Monday, 25 July 2016

गोडसे हत्यारा है गांधी का लेकिन मायावती भी गांधी की चरित्र हत्या की दोषी हैं



दलित फोबिया को भी स्वाति सिंह ने तोड़ कर चकनाचूर कर दिया है 


कुछ फेसबुकिया नोट्स 

कुछ लोग हैं जो नाथूराम गोडसे को भूल नहीं पाते कि वह गांधी का हत्यारा था । मैं भी नहीं भूल पाता हूं। गांधी के उस हत्यारे के प्रति मेरे मन भी गुस्सा फूटता है । इस लिए यह भूलने वाली बात है भी नहीं । लेकिन मैं यह भी नहीं भूल पाता हूं कि जीते जी अपनी मूर्तियां लगवा लेने वाली मायावती गांधी को शैतान की औलाद कहती हैं । यह कह कर अराजकता फैलाती हैं । नफ़रत के तीर चलाती हैं । इन के आका कांशीराम की राजनीतिक पहचान ही इसी अराजकता के चलते हुई जब वह गांधी को शैतान की औलाद कहते हुए दिल्ली में गांधी समाधि पर जूते पहन कर भीड़ ले कर वहां पहुंचे । वहां तोड़-फोड़ की। गांधी समाधि की पवित्रता को नष्ट किया । उस गांधी समाधि पर जहां दुनिया भर के लोग आ कर शीश नवाते हैं । श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं । 

लोग यह क्यों भूल जाते हैं ? यह कौन मौकापरस्त लोग हैं ? ऐसे हिप्पोक्रेटों की शिनाख्त कर इन की सख्त आलोचना क्या नहीं की जानी चाहिए ?

ठीक है आप गांधी से असहमत हो सकते हैं , पूरी तरह रहिए , कोई हर्ज़ नहीं है । लेकिन किसी पूजनीय महापुरुष को आप शैतान की औलाद क़रार दें और उस की समाधि पर जूते पहन कर भारी भीड़ ले कर जाएं और वहां तोड़-फोड़ करें , पवित्र समाधि को अपमानित करें , अपवित्र करें । और आप चाहते हैं कि लोग आप के इस कुकृत्य को भूल भी जाएं ? इस लिए कि आप दलित हैं ? मुश्किल यह है कि हमारे तमाम हिप्पोक्रेट मित्र इस अराजक घटनाक्रम को याद नहीं करना चाहते । यह सब याद दिलाते ही उन्हें बुखार हो जाता है । वह दवा खा कर चादर ओढ़ कर सो जाते हैं । यह वही राजनीतिक संस्कृति है जो तिलक तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार बकती हुई कालांतर में किसी मूर्ख के अपशब्द के प्रतिवाद में उस की बेटी बहन को पेश करने की खुले आम नारेबाजी में तब्दील हो जाती है । क्यों कि लोग दलित एक्ट और दलित फोबिया के बूटों तले दबे हुए हैं । और हिप्पोक्रेट्स चादर ओढ़ कर , कान में तेल डाल कर सो जाना अपने लिए सुविधाजनक पाते हैं । ज़रुरत इसी मानसिकता और हिप्पोक्रेटों को कंडम करने की है । अभी से ।  क्यों कि गांधी को शैतान की औलाद कहना भी अपराध ही है । आप दलित हैं तो आप को किसी को कुछ भी कहने का अधिकार किस संविधान ने दे दिया ? गांधी को शैतान की औलाद कहना , किसी की बेटी बहन को पेश करने का नारा लगाना अपराध है ।  गोडसे हत्यारा है गांधी का लेकिन मायावती भी गांधी की चरित्र हत्या की दोषी हैं । राजनीति में गाली गलौज की दोषी हैं ।  मायावती और उन की बसपा को यह तथ्य भी ज़रुर जान लेना चाहिए कि भारत सिर्फ़ दलितों का देश नहीं है । दलित होने के नाम पर वह देश को ब्लैकमेल करना बंद करें । बहुत हो गया ।

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एक अनाम , अराजनीतिक स्त्री स्वाति सिंह ने स्त्री अस्मिता के सवाल पर सिर्फ़ एक प्रश्न उठा कर मायावती के होश ठिकाने लगा दिए हैं । बड़ी शालीनता से बैक फुट पर ला दिया है मायावती को । अकेले दम पर उन के गुमान का गुब्बारा फोड़ दिया है । गरज यह कि राजनीतिक जीवन में नैतिक या अनैतिक तत्व भले बिसर गए हैं लेकिन उस की एक क्षीण रेखा अभी भी शेष दिखती है। स्वाति सिंह ने यह पूरी तरह साबित कर दिया है। हां , दलित फोबिया को भी स्वाति सिंह ने तोड़ कर चकनाचूर कर दिया है ।
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 अब यह तो मायावती के ही हाथ है कि जीती हुई बाजी हारती हुई भी जीतना चाहती हैं कि नहीं । गेंद अभी भी उन के ही हाथ है । एक नसीमुद्दीन सिद्दीकी टाईप जाहिल , भ्रष्ट और होमगार्ड रहे आदमी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर । मुस्लिम वोट की लालच बस ज़रा छोड़नी पड़ेगी । हालां कि नसीमुद्दीन के नाम पर कितने मुस्लिम वोट बसपा को मिलते होंगे यह बात शायद नसीमुद्दीन भी नहीं जानते होंगे । फिर भी यह कयास इस लिए है कि मायावती ने इस के पहले औरतों के मसले पर कई सारी कड़ी कार्रवाई की हैं। अमरमणि त्रिपाठी , पुरुषोत्तम द्विवेदी से लगायत आनंद सेन यादव तक । तो अगर नसीमुद्दीन को बाहर का रास्ता दिखाती हैं मायावती तो भाजपा फिर बैकफुट पर आ जाएगी । लेकिन मायावती को यह सद्बुद्धि दे भी तो भला कौन ? चापलूसों से घिरी उन की अपनी अकल पर तो फ़िलहाल ताला लगा है । बहरहाल इस नारी अस्मिता के युद्ध में अभी तो भाजपा फ्रंट फुट पर है और मायावती पस्त !
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स्वाति सिंह के पलटवार का परिणाम देखिए। मायावती का अब एक ताज़ा बयान आया है कि कल लखनऊ में जो भी कुछ हुआ वह असामाजिक लोगों ने किया , वह पार्टी कार्यकर्ता नहीं थे। असामाजिक लोग सभा में घुस गए थे । अजब है यह तो । कुछ असामाजिक लोग चार घंटे लगातार पार्टी के माइक से नारे लगाते रहे कि , पेश करो , पेश करो दयाशंकर सिंह की बेटी , बहन पेश करो ! ' और पार्टी के बड़े-बड़े नेता उन्हें रोक नहीं पाए ? ग़ज़ब !

