Monday, 3 February 2014

तो धर्मवीर भारती भी चंचल बी एच यू से गप्प लड़ाते थे !

कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स

एक हैं चंचल बी एच यू। फेंकने के मामले में बड़े-बड़े फेंकुओं को भी पानी पिलाने में सिद्धहस्त। इतने कि कई बार मोदी भी पानी मांगें। बताइए भला धर्मवीर भारती भी उन से गप्प लड़ाते थे ! कांग्रेस की चमचई की धुर अलग तोड़े रहते हैं। लोग-बाग उन की जम कर धुलाई भी खूब करते रहते हैं। पर वह फेंकने के फेर में इतने बेफ़िक्र रहते हैं कि लोग लाख लपेटते रहें उन की सद्दी-मंझा खत्म ही नहीं होती। पतंग है कि उड़ती ही जाती है। तिस पर अपनी बात को चटक करने के लिए थोड़ा देशज की भी छौंक लगाए रहते हैं। तो भी मन करता है कि उन्हें बलबीर सिंह रंग की यह कविता भेंट कर दूं:

जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता हो,
उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा रह जाना बेहतर है।

लेकिन आत्म-मुग्धता और अहंकार के मारे चंचल बी एच यू को यह कविता भाएगी नहीं, न ही सुहाएगी। वह तो फेंकने में भी काका यानी राजेश खन्ना और राज बब्बर की परिक्रमा करते नज़र आते हैं। सब देख रहे थे की शीला दीक्षित हार रही हैं,लेकिन यह सावन के अंधे अंदाज़ में उन की विजयघोष करते हुए कोर्निश बजाते रहे थे तब। अब शीला का नाम नहीं लेते। आज कल राहुल और सोनिया की परिक्रमा लगाते हैं अपने फ़ेंकू अंदाज़ में। और लोग हैं कि उन की धुलाई करते रहते हैं। लेकिन चंचल जी चेहरा साफ करने के बजाय आइना साफ करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। वह रह-रह कर जार्ज और राजनारायण भी बुदबुदाते रहते हैं। लेकिन कभी जार्ज से मिलने नहीं जाते। उन के स्वास्थ्य की खबर नहीं लेते। और कांग्रेस की कोर्निश बजाते रहते हैं बिना राजनारायण की आत्मा की परवाह किए। राज्य सभा की चाह पूरी होगी कि नहीं, वह ही जानें पर कांग्रेस में उन को कोई पूछने वाला है नहीं, यह क्या वह भी नहीं जानते? जो भी हो उन के अपमान की प्यास का अंत हाल-फ़िलहाल तो दिखता नहीं। अभी तो वह राजा का बाजा बजा में न्यस्त और पस्त हैं।
  • चंचल जी, उस प्रबुद्ध मनोचिकित्सक का नाम भी सुझा दीजिए। फिर हम दोनों ही साथ चले चलते हैं। अपनी-अपनी कुंठा और मनोविकार को जंचवा लेते हैं। इलाज का खर्च भी हमारे जिम्मे रहेगा। रही बात भारती जी की तो मैं उन की बतौर लेखक बहुत इज़्ज़त करता हूं। अंधा युग, कनुप्रिया, सूरज का सातवां घोड़ा और मुनादी के लिए उन्हें सैल्यूट करता हूं। उन के संपादक रुप का भी आदर करता हूं। उन की बंगलादेश की रिपोर्ट भी मन में है। भारती जी के समय में मैं भी छपा हूं धर्मयुग में। लेकिन रही बात उन के साथ गप्प मारने की तो यह आप की तीरंदाज़ी है,फेंकना है, कुछ और नहीं। अरविंद कुमार जो तब के दिनों माधुरी के संपादक थे, उन से धर्मवीर भारती के अंदाज़े बयां पूछ लीजिए। रवींद्र कालिया भी हैं। उन के साथ धर्मयुग में काम कर चुके हैं। कालिया जी से भी बात कर लीजिए। उन की एक कहानी काला रजिस्टर है बांच लीजिए। धर्मयुग का ही काला रजिस्टर है वह। हरिवंश जी हैं, उन से जांच लीजिए। आलोक मेहरोत्रा हैं, हमारे पड़ोसी हैं,लखनऊ में, धर्मयुग में काम कर चुके हैं, बात कर लीजिए। कन्हैयालाल नंदन की आत्मकथा बांच लीजिए। नंदन जी ने धर्मयुग में जितनी यातना भुगती है, धर्मवीर भारती के हाथों, उतनी यातना शायद अपने किडनी के इलाज और डायलिसिस में भी नहीं पाई। धर्मवीर भारती कितना किस से गप्प मारते थे जान लीजिएगा। रही बात सुषमा जी की तो वह धर्मयुग में तब ट्रेनी हो कर गई थीं, भारती जी के बारे में उन से भी दरियाफ़्त कर लीजिए। पता पड़ जाएगा आप को कितना और किस से गप्प करते थे भारती जी। गणेश मंत्री की सादगी से भी आप परिचित नहीं होंगे। फेंकने और आत्मश्लाघा की कला में आप निष्णात हैं, यह हमीं नहीं, सभी लोग कहते हैं। आप अपनी पोस्टों पर आई प्रतिक्रियाओं को भी कभी बांच लिया कीजिए। आप क्या कर रहे हैं, पता चल जाएगा। आप कांग्रेस में रहिए या कहीं और यह आप की अपनी सुविधा है। पर यह जो अंधों की तरह राजा का बाजा बजा रहे हैं आप उस पर ज़रा शर्म कीजिए। किन्नर कभी गोरखपुर या कहीं भी राजनीति नहीं करते, वह गुस्सा जाहिर करते हैं लोगों का सिस्टम के खिलाफ़। लेकिन आप की बौखलाहट मुझ से किन्नर राजनीति का संग साथ करवा देती है, तो इस का क्या करें? क्या सिर्फ़ इस लिए कि मैं ने पूर्व मेयर किन्नर अमरनाथ पर एक पीस लिख दिया इस लिए? और एक बात यह भी अपनी जानकारी में रख लीजिए कि मैं स्वयंभू उपन्यासकार नहीं हूं। उपन्यास लिखने के लिए बहुत श्रम करना पड़ता है। आप की तरह लफ़्फ़ाज़ी कर के उपन्यास नहीं लिखे जाते। मेरे सात उपन्यास हैं। जिन पर राजेंद्र यादव जैसे संपादक ने हंस में चार पन्ने की संपादकीय भी लिखी है। हाइकोर्ट में कंटेंप्ट आफ़ कोर्ट भुगता है। ए्क उपन्यास पर गोरखपुर के महंत और माफ़ियायों की धमकी भुगती है। और भी तमाम बातें हैं। उदय प्रकाश दिनमान के समय के मेरे मित्र हैं, यह सही है। लेकिन मैं आज तक किसी बास या संपादक के आगे-पीछे नहीं घूमा, मित्र के पीछे-पीछे घूमने की तो बात ही क्या ! आप ने महिलाओं से मित्रता की बात कही है। अच्छी बात है। मेरी अच्छी मित्र हैं बहुत सारी महिलाएं भी। खैर छोड़िए मेरे लिए इतना ही काफी है कि आप हमारे फ़ेसबुकिया मित्र हैं और कि सब कुछ के बावजूद लोकतांत्रिक भी। बात सुनने की सलाहियत भी रखते हैं। अब बताइए कि कब चलें आप के प्रबुद्ध मनोचिकित्सक के पास। खर्च-बर्च मेरा ही रहेगा। लेकिन इलाज ज़रुरी है। अब यह उस प्रबुद्ध मनोचिकित्सक पर मुन:सर है कि इलाज वह मेरा करेगा कि आप का, कि दोनों का ! और अंत में आप की सुविधा के लिए आप के प्रिय मारियो मिरींडा का एक कैरीकेचर आप को समर्पित कर रहा हूं जो आप की मनोदशा दिखाने के लिए काफी है। 

