Thursday 7 July 2016

आतंक का मज़हब नहीं होता यह गाना बेसुरा लगता है

फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

आतंकवाद को आतंकवाद कहना उन को बुरा लगता है
आतंक का मज़हब नहीं होता यह गाना बेसुरा लगता है

सेक्यूलर कहलाने का फैशन अब सिर्फ़ हिप्पोक्रेसी  है
मज़हबी आतंक पर उन को चुप रहना अच्छा लगता है

ज़मीनी लड़ाई लड़ने में अब दोस्तों का यकीन उठ गया
उन को आज़ादी के फर्जी नारों में जीना अच्छा लगता है

स्काच का जाम है कबाब है चिकन मटन बिरयानी भी
ए सी कमरे में बैठ लफ्फाजी करना अच्छा लगता है 

धर्म अफीम है वह कहते तो हैं लेकिन मानते कहां हैं
मनुष्यता नहीं  सांप्रदायिक तुष्टिकरण अच्छा लगता है

आतंकियों के खिलाफ चुप रहना भी एक स्ट्रेटजी है 
हिंदुत्व की कड़ाही में ऐसे घी डालना अच्छा लगता है

 [ 7 जुलाई , 2016 ]

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " मज़हबी या सियासी आतंकवाद " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सेक्यूलर कहलाने का फैशन अब सिर्फ़ हिप्पोक्रेसी है
    मज़हबी आतंक पर उन को चुप रहना अच्छा लगता है

    umda samyik rachna

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