लेकिन वहीं नसीमुद्दीन सिद्दीकी कह रहे हैं कि कार्यकर्ता ऐसा नहीं करते तो क्या करते ? कार्यकर्ताओं ने कुछ भी ग़लत नहीं किया । बिलकुल वीर रस में बोलते हुए नसीमुद्दीन ने कहा कि कार्यकर्ता तो '' बहुत कुछ '' करना चाहते थे । उन को किसी तरह डांट-डपट कर रोका ।
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दयाशंकर सिंह के एक अपशब्द से मायावती और बसपा जो कल तक गेन कर रही थी , कल ही लखनऊ की सभा में दयाशंकर सिंह की बहन बेटी पेश करो का नारा लगा कर बसपाई और मायावती आज की तारीख़ में लूजर बन गए हैं । बहुत बड़े लूजर । मायावती अपने कार्यकर्ताओं को इस बाबत पीठ ठोंक कर निरंतर घिरती जा रही हैं। स्त्री विरोधी रुख पर , गाली-गलौज पर चौतरफा घिरती जा रही हैं । दलितों की धन देवी वह ज़रुर हैं लेकिन सिर्फ़ दलितों के वोट के बूते तो वह कभी सत्ता में रही नहीं , न रह पाएंगी । दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने मास्टर स्ट्रोक मार दिया है । मायावती और बसपा अभी इस चोट को अपने जश्न में देखने से बच रही है , यह अलग बात है । मायावती और उन की बसपा को यह तथ्य भी ज़रुर जान लेना चाहिए कि भारत सिर्फ़ दलितों का देश नहीं है । दलित होने के नाम पर वह देश को ब्लैकमेल करना बंद करें । बहुत हो गया । इस लिए भी कि दलितों सहित यह सभी समुदाय का मिला-जुला देश है। सभी धर्म , सभी जातियों , सभी संस्कृतियों का साझा देश है भारत । सभी लोग यहां मिल-जुल कर रहते आए हैं , रहते रहेंगे ।

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कहां पेश होना है मायावती जी ! दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह के इस कातर प्रश्न का जवाब किसी मायावती , किसी प्रशासन , किसी आंदोलनकारी , किसी दलित ठेकेदार के पास हो तो उसे खुल कर बताना चाहिए। समय और स्थान बताना चाहिए । स्वाति सिंह की बेटी अभी छोटी है , नाबालिग है । उसे पेश करने का नारा कल लखनऊ में बसपा के नेताओं ने लगाया था । आज इस की प्रतिक्रिया में मायावती ने इस नारे की निंदा करने के बजाय अपने को दलितों की देवी घोषित कर दिया है । ऐसे बेशर्म और असभ्य लोगों को राजनीतिक जीवन या सामाजिक जीवन जीने का अधिकार कैसे और क्यों दिया जाना चाहिए ? वह चाहे दयाशंकर सिंह हों , मायावती हों या कोई और । मायावती चूंकि ख़ुद स्त्री हैं , कम से कम स्त्री स्मिता के ख़िलाफ़ उन्हें तो नहीं ही जाना चाहिए । और कि अपने कार्यकर्ताओं को ऐसे नारों से रोकना क्या उन का काम नहीं है ?

फिर कहां हैं स्त्री आंदोलन की वह पैरोकार , वह फेमिनिस्ट , वह कागज़ी औरतें , एन जी ओ वाली , मोमबत्ती जलाने और अख़बारों में फ़ोटो छपवाने वाली औरतें , फ़ेसबुक पर क्रांति की अलख जगाने वाली लिपी-पुती औरतें ? क्या स्वाति सिंह स्त्री नहीं हैं , कि उन की बेटी स्त्री नहीं है ? उन का कुसूर क्या है ? क्या उन को संबोधित करते हुए बेटी , बहन पेश करने की जिस तरह कल लखनऊ में खुले आम घंटों नारेबाजी हुई है वह क्या अश्लील और अराजक नहीं है ? असभ्यता का सबब नहीं है ? क्या किसी सभ्य समाज में इस तरह की असभ्यता बर्दाश्त की जा सकती है ? यह चुनी हुई चुप्पियां , चुने हुए विरोध हमारे समाज को आख़िर किस गर्त में ले जा रहे हैं , यह सोचने का विषय क्या नहीं है ? यह स्त्री विरोधी और मनुष्य विरोधी समय आख़िर हमें कहां ले जा रहा है ? यह कौन सी राजनीति है ? कौन सी विचारधारा है ?

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1. कांशीराम ने तब नरेंद्र मोहन की बेटी मांगी थी , अब इन को दयाशंकर सिंह की बेटी बहन दोनों चाहिए

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