ‘कहां तो बंदिश गाना ही मुश्किल होता है और आप ढाई हज़ार बंदिश याद किए बैठे हैं। बड़ी बात है।’
‘सब ऊपर वाले की कृपा है।’ वह हाथ ऊपर उठाते हुए कहते हैं। फिर कुछ चीज़ें गा-गा कर सुनाने लगते हैं।
- ‘पर म्यूज़िक कंपनियां क्यों नहीं तैयार हो रहीं?’
- जैसे आप से आज बात कर रहा हूं, वैसे ही जब लखनऊ लता मंगेशकर और फिर आशा भोंसले आई थीं तो उनसे भी बात की थी।’
- ‘अच्छा लगा। पर आशा भोंसले ने अपनी बातचीत में कहा था कि उनके साथ बहुत अन्याय हुआ है। सबने उनके साथ अन्याय किया है। परिवार ने भी।’
- ‘कैसे?’ फिर भी मैं पूछता हूं। धीरे से।
- ‘आशा भोंसले कहती हैं कि दीदी ने गाने में भी मुझे काटा। सारे अच्छे गाने खुद गाए। रद्दी गाने मेरे हिस्से डाल दिए।’
- ‘वह कहती हैं कैबरे वाले और घटिया गाने ही शुरू में उन्हें मिले।’
- ‘वो तो कहती हैं कि पंचम तक ने जो कि उनके दूसरे पति भी थे, सारे अच्छे गाने दीदी से गवाए, मेरे साथ अन्याय किया पंचम ने भी। मतलब आर. डी. वर्मन ने भी।’
- ‘सी. रामचंद्रन की आत्मकथा पढ़ी है आपने?’
- ‘सी. रामचंद्रन ने अपनी आत्मकथा में लता मंगेशकर पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं।’
- ‘आप लोग मुकदमा कर सकते थे, मानहानि का उन पर।’
- ‘उन्होंने लिखा है कि लता जी एक-एक गाना पाने के लिए रात-रात भर उनके पैर दबाती रहती थीं। और कि उनसे उनके रिश्ते थे वगैरह-वगैरह। यहां तक कि उन्होंने लिखा है कि लता मंगेशकर को उन्होंने ही लता मंगेशकर बनाया। उन्होंने ही लताजी को इस ऊंचाई तक पहुंचाया। और कि लताजी ने बाद में उनको ही नुकसान पहुंचाया। जीवन के आखिरी बीस साल उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री के बाहर रह कर बिताया जब कि वह चोटी के संगीत निर्देशक थे।’
बातचीत जारी है और उनकी लखनऊ से वापसी की तैयारी भी। फ्लाइट का समय हो चला है। बात राज ठाकरे की गुंडई की तरफ मुड़ गई है। पूछता हूं कि,
- ‘आप लोग भी विरोध करते नहीं दीखते राज ठाकरे की गुंडई का?’
‘क्या विरोध करें?’ वह पलट कर पूछते हैं कि, ‘आप क्या समझते हैं राज ठाकरे का निर्माण मराठियों ने किया?’ फिर खुद ही जवाब भी देने लगते हैं, ‘हरगिज नहीं। राज ठाकरे का निर्माण तो मीडिया ने किया है। वह उठ रहा है, बैठ रहा है, आ रहा है, जा रहा है। ज़हर उगल रहा है। मीडिया सब दिखा रहा है। जैसे समाज का वह बहुत बड़ा हीरो है। मीडिया उसको आज दिखाना बंद कर दे, आज उसकी दुकान बंद हो जाएगी।’
- ‘अच्छा सुनता हूं कि आप सभी लोग एक साथ एक अपार्टमेंट में, एक ही फ्लोर पर रहते हैं। तीनों बहनें और आप का परिवार भी। कभी आपस में मनमुटाव या और कुछ दिक्कत नहीं होती?’
- ‘कैसे मैनेज करते हैं?’
कमरे से बाहर उन का सामान रखा जा रहा है। वह पूछते हैं, ‘किस कार में बैठना है?’ इंगित कार में वह जा कर बैठ जाते हैं। बिलकुल शांत रस में डूबे हुए। ऐसे जैसे प्रेम, भाक्ति और मुक्ति का सूत्र तलाश रहे हों। मैं हाथ जोड़ कर कहता हूं कि, ‘मेरी कोई बात अप्रिय लगी हो तो क्षमा करिएगा।’
‘अरे नहीं, बिलकुल नहीं।’ कह कर वह मेरे हाथ थाम लेते हैं। और फिर शांत रस में डूब जाते हैं।
पर उनकी बेटी राधा मंगेशकर?
वह जैसे खौल रही हैं। ऊषा मंगेशकर भी निर्विकार खड़ी हैं, राधा मंगेशकर की बातें सुनती हुई, उसकी सहमति में सर हिलाती हुई। कुछ ही देर पहले हुई बातचीत में ऊषा मंगेशकर से भी सी. रामचंद्रन-लता मंगेशकर और आशा भोंसले प्रसंग पर मैं बात कर चुका हूं। वह कतरा गई थीं इन सवालों से। पर हृदयनाथ मंगेशकर नहीं कतराए। फट पड़े किसी बादल की तरह। फिर जैसे बरस कर शांत हो गए। लेकिन राधा मंगेशकर शांत नहीं हैं। वह मुझे कुपित नज़रों से देखती हैं। लेकिन मुझसे कुछ कहती नहीं। साथ आए साजिंदों और आयोजक से मराठी और अंगरेज़ी मिला कर वह अपने गुस्से का इजहार कर रही हैं। बता रही हैं कि, ‘इसीलिए मुंबई में तो हम लोग मीडिया से कभी बात ही नहीं करते!’ राधा मंगेशकर लगातार-प्रतिवाद दर्ज कराती जा रही हैं। पर धीरे-धीरे।
यह भुनभुन है कि भौंरे की गुनगुन। समझना मेरे लिए कठिन है। इसी बीच हृदयनाथ मंगेशकर का काफिला एयरपोर्ट की ओर निकल गया है।
यह भुनभुन है कि भौंरे की गुनगुन। समझना मेरे लिए कठिन है। इसी बीच हृदयनाथ मंगेशकर का काफिला एयरपोर्ट की ओर निकल गया है।
[ नया ज्ञानोदय से साभार ]
[ 2011 में लिया गया इंटरव्यू ]
Shuru kiya padhna to ant tak khud ko thamana mushkil ho gaya. jitni achchhi shaili utna hi achchha MASALA. Dhanyawaad is nidhi ko parosane hetu.
ReplyDeletebahut hi accha vivranatmak aur saath hi kayi tathyo ko ujjagar karta hua...........
ReplyDeleteपता नहीं था कि लता मंगेशकर के एक भाई भी थे l बहुत दिलचस्प वार्तालाप l
ReplyDeleteGood Interwew Pande je.
ReplyDeletekalanidhi mishra
इस संसार के खेल निराले हैं. खुद को बेचने के लिए, खुद के अहम को संतुष्ट करने के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं. सी रामचंद्रन बडे संगीतकार होंगें लेकिन लता मंगेशकर के बारे में अगर ओछी बातें वे न करते तो कौन आज उनकी बात करता और कौन उनकी आत्मकथा की. कुंठाएं जो न करवाएं????
ReplyDeleteबहुत कुछ पढ़ने को मिला।
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