  • चंचल जी, आप मुझे लेखक मानिए यह किसी डाक्टर ने आप से नहीं कहा। आप हमारे लेखन को कूड़ा मान लीजिए यह आप की अपनी सुविधा और अपनी पसंद है।आप मुझे घटिया लेखक कंबोज आदि के खाने में भी डाल दीजिए। यह आप का अपना विवेक है। लेकिन कुतर्क मत कीजिए, न अभद्र भाषा में बात कीजिए। यह तू तकार ठीक नहीं है। असहमत होना और बात है, तू तकार करना बिलकुल दूसरी। मुद्राराक्षस से मैं मिलता ही रहता हूं जब-तब। आज से नहीं, १९७८ से जब मैं विद्यार्थी था, गोरखपुर में तब से। उन का स्नेह मुझे हमेशा से मिलता रहा है।
  • चंचल जी, अब आप की भाषा भी अब अभद्र हो गई है। इस तू तकार की भाषा में मैं तो बात करने की आदत है नहीं है मेरी। आप ने जवाब मेरी पोस्ट पर लिखी थी, वहीं है।
  • आप विषयांतर करने के आदी है चंचल जी। बात आम की हो रही होती है, आप बबूल गिनने लगते हैं। अपनी यह पोस्ट एक बार फिर से बांचिए। यह तू तकार की भाषा से लदी-फदी है कि नहीं, देख लीजिए। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को पढ़ कर क्यों फेल होगा मैं या कोई और भला? यह सब आप की अपनी कल्पनाएं और कुतर्क हैं, कुछ और नहीं। पहले पूरा पढ़िए फिर उस पर टिप्पणी कीजिए तो गुड लगेगा। लेकिन आप का दोष है भी नहीं। आप तो या तो तू तकार जानते हैं या फिर फेंकना या फिर राजा का बाजा बजाना !
  • और हम कोई फ़ासिस्ट नहीं हैं कि किसी की लिखी बात मिटा दें। आप ने मेरी वाल पर जब भी, जो भी लिखा है, सब कुछ बदस्तूर पड़ा हुआ है। हम ने कभी किसी विश्वविद्यालय को बदनाम नहीं किया कभी। आप को यह ज़रुर बताया था, याद कीजिए कि जिस बी एच यू के आप पढ़े हुए हैं, मैं वहां परीक्षक हूं। सो उस विश्वविद्यालय को मैं भी प्यार करता हूं, इज़्ज़त करता हूं। लेकिन आप तो कौवा कान ले गया की तर्ज़ पर बात करने के आदी हैं, तो आखिर कहेंगे भी क्या?

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